पेशे से होम्योपैथिक चिकित्सक प्रमोद स्टीफन का मन ऐसी खोजों में रमता है जो लोगों के लिए लाभदायक तो हो, साथ ही पर्यावरण के लिए भी मुफीद हो. उन्होंने इस बार ऐसा जुगाड़ तैयार किया है, जो एसी की गर्म हवा से बाहरी दुनिया को बचाता है. गर्मियों के मौसम में उमस और ताप से बचने के लिए अब पूरी दुनिया एयर कंडिशनर का इस्तेमाल करने लगी है.
मगर इस एयर कंडिशनर का एक बड़ा नुक्सान यह है कि वह इसे इस्तेमाल करने वालों को तो ठंडी हवा के झोकों का उपहार देता है मगर बाहरी दुनिया को गर्म हवा की सौगात पेश करता है. बड़े शहरों और महानगरों में एयर कंडिशनर से निकलने वाली ये गर्म हवा और इसकी जहरीली गैस पर्यावरण के लिए बेहद नुक्सानदेह साबित हो रही हैं और इसे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण कारक भी बताया जा रहा है.
दुनिया इसके दुष्प्रभाव से चिंतित हो रही है मगर एसी का इस्तेमाल घटने के बजाए लगातार बढ़ता जा रहा है. भले दुनिया इसके खतरे को लगातार इग्नोर करती हो मगर दूर देहात में होम्योपैथी की प्रैक्टिस करने वाले एक चिकित्सक ने अपनी केबिन के लिए जब एसी खरीदा तो इस संकट को उसने सबसे पहले पहचाना और उसका समाधान करने बैठ गए.
ये चिकित्सक हैं प्रमोद स्टीफन जो पूर्वी चंपारण के सुगौली में रहते हैं. वे कहते हैं, ''हालांकि मेरे एसी की गर्मी सड़क पर बाहर निकलती थी और मुझे इसके लिए कोई टोकता नहीं था, मगर मैंने खुद सोचा कि यह पर्यावरण के लिए ठीक नहीं. इसलिए मैंने एक जुगाड़ तैयार किया."
प्रमोद का जुगाड़ कोई न्यूक्लियर साइंस नहीं है, विज्ञान की सरल तकनीक है. वे बताते हैं, ''मैंने सोचा, जैसे कूलर गर्म हवा को ठंडा करता है, वैसे एयर कंडिशनर के आउटपुट की गर्म हवा को भी ठंडा किया जा सकता है. मैंने वही तकनीक अपनाई. एक लोहे का फ्रेम बनवाया, जिसके ऊपर एक लोहे की पतली पाइप लगवाई जिससे बूंद-बूंद पानी टपकता था. एक मोटर लगवाया और फ्रेम के ऊपर एक पतला कपड़ा डाल दिया. उस कपड़े पर पानी गिरता है तो कपड़ा एसी से निकलने वाली गर्म हवा को ठंडा कर सकता है."
सबसे दिलचस्प बात यह है कि वे इस काम के लिए पानी भी वही इस्तेमाल करते हैं, जो एसी से वेस्ट के रूप में गिरता है. उसी पानी को नीचे फ्रेम में स्टोर करके मोटर से ऊपर चढ़ाते हैं. इस तरह वे एसी की गर्म और जहरीली हवा को तो नियंत्रित करते ही हैं, इसके वेस्ट वाटर का भी इस्तेमाल कर लेते हैं. यानी हर तरह के प्रदूषण को कम करते हैं.
वे आगे बताते हैं, ''मेरे पास मशीन तो नहीं कि मैं जांच कर बता दूं कि इससे होने वाले प्रदूषण के खतरे को कितना कम करता हूं. मगर बाहर हाथ लगाता हूं तो ठंडी हवा आती है. इससे लगता है, मेरा प्रयास सफल हो रहा है." डॉक्टर प्रमोद ने अपनी इस खोज को पेटेंट के लिए भेजा है, फिलहाल उन्हें प्रोविजनल पेटेंट मिला है. इस गांव में एसी इस्तेमाल करने वाले लोग कम हैं, मगर उनके एक चिकित्सक साथी ने इसे अपनाया है और वे इससे संतुष्ट हैं.
इसके अलावा भी प्रमोद कई तरह की खोजों में जुटे रहते हैं, उनका स्वभाव खोजी है. उन्होंने बिना बदबू वाला यूरिनल और शौचालय तैयार किया है, धान की भूसी में जानवरों के लिए पोषक तत्व की खोज की है. खराब हो चुके भोजन से बिजली बनाते हैं. इसके लिए उन्होंने बड़ी-सी प्रयोग स्थली बनाई है. अपने पेशे से जो समय बचता है, उसका इस्तेमाल वे इस तरह की खोजों में करते हैं.
नवाचार
प्रमोद स्टीफन एसी के वेस्ट वाटर को एक फ्रेम के नीचे जमा करते हैं. उसमें मोटर और पाइप लगाकर उसे फ्रेम के ऊपरी हिस्से तक ले जाते हैं. वहां से फ्रेम पर लगे एक कपड़े पर बूंद-बूंद पानी टपकता है, जिससे आउटपुट से आने वाली गर्म हवा ठंडी हो जाती है और वेस्ट वाटर का भी वाष्पीकरण हो जाता है.
सफलता का मंत्र
''पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ करना जरूरी है. न खर्च की चिंता करें, न रिजल्ट की. अपना काम करते रहें."
पुरस्कार
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान का सृष्टि सम्मान, चंपारण रत्न सम्मान और फोर्थ वर्ल्ड कांग्रेस, अमेरिका से प्रमाणपत्र.