दर्जी का जिक्र आते ही हर किसी के दिमाग में गले में फीता और हाथ में कैंची थामे व्यक्ति की छवि उभरती है. लेकिन अजमेर के सेठा सिंह रावत कुछ अलहदा किस्म के दर्जी हैं. सेठा और उनके भाई सेवा सिंह ने अपनी 'दर्जी ऑनलाइन’ कंपनी के जरिए छोटी-सी दुकान में चलने वाले इस व्यवसाय को विश्वव्यापी बना डाला है.
यह देश की ऐसी कंपनी है जो ऑर्डर पर चंद घंटों के भीतर देश-विदेश के उन दूरस्थ इलाकों में सिले कपड़े उपलब्ध कराती है जहां बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों की भी पहुंच नहीं. दर्जी ऑनलाइन देशभर के ग्रामीण स्तर के छह लाख आंत्रप्रेन्योर के साथ काम कर रही है और 60,000 गांव-ढाणियों तथा छोटे कस्बों में सिले-सिलाए कपड़े भेजती है.
वहां के 5,000 से ज्यादा स्कूलों की यूनिफॉर्म सिलाई का काम इसके पास है. काथा कारीगरी के जरिए बनाए गए इसके कपड़े, बैग और टी पाउच अमेरिका सहित कई देशों में भेजे जा रहे हैं. यह पैंट, शर्ट, टी-शर्ट, लोवर, ट्रैक सूट, हुडी, स्कूल-लैपटॉप बैग और स्पोर्ट्स कपड़ों की सिलाई करती है.
सेठा महज 12वीं कक्षा तक पढ़े हैं और सेवा 5वीं के बाद स्कूल नहीं गए. उनके परिवार का पहले बिजनेस से कोई नाता भी नहीं था. मगर यह उनके लिए बाधा नहीं बन सका. दोनों भाई मिलकर पूरा ऑनलाइन बिजनेस और लेन-देन संभालते हैं. अजमेर जिले के दातां गांव के रहने वाले सेठा और सेवा रावत राजपूत परिवार से आते हैं.
इनकी जिंदगी में अहम पड़ाव उस वक्त आया जब वे गांव से अजमेर आए. 2007-08 में सेठा एक कपड़ा शोरूम में काम करने आए थे. शुरू के दो-तीन साल उन्हें 2,000-2,500 रुपए महीना मिलते थे. गांव में रोजगार का साधन न था तो 2012 में छोटे भाई सेवा भी उनके साथ अजमेर आ गए और उसी शोरूम में 7,000 रुपए महीना पर काम करने लगे.
कपड़ा कारोबार में शोरूम संचालक के ठाट-बाट देखकर सेवा के मन में ऐसा ही कोई व्यवसाय करने का जज्बा जागा. वे कहते हैं, "बिजनेस शुरू करने का ख्वाब इसलिए भी पूरा हो पाया क्योंकि हमारे पास खोने के लिए सिर्फ 7,000 रुपए का वेतन था, मगर पाने के लिए पूरा संसार पड़ा था."
फिर क्या था! शोरूम में नौकरी करते हुए साल दो साल बाद ही एक महीने की मजदूरी के 7,000 रुपए लेकर वे दिल्ली पहुंच गए और सस्ती दर पर कपड़ों का रॉ मटीरियल लेकर अजमेर आ गए. कुछ दिन दोनों भाई शहर के अलग-अलग दर्जियों से कपड़े सिलवाते रहे, पर वह काम समय पर पूरा नहीं हो पाता था. ऐसे में उन्होंने मशीन खरीदने की ठानी. किसी जान-पहचान के व्यक्ति से डेढ़ लाख रुपए उधार लेकर उन्होंने दो मशीनें खरीदीं.
परिवार और गांव के लोगों को जब उनके व्यवसाय का पता चला तो उन्होंने बहुत मजाक उड़ाया. लोग ताना देते थे कि राजपूत भी कभी कपड़े सिलते हैं क्या? मगर दोनों भाई अपनी मुहिम में जुटे रहे. अब उनके सामने सवाल यह था कि कपड़ों को बेचें कहां? शहर के बड़े दुकानदार लागत मूल्य तक देने को तैयार न थे. फिर दोनों भाइयों ने गांवों में जाकर अपने कपड़े बेचने का काम शुरू किया. मगर वहां आने-जाने में पूरा वक्त बर्बाद हो जाता. ऐसे में उनके मन में ऐसी कंपनी बनाने का विचार आया जो ऑनलाइन ऑर्डर लेकर कपड़े तैयार करे और लोगों तक डिलीवर कर सके.
2017 में उन्होंने अपनी दर्जी ऑनलाइन कंपनी बनाई. सबसे पहले केंद्र सरकार की ओर से गांवों में संचालित कॉमन सर्विस सेंटर्स में काम करने वालों से कंपनी का जुड़ाव हुआ. उन्हीं के जरिए ऑर्डर मिलने लगे. अन्य जगहों से भी ऑर्डर मिलने लगे. पर कपड़ों को ग्राहकों तक भेजना आसान न था. ऐसे में उन्होंने सरकार के इंडिया पोस्ट की मदद ली जिसके जरिए देश के किसी भी कोने में आसानी से माल पहुंचाया जाने लगा.
सेठा कहते हैं, "बड़ी-बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां गांवों में अपने उत्पाद नहीं पहुंचा पातीं, ऐसे में हमने गांवों को ही अपने बिजनेस का केंद्र बनाया." फिर कोविड के दौर में जब बड़ी-बड़ी कंपनियों के स्टोर पर ताला लग गया, कम्युनिटी से जुड़े होने के कारण दर्जी ऑनलाइन का कारोबार चलता रहा. सेठा कहते हैं, "कोविड के दौर में दर्जी ऑनलाइन की देश ही नहीं, विदेशों तक पहुंच बनी." सेठा सिंह और सेवा सिंह का लक्ष्य आगामी दो-तीन साल में दर्जी ऑनलाइन को 100 करोड़ रुपए की कंपनी बनाने का है.
दर्जी ऑनलाइन अभी राजस्थान के चार शहरों में काम कर रही है जिसमें 500 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है. इसके साथ काम करने वालों में 90 फीसद महिलाएं हैं. पीएम नरेंद्र मोदी भी 'मन की बात’ के 92वें एपिसोड में इसके काम की सराहना कर चुके हैं. राजस्थान सरकार ने दिसंबर 2024 में होने वाले राइजिंग राजस्थान के तहत निवेश के लिए इससे एमओयू किया है.
नवाचार
दर्जी ऑनलाइन में कपड़ों के ऑर्डर से लेकर उन्हें उपभोक्ताओं तक भेजने का पूरा कार्य डिजिटलाइज्ड है. ऑर्डर मिलते ही आधुनिक मशीनों के जरिए स्पोर्ट्स और स्कूल यूनिफार्म की सिलाई होती है और तय समय में देश के 60,000 से ज्यादा गांव-कस्बों में उन्हें डिलीवर किया जाता है.
सफलता का मंत्र
महिला शक्ति की मेहनत हमारी सफलता का मूल मंत्र है. घर-परिवार की चिंता किए बिना इन्होंने दर्जी ऑनलाइन की सफलता में अहम भूमिका निभाई है.
पुरस्कार
पीएम के मन की बात के 92वें एपिसोड में डिजिटल आंत्रप्रेन्योर के तहत उल्लेख.
राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की ओर से डिजिटल क्षेत्र में कार्य के लिए सम्मानित किया गया.