"हमारी अमीरी ने सड़कें नहीं बनाईं, बल्कि हमारी सड़कों ने हमारी संपत्ति बढ़ाई." पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कनेडी के यह चर्चित उद्धरण केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के दफ्तर में प्रतीक्षा कक्ष की दीवार पर चस्पां है. गडकरी का लक्ष्य ऐसा राजमार्ग नेटवर्क बनाना है जो दुनिया में बेहतरीन हो, जिससे माल और यात्रियों की आवाजाही में बहुत कम समय लगे और भारतीय उद्योग की होड़ लेने की ताकत बढ़े.
राजमार्ग क्षेत्र को हर वर्ष 10,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों के निर्माण, विकास और रखरखाव के लिए 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि मिलती है. पिछले एक दशक में यह नेटवर्क करीब 60 फीसद बढ़कर करीब 1.4 लाख किलोमीटर हो चुका है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो पिछले 10 वर्षों में बेहतर राजमार्गों, एक्सप्रेसवे और इलेक्ट्रॉनिक टोल सुविधा के कारण मालवाहक ट्रकों के यातायात के समय में करीब 20 फीसद की कमी आई है.
ग्रीनफील्ड दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे दोनों शहरों के बीच यात्रा पर लगने वाला समय 48 घंटे से घटाकर सिर्फ 12 घंटे कर देगा. रेलवे भी इसी तरह के परिवर्तन का गवाह बन रहा है. पिछले एक दशक में सरकार ने इस पर वित्तीय खर्च काफी बढ़ाया है. वार्षिक परिव्यय 2014-15 में करीब 53,000 करोड़ रुपए से बढ़कर इस वित्त वर्ष में 2.5 लाख करोड़ रुपए हो गया है. दशक भर में साल-दर-साल 15 फीसद वृद्धि को दर्शाता है. 2047 को लेकर सरकार का विजन यही है कि दिल्ली-कोलकाता, या चेन्नै और मुंबई जैसे शहरों के बीच यात्रा करने में ट्रेन या ट्रकों को भी 6-8 घंटे से अधिक समय नहीं लगना चाहिए.
बुनियादी ढांचे पर भारी जोर
नरेंद्र मोदी सरकार भारत को वैश्विक शक्ति बनने के लिए आवश्यक विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा तैयार करने के अपने प्रयास के क्रम में सभी प्रमुख क्षेत्रों में भारी निवेश के लिए तैयार है. सरकार ने 2020 से 2025 के बीच पांच साल की अवधि के लिए 111 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत व्यय का खाका तैयार किया, जिसका उद्देश्य भारत को 50 खरब डॉलर (415 लाख करोड़ रुपए) की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ना है.
राष्ट्रीय इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन की पहल में कई सामाजिक और आर्थिक इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं शामिल हैं. इस राशि का एक-चौथाई हिस्सा एक मजबूत बिजली ढांचा तैयार करने में लगाया गया है, जिसमें उत्पादन, पारेषण और वितरण शामिल हैं. इस पहल का एक उद्देश्य ऊर्जा क्षेत्र में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी मौजूदा 42 फीसद से बढ़ाकर 2030 तक करीब 64 फीसद पर पहुंचाना है.
एक-तिहाई धनराशि शहरों और कस्बों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के इरादे के साथ सड़कों और रेलवे निर्माण पर खर्च की जानी है, ताकि लोगों और माल की आवाजाही तेज, सुगम और सुरक्षित हो सके. कुल मिलाकर, इस केंद्रीय राशि से करीब 9,800 परियोजनाएं आगे बढ़ रही है, जिसमें शहरी बुनियादी ढांचा, हवाई अड्डे, बंदरगाह और दूरसंचार शामिल हैं. इसका असर भी साफ नजर आता है. मसलन, बंदरगाहों पर जहाजों के लिए कुल टर्नअराउंड समय करीब 50 फीसद घटकर 94 घंटे से औसतन करीब 48 घंटे रह गया है. बंदरगाहों में कार्गो हैंडलिंग क्षमता भी दोगुनी बढ़कर करीब 160 करोड़ टन से अधिक हो चुकी है.
इन सभी प्रयासों का मकसद भारत में ढुलाई खर्च जीडीपी के मौजूदा 13-14 फीसद से घटाकर इकाई अंक पर लाना है, जो विकसित देशों के निर्धारित मानक के अनुरूप है. क्रिसिल रिसर्च के मुताबिक, 2030 तक बुनियादी ढांचे में निवेश करीब दोगुना हो जाएगा, जिसमें वित्त वर्ष 24 और वित्त वर्ष 30 के बीच 142.9 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है. रिपोर्ट के मुताबिक, निवेश का बड़ा हिस्सा सरकार से आएगा लेकिन निजी क्षेत्र तेजी से ऊर्जा और परिवहन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.
केपीएमजी इंडिया के पार्टनर और सरकार तथा सार्वजनिक सेवा प्रमुख नीलाचल मिश्रा कहते हैं, ''आधुनिक सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और हवाई अड्डों से कनेक्टिविटी बेहतर होगी तो ढुलाई लागत घटेगी और व्यापार दक्षता में भी सुधार होगा.’’ इतना बड़ा व्यय मददगार होता है. वे कहते हैं, "डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश से औद्योगिक उत्पादकता बढ़ेगी और नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा. भारतीय रिजर्व बैंक और राष्ट्रीय लोक वित्त तथा नीति संस्थान के अध्ययनों के मुताबिक, बुनियादी ढांचे पर खर्च किया गया हर एक रुपया जीडीपी में 2.5 से 3.5 रुपए का लाभ देता है."
स्मार्ट मोबिलिटी पर जोर
तीसरे कार्यकाल के पहले बड़े फैसलों में मोदी सरकार ने कुल 934 किलोमीटर लंबे आठ नए हाइ-स्पीड राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारे बनाने के लिए अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपए आवंटित किए. इनमें बेहतरीन, नियंत्रित आवाजाही वाला, चार लेन अयोध्या रिंग रोड, आगरा और ग्वालियर के बीच छह लेन वाला गलियारा और चार लेन वाला कानपुर रिंग रोड शामिल हैं. इस पहल का केंद्रबिंदु नासिक फाटा और पुणे के पास खेड़ तक 80 किलोमीटर लंबा आठ लेन का एलिवेटेड कॉरिडोर है. अगले दो दशकों में दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे जैसे ग्रीनफील्ड नियंत्रित आवाजाही वाले हाइ-स्पीड एक्सप्रेसवे की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है. ऐसे 50,000 किलोमीटर से अधिक लंबाई वाले एक्सप्रेसवे बनाने की योजना है. अधिकारियों के मुताबिक, इनके लिए कुल पूंजीगत व्यय 20 लाख करोड़ रुपए से अधिक होगा.
अगले दशक की रेल नेटवर्क विस्तार योजना में सबसे व्यस्त मार्गों को मल्टी-ट्रैक बनाना और सभी प्रमुख मेट्रो शहरों को जोड़ने वाले स्वर्णिम चतुर्भुज मार्गों को सेमी-हाइस्पीड वाले गलियारों में बदलना शामिल है. आज, रेलवे वंदे भारत एक्सप्रेस की करीब 50 जोड़ी ट्रेनें चलाता है. देश ने न केवल अपने लगभग पूरे रेल नेटवर्क का विद्युतीकरण किया है, बल्कि नई लाइनों और मल्टी-ट्रैक के जरिए इसका करीब 25,000 किलोमीटर तक विस्तार भी किया है, जो पिछले दशक की उपलब्धि की तुलना में करीब दोगुनी है. मेट्रो नेटवर्क भी अब देशभर के 20 शहरों तक पहुंच चुका है. बहुराष्ट्रीय कंपनी रोलिंग-स्टॉक प्रमुख एल्सटॉम के इंडिया प्रमुख ओलिवियर लोइसन कहते हैं, "हम भारत की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में विश्वस्तरीय सार्वजनिक परिवहन को प्रमुख साधन के तौर पर देखते हैं."
उड्डयन क्षेत्र में भी कोविड के बाद अभूतपूर्व उछाल देखने को मिला है. पहले से कहीं ज्यादा भारतीय हवाई यात्रा कर रहे हैं. इस उछाल ने भारत को 1.55 करोड़ सीटों के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू उड्डयन बाजार बना दिया. यह ब्राजील से आगे निकल गया है, जो अब चौथे स्थान पर खिसक चुका है. अमेरिका और चीन दो शीर्ष देश बने हुए हैं. एअर इंडिया, इंडिगो और अन्य भारतीय एयरलाइंस 1,000 से ज्यादा नए विमानों के लिए ऑर्डर दे चुकी हैं, और भारत इस मामले में किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे आगे है. केपीएमजी इंडिया के साझेदार और उड्डयन क्षेत्र प्रमुख गिरीश नायर कहते हैं कि आने वाले समय में भारत के उड्डयन ढांचे में कई एविएशन हब शामिल होंगे. उनके मुताबिक, "भारत में विशाल घरेलू और विदेशी ट्रैफिक को संभालने के लिए एविएशन इकोसिस्टम मजबूत करके कई हब बनाने की जबरदस्त क्षमता है, और यह ग्लोबल एविएशन हब के तौर पर उभर सकता है."
जलवायु अनुकूल उपाय
बुनियादी ढांचे को विस्तार के साथ-साथ देश का ध्यान इस पर भी है कि जलवायु संबंधी आपदाओं का खतरा कम किया जा सके. अंतर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआइ) के भारत स्थित मुख्यालय में महानिदेशक अमित प्रोथी कहते हैं, "आपदाओं की बारंबारता और गंभीरता बढ़ रही है." सीडीआरआइ के मुताबिक, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन संबंधी आपदाओं के कारण भारत में बुनियादी ढांचे को सालाना 31.6 अरब डॉलर (2.6 लाख करोड़ रुपए) का नुक्सान होने का अनुमान है, जिसमें अकेले बाढ़ के कारण 28 अरब डॉलर (2.3 लाख करोड़ रुपए) का नुक्सान हो सकता है.
इसके मुताबिक, "बुनियादी ढांचे के विकास में जलवायु अनुकूलन को शामिल करके... (भारत) बुनियादी ढांचा नष्ट या क्षतिग्रस्त होने से बचाएगा. साथ ही अधिक विश्वसनीय सार्वजनिक सेवाओं से सामाजिक विकास होगा और देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी."
विकसित देशों और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक संपत्तियों के निर्माण और विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर परियोजनाएं शुरू करना आम बात है. चीन ने यह प्रक्रिया बहुत पहले शुरू कर दी थी और अब उसका लाभ भी उठा रहा है. पिछले 20 वर्ष में उसने 40,000 किलोमीटर से अधिक लंबा दुनिया का सबसे बड़ा हाइ-स्पीड रेल नेटवर्क; पूरी धरती पर सबसे विशाल थ्री गॉर्ज हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम और उन्नत बीजिंग डेक्सिंग अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया है. चीन में शहरीकरण के प्रयास के अलावा 5जी नेटवर्क विस्तार भी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण रहा है. इससे वैश्विक संपर्क भी बढ़ा है.
दुनिया में भारत की स्थिति
दुनिया में भारत कहां खड़ा है? विश्व बैंक के मुताबिक, देश ने 2022 में सकल स्थिर पूंजी निर्माण पर अपने जीडीपी का करीब 29 फीसद खर्च किया, जबकि चीन ने 42 फीसद खर्च किया. इसके विपरीत ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने यह आंकड़ा अपने जीडीपी के 18-26 फीसद के दायरे में रखा. लार्सन ऐंड टुब्रो में कॉर्पोरेट रणनीति प्रमुख अनूप सहाय कहते हैं कि भारत के प्रगति की राह पर आगे बढ़ने में बुनियादी ढांचे की अहम भूमिका होगी, खासकर अर्थव्यवस्था पर इसका कई गुना असर दिख सकता है. मतलब यह कि गडकरी जैसे लोग सही हो सकते हैं—भारत में आज बन रहीं सड़कें, पुल और रेलवे लाइनें ही 2047 तक विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने की राह खोलेंगी.