scorecardresearch

लोकसभा चुनाव 2024 : क्या है इन विधायकों की कहानी, जो पहली बार पहुंचे संसद?

वे अब तक राज्य की राजनीति में सक्रिय थे लेकिन 4 जून के अपने फैसले में जनता ने ऐसे कई नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने का दिया मौका

 विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी, भाजपा सांसद
विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी, भाजपा सांसद
अपडेटेड 26 जुलाई , 2024

विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी, 62 वर्ष, ( भाजपा )  उत्तर कन्नड़, कर्नाटक

कागेरी 1994 से लगातार छह बार विधायक रहे लेकिन बेहद खूबसूरत मलनाड स्थित उनके गृह क्षेत्र सिरसी में 2023 में यह सिलसिला थम गया. कर्नाटक में भाजपा की पहली सरकार में वे मंत्री और 2019 में स्पीकर रहे.

हव्यक ब्राह्मण और विधि स्नातक कागेरी भाजपा को उस समय एक बेहतर विकल्प नजर आए जब 'संविधान बदलने' को लेकर की गई टिप्पणी की वजह से पार्टी को उत्तर कन्नड़ से अपने छह बार के सांसद अनंत हेगड़े को ही बदलना पड़ा.

वसंतराव चव्हाण, 69 वर्ष, ( कांग्रेस )  नांदेड़, महाराष्ट्र
 

वसंतराव चव्हाण

अपने गांव नायगांव के सरपंच; दो बार राज्य विधान परिषद सदस्य और 2009 में विधायक. सियासी मोर्चे में चव्हाण के नाम पर अच्छी-खासी उपलब्धियां जुड़ी हैं, जिन्हें एक दिग्गज चव्हाण के हटने से खाली हुई जगह भरने के लिए चुना गया. 2019 में भाजपा उम्मीदवार प्रताप पाटील चिखलीकर ने अशोक चव्हाण को उनके गढ़ में करारी शिकस्त दी थी लेकिन इसका बदला लेने की संभावना उस वक्त खत्म हो गई जब पूर्व मुख्यमंत्री खुद ही भाजपा में चले गए.

नए चव्हाण को चिखलीकर के खिलाफ लड़ाई के मैदान में उतारने के बावजूद जीत की बहुत ज्यादा उम्मीद तो नहीं की जा रही थी. लेकिन 'लोकनी निवादनुक हटत घेतली आहे (जनता ने चुनाव अपने हाथ में ले लिया)' के नारे ने नांदेड़ में नया जोश भर दिया और हवा का रुख बदल गया.

बलवंत वानखड़े, 56 वर्ष, ( कांग्रेस )  अमरावती, महाराष्ट्र

 बलवंत वानखड़े

नवनीत कौर राणा के खिलाफ मैदान में उतरना ऐसा मौका नहीं था, जिसे हर कोई आसानी से आजमाना चाहे. कांग्रेस ने इसके लिए बलवंत वानखड़े को चुना. उन्होंने अभिनेत्री-सांसद की तुलना में 19,731 अधिक वोट हासिल किए. वानखड़े लंबे समय तक आरपीआई (गवई) से जुड़े रहकर सियासी राह पर धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे. बड़ी छलांग का मौका उन्हें कांग्रेस में आने के बाद ही मिला. 2019 में विधानसभा पहुंचे और अब लोकसभा ने भी उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं.

के. राधाकृष्णन, 60 वर्ष, ( माकपा ) अलातुर (एससी), केरल

के. राधाकृष्णन

इडुक्की की ऊंची पहाड़ियों में बागान मजदूर मां-बाप के घर जन्म लिया. अभी भी जब मौका मिलता है, जंगल के बीच बसे अपने घर जाना और जमीनी स्तर पर काम करना पसंद करते हैं. पिनाराई विजयन कैबिनेट के लोकप्रिय सदस्यों में से एक रहे. एक विनम्र मार्क्सवादी नेता, पांच बार विधायक (1996 से) रहे और स्पीकर पद भी संभाला. अब वे केरल से माकपा के एकमात्र सांसद हैं.

संदीपनराव भुमरे, 62 वर्ष, ( शिव सेना ) औरंगाबाद, महाराष्ट्र

संदीपनराव भुमरे

औरंगाबाद या बदला हुआ नाम छत्रपति संभाजीनगर, मुंबई-ठाणे बेल्ट के बाहर शिवसेना की जड़ें मजबूत करने वाला पहला शहर था. इस बार जीत दर्ज करने वाले और पैठाण से पांच बार विधायक रहे भुमरे शिंदे गुट से हैं. खांटी शिवसैनिक वाली उनकी कार्यशैली ने यहां त्रिकोणीय मुकाबले में उनकी जीत पक्की की. हालांकि यह उनका गृह क्षेत्र नहीं था और उनके शराब कारोबार से जुड़े होने को लेकर भी सवाल थे.

नरेश चंद्र उत्तम पटेल, 68 वर्ष, ( सपा )  फतेहपुर, यूपी

नरेश चंद्र उत्तम पटेल

फतेहपुर में सपा के कुर्मी नेता भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति की राह में रोड़े अटकाकर मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे. 1989 में मुलायम सिंह यादव की पहली कैबिनेट के सदस्य और सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे पटेल कुर्मी बहुल गृह क्षेत्र में फतेह हासिल कर सपा के नए जाति-समावेशी समीकरण में एक साफ-सुथरा, शिक्षित चेहरा बन गए हैं.

कोटा श्रीनिवास पुजारी, 64 वर्ष  ( भाजपा ), उडुपी-चिकमगलूर, कर्नाटक

कोटा श्रीनिवास पुजारी

साधनों के अभाव के कारण सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना पड़ा, फिर भी पुजारी सक्रिय एक्टिविस्ट रहे. 34 वर्ष की आयु में राज्य की राजनीति में सक्रिय हुए और मंत्री पद तक पहुंचे. इसके अलावा लेखन को भी उन्होंने हथियार बनाया और दैनिक समाचारपत्रों के लिए कॉलम लिखकर स्थानीय मुद्दों को उठाते रहे. पुजारी तटीय कर्नाटक में ओबीसी बिलवा समुदाय के बीच भाजपा को मिली सफलता का प्रतिनिधित्व भी करते हैं.

अमरिंदर सिंह राजा वडिंग, 46 वर्ष, ( कांग्रेस )  लुधियाना, पंजाब

अमरिंदर सिंह राजा वडिंग

लोकसभा में उनकी पहली पारी किसी थ्रिलर वेब सीरीज से कम नहीं है. आखिरकार वे पार्टी के भीतर जबर्दस्त गुटबाजी से जूझकर और सबसे ताकतवर लोगों को चुनौती देने के बाद अपने सबसे अच्छे दोस्त के खिलाफ जीत हासिल करके ही संसद पहुंचे हैं. किशोरावस्था में ही माता-पिता को खो चुके अमरिंदर को उनके मामाओं ने पाला-पोसा.

2012 के विधानसभा चुनाव में बादलों के गढ़ गिद्दड़बाहा में चुनावी मोर्चा खोलकर वे सुर्खियों में आए (तबसे ही इस परिवार के प्रति बैरभाव खत्म नहीं हुआ है. यहां तक कि मनप्रीत बादल के पार्टी में होने के दौरान भी उनका विरोध करने से नहीं चूके). इस बार, अपने सबसे अच्छे मित्र रवनीत बिट्टू को चुनौती देने के लिए निर्वाचन क्षेत्र तक बदला, जो पाला बदलकर भाजपा में चले गए थे. अब यह अलग बात है कि चारों खाने चित होने के बावजूद बिट्टू मोदी 3.0 में मंत्री हैं.

ई. तुकाराम, 57 वर्ष, ( कांग्रेस )  बेल्लारी, कर्नाटक

ई. तुकाराम

कभी खनन फर्म में एकाउंटेंट थे और 2018 में मंत्री बने. लौह अयस्क से समृद्ध संदूर क्षेत्र से चार बार विधायक रहे, संत सरीखे नाम वाले कांग्रेस नेता ने चुनाव मैदान में बी. श्रीरामुलु जैसे बड़े नेता के खिलाफ मोर्चा खोला, जो (कुख्यात) 'बेल्लारी बंधुओं’ के सहयोगी हैं.

जीत के बाद से ही उन्हें लगातार इसका खंडन करना पड़ रहा है कि वे सिद्धरामैया कैबिनेट में शामिल होने के लिए अपनी सीट छोड़ रहे हैं. वे दोहराते आए हैं कि इसके बजाय वे खनिकों के परिधान तैयार करने वाले बेल्लारी को भारत की जींस राजधानी के तौर पर फेमस बनाने के राहुल गांधी के वादे को पूरा करने की दिशा में काम करना पसंद करेंगे.

आनंद भदौरिया, 46 वर्ष, ( सपा )  धौरहरा, उत्तर प्रदेश

 आनंद भदौरिया

अखिलेश यादव के नवरत्नों में से एक, जो इस क्षेत्रीय क्षत्रप के राजनीतिक सफर शुरू करने के समय से ही उनके साथ जुड़े हैं. इस पूर्व एमएलसी का नाम सपा उम्मीदवारों की पहली सूची में ही था. उनके जीतते ही एक पुरानी फोटो काफी वायरल हुई, जो पुलिस बर्बरता का प्रतीक बनी हुई है—फोटो 2011 में लखनऊ में पार्टी के विरोध प्रदर्शन के दौरान की है, जिसमें धौरहरा के नए सांसद सड़क पर गिरे नजर आ रहे हैं जबकि तत्कालीन डीआइजी डी.के. ठाकुर उनके चेहरे को पैर से रौंदते दिख रहे हैं.

लक्ष्मीकांत पप्पू निषाद, 54 वर्ष, ( सपा )  संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश

लक्ष्मीकांत पप्पू निषाद

मेंहदावल के पूर्व विधायक पूर्वी उत्तर प्रदेश में गैर-यादव ओबीसी समुदाय के बीच सपा की बढ़ती पैठ का एक और नया चेहरा हैं.

परिमल शुक्लाबैद्य, 66 वर्ष, ( भाजपा )  सिलचर, असम

परिमल शुक्लाबैद्य

पांच बार विधायक और कई विभागों के मंत्री रह चुके हैं. अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए विख्यात हैं.

रंजीत दत्ता, 67 वर्ष, ( भाजपा ), शोणितपुर, असम

रंजीत दत्ता

असम में भाजपा के शुरुआती दौर के नेताओं में से एक, राज्य इकाई के पूर्व प्रमुख पांच बार विधायक रह चुके हैं और सर्वानंद सोनोवाल की कैबिनेट (2016-21) में मंत्री भी रहे.

नागेश पाटील अष्टीकर, 52 वर्ष  ( शिवसेना (यूबीटी) ) हिंगोली, महाराष्ट्र

नागेश पाटील अष्टीकर

पूर्व विधायक और पुराने शिव सैनिक अष्टीकर ने ठाकरे परिवार के प्रति निष्ठावान रहते हुए मराठवाड़ा की जनसांख्यिकीय विविधता भरी इस सीट पर जीत हासिल की. अविभाजित सेना का गढ़ रहे इस क्षेत्र में मराठा, मुसलमान और दलित वोटों के मेल ने जीत में निर्णायक भूमिका निभाई.

के. गोपीनाथ, 61 वर्ष, ( कांग्रेस )  कृष्णागिरि, तमिलनाडु

के. गोपीनाथ

निवर्तमान सांसद ए. चेल्लाकुमार को टिकट न मिलने से निराश पार्टी कार्यकर्ताओं ने नामांकन दाखिले के समय तक उनका बहिष्कार किया. लेकिन अपने गृह क्षेत्र होसुर से तीन बार विधायक रह चुके 10वीं पास इस बुजुर्ग नेता को भी विजयनगर के इस पर्वतीय क्षेत्र के उतार-चढ़ावों का अच्छी तरह अंदाजा था.

तोखन साहू, 54 वर्ष, ( भाजपा )  बिलासपुर, छत्तीसगढ़

 

तोखन साहू,

केंद्रीय मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ का एकमात्र चेहरा हैं. इस ओबीसी नेता ने यह सियासी सफर कदम दर कदम आगे बढ़ते हुए तय किया—पंच, सरपंच फिर 2013 में लोरमी से विधायक रहने के बाद अब सांसद बने. बिलासपुर में उनके पूर्ववर्ती और राज्य भाजपा प्रमुख अरुण साव अब लोरमी से विधायक हैं.

अनूप प्रधान वाल्मीकि, 47 वर्ष , ( भाजपा )  हाथरस (एससी), उत्तर प्रदेश

अनूप प्रधान वाल्मीकि

पूर्व विधायक (पड़ोसी खैर क्षेत्र से) वाल्मीकि ने सियासी सफर की शुरुआत 2010 में ग्राम प्रधान के तौर पर की थी. हालांकि, इस सीट पर जीत के साथ ही उनकी मुश्किलें बढ़ गईं क्योंकि 2 जुलाई को सत्संग में भगदड़ की घटना उसके क्षेत्र हाथरस में ही हुई. अब पश्चिमी यूपी के इस निर्वाचन क्षेत्र में लोगों से गहरा राफ्ता कायम रखने को उन्हें मेहनत करनी पड़ सकती है.

सालेंग ए. संगमा, 45 वर्ष, ( कांग्रेस ) तुरा (एसटी), मेघालय

सालेंग ए. संगमा

चार बार विधायक रहे संगमा को 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया. 2023 में जब मुकुल तृणमूल कांग्रेस में गए तो सालेंग ने एनसीपी छोड़ घर वापसी की. और मुकुल के भाई जेनिथ तथा सीएम कॉनराड संगमा की बहन अगाथा को हराकर बदला चुकाया.

बृजमोहन अग्रवाल, 64 वर्ष, ( भाजपा )  रायपुर, छत्तीसगढ़

बृजमोहन अग्रवाल

वर्ष 1990 के बाद से लगातार आठ बार विधानसभा चुनाव जीते, 2023 में भी रायपुर से जीत हासिल की, फिर राज्य में मंत्री के तौर पर शपथ ली. ऐसे में उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारने का फैसला काफी हैरानी भरा रहा. रमन सिंह मंत्रिमंडल में कई बार मंत्री पद संभालने का अनुभव रखने वाले अग्रवाल के समर्थकों का कहना है कि उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह न मिलना आश्चर्यजनक ही है.

शिवमंगल सिंह तोमर, 60 वर्ष, ( भाजपा )  मुरैना, मध्य प्रदेश

शिवमंगल सिंह तोमर

पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी माने जाने वाले किसान के बेटे को दिमनी विधायक के तौर पर एक और कार्यकाल के लिए चुना जाना तय माना जा रहा था लेकिन 2023 में उनके गुरु को वहां भेज दिया गया. भाजपा ने एक और बदलाव किया और उन्हें सीट तोहफे में मिल गई.

भरत सिंह कुशवाहा, 54 वर्ष, ( भाजपा )  ग्वालियर, एमपी

भरत सिंह कुशवाहा

शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट (2020-23) में मंत्री रहे ग्वालियर ग्रामीण के इस पूर्व विधायक को ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तरजीह देना काफी हैरान करने वाला था, खासकर उस वक्त जबकि 2023 का चुनाव वे हार चुके थे. ग्वालियर-चंबल बेल्ट में नरेंद्र तोमर के विश्वासपत्र होने का उन्हें फायदा मिला.

भजन लाल जाटव, 55 वर्ष  ( कांग्रेस )  करौली-धौलपुर (एससी), राजस्थान

भजन लाल जाटव

वैर से दो बार विधायक और 2018 के बाद अशोक गहलोत की सरकार में गृह राज्य मंत्री और पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे. 2023 के विधानसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने के बावजूद लोकसभा चुनाव में मौका मिला तो उन्होंने शानदार वापसी की.

छत्रपाल सिंह गंगवार, 68 वर्ष, ( भाजपा )  बरेली, यूपी

छत्रपाल सिंह गंगवार

आजीवन आरएसएस कार्यकर्ता रहे और पूर्व विधायक छत्रपाल गंगवार ने इस सीट का प्रतिनिधित्व करने में एक अन्य गंगवार—पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार—की जगह ली. 1989 से करीब लगातार बरेली के सांसद रहे संतोष 70 से ऊपर के हो चुके थे.

दुलू महतो, 49 वर्ष, ( भाजपा )  धनबाद, झारखंड
   

दुलू महतो

जब भाजपा ने पड़ोस के ही गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र के बाघमारा से तीन बार विधायक रहे दुलू महतो को कोयलांचल भेजने का फैसला किया तो तमाम लोगों को खासा अचरज हुआ क्योंकि इसके लिए उसे तीन बार सांसद रहे पशुपति नाथ सिंह को हटाना पड़ रहा था.

फिर भावी सांसद की पृष्ठभूमि भी कुछ अलग ही तरह की थी: दुलू दो आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जा चुके हैं—इसमें एक पुलिस पर हमले और दूसरा आबकारी टीम पर हमले का है. वे इसलिए चुनाव लड़ सके कि दोनों ही मामलों में उन्हें दो साल से कम की सजा मिली थी. दुलू ने दोनों फैसलों को झारखंड हाइ कोर्ट में चुनौती दी है...फेहरिस्त में 20 अन्य मामले भी हैं.

अतुल गर्ग, 66 वर्ष, ( भाजपा )  गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

अतुल गर्ग

गाजियाबाद के पहले मेयर डी.सी. गर्ग—जो योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में राज्य मंत्री रहे—के बेटे अतुल वैश्य वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. शिक्षा उद्योग में उनकी पकड़ खासी मजबूत है.

— अजय सुकुमारन, धवल एस. कुलकर्णी, अमरनाथ के. मेनन, कौशिक डेका, राहुल नरोन्हा, जीमोन जैकब, रोहित परिहार और अमिताभ श्रीवास्तव.

Advertisement
Advertisement