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पहले थे राज्यसभा के सदस्य, अब लोकसभा में लोगों के हक की आवाज उठाएंगे ये नेता

राज्यसभा के कई दिग्गज सदस्यों ने आखिरकार जनता की अदालत में जाने का फैसला किया और अब अपने क्षेत्र के प्रतिनिधि के तौर पर लोकसभा की शोभा बढ़ाने पहुंचे

अनिल देसाई, शिवसेना (यूबीटी) सांसद
अनिल देसाई, शिवसेना (यूबीटी) सांसद
अपडेटेड 26 जुलाई , 2024

पहली-पहली बार पूर्व राज्यसभा सदस्य

अनिल देसाई, 66 वर्ष, (शिवसेना (यूबीटी)), मुंबई दक्षिण मध्य, महाराष्ट्र

दो बार उच्च सदन के सदस्य रहे देसाई का मृदुभाषी व्यवहार उन्हें एक सामान्य शिवसैनिक से अलग खड़ा करता है. दिग्गज नेताओं में शुमार देसाई अविभाजित शिवसेना के एक महत्वपूर्ण रणनीतिकार रहे. न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी के पूर्व कर्मचारी और सफेदपोश कर्मचारियों से जुड़े शिवसेना के संगठन स्थानीय लोकाधिकार हक्क महासंघ के वे प्रमुख हैं.

मूलत: गोवा के कैनाकोना से ताल्लुक रखने वाले देसाई पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के भरोसेमंद सहयोगी हैं. उन्हें दो बार सांसद रहे शिंदे गुट के सदस्य राहुल शेवाले के खिलाफ मैदान में उतारा गया था. यह एक समझदारी भरा फैसला साबित हुआ. उनकी इस जीत में मुसलमानों और ईसाइयों का समर्थन काफी अहम रहा.

पीयूष गोयल, 60 वर्ष, ( भाजपा) मुंबई उत्तर, महाराष्ट्र

पीयूष गोयल

जब पीयूष गोयल को पहली बार लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारने के लिए इस 'सबसे सुरक्षित सीट' पर भेजा गया था तो यह किसी अनजान क्षेत्र में पैराशूट से उतारने जैसा नहीं था. उनके पिता वेद प्रकाश गोयल—जो एक उद्योगपति थे, लंबे समय तक भाजपा कोषाध्यक्ष रहे और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार मंस मंत्री भी बने—का इन इलाकों से अच्छा-खासा वास्ता रहा था.

वे महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद भी रहे थे. उनकी मां चंद्रकांता गोयल मुंबई में गहरी पैठ रखती थीं, जो सायन से पार्षद और तीन बार माटुंगा सीट से विधायक रही थीं. भाजपा 2014 से इस सीट पर 70 फीसद से अधिक वोट हासिल करती रही है. हालांकि, केंद्रीय मंत्री यह रिकॉर्ड तो बरकरार नहीं रख सके लेकिन 65.6 फीसद वोट के साथ ही सही राज्य में इंडिया ब्लॉक की एकतरफा लहर को रोकने में सफल रहे.

मनसुख मांडविया, 52 वर्ष, (भाजपा) पोरबंदर, गुजरात

मनसुख मांडविया

पीयूष गोयल की तरह वे भी पहले संसद में रह चुके हैं. लेकिन उनसे उलट इस मृदुभाषी लेउवा पटेल का ताल्लुक हनोल गांव के एक साधारण-से किसान परिवार से है. हनोल गांव पालीताना स्थित ऐतिहासिक जैन केंद्र से कुछ मील की दूरी पर मंदिरों से सजी शत्रुंजय पहाड़ी पर है. राजनीति और पशु चिकित्सा विज्ञान दोनों के छात्र रहने के दौरान एबीवीपी का हिस्सा रहे.

2002 में 30 वर्ष की उम्र में गुजरात विधानसभा में सबसे कम उम्र के विधायक बने. उच्च सदन के सदस्य के तौर पर 12 साल के कार्यकाल और एक दशक तक मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने के बावजूद मांडविया ने व्यक्तित्व में सादगी बरकरार रखी है. वे साइकिल से संसद आते अक्सर देखे जा सकते हैं.

परशोत्तम रूपाला, 69 वर्ष, ( भाजपा ) राजकोट, गुजरात

परशोत्तम रूपाला

"महाराजाओं ने अपनी बेटियां विदेशी शासकों और अंग्रेजों को दे दी थीं."—2016 से लगातार उच्च सदन में आसीन मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री ने गणतांत्रिक मूल्यों के साथ यह टिप्पणी संभवत: किसी नेक इरादे से की. लेकिन इस पर बेहद तीखी प्रतिक्रिया हुई, जिसकी धमक सौराष्ट्र और गुजरात से कहीं आगे तक सुनी गई.

यही नहीं, अमरेली के मूल निवासी को 2024 में राजकोट से मैदान में उतारने के खिलाफ अभियान तक छिड़ गया. उनके कई बार माफी मांगने के बावजूद राजपूतों का गुस्सा शांत नहीं हुआ था. लेकिन भाजपा ने इस अनुभवी नेता पर भरोसा किया और अन्य फैक्टर के अलावा पाटीदारों के बदले रुख ने उनकी जीत पक्की की.

विवेक ठाकुर, 54 वर्ष, (भाजपा ) नवादा, बिहार

विवेक ठाकुर

पूर्व केंद्रीय मंत्री सी.पी. ठाकुर के बेटे को राजनीति तो विरासत में ही मिली थी, और उनके इस सफर की शुरुआत भाजपा की युवा इकाई से हुई, जो 2020 में राज्यसभा से होते हुए अब निर्वाचित सदन तक पहुंच गई. दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से राजनीति विज्ञान में डिग्री के अलावा एक डिग्री कानून की पढ़ाई में ली.

दिल्ली स्थित भारतीय विदेश व्यापार संस्थान से ली गई एक और डिग्री ने वाणिज्य मंत्रालय की सलाहकार समिति की उनकी सदस्यता की राह खोली. पार्टी के उनके सहयोगी उन्हें ऐसे ही 'बिहार के सबसे ज्यादा शिक्षित सांसदों’ में नहीं गिनते, बल्कि उन्हें एक नया और प्रगतिशील दृष्टिकोण रखने वाला काफी पढ़ा-लिखा नेता माना जाता है.

रुद्र नारायण पाणि, 65 वर्ष, (भाजपा) ढेंकनाल, ओडिशा

रुद्र नारायण पाणि

एक और पूर्व राज्यसभा सदस्य (2004-12), जो पहले कभी संसद के निचले सदन के निर्वाचित सांसद नहीं रहे. ऐसा नहीं है कि उन्होंने इसके लिए कोई कोशिश नहीं की थी. पाणि का सियासी सफर इस मायने में काफी अलग है क्योंकि वे अपने सातवें प्रयास में लोकसभा पहुंच पाए हैं!

जब ओडिशा में भगवा रंग इतना ज्यादा लोकप्रिय नहीं था, तब भी इस भाजपा नेता ने छह बार ढेंकनाल से चुनाव लड़ा—1991, 1996, 1999 (बतौर निर्दलीय), 2009, 2014 और 2019 में. लेकिन हर बार हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, शायद उनकी इसी दृढ़ता ने भाजपा के चाणक्य को इस कदर प्रभावित किया कि उन्हें एक और मौका दिया गया—इस बार भाजपा लहर पर सवार होकर वे लोकसभा पहुंच ही गए.

- धवल एस. कुलकर्णी, जुमाना शाह, अर्कमय दत्ता मजूमदार और अमिताभ श्रीवास्तव.

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