scorecardresearch

पर्यावरण मंत्रालय : वादें बहुत सारे, उन्हें पूरा करने के लिए मजबूत संकल्प कहां?

हरित ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उपयोग के सरकार के बड़े-बड़े वादों को पूरा करने के लिए मजबूत संकल्प की दरकार. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के लिए प्रदूषण और घटता वन क्षेत्र चिंता की प्रमुख वजहें

भूपेंद्र यादव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री
भूपेंद्र यादव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री
अपडेटेड 28 जून , 2024

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के पिछले एक दशक के पर्यावरण रिपोर्ट कार्ड में महत्वाकांक्षा और अनदेखी का एक अजब-सा पेंच नजर आता है. एक ओर जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (एनएएफसीसी) जैसी पहलकदमियों ने लगभग 40 ऐसी परियोजनाओं को आकार दिया है जो जलवायु परिवर्तन से निबटने में मददगार हों.

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और साथ ही आपदा प्रतिरोधी इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए गठजोड़ शुरू करने में भारत का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय इरादे को दर्शाता है. अभी बिजली की कुल जरूरत का 44 फीसदी स्वच्छ ईंधन के उपयोग से हासिल किया जाता है. 2030 तक इसे 50 फीसद तक ले जाना और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना, क्लाइमेट ऐक्शन के मोर्चे पर ये बड़ी हिम्मत और हौसले वाली प्रतिबद्धताएं हैं.

फिर भी, रणनीतिक परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में संशोधन ने पर्यावरणविदों को नाराज कर दिया है. द स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक, वन क्षेत्र में 1,540 वर्ग किलोमीटर की मामूली वृद्धि हुई है.

यह 2019 में कुल क्षेत्रफल के 21.67 फीसद से बढ़कर 2021 में 21.71 फीसद हुआ है. लेकिन इस दौरान 1,582 वर्ग किलोमीटर मध्यम दर्जे के घने जंगलों का नुक्सान भी तो हुआ है. वन्यजीवों के मामले में स्थिति थोड़ी आशावादी है. 2023 की बाघ गणना कामयाबी की कहानी दर्शाती है: यानी 3,682 बाघ, जो कि 2018 के मुकाबले 715 ज्यादा हैं. 70 साल की गैरहाजिरी के बाद चीते एक बार फिर धीरे-धीरे अपने पैर जमा रहे हैं. लेकिन जैसे-जैसे वन्यजीवों की संख्या बढ़ रही है, उनकी रिहाइश की जगह सिकुड़ रही है. इस विरोधाभास पर ध्यान देने की जरूरत है.

शहरी भारत की कहानी धूल और धुएं में लिखी गई लगती है. भारत के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं. सिंगल यूज प्लास्टिक, बढ़ता ई-कचरा, तथा लैंडफिल के पहाड़. निरंतर बनी हुई ये समस्याएं एक गंभीर तस्वीर पेश करती हैं. भाजपा के 2024 के घोषणापत्र में स्वच्छ हवा, हर तरह के कूड़े-कचरे का वैज्ञानिक ढंग से निबटान और नदियों का कायाकल्प करने के अलावा 15 से ज्यादा पर्यावरणीय मुद्दों से निबटने का वादा किया गया है. लेकिन वादों के अमल में पौधे लगाने की तरह सिर्फ उन्हें रोपने से ज्यादा की जरूरत होती है. खुराक देने के अलावा गहरी प्रतिबद्धता दरकार होती है.

क्या किया जाना चाहिए

प्रदूषण से निबटना

भारतीय शहर वायु प्रदूषण, अशुद्ध पानी और ठोस कचरे से निकलने वाले प्रदूषण से घुट रहे हैं. सिर्फ महानगर ही नहीं, टियर 2 और 3 शहरों में भी एक्यूआइ खतरनाक स्तर पर रिपोर्ट होने लगा है. बुनियादी वजह को दूर करने के लिए एक समयबद्ध, व्यापक योजना की जरूरत है

कानूनों में संशोधन

जैव विविधता अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और वन संरक्षण अधिनियम जैसे प्रमुख कानूनों में संशोधन किया गया, जिसे कई विशेषज्ञों ने गारंटीकृत सुरक्षा को कमजोर करने के रूप में देखा. भारत को वन्यजीव और वानिकी में फायदे इन्हीं कानूनों से मिलते हैं. कोई भी बदलाव सभी हितधारकों से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर होना चाहिए. वन, पर्यावरण और वन्यजीवों को विकास में बाधा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए

पार्कों का रखरखाव

संरक्षित क्षेत्र (अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान) में किसी भी तरह के दखल की इजाजत नहीं होनी चाहिए. इनके कुछ हिस्सों को गैर-अधिसूचित करने की प्रवृत्ति  विरासत पर हमले जैसी है.

एक बारीक संतुलन

इंसान और जानवरों का संघर्ष बढ़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के आधार पर लीक से हटकर सोच के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने के लिए एक विस्तृत दृष्टिकोण की जरूरत है

उत्सर्जन पर नजर

भारत को 2015 में पेरिस जलवायु वार्ता के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन नियंत्रण का जो लक्ष्य मिला था वह उसने हासिल कर लिया है. लेकिन इसे अंतिम लक्ष्य पर नजर रखने की जरूरत है और वह है 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना

उज्ज्वला का आकलन

उज्ज्वला योजना का विश्लेषण—जो बीपीएल परिवारों को एलपीजी कनेक्शन मुहैया करती है—यह देखने के लिए जरूरी है कि क्या इससे जंगलों से सटे गांवों में ईंधन के रूप में लकड़ी के उपयोग में कमी आई है. अगर ऐसा नहीं है तो ऐसे समुदायों को और ज्यादा गैर-लकड़ी वाला ईंधन दिया जा सकता है

‘‘‘सरकार को वन्यजीवन, जंगल और पर्यावरण से जुड़े उन कानूनों तथा नीतियों का पुनर्मूल्यांकन कर फौरन हटाना चाहिए जिन्हें हल्का कर दिया गया है’’

भूपेंद्र यादव, 54 वर्ष, भाजपा, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री

कानून से वास्ता: अजमेर में जन्मे भूपेंद्र यादव ने वकालत की शिक्षा ली है. उन्होंने छात्र राजनीति में शामिल होने के बाद भाजपा में शामिल होने से पहले आरएसएस के साथ काम किया. राजनीति में आने से पहले वे सुप्रीम कोर्ट में वकील थे

चुनावों का समन्वय: यादव 2012 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे और अक्सर भाजपा के समन्वयकों की केंद्रीय टीम का हिस्सा रहे हैं. उन्हें ओडिशा में सीएम चुनने के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था. इस राज्य को भाजपा ने हाल ही पहली बार जीता है. वे 2021 से पर्यावरण मंत्रालय का नेतृत्व कर रहे हैं

चीतों को लाना: पर्यावरण मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में ही 2022 में चीतों को भारतीय वनों में लाने का कार्यक्रम शुरू किया गया था. उनके कार्यकाल में संरक्षण प्रयासों की वजह से बाघ और हिम तेंदुओं की तादाद में इजाफा हुआ है

बिग कैट एलायंस: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2024 में भारत में मुख्यालय के साथ अंतरराष्ट्रीय बिग कैट एलायंस (आइबीसीए) की स्थापना को मंजूरी दी. इसका मकसद दुनिया की बिग कैट्स का संरक्षण करना है, जिसे 2023-24 से 2027-28 तक 150 करोड़ रुपए का एकमुश्त बजटीय समर्थन दिया जाएगा

लेखक:  यादव दो पुस्तकों के लेखक हैं: राइज ऑफ द बीजेपी और सुप्रीम कोर्ट ऑन फॉरेस्ट कंजर्वेशन

कीर्तिवर्धन सिंह, 58 वर्ष, राज्यमंत्री  

पार्टी: भाजपा उत्तर प्रदेश के गोंडा से पांच बार के सांसद; विदेश राज्य मंत्री भी

Advertisement
Advertisement