लोकसभा चुनाव से पहले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समूहों के नेताओं की ओर से अपनी खुद की पार्टी गठित करने के साथ महाराष्ट्र में सियासी हलचल फिर से बढ़ गई है. ओबीसी बहुजन पार्टी नाम की इस पार्टी के नेताओं का दावा है कि महाराष्ट्र की सियासत में मराठों के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए राज्य की 48 संसदीय सीटों में से 18 पर उम्मीदवार खड़े करने की योजना है.
राज्य में सामाजिक और सियासी जगह के लिए मराठों और ओबीसी में ऐतिहासिक रूप से होड़ रही है. अभी इस संघर्ष को एक्टिविस्ट मनोज जरांगे-पाटील की ओर से शुरू किए गए मराठा आरक्षण आंदोलन से हवा मिली है. जरांगे के आंदोलन के नतीजतन ओबीसी नेताओं को निशाना बनाया गया और फिर एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली राज्य सरकार ने उन मराठों को 27 फीसद ओबीसी कोटे में शामिल करने का फैसला किया जो यह साबित कर सकते हैं कि वे कुनबी (किसान या खेतिहर) वंश से हैं. इसके अलावा इस समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में अलग से 10 फीसद आरक्षण हासिल है. इन सबसे ओबीसी में नाराजगी है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व विधायक और अब नवोदित ओबीसी बहुजन पार्टी के प्रमुख प्रकाश शेंडगे कहते हैं, "मराठों की ओर से अपने आरक्षण के हिस्से को हथियाने की कोशिशों से ओबीसी नाराज है. हम वर्षों से मराठा नेताओं को चुन रहे हैं और वे आज हमारे ही बच्चों को मिलने वाले लाभों को छीनना चाहते हैं." शेंडगे कहते हैं कि वे किसी खास पार्टी को नहीं बल्कि केवल मराठा उम्मीदवारों को निशाना बनाएंगे चाहे वे जहां से भी मैदान में उतारे जाएं. उन्हें उम्मीद है, "(किसी सीट पर) एक से अधिक मराठा उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं तो हमारा उम्मीदवार जीत सकता है बशर्ते ओबीसी वोटर एकजुट रहें."
मगर यह 'अगर' एक बड़ा सवाल है. ओबीसी राज्यभर में बिखरे हुए हैं और वे एक समान नहीं हैं. सियासी पर्यवेक्षकों का कहना है कि ओबीसी का एक बड़ा हिस्सा पार्टी लाइनों पर मतदान कर सकता है, खासकर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) या भाजपा के पक्ष में.
वहीं, धनगर (चरवाहा) समुदाय से आने वाले शेंडगे सांगली से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं तो लिंगायत नेता अविनाश भोसिकर नांदेड़ से चुनाव लड़ेंगे और वंजारी समुदाय के टी.पी. मुंडे बीड़ से. जिन अन्य सीटों पर नजर है उनमें बारामती, परभणी, हिंगोली, जालना, अहमदनगर, धाराशिव (उस्मानाबाद), शिरडी, हातकनंगले, यवतमाल-वाशिम, वर्धा, ठाणे, शिरूर, अमरावती और मुंबई उत्तर पूर्व शामिल हैं.
सियासी विश्लेषक अभय देशपांडे का कहना है, "मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान जाति-आधारित ध्रवीकरण हुआ था और यह कुछ हद तक वोटिंग पैटर्न को प्रभावित कर सकता है." सवाल यह है कि इससे किसकी संभावनाओं को पलीता लगेगा? ज्यादातर ओबीसी वोट भाजपा को जाते हैं, और इसलिए इससे उसे नुकसान हो सकता है." ओबीसी जनमोर्चा के प्रमुख और नई पार्टी के उपाध्यक्ष चंद्रकांत बावकर को उम्मीद है कि विपरीत-ध्रुवीकरण से उन्हें ओबीसी वोटों को एकजुट और मजबूत करने में मदद मिल मिलेगी. जहां लोकसभा चुनाव उन्हें अपनी ताकत परखने का मौका देगा, वहीं पार्टी के लिए असली लक्ष्य राज्य में इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं.
मराठा बनाम ओबीसी
> किसानों, जमींदारों और क्षत्रियों से बने मराठा प्रभुत्व वाले जातियों के इस समूह की धारणा इस पर आधारित है कि वे राज्य की आबादी का तकरीबन एक-तिहाई हिस्सा हैं
> हालांकि कोंकण और विदर्भ इलाकों में प्रभावशाली ओबीसी कुनबी के अनुमानित आंकड़े 1931 की जाति जनगणना के निष्कर्ष का हिस्सा हैं
> अधिक यथार्थवादी अनुमानों के मुताबिक, मराठों की संख्या आबादी की तकरीबन 12 से 16 फीसद ही है, और ओबीसी कुल मिलाकर लगभग 52 फीसद हैं
> मगर राज्यभर में फैली ओबीसी जातियां एक समान नहीं हैं और इसकी वजह से उनमें कोई एक अखिल महाराष्ट्रीय पहचान और एकजुटता स्थापित नहीं हो पाई है
> मराठा आंदोलन की वजह से इस समुदाय को नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसद आरक्षण के अलावा, अपनी कुनबी वंशावली साबित करने वाले मराठों को ओबीसी कोटे में भी शामिल कर लिया गया. नतीजतन इसके खिलाफ ओबीसी जातियां एकजुट हुईं.