
नई दिल्ली में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन में—ऊपरी तौर पर ही सही—जो गर्मजोशी नजर आई उसे भारत के साथ पश्चिमी देशों के मैत्रीपूर्ण संबंधों का परिचायक माना गया. यह 9-10 सितंबर की तारीख थी, और ऐसा लग रहा था कि यह महीना नई दिल्ली की विदेश नीति के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो जाएगा. पर यह सुखद अनुभूति लुप्त होने में हफ्ते भर का भी समय नहीं लगा.
कनाडा की संसद में 18 सितंबर को प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमन्स में भारत पर खालिस्तान टाइगर फोर्स (केटीएफ) के प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर की 'हत्या' में शामिल होने का आरोप मढ़ दिया. कनाडाई नागरिक निज्जर भारत में एक वांछित आतंकी था. इसी साल जून में कनाडा के पश्चिमी प्रांत ब्रिटिश कोलंबिया में सरे शहर में कुछ अज्ञात लोगों ने निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
ट्रूडो का दावा है कि कनाडाई सुरक्षा एजेंसियां पुख्ता सबूत तलाशने में जुटी हैं. यह बयान आते ही दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों में तलवारें खिंची नजर आने लगीं. ट्रूडो से मिले संकेतों के बाद कनाडाई विदेश मंत्री मेलानी जोली ने घोषणा की कि देश ने एक 'शीर्ष भारतीय राजनयिक' को निष्कासित कर दिया है. नई दिल्ली ने भी तत्काल कड़ी नाराजगी दिखाते हुए जैसे को तैसा जवाब की तर्ज पर 19 सितंबर को कनाडाई उच्चायुक्त कैमरन मैके को तलब किया और एक वरिष्ठ राजनयिक—कनाडाई इंटेलिजेंस स्टेशन प्रमुख—ओलिवर सिल्वेस्टर को निष्कासित कर दिया.
दोनों देशों के बीच रिश्तों में शीत युद्ध भड़कने के बीच एक और बड़ा घटनाक्रम सामने आया. निज्जर के करीबी सहयोगी और एक अन्य खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 'इंडो-कनाडाई हिंदुओं' को धमकी वाला एक वीडियो जारी किया. इसमें कहा गया कि चूंकि उन्होंने यह तय कर लिया है कि वे किस पाले में हैं, इसलिए उन्हें 'भारत चले जाना चाहिए.' इधर, भारत में असंतुष्ट लोगों के बीच इन शब्दों की गूंज सुनी जा सकती है. पन्नू भारत में कई आतंकी घटनाओं में वांछित है. सूत्रों के मुताबिक, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कनाडा से ऐसे वीडियो सामने आने को लेकर मैके के सामने कड़ी नाराजगी जाहिर की.
इससे करीब एक हफ्ते पहले, 11 सितंबर को अमेरिका स्थित एसएफजे—जो पंजाब को भारत से अलग कर खालिस्तान बनाने की वकालत करता है और कनाडा में अधिक सक्रिय है—ने सरे शहर में एक 'जनमत संग्रह' कराया था. इसके बाद जिस तरह खालिस्तान समर्थक नारेबाजी हुई, वह अब वहां स्थानीय लोगों को हैरान नहीं करती है. शहर की एक-चौथाई आबादी पंजाबी प्रवासी है, जिनमें अधिकांश '80-'90 के दशक में वहां जाकर बसे थे. यह तथाकथित जनमत संग्रह जिस गुरु नानक सिख गुरुद्वारे में हुआ था वह असल में भारत में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन केटीएफ का केंद्र बन चुका है.
बहरहाल, इस कार्यक्रम से कुछ घंटे पहले अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रूडो के बीच बैठक न होती तो शायद इसे अनदेखा कर दिया जाता. ऐसे घटनाक्रम के मद्देनजर यही कहा जा सकता है कि जी20 बैठक सिर्फ हंसते-मुस्कराते गले मिलकर अभिवादन करने और बाजरे से बने लजीज व्यंजनों का स्वाद चखने तक सीमित नहीं थी. परदे के पीछे कुछ गंभीर बातें भी चल रही थीं. सम्मेलन से इतर द्विपक्षीय बातचीत के दौरान मोदी ने कनाडाई धरती पर 'चरमपंथी तत्वों की भारत विरोधी गतिविधियां' जारी रहने को 'गंभीर चिंता' जताई. ट्रूडो ने मोदी को आश्वस्त किया कि किसी तरह के नफरती कृत्य को अंजाम देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. लेकिन उन्हों देश की लोकतांत्रिक आजादी से जोड़कर कहीं न कहीं खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों को जायज ठहराने की कोशिश भी की. हालांकि, नई दिल्ली को ऐसे आश्वासन ज्यादा संतुष्ट नहीं करते. नाम न छापने की शर्त पर एक शीर्ष भारतीय राजनयिक कहते हैं, ''हम कार्रवाई पर जोर दे रहे हैं, लेकिन केवल आश्वासन ही मिलता है.''
वैसे तो ट्रूडो ने नई दिल्ली में कदम रखने से पहले ही मोदी सरकार की नाराजगी बढ़ा दी थी, जब उन्होंने सिंगापुर में पत्रकारों से कहा कि वे भारत के साथ कनाडाई मामलों में 'विदेशी हस्तक्षेप' का मुद्दा उठाएंगे. कनाडा में तमाम लोगों का मानना है कि चूंकि ट्रूडो ने 2018 में अपना दौरा एक तरह से 'बर्बाद' साबित होने और पूरी शिद्दत से मोदी के सामने 'टिकने' की कोशिश नहीं करने को लेकर काफी आलोचना झेली थी, इसलिए अब उन्होंने घरेलू स्तर पर दबाव घटाने के लिए टकराव का रास्ता चुना है. वे भारत-विरोधियों का एक छोटा गुट बनाने की कोशिश में 'फाइव आईज' खुफिया गठबंधन में शामिल अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों तक से संपर्क साध रहे हैं.

बहरहाल, इस मुद्दे पर तीखे तेवर अपनाने से ट्रूडो को क्या फायदा होगा? पंजाबी समुदाय के बीच खालिस्तान समर्थकों का कोई खास वर्चस्व तो नहीं है लेकिन देश के प्रमुख गुरुद्वारों पर नियंत्रण के बाद उन्होंने कनाडा में धार्मिक के अलावा राजनैतिक विमर्श पर भी अपना दबदबा बनाना शुरू कर दिया है. वे 338 इलेक्टोरल डिस्ट्रिक्ट में से 33 के नतीजों को प्रभावित करते हैं. 2021 के संघीय चुनाव में ट्रूडो बहुमत हासिल करने में विफल रहे. उनकी सरकार के भविष्य का सारा दारोमदार जगमीत धालीवाल की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के 25 सांसदों के समर्थन पर टिका है. वैंकूवर में बसे रेडियो प्रस्तोता समीर कौशल बताते हैं कि धालीवाल खालिस्तान आंदोलन के खुले समर्थक रहे हैं. मई के शुरू में ट्रूडो टोरंटो में एक नगर कीर्तन में शामिल हुए, जो खालिस्तानी झंडों से भरा था. कनाडाई पत्रकार टेरी मिलेवस्की का दावा है कि जनमत संग्रह जैसी गतिविधियां नफरती अपराधों को बढ़ावा दे रही हैं. हिंदू मंदिरों को क्षति पहुंचाई जा रही है और खालिस्तान मुद्दे का समर्थन न करने वाले प्रवासी भारतीयों को भी परेशान किया जा रहा है. कौशल कहते हैं, ''ट्रूडो का दावा है कि कुछ लोगों की गतिविधियां को पूरे समुदाय के आचरण से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. लेकिन उन्हें दिखाना होगा कि उन्होंने उन कुछ लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है.''
भारत गैंगस्टरों के लिए कनाडा के एक सुरक्षित पनाहगाह बनने से चिंतित है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) का कहना है कि उत्तर भारत में सक्रिय 28 कुख्यात गैंगस्टर में से 25 को विदेशों से बैठे आतंकियों की मदद मिलती है. इनमें से पांच अमेरिका में हैं तो कनाडा के मामले में यह संख्या नौ है. इनमें गोल्डी बरार भी शामिल है, जो पांच साल पहले छात्र वीजा पर गया था, और जिस पर गायक सिद्धू मूसेवाला पर हमले का फरमान जारी करने का आरोप है. अपराध का यह पूरा संजाल में भारत से नशीली दवाओं की आपूर्ति और मानव तस्करी तक फैला है. बताया जाता है कि मोदी ने ट्रूडो के साथ मुलाकात के दौरान यह मुद्दा भी उठाया था. निज्जर पर गैंगस्टरों का सहारा लेकर पंजाब में टार्गेट किलिंग को अंजाम देने का संदेह था, जिसमें 2016 में जालंधर में आरएसएस नेता जगदीश गगनेजा की हत्या भी शामिल थी. भारतीय एजेंसियों का मानना है कि कनाडा में लचर बंदूक कानून, अत्याधुनिक हथियारों का आसानी से उपलब्ध होना और विशाल वन क्षेत्र नए गुर्गों के सशस्त्र प्रशिक्षण के मुफीद साबित होता है. पेशे से वकील पन्नू 'भारत विरोधी तत्वों' को राजनैतिक शरण दिलाने में मदद करता है. पंजाब के पूर्व डीजीपी शशि कांत कहते हैं, ''खालिस्तान का हौवा बनाए रखना उनके लिए फायदेमंद साबित होता है.''
बहरहाल, कूटनीतिक विवाद ने दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता को भी पटरी से उतार दिया है. सितंबर के पहले हफ्ते में कनाडा ने 'अचानक' ही भारत से अर्ली प्रोग्रेस ट्रेड एग्रीमेंट (ईपीटीए) पर बातचीत रोकने को कहा. दोनों देशों के व्यापक व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ने से पहले यह कनाडा की इंडो-पैसिफिक रणनीति का एक प्रमुख घटक था जिसने भारत को 'महत्वपूर्ण भागीदार' करार दिया था. मिलेवस्की की राय है कि ट्रूडो ने खालिस्तान एजेंडे को तरजीह देकर देश के एक बड़े आर्थिक एजेंडे को ताक पर रख दिया है. उनके मुताबिक, ''ट्रूडो ऐसे तेवर अपनाकर यह साबित करना चाहते हैं कि वे खालिस्तानी तत्वों के लिए मोदी के खिलाफ खड़े हुए. लेकिन किस कीमत पर?'' भारत में कनाडाई निर्यात में एक-तिहाई भागीदारी वाले सस्केचवान प्रांत के प्रीमियर स्कॉट मो ने ट्रूडो पर द्विपक्षीय संबंधों को क्षति पहुंचाने और अवरुद्ध व्यापार वार्ता पर प्रांतों को अंधेरे में रखने का आरोप लगाया है.
यहां तक, इंडिया टुडे से बातचीत करने वाले कनाडा के शीर्ष कारोबारियों का भी कहना है कि 2 फीसद से भी कम वृद्धि दर्ज करने वाले कनाडा को भारत की ज्यादा जरूरत है, न कि भारत को उसकी. सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनता भारत बेहद सक्रियता के साथ अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाने में लगा है. कनाडाई कारोबारियों को यह आशंका सता रही है कि अगर ट्रूडो रिश्ते सामान्य बनाने में नाकाम रहे तो एक अच्छा मौका उनके साथ से फिसल जाएगा. वैसे खालिस्तान मुद्दे को छोड़ दें तो दोनों देशों के लोगों के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण हैं, कनाडा की तमाम यूनिवर्सिटी भारतीय छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. कनाडा के शीर्ष 10 व्यापारिक भागीदारों में भारत भी शामिल है. ऐसे में जरूरी है कि दोनों लोकतंत्र अपने संबंधों की इस तरह पटरी से न उतरने दें.
यूं बिगड़े रिश्ते
> जी20 से इतर बैठक के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा की धरती पर 'चरमपंथी तत्वों' की भारत-विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने पर जोर दिया, जबकि जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा के आंतरिक मामलों में 'विदेशी दखल' का आरोप लगाया
> 18 सितंबर को ट्रूडो ने संकेत दिए कि जून में कनाडा में खालिस्तान समर्थक वांछित आतंकवादी हरदीप निज्जर की हत्या के पीछे कहीं न कहीं भारत सरकार के 'एजेंटों' का हाथ रहा है
> कनाडा ने एक शीर्ष भारतीय राजनयिक को निष्कासित किया, जवाब में भारत ने ऐसा ही करते हुए ट्रूडो के आरोपों को 'बेतुका' बताया