
उम्मीद के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव बुहारकर विपक्षी दलों पर अपना दबदबा फिर कायम कर लिया. 8 जुलाई को 3,317 ग्राम पंचायतों, 341 पंचायत समितियों और 20 जिला परिषदों की 73,887 सीटों के लिए 2,00,000 से ज्यादा उम्मीदवारों के बीच मुकाबला हुआ. तृणमूल ने ग्राम पंचायत की 63,229 सीटों में से अब तक 34,901 लीं, जो भाजपा, वाम दलों, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों को मिली कुल करीब 17,000 सीटों से दोगुनी हैं. मुख्य विपक्षी दल भाजपा 9,719 सीटों के साथ काफी पीछे दूसरे नंबर पर आई. बंगाल में आपसी समझ-बूझ से चुनाव लड़ रहे वाम दलों और कांग्रेस ने करीब 5,600 सीटें जीतीं. पंचायत समितियों की 9,730 और जिला परिषदों की 928 सीटों के लिए हुए मुकाबले में भी तृणमूल की जोरदार जीत का सिलसिला जारी रहा. राज्य चुनाव आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, तृणमूल की वोट हिस्सेदारी 2018 के पंचायत चुनावों से चार फीसद घटकर 52 फीसद पर आ गई.
भाजपा को तीन फीसद ज्यादा 22.6 फीसद वोट मिले जबकि वाम दल और कांग्रेस ने 2018 की अपनी 18 फीसद वोट हिस्सेदारी कायम रखी. भाजपा ने अलीपुरद्वार, कूच बिहार और जलपाइगुड़ी जैसे उत्तर बंगाल के अपने गढ़ में कमजोर प्रदर्शन किया. बांकुरा, झाड़ग्राम, पुरुलिया और पश्चिमी मिदनापुर जैसे आदिवासी जिलों में तृणमूल ने 90 प्रतिशत से अधिक सीटें जीतकर उसका सूपड़ा साफ कर दिया. वर्ष 2019 में भाजपा ने उत्तर की आठ लोक सभा सीटों में से सात सीटें जीती थीं जबकि आदिवासी बेल्ट में उसने छह में से पांच सीटें जीती थीं.
नेता प्रतिपक्ष भाजपा के सुवेंदु अधिकारी ने नतीजों को कम तरजीह देते हुए कहा, यह जनादेश का प्रतिबिंब नहीं है. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव न होने की वजह से दिल्ली में इन नतीजों में किसी की दिलचस्पी नहीं है. हालांकि, ग्रामीण बहुसंख्यकों में ममता की पकड़ लक्ष्मी (लखीर) भंडार जैसी योजनाओं के कारण कायम है. इसमें महिलाओं को मासिक भत्ता दिया जाता है. केंद्र की ओर से मनरेगा का पैसा रोके जाने से रोजगार घटने का भी नुक्सान भाजपा को हुआ. वोटरों को आशंका थी कि स्थानीय स्तर पर अगर बदलाव होता है तो राज्य से मिलने वाले लाभों से भी वंचित होना पड़ सकता है.
बंगाल ने टीएमसी की पहले से तय कामयाबी के लिए नहीं बल्कि 8 जून को चुनाव के ऐलान के बाद से ही बेरोकटोक खून-खराबे के लिए देश भर में सुर्खियां बटोरीं. मौत के आंकड़े से बंगाल में राजनैतिक हिंसा की संस्कृति की झलक मिलती है—मतदान शुरू होने के बाद से 25 लोग मारे गए, 8 जून को ही कम से कम 18 लोगों की जान गई. बीते महीने कुल मिलाकर हिंसा के उन्माद में 45 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा. 8 जुलाई को हिंसा ज्यादातर तरह-तरह की कथित चुनावी गड़बड़ियों के कारण हुई. बूथ कैप्चर, फर्जी मतदान और मतपेटियों को तहस-नहस कर देने की कई घटनाएं देखी गईं. गांव को बाड़ लगाकर घेर देने, उम्मीदवारों को कैद करने, वोटरों को धमकाने और पीठासीन अधिकारियों पर हमले की भी घटनाएं हुईं. देसी बम फेंके गए, जिससे सैकड़ों लोग घायल हुए. विपक्ष और मीडिया ने पूरी अफरा-तफरी के लिए टीएमसी को दोषी ठहराया, जिसका उसने पुरजोर खंडन किया.

हालांकि कलकत्ता हाइकोर्ट के निर्देश पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) और अन्य राज्य बलों के 59,000 जवान तैनात किए गए थे, पर जमीन पर उनकी मौजूदगी फीकी और बेअसर थी. कई बूथों पर वे नदारद थे, तो कई संवेदनशीलों इलाकों में मतदान खत्म होने के बाद पहुंचे. राज्य चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा ने ऐन वक्त पर बलों को भेजने और इस तरह असरदार तैनाती में रोड़े अटकाने के लिए केंद्र को दोषी ठहराया तो बंगाल में सुरक्षा बलों के समन्वयक एस.सी. बुडाकोटी ने संवेदनशील बूथों की पूरी और विस्तृत जानकारी उन्हें न देने के लिए आयोग को दोषी ठहराया.
बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने जमीनी हालात का जायजा लेने के बाद बंगाल में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट 9 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंप दी. राज्यपाल ने कहा, ''बंगाल के चुनाव भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने पर धब्बा थे...यहां तक कि अब भी हैवानी ताकत के बल पर लक्ष्य पाने की मध्यकालीन प्रथा अपनाई जा रही है...''
कड़ी आलोचनाओं का तांता ही लग गया. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने 11 जुलाई को बंगाल के पंचायत चुनावों को ''राज्य प्रायोजित लोकतंत्र की हत्या'' करार दिया. 12 जुलाई को जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोलकाता हाइकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग और राज्य को दोषी ठहराते हुए कहा कि जीते उम्मीदवारों का भविष्य कोर्ट के के आदेश पर निर्भर होगा.
चुनाव नतीजों को 2024 के आम चुनाव के संकेत के तौर पर देखें तो ग्रामीण बंगाल के विशाल भूभाग ने ममता में अपना भरोसा जताया है. अभिषेक ने जीत की खुशी मनाते हुए 11 जुलाई को ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, ''विपक्ष के ममता को वोट नहीं (देने के आह्वान) को ममता के पक्ष में अब वोट में बदलने के लिए लोगों का आभार... हमें निश्चित रूप से गरजदार जनादेश मिलेगा, और लोकसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त करेगा.'' 11 जुलाई को देर शाम ममता ने फेसबुक पर अपनी चुप्पी तोड़ी. उन्होंने लिखा, ''यह जीत भी आम जनता की जीत है. यह साबित करती है कि टीएमसी बंगाल के लोगों के दिलों में बसती है.''
बेशक 2023 में कुल सीटों में से केवल 9.5 फीसद पर निर्विरोध जीत दर्ज की गई, जबकि 2018 के पंचायत चुनाव में 34 फीसद सीटें निर्विरोध जीती गई थीं. मगर इस चुनाव ने खालिस हिंसा के पैमाने पर 2018 को पीछे छोड़ दिया. अच्छा होगा कि टीएमसी एक संजीदा हकीकत याद रखे. 2018 के पंचायत चुनाव में उसकी जीत के एक साल से भी कम वक्त बाद लोकसभा के चुनाव में उसे करारा झटका लगा था, जब उसने 12 सीटें हारकर महज 22 सीटें जीती थीं.