पुष्यमित्र
इन दिनों बिहार में 1.70 लाख स्थायी शिक्षक पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है. इसके लिए 15 जून से आवेदन लिए जा रहे हैं. आवेदन लेने की अंतिम तिथि 12 जुलाई, 2023 है. इस आवेदन प्रक्रिया के बीच 27 जून, 2023 को बिहार मंत्रिपरिषद ने बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक नियमावली, 2023 में संशोधन करते हुए कहा कि अब इस पद पर नियुक्ति के लिए बिहार का नागरिक होने की शर्त नहीं होगी. यह नियमावली इसी साल बनी थी, जिसके तहत शिक्षकों की नियुक्ति के अधिकार पंचायतों से लेकर बीपीएससी (बिहार पब्लिक सर्विस कमिशन) को सौंप दिए गए थे और कहा गया था कि अब राज्य में कोई नियोजित शिक्षक नहीं होगा. सभी शिक्षक स्थायी होंगे. संशोधन के बाद बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने कहा, ''हमारे राज्य में विज्ञान, गणित, अंग्रेजी में बहुत कम्पीटेंट लोग मिल नहीं पाते हैं. रिक्तियां रह जाती थीं. हमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षक मिलें, इसलिए हमने शिक्षक बहाली प्रक्रिया से डोमिसाइल को खत्म कर दिया है.''
शिक्षा मंत्री के बयान के कुछ ही दिन बाद मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा, ''हमारे युवा साइंस और मैथ की पढ़ाई में देश में अग्रणी हैं. आइआइटी तक में हमारे छात्र परचम लहराते हैं. इसलिए यह धारणा बिल्कुल गलत है कि हमारे यहां गणित और विज्ञान के अभ्यर्थियों की कमी है. हमने डोमिसाइल नीति को इसलिए हटाया है, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन है.''
दो शीर्ष लोगों से आए इन दो विरोधाभासी बयानों के बीच इस हफ्ते बिहार के लाखों युवाओं ने अपना विरोध दर्ज किया. उन्होंने पहले सोशल मीडिया पर आवाज उठाई, फिर राजधानी पटना की सड़कों पर उतरकर लाठियां खाईं. और अब राज्य के हर जिला मुख्यालय में सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं. इन युवाओं को शिकायत है कि जब 2021 में बिहार सरकार ने तय कर लिया था कि वे शिक्षकों की भर्ती में डोमिसाइल नीति का पालन करेंगे तो फिर अचानक ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई कि सरकार को रातोरात यह फैसला पलटना पड़ा.
बिहार युवा प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष दीपांकर गौरव कहते हैं, ''पड़ोसी राज्य झारखंड और यूपी समेत 14 राज्यों में शिक्षकों की नियुक्ति में डोमिसाइल लागू है. अगर हम दूसरे राज्यों में नौकरी नहीं कर सकते, तो हम क्यों दूसरे राज्य के अभ्यर्थियों को अपने राज्य में नौकरी देने के लिए बुला रहे हैं?''
इस फैसले के बाद इस संगठन ने राज्य में लगातार चल रहे आंदोलन में अग्रिम भूमिका निभाई है. दीपांकर कहते हैं, ''इस फैसले के लागू होते ही 28 जून से हम लोगों ने ट्विटर पर अपना अभियान दो-तीन दिन तक चलाया. हमने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के. पाठक को लिखित आवेदन दिया. एक जुलाई को पूरे बिहार के शिक्षक अभ्यर्थियों ने पटना पहुंचकर आंदोलन किया. दुखद है कि जिस राजद ने पहले हमारे साथ डोमिसाइल नीति को लागू करने की मांग की थी, अब जब वह सरकार में है, तो उसकी पुलिस ने आंदोलनकारी अभ्यर्थियों की लाठी से
पिटाई करवाई. मुझे भी पांव में गहरी चोट आई है. हम लोगों ने फिर से सरकार को पांच दिनों का अल्टिमेटम दिया है. अगर यह फैसला लागू नहीं हुआ तो हम फिर पटना में आंदोलन करेंगे.''
दरअसल पहली जुलाई को पटना में हुए आंदोलन में शिक्षक गांधी मैदान से राजभवन तक पैदल मार्च करने की कोशिश कर रहे थे. इस दौरान उन्हें पुलिसकर्मियों ने कई दफा रोका और उनपर लाठियां चलाईं. 2020 से अब तक शिक्षक अभ्यर्थियों पर दस बार लाठी चलाई जा चुकी है.
बिहार सरकार के इस फैसले से नियोजित शिक्षक भी नाराज हैं, क्योंकि स्थायी शिक्षक बनाने वाली इस नियुक्ति प्रक्रिया में वे भी शामिल हो रहे हैं. टीईटी-एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ के प्रदेश प्रवक्ता अश्विनी पांडेय कहते हैं, ''इस नियुक्ति प्रक्रिया में एक नहीं बल्कि ढेरों विसंगतियां हैं. एक तो हम लोगों को, जो पहले से नौकरी में हैं, इस नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होने कहा जा रहा है. मान लीजिए अगर हमारे दस हजार शिक्षक भी पास हो गये तो दस हजार पद तो खाली के खाली रह जाएंगे.''
बिहार में स्कूली शिक्षा के मसले पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नवेंदु प्रियदर्शी कहते हैं, ''शिक्षा मंत्री का यह बयान ही इस बात का सबूत है कि सरकार इस आवेदन प्रक्रिया को लेकर कितनी गंभीर है. दरअसल विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति नौवीं से बारहवीं कक्षा के लिए होती है और नियमावली के मुताबिक, इसके लिए एसटीईटी (स्टेट टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) पास अभ्यर्थी ही पात्र हैं. एसटीइटी परीक्षा में सिर्फ बिहार के अभ्यर्थी ही शामिल होते हैं, तो जाहिर है कि विषयवार शिक्षक बिहार के अभ्यर्थी ही बनेंगे. दूसरे राज्यों से जो शिक्षक आएंगे, वे तो सिर्फ प्राथमिक शिक्षकों के पद पर चुने जाएंगे.''
नवेंदु कहते हैं, ''हालांकि मैं डोमिसाइल नीति का समर्थक नहीं हूं. खुद बिहार के छात्र पूरे देश में जाकर नौकरियां हासिल करते रहे हैं. मगर शिक्षा मंत्री का यह बयान बेतुका है कि हमारे युवा गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाने लायक नहीं हैं. 2019 से बिहार सरकार ने परीक्षा लेकर युवाओं को नियुक्ति नहीं दी. इसलिए पद खाली हैं. दोष सरकार का है, युवाओं का नहीं.''
सरकार का समर्थन कर रही पार्टी भाकपा-माले भी इस फैसले के खिलाफ है. भाकपा-माले के विधायक संदीप सौरभ ने ही विधानसभा में सबसे पहले बिहार में छोटी नौकरियों में डोमिसाइल नीति लागू करने की मांग की थी. वे कहते हैं, ''सरकार को अगर दूसरे राज्य के युवाओं को मौका ही देना था तो वे दस फीसद या बीस फीसद सीटों पर देते. पूरी तरह से डोमिसाइल नीति को हटा देना ठीक नहीं.'' भाकपा-माले शिक्षक अभ्यर्थियों के आंदोलन को अपना समर्थन दे रही है.
बहरहाल एक हफ्ते से डोमिसाइल के मसले पर उबल रहे बिहार को शांत करने के लिए तीन जुलाई, 2023 को सरकार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी सामने आए. पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, ''संविधान के अनुच्छेद 16 की धारा 2 के मुताबिक, राज्य के अधीन किसी नौकरी में जन्म स्थान या निवास के आधार पर किसी से भेद नहीं कर सकते, या उसे अपात्र नहीं घोषित कर सकते. इसके पहले की 2012 में हुई नियुक्ति में जब स्थानीय निवासी होने की शर्त नहीं थी, तब 1.68 लाख पदों पर नियुक्ति हुई थी. उस वक्त राज्य के बाहर के मात्र 3,413 अभ्यर्थी ही चयनित हुए.'' सुबहानी ने कहा, ''इन नियुक्तियों में ओबीसी और एससी-एसटी के लिए 50 फीसद आरक्षण है, जिसका लाभ सिर्फ बिहार के निवासियों को ही मिलेगा. दिक्कत यह है कि पटना हाइकोर्ट में इस डोमिसाइल पॉलिसी के विरोध में एक दर्जन से ज्यादा रिट याचिकाएं दायर हो चुकी हैं, जिनका जवाब देने में हमें कठिनाई हो रही है.''
इस मौके पर मौजूद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के. पाठक ने कहा, ''जिन-जिन राज्यों में स्थानीय निवासियों के लिए पद रखने का कोई क्लॉज नियमावली में डाला गया है, वहां लोग इस फैसले के विरोध में हाइकोर्ट में गए. हाइकोर्ट ने ऐसे सभी फैसलों को गलत बताया. कुछ राज्यों ने तो हाइकोर्ट के फैसले को मानकर ही डोमिसाइल नीति बदल ली. कुछ सुप्रीम कोर्ट गए, वहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा है.''
कई लोग बिहार सरकार के इस फैसले को नीतीश की राष्ट्रीय राजनीति का एक हिस्सा भी मानते हैं. पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति नवल किशोर चौधरी कहते हैं, ''इस फैसले से नीतीश को दो राजनीतिक फायदे हो सकते हैं. पहला यह कि उनकी राष्ट्रीय छवि बेहतर होगी कि वे पूरे देश के लोगों को अपने यहां नौकरी का अवसर दे रहे हैं. दूसरा यह कि इस दांव के बाद भी उनके अपने बिहार के वोटर उनके साथ ही रहेंगे, क्योंकि 50 फीसद ओबीसी-एससी-एसटी रिजर्वेशन का लाभ तो सिर्फ राज्य के लोगों को ही मिलेगा.''
हालांकि सरकार के तमाम स्पष्टीकरण के बावजूद आंदोलन जारी है. 3-4 जुलाई को भी क्रमश: अररिया और भोजपुर जिले में अभ्यर्थियों ने आंदोलन किया है. दीपांकर गौरव कहते हैं, ''हमारा आंदोलन पूर्व निर्धारित तरीके से जारी रहेगा.''
''हमारे राज्य में विज्ञान, गणित, अंग्रेजी में बहुत कम्पीटेंट लोग मिल नहीं पाते हैं. हमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षक मिलें, इसलिए हमने बहाली प्रक्रिया से डोमिसाइल को खत्म कर दिया है''
प्रोफेसर चंद्रशेखर, शिक्षा मंत्री, बिहार
''यह धारणा गलत है कि हमारे यहां गणित और विज्ञान के अभ्यर्थियों की कमी है. डोमिसाइल नीति संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन है, इसलिए इसे हटाया गया है''
आमिर सुबहानी, मुख्य सचिव, बिहार सरकार