इस महीने की 22 तारीख को विश्व जल दिवस पर केंद्र सरकार तथा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए, ताकि केन-बेतवा लिंक परियोजना (केबीएल) पर काम शुरू किया जा सके. इस परियोजना में 77 मीटर ऊंचा और 2,031 मीटर लंबा बांध मध्य प्रदेश के छतरपुर के दौधन गांव में केन नदी पर बनाया जाना है. केन का पानी नहर के जरिए बेतवा के बेसिन में डाला जाएगा.
विपक्षी कांग्रेस इसे मध्य प्रदेश सरकार का उत्तर प्रदेश सरकार के हाथों बिकना बता रही है. दरअसल, दोनों प्रदेशों में इस परियोजना को लेकर विवाद रहा है. 2005 में दोनों राज्य सरकारों के बीच जल बंटवारे का एक समझौता हुआ था, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और मुलायम सिंह यादव ने हस्ताक्षर किए थे. उसमें तीसरा पक्ष केंद्र सरकार थी जिसका प्रतिनिधित्व तत्कालीन जल संसाधन मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने किया था.
उस परियोजना को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. पर्यावरणविदों का तर्क था कि परियोजना से पर्यावरण को नुक्सान इसके लाभ से अधिक भारी पड़ेगा. 2015 में यह परियोजना फिर आगे बढऩे लगी और 2017 में, इसकी राह में एक और बड़ी बाधा खड़ी हो गई जब मध्य प्रदेश ने मांग की कि तीन छोटी परियोजनाओं, बीना कॉम्प्लेक्स, कोठा बैराज और लोअर ओर को परियोजना के दूसरे चरण से खिसका कर लिंकिंग योजना के चरण में ले जाया जाए. उसने जल बंटवारे के समझौते की समीक्षा की भी मांग की.
2019 के बाद, जल से जुड़े सभी मसलों के लिए एकीकृत मंत्रालय, जलशक्ति के गठन से केबीएल परियोजना को फिर से गति मिली. सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत गतिरोध खत्म करने के लिए खुद आगे आए. गतिरोध किस बात पर था? सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश ने यह मांग की थी कि बारिश न होने पर रबी सीजन के दौरान उसे इस परियोजना से 93.5 करोड़ घन मीटर पानी मिलना चाहिए. दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश की मांग थी कि उसे दौधन बांध के ऊपर 6,59 करोड़ घन मीटर पानी का पूरा इस्तेमाल करने दिया जाए.
केंद्र सरकार के साथ कई दौर की बैठकों में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच कड़ी सौदेबाजी हुई, और केंद्र ने आखिरकार एक प्रस्ताव रखा, जिस पर जनवरी, 2021 में दोनों पक्ष राजी हो गए. प्रस्ताव के मुताबिक, मध्य प्रदेश को 4,61.6 करोड़ घन मीटर जल के इस्तेमाल का अधिकार दिया जाएगा.
बिना बारिश वाले मौसम (लीन सीजन) में जल बंटवारे के विषय पर, उत्तर प्रदेश ने अपनी 93.5 करोड़ घन मीटर पानी की मांग को थोड़ा कम किया और मध्य प्रदेश ने अपने प्रस्ताव को अपने मूल 55 करोड़ घन मीटर से थोड़ा ऊपर किया और आखिरकार दोनों राज्य उत्तर प्रदेश के लिए 75 करोड़ घन मीटर के बिंदु पर आकर सहमत हो गए.
वहीं, मध्य प्रदेश लीन सीजन में कुल 180 करोड़ घन मीटर में से बाकी बचे 105 करोड़ घन मीटर पानी का इस्तेमाल कर पाएगा. सूत्रों के अनसार, वार्षिक आधार पर उत्तर प्रदेश को 170 करोड़ घन मीटर तो मध्य प्रदेश को 235 करोड़ घन मीटर पानी मिलने पर सहमति बन गई हैं. इस पर दोनों राजी हो गए हैं.
हालांकि, इस परियोजना के लिए वन और वन्यजीव से जुड़ी मंजूरियां—भले ही काफी विरोध के बावजूद—हासिल कर ली गई हैं, लेकिन अभी भी दो मसले अनसुलझे हैं. अभी तक पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से दूसरे चरण की मंजूरियां हासिल नहीं की जा सकी हैं और इस परियोजना को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल एम्पावरमेंट कमिटी (सीईसी)—शीर्ष अदालत के तहत विशेषज्ञों की निकाय—को इस परियोजना पर अपनी राय देने को कहा है.
सीईसी ने अगस्त 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, और उसमें परियोजना को दी गई मंजूरियों में खामियों की ओर इशारा किया था. सीईसी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के विकल्पों पर विचार नहीं किया गया, जिन पर खर्च कम आता. इसके अलावा, टाइगर रिजर्व के अंदर वृहद पनबिजली परियोजना को मंजूरी देकर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का उल्लंघन किया गया है.
याचिकाकर्ता मनोज मिश्र, जिनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी से रिपोर्ट मांगी थी, के वकील ऋत्विक दत्ता कहते हैं, ''इस परियोजना के पास सारी मंजूरियां नहीं हैं और यह अभी आगे नहीं बढ़ सकती. अगर इस परियोजना पर काम शुरू हो जाता है तो हम सुनवाई के लिए अदालत का रुख करेंगे.’’
साउथ एशियन नेटवर्क ऑफ डैम्स, रिवर्स ऐंड पीपुल के समन्वयक हिमांशु ठक्कर कहते हैं, ‘‘पर्यावरण मंत्रालय से स्टेज 1 की वन मंजूरियां सशर्त हैं और वह इसी आधार पर दी गई हैं कि नेशनल पार्क के अंदर कोई पावर प्रोजेक्ट नहीं लगाया जाएगा. 22 मार्च को केंद्रीय मंत्रालय ने परियोजना का नाम लिए बगैर दावा किया कि केबीएल का हिस्सा रहे पावर प्रोजेक्ट को पार्क के बाहर ले जाया जा रहा है.
दूसरी बात, अगर वन मंजूरियां इस आधार पर दी गई हैं कि अनिवार्य वनीकरण के लिए जमीन उपलब्ध करा दी गई है तो परियोजना की लागत और लाभ का आकलन और इस दौरान हुए पेड़ों की कटाई की पुनर्समीक्षा होनी चाहिए.’’ वे कहते हैं कि जब तक पहले चरण की शर्तें न पूरी हो जाएं संभवत: दूसरे चरण की मंजूरियां नहीं दी जा सकती हैं.
इन पर्यावरणीय मंजूरियों को एनजीटी में चुनौती दी गई है. ठक्कर कहते हैं, ''यह कहना कि परियोजना बुंदेलखंड के लोगों के फायदे के लिए है, गलत है क्योंकि यह परियोजना तो बुंदेलखंड के पानी को वहां से बाहर बने बांधों में भेजे जाने के लिए है, ताकि विदिशा और रायसेन जिलों में बने बांधों का औचित्य साबित हो सके.’’
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शिवराज सरकार पर मध्य प्रदेश के लोगों के हितों को बेच देने का आरोप लगाया है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘हम परियोजना का स्वागत करते हैं पर इसमें वन्यजीवों के आवास का नुक्सान है और मध्य प्रदेश के लोगों का विस्थापन भी. राज्य उत्तर प्रदेश को 70 करोड़ घन मीटर पानी देना चाहता था पर शिवराज सिंह सरकार केंद्र सरकार के दबाव में आकर उत्तर प्रदेश को अधिक पानी देने पर राजी हुई है.
हमारी मांग है कि मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इस बारे में की गई बातचीत के ब्योरे सार्वजनिक किए जाएं.’’ पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भी परियोजना के बारे में ट्वीट किया, ''यह (परियोजना) मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व को खत्म कर देगी, जो पुनर्वास और रिवाइवल के सफलता की कहानी है.’’ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं, ‘‘इस परियोजना से इलाके के 41 लाख लोगों को पेयजल मिलेगा.’’
इस परियोजना को असल में 1980 में नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के तहत तैयार किया गया था. 2017-18 के मूल्यों के आधार पर इसकी लागत करीब 35,111 करोड़ रुपए है जिसका 90 फीसद भार केंद्र और बाकी 10 फीसद दोनों राज्य मिलकर उठाएंगे. परियोजना सेमध्य प्रदेश के 9 जिलों, रायसेन, विदिशा, सागर, पन्ना, छतरपुर, शिवपुरी, टीकमगढ़, दतिया और दमोह को, जबकि उत्तर प्रदेश के चार जिलों झांसी, महोबा, ललितपुर और बांदा को पेयजल और सिंचाई का लाभ मिलेगा.
जलशक्ति मंत्रालय के मुताबिक, इस परियोजना के तहत कुल सिंचित इलाका करीब 10.62 लाख हेक्टेयर है और इससे 62 लाख लोगों को पेयजल मिलेगा और 103 मेगावाट पनबिजली का उत्पादन होगा. जलशक्ति मंत्रालय के राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया ने संसद में एक सवाल के जवाब में कहा कि इस प्रोजेक्ट में 6,017 हेक्टेयर वन्य क्षेत्र पानी में डूब जाएगा, जिसमें 4,206 हेक्टेयर इलाका पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का है.
बहरहाल, सीईसी की रिपोर्ट में पन्ना टाइगर रिजर्व के डूब क्षेत्र को 5,803 हेक्टेयर बताया गया है जबकि कुल वन्य क्षेत्र के विनाश को 5,258 हेक्टेयर कहा गया है.
इस परियोजना को दो चरणों में पूरा करने की योजना है. पहले चरण में दौधन में बांध, नहरें और पावर हाउस बनाया जाएगा, और दूसरे चरण में बीना कॉम्प्लेक्स, लोअर ओर प्रोजेक्ट और कोठा बराज तैयार किया जाएगा.