वर्ष 2018 में कठुआ बलात्कार और हत्या के मामले ने जम्मू में तवी और रावी नदियों के किनारे बसी मुसलमान आबादी को लेकर सांप्रदायिक तनाव का माहौल पैदा कर दिया. स्थानीय डोगरा (हिंदू) निवासी इन बढ़ती बस्तियों को नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे कश्मीर-केंद्रित सियासी दलों की जम्मू में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखते हैं. कश्मीर और जम्मू के बीच की सांप्रदायिक खाई नई नहीं है, पर कठुआ मामले ने जम्मू में नई हलचलें पैदा की हैं. जम्मू क्षेत्र में 10 जिले हैं तथा यहां हिंदू और मुसलमान सद्भाव के साथ रहते आए हैं. लेकिन आज उनमें आपसी अविश्वास का माहौल पनपा है.
कठुआ मामले को लेकर पूरे देश में आक्रोश देखा गया. वहीं इसने मुसलमान बहुल चेनाब घाटी और पीर पंजाल की उन क्षेत्रीय आकांक्षाओं को हवा दे दी जो अब तक सुप्तावस्था में थीं. इन इलाकों में अब जम्मू से 'आजादी' की मांग उठने लगी है. 26 सितंबर, 2018 को राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) के लिए अधिक प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां देने की मंजूरी दे दी, उसके बाद से यह क्षोभ बढ़ गया है. 5 दिसंबर को उन्होंने परिषद के भाजपाई सदस्यों को संकेत दिया कि लद्दाख को अलग डिविजन के रूप में अधिसूचित करने की उनकी पुरानी मांग मानी जा सकती है.
डिविजन की मान्यता के साथ सभी सुविधाओं से लैस एक राज्य विश्वविद्यालय के अलावा, उन क्षेत्रों के लिए स्वतंत्र प्रशासन और विकास कार्यों के लिए न्यायसंगत फंड शामिल हैं जिन्हें कथित भेदभाव का सामना करना पड़ा है. एलएएचडीसी के मुख्य कार्यकारी पार्षद जम्यांग सेरिंग नामग्याल चाहते हैं कि लद्दाख को जम्मू-कश्मीर के नक्शे से ही बाहर रखा जाए. एनसी और पीडीपी के शासन में लद्दाख से भेदभाव का आरोप लगाते हुए वे कहते हैं, ''हम कश्मीर से अलग होकर पूरी प्रशासनिक स्वायत्तता चाहते हैं.''
क्षेत्रीय स्वायत्तता के मुद्दे ने मतभेद बढ़ा दिए हैं. जहां भाजपा और कांग्रेस लद्दाख को अलग डिविजन बनाए जाने का समर्थन करती हैं, वहीं एनसी और पीडीपी जम्मू क्षेत्र के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए उसी प्रकार रियायतें चाहती हैं. चेनाब घाटी से आने वाले एनसी के पूर्व मंत्री खालिद नजीब सोहरावर्दी आरोप लगाते हैं कि भाजपा जम्मू के हिंदुओं में बेवजह भय पैदा करने की कोशिश कर रही है. उनका कहना है कि चेनाब को स्वायत्तता देने से उस क्षेत्र का विकास होगा.
दक्षिणपंथी नेताओं का आरोप है कि बढ़ती मुस्लिम बस्तियों की आड़ में जम्मू की जनसांख्यिकी को बदलने की चाल चली जा रही है. पर हकीकत यह है कि चेनाब और पीर पंजाल में शिक्षा और स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा खस्ताहाल है और इसी कारण लोग जम्मू क्षेत्र की ओर रुख कर रहे हैं. कई दशकों से इस क्षेत्र के लोग श्रीनगर और जम्मू में पलायन को मजबूर हैं. 1990 के दशक में घाटी में उग्रवाद बढऩे के बाद, लोगों ने कश्मीर की बजाए जम्मू की ओर पलायन ज्यादा पसंद किया है.
राजौरी स्थित जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता अमीर मोहम्मद शम्सी कहते हैं कि हालिया सांप्रदायिक तनाव की वजह मुसलमानों के प्रति डोगरा (हिंदू) समुदाय की नफरत है. उनके मुताबिक, कठुआ में वह भावना खुलकर सामने आ गई. दिलचस्प बात यह है कि कठुआ केस के आरोपियों के पक्ष में खुलकर खड़े होने वाले भाजपा मंत्री लाल सिंह ने दिसंबर में अलग जम्मू राज्य की मांग के साथ 'डोगरा स्वाभिमान संगठन' का मुख्यालय खोला है. लाल सिंह भावनात्मक मुद्दों को उठा रहे हैं, मसलन यह कि टोल टैक्स नहीं देने पर जम्मू के किसानों पर जुर्माने लगाए गए जबकि कश्मीर से सेब लेकर आने वाले 70,000 ट्रकों को मुक्रत पास जारी किया जाता है.
वहीं जम्मू-कश्मीर राज्य गुरुद्वारा प्रबंधक मंडल के पूर्व अध्यक्ष सुदर्शन सिंह वज़ीर ने टकराव को खत्म करने के लिए लद्दाख, चेनाब और पीर पंजाल को एक समान अधिकार देने का सुझाव दिया है. वरना, उनके मुताबिक, तनातनी और बढ़ सकती है तथा सिखों के लिए आरक्षित विधानसभा सीट की मांग भी जोर पकड़ सकती है. जम्मू स्थित उर्दू दैनिक अखबार अजान-ए-सहर के मुख्य संपादक, वज़ीर का तर्क है, ''क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग बढ़ी है. अगर लद्दाख को अलग डिविजन बनाया जाता है, तो चेनाब और पीर पंजाल की आकांक्षाओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.''
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