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पश्चिम बंगालः कब्जे का निशान!

रॉय का आरोप है कि फीफा अंडर-17 के फाइनल, जिसका आयोजन और प्रचार विश्व बांग्ला लोगो का इस्तेमाल करते हुए राज्य सरकार की ओर से कोलकाता में किया गया था, का प्रायोजन दरअसल गुप्त रूप से अभिषेक की एक कंपनी की ओर से किया गया था.

फासला कोलकाता में अंडर-17 फीफा विश्व कप मैच के लिए स्थापित युवा भारती क्रीड़ांगन प्रतिमा
फासला कोलकाता में अंडर-17 फीफा विश्व कप मैच के लिए स्थापित युवा भारती क्रीड़ांगन प्रतिमा
अपडेटेड 8 दिसंबर , 2017

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को आगे बढ़ाकर सत्ताधारी पार्टी में नंबर दो की हैसियत देने की कोशिश अब खटाई में पड़ सकती है. लंबे समय तक मुख्यमंत्री के करीबी रहे और हाल ही में पाला बदलकर भाजपा में गए मुकुल रॉय ने एक बड़ा रहस्य उजागर किया है कि विश्व बांग्ला लोगो, जिसका इस्तेमाल बंगाल का प्रचार और सरकारी कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने के लिए होता है, वह कथित रूप से अभिषेक का है, न कि राज्य सरकार का, जैसा कि लोग समझते रहे हैं.

रॉय का आरोप है कि फीफा अंडर-17 के फाइनल, जिसका आयोजन और प्रचार विश्व बांग्ला लोगो का इस्तेमाल करते हुए राज्य सरकार की ओर से कोलकाता में किया गया था, का प्रायोजन दरअसल गुप्त रूप से अभिषेक की एक कंपनी की ओर से किया गया था. इन आरोपों ने लोगो के स्वामित्व को लेकर अभिषेक और राज्य सरकार के बीच लंबे समय से चली आ रही खींचतान को सार्वजनिक कर दिया है.

2013 में एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों) के एक कार्यक्रम से पहले खुद ममता बनर्जी का डिजाइन किया हुआ विश्व बांग्ला लोगो श्ब्य अक्षर को दिखाता है, यानी बांग्ला का पहला अक्षर.  लेकिन सरकार इसे रजिस्ट्रार ऑफ ट्रेडमार्क विभाग में पंजीकृत करा पाती, उससे पहले ही कथित रूप से अभिषेक ने सीजे एसोसिएट्स नाम की एक फर्म के जरिए जमा किए गए आठ आवेदनों के माध्यम से इस लोगो पर अपने स्वामित्व का दावा कर दिया.

इस मामले में सूचित किए जाने के बाद ममता ने दिसंबर, 2014 में एमएसएमई और कपड़ा विभागों को राज्य सरकार का एक उपक्रम विश्व बांग्ला मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (बीबीएमसी) का गठन करवाया. इस उपक्रम को भी विवादास्पद लोगो के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई थी. बीबीएमसी ने लोगो पर दावा करते हुए एक आवेदन जमा किया लेकिन दावों की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए उसका आवेदन खारिज हो गया. जनवरी, 2015 में अभिषेक ने ट्रेडमार्क पत्रिकाओं में अपने स्वामित्व की स्थिति का प्रकाशन करने की मांग करते हुए ट्रेडमार्क परीक्षक के दफ्तर में एक याचिका दे दी. सत्ता के गलियारों में अभिषेक के रुतबे को देखते हुए बीबीएमसी ने 2015 में रजिस्ट्रार ऑफ ट्रेडमार्क की नोटिसों का कोई जवाब नहीं दिया.

ट्रेडमार्क पत्रिकाओं में अभिषेक को लोगो का स्वामी बताए जाने से अब इस साल सितंबर में हरकत में आते हुए राज्य सरकार ने संबंधित विभाग में यह कहते हुए याचिका दी कि आवेदक (अभिषेक) ने 'गलत और बेईमानी के इरादे से' समान चिन्ह वाले एक लोगो के पंजीकरण का आवेदन किया था. याचिका में यह भी बताया गया कि सरकार इस लोगो का काफी इस्तेमाल करती रही है और इसके प्रचार पर काफी रकम खर्च कर चुकी है.

स्वामित्व मिलने से अभिषेक को विश्व बांग्ला लोगो के किसी भी इस्तेमाल, जिसमें प. बंगाल सरकार भी शामिल है, पर 10 प्रतिशत रॉयल्टी का अधिकार मिल जाता. हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि अभिषेक ने इस तरह की किसी रॉयल्टी की मांग की है, लेकिन ममता के राजनीतिक विरोधियों को साजिश का आरोप लगाने का मौका जरूर दे दिया. बढ़ते विवाद के बीच अभिषेक आखिरकार 14 नवंबर को रजिस्ट्रार ऑफ ट्रेडमार्क के यहां अपना आवेदन वापस लेने पर राजी हो गए. राज्य सरकार ने भी इस मामले को 'बंद अध्याय' कहकर खारिज कर दिया है.

लेकिन विपक्ष दीदी और उनके 'भाइपो' (भतीजा) के खिलाफ इतनी जल्दी हमला बंद करने वाला नहीं है. वाममोर्चा ने जहां कोलकाता हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दी है, वहीं मुकुल रॉय ने दिल्ली में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) में शिकायत दर्ज कर मांग की है कि लोगो के मुद्दे पर दो प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. 24 नवंबर को रॉय ने विश्व बांग्ला मुद्दे पर अभिषेक की ओर से भेजे एक कानूनी नोटिस के जवाब में उनके खिलाफ दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में मानहानि का मुकदमा भी दायर किया है.

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