आप पुराने हैदराबाद में पुरानी हवेली के पूर्वी हलके में सीढिय़ां चढ़ते ही अचानक शानो-शौकत की शानदार राजसी दुनिया में दाखिल हो जाते हैं. यह हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान (1886-1967) के 240 फुट लंबे इमारती लकड़ी के वार्डरोब के बीच का हिस्सा जो है. इस दोमंजिला वार्डरोब को दुनिया में सबसे बड़ा कहा जाता है. इसमें सिर्फ शाही पोशाकें, जूते और इत्र-फुलेल ही नहीं, आसफ जाह शाही खानदान के शानदार जेवरात और दुनिया भर से जुटाई गई अनोखी कलाकृतियों का बेहतरीन संग्रह भी है.
लेकिन इस अद्भुत नजारे को देखना अब और संभव नहीं होगा. इसी साल अगस्त में एचईएच निजाम संग्रहालय बंद होने वाला है. म्युजियम की संचालक, निजाम के छोटे पोते मुफ्फखम जाह की संस्था निजाम्स जुबली पैवेलियन ट्रस्ट को इस विशाल हवेली की मालिक और उनके बड़े भाई मुकर्रम जाह की संस्था मुकर्रम जाह ट्रस्ट फॉर एजुकेशन ऐंड लर्निंग (एमजेटीईएल) ने यह जगह खाली करने को कह दिया है. 1724 से 1948 तक दक्कन की शान रहे सात निजामों की शाही विरासत वाले इस संग्रहालय को लेकर एक शाही जंग छिड़ी हुई है.
आखिरी निजाम ने 81 वर्षीय मुकर्रम जाह को शाही रवायत के मुताबिक अपनी शाही संपत्ति का वारिस घोषित किया था और उन्हें यहां के दरबारी आज भी 'निजाम' या 'सरकार' कहकर ही बुलाते हैं जबकि उनके 76 वर्षीय छोटे भाई 'शाहजादा' कहलाते हैं. ये दोनों इस जंग को अदालत में बेमानी-से रेट कंट्रोल और दूसरे कानूनों के जरिए मालिक-किराएदार की शक्ल में लड़ रहे हैं. मुकर्रम जाह ट्रस्ट को किराए के पैसे में खास दिलचस्पी नहीं है, भले मौजूदा 3,000 रु. महीने के किराए को कई गुना बढ़ा ही क्यों न दिया जाए. इस ट्रस्ट के कर्ताधर्ता तो बस उसे खाली करवाना चाहते हैं क्योंकि ट्रस्ट की ओर से संचालित किए जाने वाले लड़कों के जूनियर कॉलेज को अब वे पुरानी हवेली में खोलना चाहते हैं. ट्रस्ट के वकील एम. विद्यासागर कहते हैं, "हमारा मकसद जनहित से जुड़ा है. वैसे भी 15 साल के लिए दिए गए पट्टे का समय खत्म होने जा रहा है और हम इस जगह को वापस पाना चाहते हैं."
हालांकि इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले और धरोहर के प्रति सजग लोग मुकर्रम जाह ट्रस्ट की इस दलील से सहमत नहीं हैं. उन्हें तो 1780 में निजाम-उल-मुल्क आसफ जाह द्वितीय की बनाई इस पुरानी हवेली में निजाम के दौर की शाही शानो-शौकत का नजारा देखना ही अच्छा लगता है. यही सोचकर खामोश जिंदगी जीने वाले मुफ्फाखम ने लगातार तीन निजामों की जन्मस्थली पुरानी हवेली को संग्रहालय में तब्दील कर दिया और आसफ जाह शाही खानदान की शानो-शौकत, बेशकीमती विरासत और रियासत में उनके कामकाज से परदा उठाने का फैसला किया था.
संग्रहालय 18 फरवरी, 2000 को खुला और उसका सबसे शानदार हिस्सा 1937 में उस्मान अली खान के गद्दीनशीन होने की रजत जयंती पर तोहफे में मिली बेशकीमती वस्तुओं का भंडार है. उस समय वे दुनिया के सबसे दौलतमंद आदमी माने जाते थे. इसमें 165 साल पुरानी एक लिफ्ट भी शामिल है, जो खासतौर से इंग्लैंड से लाई गई थी. इस लिफ्ट को मजदूर रस्सियों और घिरनी के सहारे से खींचा करते थे.
उस्मान अली खान की अंग्रेजी राज के प्रति बिना शर्त वफादारी तो उनके स्वर्ण जड़ित सिंहासन पर भी खुदी हुई है जो अब संग्रहालय का हिस्सा है. उस्मान 25 साल की उम्र में निजाम बने थे. उन्हें अपने राजकाज के तरीकों की मुखालफत कतई पसंद नहीं थी और वे अपनी कंजूसी के लिए जाने जाते थे. लेकिन उनके कुछ फैसलों ने उन्हें जनता के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया था. मसलन, उन्होंने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा और मुफ्त स्कूली शिक्षा लागू की थी. उन्होंने 1918 में उस्मानिया विश्वविद्यालय की भी स्थापना की थी. उन्होंने उर्दू भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया था और राज्य के बजट का 11 फीसदी हिस्सा शिक्षा के लिए संरक्षित कर दिया था.
अमूमन शाही खानदान के लोग सार्वजनिक जीवन से दूर ही रहते हैं लेकिन वे जब भी सुर्खियों में आते हैं, तो सिर्फ गलत वजहों से. कानूनी वारिस मुकर्रम शाही संपत्ति और हवेलियों को बर्बाद करने के लिए ही जाने जाते हैं. उन्होने इन पंक्तियों के लेखक से 1991 में एक विरले साक्षात्कार में हैदराबाद में कहा था, "मैंने कई लोगों पर भरोसा किया. वे सभी दगाबाज निकले. गुंडों की तरह सब गड़बड़ कर गए." उस समय उन्होंने अपनी तीसरी बीवी और पूर्व मिस तुर्की मानोल्या ओनर से नया-नया निकाह किया था. उनकी वित्तीय समस्याओं और शाही संपत्ति के झगड़ों की वजह से शानदार शाही महल उपेक्षा का शिकार हैं और पैसे की तंगी तथा रखरखाव के बिना बरबाद हो रहे हैं. मुकर्रम के एक दरबारी कहते हैं, "देखरेख का वादा करके कई लोगों ने बेशकीमती सामान और जमीन-जायदाद तक बेच डाली. उन सबके पास दौलत आ गई, सिर्फ साहेब बच गए."
एचईएच के निजाम संग्रहालय में कई बेशकीमती चीजें हैं. सोना और चांदी पर मोती, रूबी, हीरे जड़े जेवरात, हाथी दांत, चीनी मिट्टी का बना खूबसूरत सामान, कर्नाटक के बीदर की प्रसिद्ध बीदर कलाकृतियां, चांदी के काम वाले बर्तन, दुर्लभ दस्तावेज, पांडुलिपियां और कलाकृतियां, तलवार और तरह-तरह के चाकू वगैरह भी यहां देखने को मिलते हैं. यहां आखिरी निजाम की सबसे छोटी बहू तथा झगड़ते जाह भाइयों की अक्वमी शाहजादी दुरू शेहवार को तोहफे में मिला सिंगारदान भी है. यह तोहफा उन्हें 4 नवंबर, 1936 को हैदराबाद में बेगमपेट हवाई अड्डे की नींव रखे जाने के मौके पर मिला था. इसके अलावा वहां राज्य की मुख्य इमारतों के सोने और चांदी के नमूने भी रखे हैं. ये वार्डरोब के बगल वाले कमरे में हैं. संग्रहालय के मुख्य संरक्षक डी.भास्कर राव उस स्वर्णिम दौर की इन वस्तुओं के बारे में कहते हैं, "इन सभी वस्तुओं की रचनात्मक पच्चीकारी और सौंदर्य लाजवाब है. अनेक खूबसूरत वस्तुएं तो अब भी स्टोर में ही रखी हैं. हमें यहां पर या और कहीं बड़ी जगह मिल जाए तो उन वस्तुओं को भी प्रदर्शन के लिए रखा जा सकता है."
मुफ्फाखम ने मशहूर वार्डरोब के साथ की जगह पट्टे पर ली, ताकि इस संग्रहालय में लोगों की दिलचस्पी और जाग सके. इस तरह उन्होंने वस्तुओं के काफी बड़े संग्रह को प्रदर्शन के लिए रखा. इस संग्रहालय को 15 साल पहले आम लोगों के लिए खोले जाने के समय उन्होंने कहा था, "हमने अपने परदादा के समय और शाही खानदान की उपलब्धियों को पेश करने की कोशिश की. इससे निजाम खानदान को हासिल प्यार-मुहब्बत, इज्जत और शोहरत का अंदाजा लगता है."
मुफ्फाखम का मकसद नई पीढ़ी को पुराने हैदराबाद के विकास में निजामों के योगदान को भी याद दिलाना है. हालांकि इतिहास, खासकर सबाल्टर्न इतिहासकार निजाम की हुकूमत की बेइंतहा खामियों को भी गिनाते हैं. इसी तरह अदालतें भी तीखी टिप्पणियां करती रही हैं. अभी 26 मार्च को ही हैदराबाद हाइकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के विशेष अधिकारी, आइएएस सोमेश कुमार के संपत्ति कर न देने वालों के बिजली-पानी के कनेक्शन काटने के फैसले को निरंकुश बताया और कहा, "वे तो बादशाह की तरह पेश आ रहे हैं, मानो हैदराबाद के निजाम हों."
आजादी के समय हैदराबाद की भूमिका के बारे में तरह-तरह की गलतफहमियों, अफवाहों और नेताओं तथा अदालतों वगैरह की टिप्पणियों से चिढ़कर जाह भाई तुर्की या ब्रिटेन में अकेलेपन की जिंदगी बिता रहे हैं जबकि बाकी रियासतों के खानदान आजाद भारत में ही रह रहे हैं. हैदराबाद भारतीय संघ में शामिल होने वाली आखिरी रियासत थी.
एचईएच निजाम संग्रहालय की कोशिश खानदान के सकारात्मक पहलुओं को उजागर करने की है. यहां इसीलिए सार्वजनिक इमारतों और जगहों के नमूने रखे हुए हैं, जो दक्कन के शासकों के दौर में बनाए गए थे. अब मुकर्रम के दरबारी और एमजेटीईएल ट्रस्ट हवेली खाली करवाने पर तुला है. मुफ्फाखम अभी तय नहीं कर पाए हैं कि यहां की बेशकीमती वस्तुएं कहां रखी जाएं.
मुफ्फाखम हैदराबाद, लंदन और इस्तांबुल में थोड़े-थोड़े दिन रहते हैं जबकि मुकर्रम की पहली बीवी शाहजादी इसरा इस्तांबुल के पास एक द्वीप में अपने दोमंजिला मकान में रहती हैं और हर साल कुछेक महीने हैदराबाद में बिताती हैं. ये दोनों आपसी गलतफहमियों को दूर करने में कुछ हद तक कामयाब हुए हैं मगर अब भी कई मसलों पर एक-दूसरे से बेहद खफा रहते हैं. शाहजादी इसरा ने चारमीनार के पास पुराने शहर में चौमहला महल का अकेले ही पुनरुद्धार करवाया. उनकी कोशिशों से फलकनुमा महल को भी तब्दील किया गया और अब उसमें ताज समूह का इंडियन पैलेस होटल चलता है. फिर भी निजाम की कई पीढिय़ों से स्थापित अनोखी तहजीब को पेश करने का काम अधूरा ही है. उनके वारिस और राज्य के एक के बाद एक मुख्यमंत्री निजाम के ताज के 37 नगों को वापस लाकर संग्रहालय में रखने के लिए एक कदम भी नहीं बढ़ा पाए हैं. ये भारतीय रिजर्व बैंक के दिल्ली खजाने में जमा हैं. केंद्र सरकार ने 1995 में इनका अधिग्रहण कर लिया था, जब जाह भाई और निजाम जूलरी ट्रस्ट के कुछ दूसरे लोग इन बेशकीमती नगों को 218 करोड़ रु. में विदेश में बेचने के इच्छुक थे.
पुरानी हवेली के संग्रहालय में रखी वस्तुओं की तरह ही ये नग भी हैदराबाद और निजाम की परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं. लेकिन मुकर्रम और मुफ्फाखम के बीच तलवारें खिंची हैं तो दोनों ही संग्रहालयों, मौजूदा एचईएच निजाम संग्रहालय और प्रस्तावित निजाम जेवरात संग्रहालय को लंबे समय तक बेसहारा छोड़ा जा सकता है.
हैदराबाद निजाम संग्रहालय: अजायबघर की अजूबी जंग
बुढ़ाते शाही वारिसों की आपसी जंग में निजाम की जुटाई गई दुर्लभ कलाकृतियों वाले शानदार हैदराबाद संग्रहालय के बंद होने का खतरा.

अपडेटेड 13 अप्रैल , 2015
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