एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रमुख नदी गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने और उसकी सफाई के लिए करोड़ों रुपए की योजनाएं बनवा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लुप्त सरस्वती नदी की सहायक मानी जाने वाली और राजस्थान की मरू गंगा कही जाती रही लूणी लुप्त होने की कगार पर है. हालात इतने बदतर हैं कि नदी का कैचमेंट एरिया अतिक्रमण और सिंचाई के लिए बने छोटे-छोटे बांधों से सिमट गया है. जोधपुर में इसकी सहायक नदी जोजरी तो बालोतरा में लूणी नदी के बेसिन पर स्थित रंगाई-छपाई फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित पानी की वजह से यह बर्बाद हो गई है.
जल अवरोधों के चलते 530 किमी लंबी इस नदी में बारिश का पानी आखिरी छोर तक पहुंच ही नहीं पा रहा है. अजमेर से शुरू होने वाली यह नदी बाड़मेर के गांधव से होते हुए गुजरात में कच्छ के रण में समाप्त होती है. इस नदी का प्रवाह क्षेत्र 37,363 वर्ग किमी हुआ करता था, जो बेहद सिमट गया है. सुकड़ी, मीठड़ी, खारी, बांडी, जवाई और जोजरी जैसी इसकी सहायक नदियां भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई हैं.
बाड़मेर के बालोतरा इलाके में स्थिति यह है कि रसायनयुक्त पानी ने जमीन के मीठे पानी को जहरीला कर दिया है. इससे जहां लोगों में बीमारियां फैली हैं तो जल माफिया कई साल से लोगों को मीठा पानी देने के नाम पर लूट रहा है. यहां कपड़ा उद्योग के शुरू होने से पहले तक लूणी बालोतरा के लिए खुशहाली की प्रतीक थी.
2012 में जोधपुर हाइ कोर्ट ने नदी को बचाने के उद्देश्य से नदी में किसी भी प्रकार के प्रदूषित पानी को छोडऩे पर रोक लगा दी थी. लेकिन प्रशासन की लापरवाही से उस फैसले पर अमल नहीं हो पा रहा. सरकार ने बालोतरा में टेक्सटाइल उद्योग से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी बना रखे हैं पर ये भी असफल साबित हो रहे हैं. बालोतरा की टेक्सटाइल फैक्ट्रियों से आने वाला प्रदूषित पानी इन प्लांट्स में जमा होता है. बारिश की आड़ में उन्हीं प्लांट्स से लूणी में प्रदूषित पानी डाला जा रहा है.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बालोतरा में बगैर ट्रीटमेंट के पानी को लूणी क्षेत्र में छोडऩे वाली इकाइयों के खिलाफ बेहद छोटे स्तर पर कार्रवाई कर रहा है. जुलाई, 2014 में बालोतरा में बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी के रूप में चार्ज संभालने वाले एच.आर. कसाना कहते हैं, “हम हाइकोर्ट के आदेशों की पूरी पालना करवा रहे हैं. कुछ इकाइयां बगैर ट्रीटमेंट किए पानी छोड़ रही हैं. इसकी जानकारी मिलने पर हम तुरंत कार्रवाई कर रहे हैं.”
(पाली में लूणी की सहायक नदी बांडी गंदे नाले में तब्दील हो गई है)
लगभग यही स्थिति पाली जिले में भी है. लूणी की सहायक नदी बांडी भी टेक्सटाइल इकाइयों से प्रदूषित पानी से बरबाद हो चुकी है. यहां से 40 किमी दूर नेहड़ा बांध में भी प्रदूषित पानी का भराव हो गया है. किसान पर्यावरण संघर्ष समिति के अध्यक्ष महावीर सिंह शुकरलाई कहते हैं, ''पाली में लगभग 600 वस्त्र औद्योगिक इकाइयां हैं. इनके प्रदूषित पानी से आदमी के साथ-साथ मूक पशु-पक्षियों में भी गंभीर बीमारियां फैल रही हैं.” महावीर बताते हैं कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 23 मार्च, 2014 को आदेश जारी कर कॉमन एफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) को रिफ्यूज करने का नोटिस दिया था लेकिन आज तक ऐसी इकाइयों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.
इस तरह लूणी के बहाव क्षेत्र में सबसे बड़े बांध जसवंतसागर का तीन दशक पहले तक कैचमेंट एरिया 3,367 वर्ग किमी हुआ करता था, लेकिन इसकी भंडारण और स्थिर भराव क्षमता में जबरदस्त कमी आई है. उदगम स्थल से बांध के बीच नदी के हिस्से के रूप में मूल कैचमेंट में करीब 62.2 प्रतिशत एरिया में या तो स्मॉल स्ट्रक्चर बन गए हैं या उनका अतिक्रमण हो चुका है. मूल कैचमेंट 3,367 वर्ग किमी के मुकाबले इस वक्त केवल 1,272 वर्ग किमी एरिया ही उपयोगी रह गया है. बहरहाल लूणी के संरक्षण की सख्त जरूरत है, वरना औद्योगिक होड़ उसे निगल जाएगी.
संकट में पश्चिमी राजस्थान की जीवनदायिनी नदी लूणी
औद्योगिक प्रदूषण और अतिक्रमण से त्रस्त राजस्थान की लूणी नदी बालोतरा की फैक्ट्र्रियों ने किया तबाह. उसके वजूद पर संकट.

अपडेटेड 7 अक्टूबर , 2014
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