मुझे जो बात ज्यादा परेशान कर रही थी, वह यह थी कि नेहरू पर माउंटबेटन का असर ऐसा था, जिसे कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता था. इतना ज्यादा कि वे माउंटबेटन के इशारों पर चलने लगे थे. उन्हें माउंटबेटन की कमियां बिल्कुल भी नजर नहीं आ रही थीं. उनकी पत्नी एडविना को नेहरू से प्यार हो गया था और नेहरू को उनसे. जब एडविना माउंटबेटन का 1960 के शुरू में बोर्नियो में निधन हो गया तो नेहरू ने संसद में उन्हें श्रद्धांजलि दी. यह एक अभूतपूर्व बात थी.
पंडित नेहरू (चीन से) वापस आते समय कलकत्ता में रुके. उन्होंने चीन के दौरे के अनुभव के बारे में अपना पत्र एडविना माउंटबेटन को लिखा और चीन के नेताओं से अपनी बातचीत के बारे में उन्हें बताया. साफ कहें तो यह गोपनीयता की शपथ के खिलाफ था. उस समय किसी को इस पत्र की जानकारी नहीं थी और यह बात तब उजागर हुई जब एस. गोपाल द्वारा संपादित उनके चुनिंदा लेखों और पत्रों को बाद में प्रकाशित किया गया.
पंडित नेहरू (चीन से) वापस आते समय कलकत्ता में रुके. उन्होंने चीन के दौरे के अनुभव के बारे में अपना पत्र एडविना माउंटबेटन को लिखा और चीन के नेताओं से अपनी बातचीत के बारे में उन्हें बताया. साफ कहें तो यह गोपनीयता की शपथ के खिलाफ था. उस समय किसी को इस पत्र की जानकारी नहीं थी और यह बात तब उजागर हुई जब एस. गोपाल द्वारा संपादित उनके चुनिंदा लेखों और पत्रों को बाद में प्रकाशित किया गया.