अभी कुछेक महीने पहले तीन शीर्ष भारतीय अर्थशास्त्रियों अमत्र्य सेन, जगदीश भगवती और अरविंद पानगडिय़ा ने गुजरात और केरल के विकास मॉडल पर जमकर बहस की. सेन को भगवती और पानगडिय़ा ने चुनौती दी. जहां एक ओर अमत्र्य सेन का यह कहना था कि गुजरात का मॉडल समावेशी नहीं है, वहीं बाकी दोनों अर्थशास्त्री बड़े पैमाने पर आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के लिए गुजरात की तारीफ कर रहे थे. लेकिन गुजरात के मुद्दे पर गहरे आपसी मतभेदों के बावजूद तीनों कम-से-कम एक बिंदु पर तो पूरी तरह सहमत थे: केरल ने दोनों मामलों में सफलता हासिल की है—आर्थिक वृद्घि और उसमें सबकी हिस्सेदारी. हालांकि, उनमें इस बात को लेकर मतभेद था कि यह विकास केरल ने किस तरह से हासिल किया है.
जहां एक ओर सेन इसका श्रेय राज्य की ओर से शुरू किए गए तमाम कल्याणकारी कार्यक्रमों को दे रहे थे, वहीं भगवती और पानगडिय़ा का कहना था कि दोनों बिंदुओं पर राज्य की प्रगति अधिकांशत: इस वजह से हुई है कि 1990 के दशक में राज्य की अर्थव्यवस्था का ग्लोबलाइजेशन किया गया और उसके विशाल प्रवासी समुदाय की तरफ से राज्य में भारी धन आ रहा है. राज्यों की दशा व दिशा की इस साल की रिपोर्ट में आर्थिक वृद्धि और मानव विकास, दोनों ही मामलों में केरल में हुई प्रगति को रेखांकित किया गया है. तीन प्रमुख वृद्धि सूचकांकों: जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद), पूंजीगत व्यय और उपभोक्ता बाजार के मामले में राष्ट्रीय औसत को काफी पीछे छोड़ते हुए यह राज्य पहले स्थान पर पहुंच गया है. इसी के साथ-साथ केरल ने शिक्षा क्षेत्र में अपनी परंपरागत मजबूती को भी बनाए रखा है.

एक ओर जहां केरल ने जीडीपी में 10 फीसदी की बेहतरीन बढ़त हासिल की है, जो कि राष्ट्रीय जीडीपी की औसत वृद्घि दर से तीन फीसदी ज्यादा है, वहीं उसके पूंजीगत व्यय में भी 30 फीसदी की बढ़त हुई है, जबकि इस मामले में पूरे देश का औसत महज 5 फीसदी है. पिछले कुछ वर्षों से प्रति व्यक्ति उपभोग के मामले में देश में शीर्ष पर रहने वाले इस राज्य में टू-व्हीलर वाहन रखने वाले लोगों की संख्या में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत महज 15 फीसदी है.
भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती का केरल पर शायद ही कोई असर पड़ा है. वर्ष 2011-12 के दौरान केरल के जीडीपी में 9.5 फीसदी की बढ़त हुई है, जबकि इस दौरान भारत का कुल जीडीपी महज 6.5 फीसदी बढ़ा है. निश्चित रूप से डॉलर में लगातार मजबूती से विदेश से आने वाले धन के वर्ष 2011 के 50,000 करोड़ रु. की जगह 2012 में बढ़कर 65,000 करोड़ रु. हो जाने से राज्य की अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों में अच्छी प्रगति हुई है.

शिक्षा के क्षेत्र में भी शानदार वृद्धि हुई है. शिक्षक-शिष्य अनुपात दोगुना बढ़ा है और अब हर 100 शिष्यों पर दो शिक्षकों की जगह चार शिक्षक हो गए हैं, जबकि ज्यादातर अन्य राज्यों में इस मामले में मामूली सुधार ही हुआ है. केरल में शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति की शुरुआत तो 19वीं सदी से ही हो गई थी, जब त्रावणकोर राज्य ने अपने सभी नागरिकों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की थी. इसलिए यह कतई अचरज की बात नहीं कि केरल एक पुरानी बुनियाद पर अच्छी इमारत खड़ी करने में सक्षम हुआ है.
जहां एक ओर सेन इसका श्रेय राज्य की ओर से शुरू किए गए तमाम कल्याणकारी कार्यक्रमों को दे रहे थे, वहीं भगवती और पानगडिय़ा का कहना था कि दोनों बिंदुओं पर राज्य की प्रगति अधिकांशत: इस वजह से हुई है कि 1990 के दशक में राज्य की अर्थव्यवस्था का ग्लोबलाइजेशन किया गया और उसके विशाल प्रवासी समुदाय की तरफ से राज्य में भारी धन आ रहा है. राज्यों की दशा व दिशा की इस साल की रिपोर्ट में आर्थिक वृद्धि और मानव विकास, दोनों ही मामलों में केरल में हुई प्रगति को रेखांकित किया गया है. तीन प्रमुख वृद्धि सूचकांकों: जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद), पूंजीगत व्यय और उपभोक्ता बाजार के मामले में राष्ट्रीय औसत को काफी पीछे छोड़ते हुए यह राज्य पहले स्थान पर पहुंच गया है. इसी के साथ-साथ केरल ने शिक्षा क्षेत्र में अपनी परंपरागत मजबूती को भी बनाए रखा है.

एक ओर जहां केरल ने जीडीपी में 10 फीसदी की बेहतरीन बढ़त हासिल की है, जो कि राष्ट्रीय जीडीपी की औसत वृद्घि दर से तीन फीसदी ज्यादा है, वहीं उसके पूंजीगत व्यय में भी 30 फीसदी की बढ़त हुई है, जबकि इस मामले में पूरे देश का औसत महज 5 फीसदी है. पिछले कुछ वर्षों से प्रति व्यक्ति उपभोग के मामले में देश में शीर्ष पर रहने वाले इस राज्य में टू-व्हीलर वाहन रखने वाले लोगों की संख्या में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत महज 15 फीसदी है.
भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती का केरल पर शायद ही कोई असर पड़ा है. वर्ष 2011-12 के दौरान केरल के जीडीपी में 9.5 फीसदी की बढ़त हुई है, जबकि इस दौरान भारत का कुल जीडीपी महज 6.5 फीसदी बढ़ा है. निश्चित रूप से डॉलर में लगातार मजबूती से विदेश से आने वाले धन के वर्ष 2011 के 50,000 करोड़ रु. की जगह 2012 में बढ़कर 65,000 करोड़ रु. हो जाने से राज्य की अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों में अच्छी प्रगति हुई है.

शिक्षा के क्षेत्र में भी शानदार वृद्धि हुई है. शिक्षक-शिष्य अनुपात दोगुना बढ़ा है और अब हर 100 शिष्यों पर दो शिक्षकों की जगह चार शिक्षक हो गए हैं, जबकि ज्यादातर अन्य राज्यों में इस मामले में मामूली सुधार ही हुआ है. केरल में शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति की शुरुआत तो 19वीं सदी से ही हो गई थी, जब त्रावणकोर राज्य ने अपने सभी नागरिकों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की थी. इसलिए यह कतई अचरज की बात नहीं कि केरल एक पुरानी बुनियाद पर अच्छी इमारत खड़ी करने में सक्षम हुआ है.