भविष्य के सपने दिखाने में नरेंद्र मोदी का कोई सानी नहीं है लेकिन अतीत उनका पीछा नहीं छोड़ता. बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अपनी धुआंधार रैलियों में कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार के सत्ता के दुरुपयोग और दांव-पेचों पर सबसे तीखे और तंज अंदाज में हमला बोलते हैं. इस महाभियान में उनके सामने जब भी कोई पुराना साया अचानक नए रूप में उभरता है, तो वे विरोधियों की तिकड़मबाजी पर चुन-चुनकर वार करते हैं. लेकिन इस बार वे किसी की लानत-मलामत नहीं कर पा रहे हैं. वे मौन हैं. यह देख हैरानी होती है क्योंकि उनसे जवाब मांगते ये आरोप वैसे ही हैं, जिसके लिए वे यूपीए की खिंचाई करते हैं, यानी सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग और रसूखदारों का बेदाग बच निकलना. गुजरात सरकार की जासूसी की इस पटकथा में उनके सबसे वफादार सहयोगी, एक पुलिस अधिकारी, एक रिटायर्ड आइएएस अधिकारी, एक महिला लैंडस्केप आर्किटेक्ट और सबसे विचित्र, एक अनाम ‘‘साहेब’’ की दास्तान है. मोदी पर जवाबी हमले का मुद्दा तलाश रही कांग्रेस को इससे बेहतरीन स्कैंडल और क्या मिल सकता था.
बीजेपी अपने कमजोर बचाव से कांग्रेस की मदद ही कर रही है. दो खोजी वेबसाइटों ने गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गिरीश एल. सिंघल और तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अमित शाह की बातचीत की टेप के अंश जारी किए हैं.
इसके मुताबिक कथा कुछ इस प्रकार है. पूरे अगस्त और सितंबर 2009 में सिंघल और उनके सात मातहतों ने अहमदाबाद और भुज में काम करने वाली 35 वर्षीया आर्किटेक्ट ‘‘माधुरी’’ सोनी (असली नाम नहीं) की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी. उसके पिता 63 वर्षीय प्राणलाल सोनी भुज के सराफ बाजार में कच्छ की सबसे नामी जेवरात की दुकान ‘‘नरभेराम रामजी ज्वेलर्स’’ चलाते थे. उन्होंने 2001 के भूकंप के बाद सराफ बाजार के पुनर्निर्माण में तत्कालीन जिलाधिकारी प्रदीप शर्मा के साथ मिलकर सक्रिय भूमिका निभाई थी. तीन साल बाद मोदी ने नए बाजार का उद्घाटन किया. सूत्रों के मुताबिक, सोनी के बेटों-38 वर्षीय चिंतन और 29 वर्षीय हरित ने 2008 में बंगलुरू में एक ऊर्जा बचत कंपनी इकोलिब्रियम एनर्जी खोली, जिसकी एक निदेशक माधुरी थी. इस कंपनी का गुजरात सरकार से करार था. प्राणलाल सोनी मोदी के करीबी थे. मोदी 2010 में केंसविला गोल्ड क्लब में अहमदाबाद के एक व्यापारी के साथ ‘‘माधुरी’’ की शादी में भी पहुंचे थे.
अब इन पात्रों के बीच एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड में एसपी (ऑपरेशंस) तथा अमित शाह के सबसे पसंदीदा अफसर सिंघल का प्रवेश होता है. टेप के मुताबिक, शाह ने सिंघल से प्रदीप शर्मा की जासूसी बढ़ाने को भी कहा, जो तब भावनगर के निगम आयुक्त बन गए थे. जासूसी में माधुरी का पीछा करने के अलावा उसके कॉल रिकॉर्ड को भी खंगालना था. करीब 62 दिनों तक सिंघल और उनकी टीम यह खबर रखती रही कि वह कहां गई, किससे मिली और क्यों. उसका पीछा पुलिसवाले कार और मोटर साइकिल से हवाई अड्डे, होटल, शॉपिंग मॉल, जिम हर जगह करते रहे. उसकी गतिविधियों का पता लगाने के लिए मोबाइल मेटाडाटा खंगाला गया. यानी वह कब कहां है, कितने कॉल उसे आए, किससे कितनी देर बात हुई, वगैरह. एक मौके पर तो एक पुलिसवाले को अहमदाबाद से मुंबई की उड़ान में साथ बिठाया गया.
एक मौके पर टेप में सिंघल से अमित शाह कहते हैं, ‘‘आज वे एक होटल में खाना खाने जा रहे हैं. साहेब को इस बारे में कॉल आया था. लड़का उससे मिलने आ रहा है. ध्यान रखो. साहेब के पास हर खबर पहुंचती है, इसलिए हमारी चूक पकड़ी जा सकती है.’’ सिंघल बस यही बता पाए, ‘‘सर, हमारे आदमी वहां हैं और मोबाइल कंपनी के जरिए उनके लोकेशन का लगातार पता कर रहा हूं.’’ वे अपने भेदिये से शायद संपर्क नहीं कर पा रहे थे.
इस साल फरवरी में इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ कांड में गिरफ्तार सिंघल ने जून में सीबीआइ को दो पेनड्राइव में 267 क्लिप सौंपे. इस पूर्व एटीएस अधिकारी ने अमित शाह से अपनी पूरी बातचीत टेप कर रखी थी. बीजेपी का आरोप है कि यूपीए सरकार की साजिश के तहत सीबीआइ ने मोदी और शाह के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ में सबूत जुटाने में सहयोग करने के वादे के बाद सिंघल की गिरफ्तारी के 90 दिन की अनिवार्य अवधि के भीतर आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया और मई में उन्हें जमानत पर रिहा हो जाने दिया. सिंघल ने दोस्तों से कहा कि राजनैतिक नेतृत्व हम जैसे अफसरों की मदद नहीं कर रहा है, इसलिए मैंने ऐसा किया. 15 नवंबर को सिंघल के टेप बीजेपी को भारी झटका दे गए. न्यूज पोर्टल कोबरापोस्ट और गुलेल ने आवाज का वह टेप जारी कर दिया कि कैसे शाह अपने साहेब के कहने पर एक महिला आर्किटेक्ट की जासूसी करवा रहे थे. पर ये पोर्टल साहेब या उस महिला की पहचान नहीं बता पाए.
उलटा पड़ा बचाव
बीजेपी इस भंडाफोड़ से हतप्रभ रह गई. एक बीजेपी प्रवक्ता ने माना, ‘‘यह वज्रपात की तरह आया. यह इतना निजी मामला है कि इसका बचाव करने में भी झिझक होती है.’’ मोदी अपनी रैलियों में व्यस्त रहे. पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, राज्यसभा में विपक्ष के उप नेता रविशंकर प्रसाद, सांसद शहनवाज हुसैन और पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी-सभी मीडिया के सामने उचित जवाब की तलाश में जुट गए. उधर, गुजरात में मोदी की टीम प्राणलाल सोनी से एक पत्र ले आई और उसी दिन मीडिया को जारी कर दिया. पत्र में कहा गया है कि जासूसी उनके आग्रह पर की गई क्योंकि उन्हें अपनी बेटी की सुरक्षा की चिंता थी. लेकिन चिट्ठी को जारी करना उलटा ही पड़ा. यह तो दोष स्वीकार लेने जैसा था. परोक्ष रूप से मोदी का बचाव करने वालों ने स्वीकार कर लिया कि एक व्यक्ति की जासूसी करने के लिए राज्य मशीनरी का दुरुपयोग किया गया.
मोदी की टीम इस जासूसी का दो तरह से बचाव करती है. वे कहते हैं कि सोनी और उनकी बेटी खुद जासूसी प्रकरण की जांच नहीं चाहते, फिर क्या समस्या है? उनका दूसरा बचाव है कि महिला के पिता अपनी बेटी की सुरक्षा चाहते थे और उनका मानना था कि वह पहले से विवाहित प्रदीप शर्मा के साथ ‘‘नाजायज’’ रिश्ता बना रही है. गुजरात सरकार 1984 बैच के आइएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा से नाराज रही है. मोदी सरकार उन्हें 2003 से 2010 के बीच कच्छ के कलेक्टर के रूप में जमीन सौदों के पांच मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित कर चुकी है. उन्हें 2010 में गिरफ्तार किया गया और साल भर बाद वे जमानत पर रिहा हुए. वे अब भी निलंबित हैं. अप्रैल 2011 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में प्रदीप शर्मा ने कहा कि उन्हें राज्य सरकार ने इसलिए प्रताड़ित किया क्योंकि उनके बड़े भाई कुलदीप शर्मा से राज्य सरकार को परेशानी थी. 1978 बैच के आइपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा अब केंद्रीय गृह मंत्रालय में सलाहकार हैं.
प्रदीप शर्मा ने अपनी 200 पृष्ठों की अर्जी में अपने खिलाफ पांचों मामलों की पड़ताल सीबीआइ को सौंपने की मांग की है. उन्होंने मोदी और माधुरी के घनिष्ठ संबंधों के ब्यौरे भी उजागर किए हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि मोदी से माधुरी के संबंधों के बारे में जानकारी के कारण राज्य मशीनरी उनके खिलाफ श्पूर्वाग्रह और पक्षपात से ग्रस्त्य है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों-आफताब आलम और आर.एम. लोढ़ा की पीठ ने प्रदीप शर्मा से मोदी और माधुरी से जुड़े ‘‘व्यक्तिगत ब्यौरों’’ को हटा देने को कहा क्योंकि इस मामले से उसका कुछ लेना-देना नहीं है.
मोदी के करीबी एक सूत्र ने इंडिया टुडे को बताया कि बतौर गृह राज्य मंत्री शाह 24 अप्रैल, 2007 से ही प्रदीप शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की योजना बना रहे थे. शर्मा तब राजकोट के जिलाधिकारी थे और सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ कांड में आइपीएस डी.जी. वंजारा तथा दो आइएएस अधिकारियों की गिरफ्तारी पर सरकारी अधिकारियों के एक ग्रुप के सामने उन्होंने खुशी जाहिर की थी. सूत्र के मुताबिक, मोदी ने शाह को टाल दिया क्योंकि वे बदले की भावना का इजहार नहीं होने देना चाहते थे और प्रदीप शर्मा को अच्छी नियुक्तियां जारी रहीं.
बाद में, 2009 में जब शाह ने प्रदीप शर्मा की सरकार विरोधी गतिविधियों का सबूत पेश किया तो मुख्यमंत्री ने उसे गंभीरता से लिया. यह वही समय है जब प्राणलाल सोनी ने अपनी बेटी की शिकायत मोदी से की. कथित जमीन सौदों में भ्रष्टाचार के लिए प्रदीप शर्मा के खिलाफ जांच बिठाई गई. उनकी और माधुरी की जासूसी भी शुरू हुई. इस तरह सांस्थनिक शुचिता और कानून की प्रक्रियाओं को धता बता दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के मुताबिक क्या जासूसी करने का अधिकार देने की प्रक्रिया का पालन किया गया, राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘‘प्रक्रिया तो जरूर अपनाई गई होगी लेकिन ऐसे रिकॉर्ड साल भर के भीतर ही नष्ट कर दिए जाते हैं. इस बारे में सिर्फ अमित शाह ही बता सकते हैं और उन्होंने मुंह बंद कर रखा है.’’
बीजेपी का संकट, कांग्रेस की खुशी
इस घटना के सामने आने से कांग्रेस को तो मानो कामयाबी का नुस्खा मिल गया. 19 नवंबर को सुबह 11 बजे कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर 10 एनजीओ से जुड़ीं प्रमुख महिला अधिकार कार्यकर्ता जुटीं. उनमें सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की रंजना कुमारी और गिल्ड ऑफ सर्विस की मोहिनी गिरि प्रमुख थीं. ये सभी अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और एनजीओ के बीच विशेष संवाद के लिए आमंत्रित थीं. यह बैठक करीब महीने भर पहले कांग्रेस चुनाव घोषणा-पत्र के लिए महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर सुझाव देने के लिए बुलाई गई थी. लेकिन यह एजेंडा तो धरा रह गया और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शोभा ओझा ने बीच में ही गुजरात सरकार का जासूसी प्रकरण छेड़ दिया. बाद में ओझा ने दावा किया कि इस मसले पर उपस्थित एनजीओ के लोगों में भी रोष है और वे इसे आगे उठाएंगी. ओझा ने इस मामले में दो नाम-रंजना कुमारी और मोहिनी गिरि-साफ तौर पर लिए.
लेकिन जब यह मुद्दा बैठक में उठा, उससे पहले मोहिनी गिरि जा चुकी थीं. दूसरों के लिए यह असहज स्थिति थी. इससे चिढ़कर रंजना कुमारी ने कहा, ‘‘हमें महिला आरक्षण विधेयक और दूसरे महत्वपूर्ण मामलों में विचार-विमर्श के लिए बुलाया गया था लेकिन मुझे तकलीफ है कि कांग्रेस इसका राजनैतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है. यह पूरी तरह अनुचित है कि वह मामला उठा दिया गया जिसके लिए हम तैयार नहीं थे. अब मुझे बताया गया है कि पार्टी हमारी उपस्थिति का लाभ मोदी विरोधी मुहिम के लिए उठाना चाहती है जो पूरी तरह अनुचित है.’’
आरोप-प्रत्यारोप पूरे जोर पर हैं. 19 नवंबर को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की सुनवाई जल्द करने की अपील की. वे चार दिन पहले कोबरापोस्ट-गुलेल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा कि वे जासूसी प्रकरण में स्वतंत्र जांच की मांग करेंगे. वे कहते हैं, ‘‘इससे साबित हो जाएगा कि प्रदीप शर्मा उस महिला को जानते थे इसलिए राज्य सरकार ने उनके खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई की.’’ सुनवाई 3 दिसंबर को तय है फिर भी प्रदीप शर्मा शाह के खिलाफ एक याचिका लगाने की सोच रहे हैं. उनके करीबी एक सूत्र ने कहा, ‘‘जासूसी प्रकरण ने उन सभी बातों पर मुहर लगा दी जो वे कहते आए हैं. राज्य की मशीनरी उनसे दुश्मनी पाले हुए है.’’
उसी दिन पूर्व डीजीपी आर.बी. श्रीकुमार ने मोदी पर बात-बेबात जासूसी कराने का आरोप लगाया और कहा कि वे निजी प्रतिशोध के लिए राज्य की मशीनरी का दुरुपयोग करने के आदी हैं. दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्रीकुमार ने कहा कि बीजेपी उन पर निशाना साध रही है. उन्होंने दावा किया कि गुजरात में तैनाती के दौरान उनसे 2002 में कांग्रेस नेता शंकर सिंह बाघेला और हरेन पांड्या की जासूसी करने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. 2003 में रहस्यमय परिस्थितियों में मारे गए बीजेपी नेता हरेन पांड्या को भी मोदी विरोधी बताया जाता है.
मोदी सरकार की निष्ठा पर सवाल उठना लाजिमी है. वरिष्ठ वकील तथा सीबीआइ के अधिवक्ता विकास पाहवा ने इंडिया टुडे से कहा, ‘‘भारतीय टेलिग्राफ कानून के तहत राज्य को जासूसी करने का अधिकार है लेकिन यह सिर्फ सार्वजनिक इमरजेंसी के हालात में ही किया जाना चाहिए, जहां राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के भंग होने का खतरा हो. लेकिन इस मामले में इनमें एक भी शर्त लागू नहीं होती. इसलिए यह किसी व्यक्ति विशेष की निजता में ताक-झांक करने का स्पष्ट मामला है. अगर वे आगे आती हैं तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई हो सकती है.’’ ऐसे असहज सवालों से बचने के लिए ही प्राणलाल सोनी ने कथित तौर पर अपनी बेटी की ओर से 18 नवंबर को राष्ट्रीय महिला आयोग को चिट्ठी लिखी कि वे कोई जांच नहीं चाहते क्योंकि माधुरी ‘‘अपने निजी जीवन और निजता’’ में खलल से परेशान है. हालांकि महिला आयोग ने अपने दफ्तर में डाली गई इस चिट्ठी की सचाई का पता लगाने के लिए जांच बैठा दी है.
बीजेपी महासचिव अनंत कुमार इस विवाद को यह कहकर हवा में उड़ाने की कोशिश करते हैं कि उनकी पार्टी कांग्रेस की तिकड़मबाज टोली (‘‘डर्टी ट्रिक डिपार्टमेंट’’) के आरोपों से परेशान नहीं होती. उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे आरोपों को नजरअंदाज कर अपने सकारात्मक एजेंडे के साथ प्रचार में जुटे हैं.’’ लेकिन, क्या यूपीए सरकार के कारनामों पर हमला बोलने वाले मोदी अपनी सरकार के इस गड़बड़झाले से मुंह चुरा सकते हैं?
इस शर्मनाक जासूसी प्रकरण की जड़ में प्रशासनिक प्रक्रियाओं और मर्यादा का घोर उल्लंघन है. मोदी की दुविधा जटिल है. प्रक्रियाओं की अनदेखी को स्वीकार करना दोष कबूल करने जैसा होगा, और दोष कबूल करने का यही डर मोदी को जादुई शब्द ‘‘क्षमा’’ के उच्चारण से रोकता है, चाहे वह 2002 के दंगों का मामला हो या अपने बागी मातहतों के खिलाफ कार्रवाई का. ऐसा कबूलनामा उनके सबसे बहुमूल्य राजनैतिक सहयोगी अमित शाह के लिए बेइंतिहा मुश्किल पैदा कर देगा. आखिर शाह ही मोदी राज के खिलाफ तमाम पुराने आरोपों के सूत्रधार हैं. यानी जो पहले पूंजी थी, अब वह बोझ बनती जा रही है. फिर भी गुजरात के मुख्यमंत्री कदम उठाने से हिचक रहे हैं. वे यह स्वीकार करने से मुंह चुरा रहे हैं कि उनके राजकाज पर उठते सवालों पर मौन रहना उस नेता की निशानी नहीं है जो पूरे भारत में राज करने का सपना देखता हो.
-साथ में जयंत श्रीराम
बीजेपी अपने कमजोर बचाव से कांग्रेस की मदद ही कर रही है. दो खोजी वेबसाइटों ने गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गिरीश एल. सिंघल और तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अमित शाह की बातचीत की टेप के अंश जारी किए हैं.
इसके मुताबिक कथा कुछ इस प्रकार है. पूरे अगस्त और सितंबर 2009 में सिंघल और उनके सात मातहतों ने अहमदाबाद और भुज में काम करने वाली 35 वर्षीया आर्किटेक्ट ‘‘माधुरी’’ सोनी (असली नाम नहीं) की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी. उसके पिता 63 वर्षीय प्राणलाल सोनी भुज के सराफ बाजार में कच्छ की सबसे नामी जेवरात की दुकान ‘‘नरभेराम रामजी ज्वेलर्स’’ चलाते थे. उन्होंने 2001 के भूकंप के बाद सराफ बाजार के पुनर्निर्माण में तत्कालीन जिलाधिकारी प्रदीप शर्मा के साथ मिलकर सक्रिय भूमिका निभाई थी. तीन साल बाद मोदी ने नए बाजार का उद्घाटन किया. सूत्रों के मुताबिक, सोनी के बेटों-38 वर्षीय चिंतन और 29 वर्षीय हरित ने 2008 में बंगलुरू में एक ऊर्जा बचत कंपनी इकोलिब्रियम एनर्जी खोली, जिसकी एक निदेशक माधुरी थी. इस कंपनी का गुजरात सरकार से करार था. प्राणलाल सोनी मोदी के करीबी थे. मोदी 2010 में केंसविला गोल्ड क्लब में अहमदाबाद के एक व्यापारी के साथ ‘‘माधुरी’’ की शादी में भी पहुंचे थे.
अब इन पात्रों के बीच एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड में एसपी (ऑपरेशंस) तथा अमित शाह के सबसे पसंदीदा अफसर सिंघल का प्रवेश होता है. टेप के मुताबिक, शाह ने सिंघल से प्रदीप शर्मा की जासूसी बढ़ाने को भी कहा, जो तब भावनगर के निगम आयुक्त बन गए थे. जासूसी में माधुरी का पीछा करने के अलावा उसके कॉल रिकॉर्ड को भी खंगालना था. करीब 62 दिनों तक सिंघल और उनकी टीम यह खबर रखती रही कि वह कहां गई, किससे मिली और क्यों. उसका पीछा पुलिसवाले कार और मोटर साइकिल से हवाई अड्डे, होटल, शॉपिंग मॉल, जिम हर जगह करते रहे. उसकी गतिविधियों का पता लगाने के लिए मोबाइल मेटाडाटा खंगाला गया. यानी वह कब कहां है, कितने कॉल उसे आए, किससे कितनी देर बात हुई, वगैरह. एक मौके पर तो एक पुलिसवाले को अहमदाबाद से मुंबई की उड़ान में साथ बिठाया गया.
एक मौके पर टेप में सिंघल से अमित शाह कहते हैं, ‘‘आज वे एक होटल में खाना खाने जा रहे हैं. साहेब को इस बारे में कॉल आया था. लड़का उससे मिलने आ रहा है. ध्यान रखो. साहेब के पास हर खबर पहुंचती है, इसलिए हमारी चूक पकड़ी जा सकती है.’’ सिंघल बस यही बता पाए, ‘‘सर, हमारे आदमी वहां हैं और मोबाइल कंपनी के जरिए उनके लोकेशन का लगातार पता कर रहा हूं.’’ वे अपने भेदिये से शायद संपर्क नहीं कर पा रहे थे.
इस साल फरवरी में इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ कांड में गिरफ्तार सिंघल ने जून में सीबीआइ को दो पेनड्राइव में 267 क्लिप सौंपे. इस पूर्व एटीएस अधिकारी ने अमित शाह से अपनी पूरी बातचीत टेप कर रखी थी. बीजेपी का आरोप है कि यूपीए सरकार की साजिश के तहत सीबीआइ ने मोदी और शाह के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ में सबूत जुटाने में सहयोग करने के वादे के बाद सिंघल की गिरफ्तारी के 90 दिन की अनिवार्य अवधि के भीतर आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया और मई में उन्हें जमानत पर रिहा हो जाने दिया. सिंघल ने दोस्तों से कहा कि राजनैतिक नेतृत्व हम जैसे अफसरों की मदद नहीं कर रहा है, इसलिए मैंने ऐसा किया. 15 नवंबर को सिंघल के टेप बीजेपी को भारी झटका दे गए. न्यूज पोर्टल कोबरापोस्ट और गुलेल ने आवाज का वह टेप जारी कर दिया कि कैसे शाह अपने साहेब के कहने पर एक महिला आर्किटेक्ट की जासूसी करवा रहे थे. पर ये पोर्टल साहेब या उस महिला की पहचान नहीं बता पाए.
उलटा पड़ा बचाव
बीजेपी इस भंडाफोड़ से हतप्रभ रह गई. एक बीजेपी प्रवक्ता ने माना, ‘‘यह वज्रपात की तरह आया. यह इतना निजी मामला है कि इसका बचाव करने में भी झिझक होती है.’’ मोदी अपनी रैलियों में व्यस्त रहे. पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली, पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, राज्यसभा में विपक्ष के उप नेता रविशंकर प्रसाद, सांसद शहनवाज हुसैन और पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी-सभी मीडिया के सामने उचित जवाब की तलाश में जुट गए. उधर, गुजरात में मोदी की टीम प्राणलाल सोनी से एक पत्र ले आई और उसी दिन मीडिया को जारी कर दिया. पत्र में कहा गया है कि जासूसी उनके आग्रह पर की गई क्योंकि उन्हें अपनी बेटी की सुरक्षा की चिंता थी. लेकिन चिट्ठी को जारी करना उलटा ही पड़ा. यह तो दोष स्वीकार लेने जैसा था. परोक्ष रूप से मोदी का बचाव करने वालों ने स्वीकार कर लिया कि एक व्यक्ति की जासूसी करने के लिए राज्य मशीनरी का दुरुपयोग किया गया.
मोदी की टीम इस जासूसी का दो तरह से बचाव करती है. वे कहते हैं कि सोनी और उनकी बेटी खुद जासूसी प्रकरण की जांच नहीं चाहते, फिर क्या समस्या है? उनका दूसरा बचाव है कि महिला के पिता अपनी बेटी की सुरक्षा चाहते थे और उनका मानना था कि वह पहले से विवाहित प्रदीप शर्मा के साथ ‘‘नाजायज’’ रिश्ता बना रही है. गुजरात सरकार 1984 बैच के आइएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा से नाराज रही है. मोदी सरकार उन्हें 2003 से 2010 के बीच कच्छ के कलेक्टर के रूप में जमीन सौदों के पांच मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित कर चुकी है. उन्हें 2010 में गिरफ्तार किया गया और साल भर बाद वे जमानत पर रिहा हुए. वे अब भी निलंबित हैं. अप्रैल 2011 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में प्रदीप शर्मा ने कहा कि उन्हें राज्य सरकार ने इसलिए प्रताड़ित किया क्योंकि उनके बड़े भाई कुलदीप शर्मा से राज्य सरकार को परेशानी थी. 1978 बैच के आइपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा अब केंद्रीय गृह मंत्रालय में सलाहकार हैं.
प्रदीप शर्मा ने अपनी 200 पृष्ठों की अर्जी में अपने खिलाफ पांचों मामलों की पड़ताल सीबीआइ को सौंपने की मांग की है. उन्होंने मोदी और माधुरी के घनिष्ठ संबंधों के ब्यौरे भी उजागर किए हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि मोदी से माधुरी के संबंधों के बारे में जानकारी के कारण राज्य मशीनरी उनके खिलाफ श्पूर्वाग्रह और पक्षपात से ग्रस्त्य है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों-आफताब आलम और आर.एम. लोढ़ा की पीठ ने प्रदीप शर्मा से मोदी और माधुरी से जुड़े ‘‘व्यक्तिगत ब्यौरों’’ को हटा देने को कहा क्योंकि इस मामले से उसका कुछ लेना-देना नहीं है.
मोदी के करीबी एक सूत्र ने इंडिया टुडे को बताया कि बतौर गृह राज्य मंत्री शाह 24 अप्रैल, 2007 से ही प्रदीप शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की योजना बना रहे थे. शर्मा तब राजकोट के जिलाधिकारी थे और सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ कांड में आइपीएस डी.जी. वंजारा तथा दो आइएएस अधिकारियों की गिरफ्तारी पर सरकारी अधिकारियों के एक ग्रुप के सामने उन्होंने खुशी जाहिर की थी. सूत्र के मुताबिक, मोदी ने शाह को टाल दिया क्योंकि वे बदले की भावना का इजहार नहीं होने देना चाहते थे और प्रदीप शर्मा को अच्छी नियुक्तियां जारी रहीं.
बाद में, 2009 में जब शाह ने प्रदीप शर्मा की सरकार विरोधी गतिविधियों का सबूत पेश किया तो मुख्यमंत्री ने उसे गंभीरता से लिया. यह वही समय है जब प्राणलाल सोनी ने अपनी बेटी की शिकायत मोदी से की. कथित जमीन सौदों में भ्रष्टाचार के लिए प्रदीप शर्मा के खिलाफ जांच बिठाई गई. उनकी और माधुरी की जासूसी भी शुरू हुई. इस तरह सांस्थनिक शुचिता और कानून की प्रक्रियाओं को धता बता दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के मुताबिक क्या जासूसी करने का अधिकार देने की प्रक्रिया का पालन किया गया, राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘‘प्रक्रिया तो जरूर अपनाई गई होगी लेकिन ऐसे रिकॉर्ड साल भर के भीतर ही नष्ट कर दिए जाते हैं. इस बारे में सिर्फ अमित शाह ही बता सकते हैं और उन्होंने मुंह बंद कर रखा है.’’
बीजेपी का संकट, कांग्रेस की खुशी
इस घटना के सामने आने से कांग्रेस को तो मानो कामयाबी का नुस्खा मिल गया. 19 नवंबर को सुबह 11 बजे कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर 10 एनजीओ से जुड़ीं प्रमुख महिला अधिकार कार्यकर्ता जुटीं. उनमें सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की रंजना कुमारी और गिल्ड ऑफ सर्विस की मोहिनी गिरि प्रमुख थीं. ये सभी अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और एनजीओ के बीच विशेष संवाद के लिए आमंत्रित थीं. यह बैठक करीब महीने भर पहले कांग्रेस चुनाव घोषणा-पत्र के लिए महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर सुझाव देने के लिए बुलाई गई थी. लेकिन यह एजेंडा तो धरा रह गया और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शोभा ओझा ने बीच में ही गुजरात सरकार का जासूसी प्रकरण छेड़ दिया. बाद में ओझा ने दावा किया कि इस मसले पर उपस्थित एनजीओ के लोगों में भी रोष है और वे इसे आगे उठाएंगी. ओझा ने इस मामले में दो नाम-रंजना कुमारी और मोहिनी गिरि-साफ तौर पर लिए.
लेकिन जब यह मुद्दा बैठक में उठा, उससे पहले मोहिनी गिरि जा चुकी थीं. दूसरों के लिए यह असहज स्थिति थी. इससे चिढ़कर रंजना कुमारी ने कहा, ‘‘हमें महिला आरक्षण विधेयक और दूसरे महत्वपूर्ण मामलों में विचार-विमर्श के लिए बुलाया गया था लेकिन मुझे तकलीफ है कि कांग्रेस इसका राजनैतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है. यह पूरी तरह अनुचित है कि वह मामला उठा दिया गया जिसके लिए हम तैयार नहीं थे. अब मुझे बताया गया है कि पार्टी हमारी उपस्थिति का लाभ मोदी विरोधी मुहिम के लिए उठाना चाहती है जो पूरी तरह अनुचित है.’’
आरोप-प्रत्यारोप पूरे जोर पर हैं. 19 नवंबर को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की सुनवाई जल्द करने की अपील की. वे चार दिन पहले कोबरापोस्ट-गुलेल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा कि वे जासूसी प्रकरण में स्वतंत्र जांच की मांग करेंगे. वे कहते हैं, ‘‘इससे साबित हो जाएगा कि प्रदीप शर्मा उस महिला को जानते थे इसलिए राज्य सरकार ने उनके खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई की.’’ सुनवाई 3 दिसंबर को तय है फिर भी प्रदीप शर्मा शाह के खिलाफ एक याचिका लगाने की सोच रहे हैं. उनके करीबी एक सूत्र ने कहा, ‘‘जासूसी प्रकरण ने उन सभी बातों पर मुहर लगा दी जो वे कहते आए हैं. राज्य की मशीनरी उनसे दुश्मनी पाले हुए है.’’
उसी दिन पूर्व डीजीपी आर.बी. श्रीकुमार ने मोदी पर बात-बेबात जासूसी कराने का आरोप लगाया और कहा कि वे निजी प्रतिशोध के लिए राज्य की मशीनरी का दुरुपयोग करने के आदी हैं. दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्रीकुमार ने कहा कि बीजेपी उन पर निशाना साध रही है. उन्होंने दावा किया कि गुजरात में तैनाती के दौरान उनसे 2002 में कांग्रेस नेता शंकर सिंह बाघेला और हरेन पांड्या की जासूसी करने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. 2003 में रहस्यमय परिस्थितियों में मारे गए बीजेपी नेता हरेन पांड्या को भी मोदी विरोधी बताया जाता है.
मोदी सरकार की निष्ठा पर सवाल उठना लाजिमी है. वरिष्ठ वकील तथा सीबीआइ के अधिवक्ता विकास पाहवा ने इंडिया टुडे से कहा, ‘‘भारतीय टेलिग्राफ कानून के तहत राज्य को जासूसी करने का अधिकार है लेकिन यह सिर्फ सार्वजनिक इमरजेंसी के हालात में ही किया जाना चाहिए, जहां राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के भंग होने का खतरा हो. लेकिन इस मामले में इनमें एक भी शर्त लागू नहीं होती. इसलिए यह किसी व्यक्ति विशेष की निजता में ताक-झांक करने का स्पष्ट मामला है. अगर वे आगे आती हैं तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई हो सकती है.’’ ऐसे असहज सवालों से बचने के लिए ही प्राणलाल सोनी ने कथित तौर पर अपनी बेटी की ओर से 18 नवंबर को राष्ट्रीय महिला आयोग को चिट्ठी लिखी कि वे कोई जांच नहीं चाहते क्योंकि माधुरी ‘‘अपने निजी जीवन और निजता’’ में खलल से परेशान है. हालांकि महिला आयोग ने अपने दफ्तर में डाली गई इस चिट्ठी की सचाई का पता लगाने के लिए जांच बैठा दी है.
बीजेपी महासचिव अनंत कुमार इस विवाद को यह कहकर हवा में उड़ाने की कोशिश करते हैं कि उनकी पार्टी कांग्रेस की तिकड़मबाज टोली (‘‘डर्टी ट्रिक डिपार्टमेंट’’) के आरोपों से परेशान नहीं होती. उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे आरोपों को नजरअंदाज कर अपने सकारात्मक एजेंडे के साथ प्रचार में जुटे हैं.’’ लेकिन, क्या यूपीए सरकार के कारनामों पर हमला बोलने वाले मोदी अपनी सरकार के इस गड़बड़झाले से मुंह चुरा सकते हैं?
इस शर्मनाक जासूसी प्रकरण की जड़ में प्रशासनिक प्रक्रियाओं और मर्यादा का घोर उल्लंघन है. मोदी की दुविधा जटिल है. प्रक्रियाओं की अनदेखी को स्वीकार करना दोष कबूल करने जैसा होगा, और दोष कबूल करने का यही डर मोदी को जादुई शब्द ‘‘क्षमा’’ के उच्चारण से रोकता है, चाहे वह 2002 के दंगों का मामला हो या अपने बागी मातहतों के खिलाफ कार्रवाई का. ऐसा कबूलनामा उनके सबसे बहुमूल्य राजनैतिक सहयोगी अमित शाह के लिए बेइंतिहा मुश्किल पैदा कर देगा. आखिर शाह ही मोदी राज के खिलाफ तमाम पुराने आरोपों के सूत्रधार हैं. यानी जो पहले पूंजी थी, अब वह बोझ बनती जा रही है. फिर भी गुजरात के मुख्यमंत्री कदम उठाने से हिचक रहे हैं. वे यह स्वीकार करने से मुंह चुरा रहे हैं कि उनके राजकाज पर उठते सवालों पर मौन रहना उस नेता की निशानी नहीं है जो पूरे भारत में राज करने का सपना देखता हो.
-साथ में जयंत श्रीराम