उत्तराखंड आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने वाला उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) फिर बिखर गया है. मात्र एक विधायक वाले इस दल ने सरकार से समर्थन वापसी का पत्र 13 मार्च को ही राज्यपाल को सौंप दिया लेकिन पार्टी विधायक और राज्य के कैबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह पवार इस फैसले के खिलाफ हैं. इस वक्त लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी इस पार्टी के पास न तो प्रत्याशी हैं और न कार्यकर्ता.
राज्य के पहले विधानसभा चुनाव (2002) में यूकेडी ने चार सीटें जीतीं, लेकिन फिर कभी इसे दोहरा नहीं पाया. 2007 में यूकेडी को 3 और 2012 में केवल एक सीट मिली. राजनैतिक विश्लेषक डॉ. गिरधर पंडित कहते हैं, ''बेशक उत्तराखंड आंदोलन की बागडोर यूकेडी के हाथ में रही, लेकिन पार्टी संघर्ष को वोट में नहीं बदल पाई. ''
राज्य गठन के बाद जब यूकेडी को मुद्दों पर फोकस कर जनाधार को मजबूत करना था, तभी वह सरकारों की कठपुतली बन गया. यूकेडी 2002 में गठित कांग्रेस सरकार का हिस्सा नहीं रहा, लेकिन सरकार के खिलाफ भी खड़ा नहीं हुआ. यूकेडी ने 9 मुद्दों पर भाजपा को समर्थन दिया था. भाजपा ने यूकेडी को कैबिनेट मंत्री का एक पद दिया और यही पद उसके बिखरने का कारण भी बना. दिसंबर 2010 में यूकेडी ने सरकार से समर्थन वापस लिया लेकिन एक धड़ा कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट के नेतृत्व में सरकार के साथ जमा रहा.
पार्टी दो गुटों दिवाकर भट्ट-यूकेडी (डी) और त्रिवेंद्र सिंह पंवार—यूकेडी (पी) में बंट गई. मामला राष्ट्रीय चुनाव आयोग में पहुंचा और चुनाव आयोग ने पार्टी के चुनाव चिन्ह कुर्सी को फ्रीज कर दिया और किसी भी गुट को यह चुनाव चिन्ह आवंटित नहीं किया. दिवाकर गुट के दोनों विधायकों दिवाकर भट्ट और ओमगोपाल रावत ने 2012 का विधानसभा चुनाव भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ा, लेकिन दोनों हार गए. जबकि पंवार गुट प्रीतम सिंह पंवार की जीत के साथ केवल एक सीट यमुनोत्री से जीतने में कामयाब रहा. अब उन्होंने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया है.
2012 में यूकेडी कांग्रेस सरकार में शामिल हुआ. विधायक प्रीतम सिंह पंवार कैबिनेट मंत्री बने लेकिन यूकेडी ने एक साल के भीतर ही समर्थन वापस ले लिया. यूकेडी (पी) संगठन ने राज्यपाल से मिलकर 13 मार्च, 2013 को कांग्रेस से समर्थन वापस ले लिया, लेकिन प्रीतम सिंह सरकार के साथ बने रहे. नाराज यूकेडी (पी) अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया. पंवार कहते हैं, ''समर्थन वापसी का फैसला कार्यसमिति में लिया गया था, जिसे न मानने के कारण प्रीतम सिंह को निलंबित किया गया है. '' जबकि प्रीतम सिंह कहते हैं, ''अध्यक्ष (त्रिवेंद्र सिंह पंवार) का कार्यकाल 25 जुलाई, 2012 को ही पूरा हो चुका है. वे अवैध रूप से पार्टी और कार्यालय पर कब्जा जमाए हुए हैं. ''
वहीं उत्तराखंड जनतांत्रिक पार्टी अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट हर हाल में यूकेडी के सभी धड़ों का विलय चाहते हैं. वे कहते हैं, ''भले ही मुझे अलग बिठा दो, लेकिन यूकेडी को एकजुट करो. '' यूकेडी की इस टूट से इस पार्टी से सबसे ज्यादा चार बार (तीन बार यूपी और एक बार उत्तराखंड में) विधायक रह चुके यूकेडी (पी) संरक्षक काशी सिंह ऐरी भी बहुत विचलित हैं. वे कहते हैं, ''पार्टी तानाशाही से नहीं, बल्कि एकजुटता से चलेगी. अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हो चुका है. लेकिन वे अपने मन से बड़े-बड़े फैसले ले रहे हैं. ''
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई में जिस संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका रही हो, उसके नेताओं के बीच आपसी फूट और पूरे संगठन का ऐसा हश्र निश्चित ही बहुत दुखद और चिंतनीय है.