इस साल दो फरवरी को कश्मीर के बारामूला जिले में बारह साल के एक लड़के को भालू ने हमला कर बुरी तरह से घायल कर दिया. ठीक दो दिन बाद असम के धुबरी जिले में तीन ग्रामीणों पर हमला करने वाले एक तेंदुए को पीट-पीटकर मार डाला गया. एक दिन बाद दक्षिण दिल्ली के एक फार्म हाउस से एक घायल तेंदुए को छुड़ाया गया, जबकि ओडीसा में गुस्सैल हाथी ने एक महिला को कुचल डाला.
मानव और वन्य प्राणियों के बीच इस तरह का टकराव नया नहीं है, पर इन घटनाओं से पता चलता है कि यह समस्या अब बदतर स्थिति में पहुंच चुकी है. इन घटनाओं से जुड़ी खबरों में जानवरों की ओर से होने वाले खतरों को तो अहमियत मिली है लेकिन पर्यावरण को नुकसान जैसी समस्या की असल वजहों को नजरअंदाज कर दिया गया है. जैसे-जैसे शहर फैलते हुए जंगलों की सीमा छूते हैं, जानवरों की रिहाइश और मांसाहारी पशुओं के शिकार क्षेत्र आदि जैसे कई मामलों में बदलाव आता है.
बदले परिवेश से तालमेल बिठाने की कोशिश में जानवर खाने की तलाश में भटकते हुए आदम बस्तियों में आ जाते हैं. हरियाली और खुराक से महरूम जानवर खेतों की ओर बढऩे को मजबूर हो जाते हैं और फसलों के नुकसान के अंदेशे के चलते किसान उन्हें मार देते हैं.
स्वाभाविक रूप से घटते जंगलों के चलते जानवर लोगों के रास्ते में आएंगे. ओडीसा में पिछले साल एक ट्रेन ने छह हाथियों को रौंद दिया था. कोई राष्ट्रीय नीति न होने से ऐसे मामलों में राज्य अपने-अपने ढंग से निबटते हैं. कर्नाटक में वन संरक्षित क्षेत्रों के चारों ओर बिजली की बाड़ लगाई गई है. इस मामले में पड़ोसी देशों के अपने अनुभव हैं. नेपाल विलुप्तप्राय जातियों समेत वन्यजीवों की संख्या की अधिकतम सीमा तय करने की सोच रहा है. बाकी जानवरों को या तो खत्म किया जाएगा या फिर नई जगह बसाया जाएगा.