उत्तर प्रदेश में पुनर्जीवन पाने की लालसा में कांग्रेस अब प्रयोगों पर उतर आई है. पहले जातीय समीकरणों में उलझी प्रदेश की राजनीति में पार्टी का झंडा बुलंद करने की जिम्मेदारी फैजाबाद से सांसद निर्मल खत्री को सौंपी गई जिनका सूबे में कोई जातीय आधार नहीं है.
अब कांग्रेस हाइकमान ने पूरे प्रदेश को आठ जोन में बांटकर न केवल उनके जोनल प्रभारी तय कर दिए हैं, बल्कि सभी को स्वतंत्र अधिकार भी दे दिए हैं. पहले से गुटबाजी की शिकार कांग्रेस ने अब पार्टी के भीतर आठ नए गुट बना उस पटकथा की शुरुआत कर दी, जिसमें निर्मल खत्री को बीच-बचाव करने वाले की भूमिका निभानी होगी.
निर्मल खत्री जब बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पहली बार लखनऊ पहुंचे तो उनके स्वागत में जिस तरह पार्टी कार्यकर्ता आपस में भिड़े, उससे यह साफ हो गया कि उनकी राह कांटों भरी है. प्रदेश कांग्रेस में उस समय गुटबाजी साफ दिखाई पड़ी, जब कार्यकर्ताओं का एक धड़ा मंच पर मौजूद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के विरोध में 'वापस जाओ’ के नारे लगाने लगा. इसी बीच निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी और निवर्तमान कांग्रेस विधानमंडल दल नेता प्रमोद तिवारी के समर्थक आपस में भिड़ गए. यही नहीं, पी. एल. पूनिया को तवज्जो मिलने से खिन्न केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने स्वागत समारोह से दूर रहना ही उचित समझा.
वर्मा ही नहीं, कई वरिष्ठ पार्टी नेता प्रदेश में प्रभारियों की फौज तैयार करने के बावजूद अपनी उपेक्षा से नाराज हैं और नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष के साथ असहयोग की भूमिका में हैं. असल में प्रदेश में कांग्रेस अब आठ जोन में बंटकर काम करेगी. दस लोकसभा सीटों को मिलाकर बनाए गए हर जोन का एक अध्यक्ष होगा और उसके पास स्वतंत्र अधिकार होंगे. अपने जोन में जिला, ब्लॉक और ग्राम स्तर तक के अध्यक्षों को तैनात करने का जिम्मा जोनल अध्यक्षों के पास होगा. इनका अपना कार्यालय और स्टाफ होगा.
चूंकि ये जोनल अध्यक्ष सीधे कांग्रेस आलाकमान के संपर्क में रहेंगे, ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका गौण हो जाएगी. प्रदेश कांग्रेस के एक पूर्व उपाध्यक्ष बताते हैं कि नए प्रारूप में निर्मल खत्री की भूमिका पार्टी के जोनल अध्यक्षों के बीच महज एक कोऑर्डिनेटर की ही रह जाएगी और उन्हें स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में दिक्कतें आएंगी.
वर्ष 1984 में प्रदेश यूथ कांग्रेस की कमान संभालने वाले खत्री को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर देने के पीछे पार्टी हाइकमान की यह भी सोच है कि वे पुराने युवा कांग्रेसियों को इकट्ठा कर नए युवा नेताओं के बीच सेतु का काम करेंगे. लेकिन उनके पद संभालने के बाद पूर्व युवा कांग्रेसियों राजेशपति त्रिपाठी, मदनमोहन शुक्ल, नेकचंद्र पांडेय, हरीश वाजपेयी जैसे ब्राह्मण नेताओं ने इनके चारों ओर अपना घेरा बनाया है जिससे पार्टी के दूसरे वर्ग के नेताओं में खासी नाराजगी है.
इन नेताओं का कहना है कि खत्री को प्रदेश में सभी जातियों को साथ लेकर चलना होगा और इसकी शुरुआत उन्हें सबसे पहले खुद अपने आसपास के लोगों से करनी होगी. यही नहीं, विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच अनुशासनहीनता के मामले सामने आए थे, उसे रोक पाना खत्री के लिए आसान नहीं होगा.
उधर निवर्तमान अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी इस बात को स्वीकार करती हैं कि अनुशासनहीनता को रोकना खत्री के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. वे कहती हैं, ''कई कारणों से मैं पार्टी के भीतर अनुशासनहीनता के मामलों पर कड़ी कार्रवाई नहीं कर सकी, नए अध्यक्ष को इससे पार पाना होगा.” हालांकि रीता बहुगुणा ने उन चीजों पर राय नहीं दी, जिसके कारण वे पार्टी में अनुशासनहीनता पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पाईं.
बावजूद इसके खत्री अभी यही दावा कर रहे हैं कि वे ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करेंगे, लेकिन उनके लिए इतने स्वतंत्र अधिकार प्राप्त नेताओं को साथ लेकर चल पाना आसान नहीं होगा. इन लोगों पर नियंत्रण रखना एक अभूतपूर्व काम होगा और खत्री यदि इसमें नाकाम हुए तो बीते दो सालों से कमर दर्द की तकलीफ से उबरने के बाद जल्द ही उन्हें सिर दर्द से जूझना पड़ेगा.