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नारायण दत्त तिवारी जी ही हैं पिताजी

डीएनए जांच से अब यह साबित हो गया है कि नारायण दत्त तिवारी ही रोहित के पिता हैं. लेकिन कई प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं.

अपडेटेड 4 अगस्त , 2012

सत्ताइस जुलाई को ठीक शाम चार बजे, 86 वर्षीय नारायण दत्त तिवारी बाप बन गए. 33 वर्षीय रोहित शेखर ने पितृत्व के अधिकार का मुकदमा दायर किया था. रोहित का दावा था कि चार बार मुख्यमंत्री रहे और पूर्व राज्‍यपाल उनके जैविक पिता हैं. मुकदमा पांच साल घिसटता रहा, जब तक कि अदालत ने यह आदेश नहीं दे दिया कि तिवारी का डीएनए टेस्ट कराना चाहिए. जांच से प्रमाणित हुआ कि तिवारी वास्तव में रोहित के पिता हैं. रोहित ने कहा, ''मैं उनकी अवैध संतान नहीं हूं, वे मेरे अवैध पिता हैं.''

तिवारी ने कई घंटे बाद अपना बयान जारी करते हुए कहा कि वे सुनियोजित षड्यंत्र के शिकार हुए हैं. उन्होंने कहा, ''मुझे अपना निजी जीवन अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार है.''ND Tiwari

जिस कहानी का अंत अदालत में हुआ, उसकी शुरुआत दिल्ली के सबसे प्रभावशाली परिवारों में पनपी एक प्रेम कहानी के रूप में हुई थी. रोहित की मां उज्‍ज्‍वला शर्मा, जब 1968 में अपने पिता के घर 3, कृष्ण मेनन मार्ग पर तिवारी से मिलीं तो  उम्र के तीसरे दशक में थीं. उस वक्त तिवारी युवा कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उज्‍ज्‍वला के पिता प्रो. शेर सिंह अविभाजित पंजाब में प्रताप सिंह कैरों के मुख्यमंत्रित्व काल में उप-मंत्री रहे थे. 1967-80 में वे शिक्षा और रक्षा उत्पादन मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री बने.

उज्‍ज्‍वला और उनके पति बी.एल. शर्मा ने जब अलग होने का फैसला किया तो उनके गर्भ में बड़ा बेटा सिद्धार्थ आ चुका था. जैसा कि वे कहती हैं, ''मेरे और शर्मा जी (पति बी.एल. शर्मा) के बीच बहुत सामंजस्य नहीं था इसलिए हमने अलग होने का फैसला किया.'' जब वे तिवारी से मिलीं तब दिल्ली विवि में संस्कृत पढ़ाती थीं. यह नाजुक युवा लड़की तिवारी की निगाह में आ गई. अपनी निगाह को दृढ़ता से फर्श के कालीन पर जमाए हुए उज्‍ज्‍वला याद करती हैं, ''धीरे-धीरे हमारा परिचय बढ़ा और उनके प्रणय निवेदन शुरू हो गए.'' उन्होंने कहा, ''तुम एकाकी जीवन जी रही हो.'' वे सादगीपूर्ण गरिमा के साथ बताती हैं, ''अंततः 1977 में मैं उनके साथ अंतरंग संबंध बनाने को तैयार हुई, जिसके लिए वे पिछले 6-7 साल से कोशिश कर रहे थे.''

उज्‍द्गवला के मुताबिक, ''इसके बाद तिवारी  की मान-मनुहार बढ़ने लगी. उन्होंने उनसे बच्चे की मांग की क्योंकि अपनी पत्नी से उनका कोई बच्चा नहीं था. उज्‍ज्‍वला इसके लिए तैयार हो गईं, लेकिन उन्होंने कहा कि पहले अपनी पत्नी से तलाक लो और मुझसे शादी करो. तिवारी ने शादी के लिए यह कहकर मना कर दिया कि तलाक की प्रक्रिया में लंबा वक्त लग जाएगा. उन्होंने कहा कि वे 50 के हैं और मैं अपनी उम्र के चौथे दशक में हूं, इसलिए हमारे पास ज्‍यादा वक्त नहीं है. अतः हमें पहले बच्चा पैदा कर लेना चाहिए और उसके बाद तलाक की प्रक्रिया के समाप्त होने का इंतजार करना चाहिए. अंततः मैं मान गई क्योंकि मैंने देखा कि उनकी बच्चे की चाहत कितनी प्रबल थी.'' वे कहती हैं, ''ऐसा नहीं था कि मैं किसी डाकू या सड़कछाप आदमी पर भरोसा कर रही थी. वे भविष्य के नेता थे. एक ऐसे व्यक्ति, जो 6-7 साल से हमारे घर आते-जाते रहे थे. मैं यह कैसे समझ पाती कि वे ऐसे दोमुंहे होंगे. मेरा भरोसा गलत नहीं था. गलत उनका धूर्ततापूर्ण व्यवहार था.''

वे तिवारी के इस आरोप से नाराज हैं कि वे और शेखर उनकी सत्ता का फायदा उठाना चाहते हैं. 1979 में जब रोहित का जन्म हुआ, तब उज्‍ज्‍वला के पिता ताकतवर केंद्रीय मंत्री थे, जबकि तिवारी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1976-77) के रूप में अपना पहला कार्यकाल पूरा किया था. एक साल बाद 1980 में तिवारी पहली बार सांसद बने. उज्‍ज्‍वला बताती हैं, ''उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा बेटा मेरे लिए बहुत भाग्यशाली है क्योंकि उसके जन्म के एक साल बाद ही मैं सांसद बन गया.'' वे हमसे मिलने अकसर आते थे, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी को तलाक देने या बच्चे को स्वीकारने से मना कर दिया. तब तक वक्त बदल चुका था और शेर सिंह मंत्री नहीं थे. तिवारी कृष्णा मेनन मार्ग के उसी घर में रहने आए, जिस घर से उज्‍ज्‍वला और उनका परिवार बाहर निकले थे. वर्तमान में दोनों दिल्ली के पॉश इलाके डिफेंस कॉलोनी में रहते हैं.

रोहित की अपने पिता के बारे में शुरुआती याद एक ऐसे अंकल की है, जो स्विट्जरलैंड, जर्मनी से उसके लिए चॉकलेट और रिमोट से चलने वाले खिलौने लाते थे. रोहित सर्द आवाज में याद करते हैं, ''वे मेरे लिए नूरी फिल्म का गाना गाते थे और अपने इलाहाबाद के दिनों की कहानी सुनाया करते थे कि कैसे हरिवंश राय बच्चन उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे.''

रोहित उस वक्त को याद करते हैं और जन्म प्रमाणपत्र दिखाते हैं कि बी.एल. शर्मा मेरे पिता हैं, ''लेकिन यह बात मुझे परेशान करती थी कि मैंने शायद ही अपने पिता को कभी देखा हो जबकि मां हमेशा अंकल से लड़ती थीं.'' अंततः जब वे 11 साल के थे तो उन्होंने अपनी नानी से पूछा और उन्होंने उसे सच बता दिया. ''उसके बाद तिवारी की मौजूदगी में मुझे शर्म आने लगी.'' (अब वे उन्हें तिवारी ही कहते हैं.) कुछ साल बाद, 1993 में अपनी पत्नी के देहांत के बाद तिवारी ने रोहित से मिलना छोड़ दिया. उज्‍ज्‍वला और रोहित उनसे मिलने लखनऊ गए तो तिवारी ने गार्ड से कह दिया कि उन्हें अंदर मत आने दे.

इस तरह ठुकराए जाने से उस किशोर को गहरा सदमा लगा. रोहित कहते हैं, ''उसके बाद से यह विचित्र यात्रा रही है.'' वे अवसाद और अनिद्रा से पीड़ित रातों को जागते रहते. वे ऐसी स्थिति में पहुंच गए कि मात्र 28 साल की उम्र में हार्ट अटैक और पक्षाघात के शिकार हो गए. रोहित कहते हैं, ''तिवारी निष्ठुर ही रहे. उस वक्त भी वे सिर्फ माफी मांग लेते तो मुझे शांति मिल गई होती.''

बेटे ने पिता तक पहुंचने की एक और कोशिश की. वे और उनकी मां अक्तूबर 2005 में उनके जन्मदिन पर बधाई देने एक कव्क लेकर देहरादून गए. वे नारायण दत्त तिवारी से निजी रूप से मिले, ''लेकिन जैसे ही हम कमरे से बाहर निकले, मैं भीड़ में खड़े दूसरे आदमी जैसा ही था. मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता था कि कैसे एकांत में उन्होंने मेरे गालों को सहलाया, लेकिन सबके सामने नजरअंदाज किया. तभी मैंने निर्णय लिया कि मुझे अपने पितृत्व की पहचान चाहिए.''

दिलचस्प बात यह है कि जब तिवारी डीएनए टेस्ट से कतरा गए तो रोहित के कानूनी पिता बी.एल. शर्मा अपना डीएनए सैंपल 2010 में अदालत में देने को तैयार हो गए. शर्मा से उज्‍द्गवला पहले ही तलाक ले चुकी थीं. टेस्ट के नतीजे से प्रमाणित हो गया कि वे रोहित के पिता नहीं हैं.

यह एक विशिष्ट राजनैतिक जीवन का दुखद पराभव है. तिवारी की सांध्यवेला ने उनके जीवन की तमाम उपलब्धियों को ग्रस लिया है.

रोहित विधि स्नातक हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है कि हरामी, व्यभिचारी, रखैल, पतुरिया जैसे शब्द कानून की किताबों और अदालतों से बाहर किए जाएं. ''इनमें से कुछ शब्द मैंने अपनी मां के लिए सुने हैं. ये शब्द भेदभावपरक हैं, जिनसे पूर्वाग्रहों को बल मिलता है. यह सिर्फ मेरा मामला नहीं है. उन बच्चों का क्या, जो लिव-इन संबंधों से जन्म लेते हैं या जो स्पर्म डोनेशन से जन्म लेते हैं या फिर जो बलात्कार के कारण जन्म लेते हैं?'' गुस्से में भरे रोहित पूछते हैं, ''बच्चे की क्या गलती है कि उन्हें हरामी करार दिया जाता है?''

दिल्ली हाइकोर्ट की एकल पीठ ने पितृत्व और वैधता में फर्क किया है. न्यायमूर्ति जे.एस. रवींद्र भट्ट ने 23 दिसंबर, 2010 को फैसला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में वैधता के रक्षात्मक खोल द्वारा किसी बच्चे की अपनी या अपनी वैधता जानने की आकांक्षा को दफन नहीं करना चाहिए. तिवारी ने निजता के अधिकार की रक्षा की मांग की थी लेकिन अदालत ने उनके पुत्र के अपने पितृत्व की जानकारी के अधिकार को तरजीह दी और डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया.

रोहित अब भी नारायण दत्त तिवारी के वैध पुत्र नहीं हैं. अब भी बहुत से ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर पाना बाकी है. रोहित पूछते हैं, ''अपने वैध पिता और अपने जैविक पिता के बीच मेरे अधिकार और सीमाएं क्या हैं? मैं अपने पासपोर्ट में कौन-सा नाम लिखूं?'' सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत अपनी याचिका में रोहित ने ये सभी प्रश्न उठाए हैं. वे तिवारी के खिलाफ एक आपराधिक मुदकमा दायर करने की भी योजना बना रहे हैं.

वे अब भी कई सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन वे जिस सवाल का जवाब वास्तव में चाहते हैं वह अदालत में नहीं मिलेगाः क्यों एक आदमी जो एक वक्त उनके लिए लोरियां गाता था, उसने अचानक उन्हें पहचानने से मना कर दिया?

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