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"प्रह्लाद-चा ने मुझे अंदर से बदल दिया"

ऐक्टिंग के अपने अनुभवों, फिल्म इंडस्ट्री में पसरे पूर्वाग्रहों और इस साल अगस्त माह के अंत में रिलीज हुई फिल्म पड़ गए पंगे पर फैसल मलिक ने इंडिया टुडे से बातचीत में क्या बताया

फैसल मलिक, अभिनेता
फैसल मलिक, अभिनेता
अपडेटेड 9 सितंबर , 2024

बात पंगों की करें तो फिल्म बनाने के दौरान भी क्या कभी ऐसे पंगे हो जाते हैं कि काम करना मुश्किल हो जाए?

फिल्म की पूरी शूटिंग ही पंगे का काम है. मुंबई से इतर कभी आउटडोर शूट पर जाएं तो समझ लीजिए कि जैसा सोचा है, वैसा कभी नहीं होगा. एक बार तो हम एक किले में शूटिंग कर रहे थे. शूट के टाइम पर वहां ताला खोलने वाला ही नहीं पहुंचा. कभी आपको पिक करने वाला ड्राइवर टाइम पर सोकर नहीं उठा तो कभी आपका खाना डिलिवर करने वाला ट्रैफिक में फंस गया. यह सब जमीनी संघर्ष हैं जो बाहरी लोगों को नहीं दिखते.

करियर की शुरुआत से ही आपने कई रोल में पुलिस की वर्दी पहनी है, कोई विशेष वजह?

पुलिस के रोल मुझे बहुत ऑफर हुए हैं. शायद शकल से पुलिस वाला लगता हूं (हंसते हुए). हालांकि यह जरूर है कि हर पुलिस का किरदार अलग है—जैसे वासेपुर और सीए टॉपर के पुलिस वाले एक जैसे नहीं हैं. और पंचायत में प्रह्लाद-चा का किरदार बिल्कुल ही अलग है. दरअसल, मेरे हाथ में नहीं है कि मेरे पास कैसे रोल आएंगे. शायद ऐसी धारणा है कि मेरी कद-काठी का आदमी पुलिस वाला ही बन सकता है.

क्या आपको लगता है कि इस तरह की, कद-काठी से जुड़ी धारणाएं बदल रही हैं?

बदल रही हैं, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन इसके लिए उन सभी लोगों की सोच का बदलना जरूरी है जो एक ऐक्टर को प्रेजेंट करते हैं, चाहे वे कास्टिंग डायरेक्टर हों या एडी (असिस्टेंट डायरेक्टर). कैरेक्टर अपने भाव से होता है, सूरत से नहीं, यह समझ विकसित होने में वक्त लगेगा.

प्रह्लाद-चा के किरदार में हर सीजन में अलग इमोशन देखने को मिला. इस किरदार में आपका पसंदीदा हिस्सा क्या रहा?

जब यह सीरीज शुरू हुई, मैंने तो यह सोचकर काम शुरू किया कि आसान-सा रोल है, मजे-मजे में हो जाएगा. लेकिन किरदार और गहराता गया. इसने मुझे अंदर से बदल दिया क्योंकि जो इमोशन आपको दिखाने हैं वे आपके अपने अंदर ही खोजने होते हैं. बाकी पसंदीदा तो मेरे लिए वह हिस्सा है जिसमें बस आराम करना हो और खाने वाले सीन करने हों. मैं सचमुच आलसी किस्म का हूं.

पड़ गए पंगे में आपका किरदार कोई नया मोड़ लेने वाला है?

अभी सिर्फ इतना ही बताना चाहूंगा कि फिल्म प्यारी-सी है. पंचायत जैसी रिलेटेबल है. आपको मेरा किरदार देखने में मजा आएगा.

—गरिमा बुधानी

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