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"प्रेम की कोई भाषा नहीं होती"

सदाबहार अभिनेता, नाटककार मकरंद देशपांडे ने अपने सदाबहार नाटक सर सर सरला, शास्त्रीय संगीतकार नीलाद्रि कुमार के साथ नाट्य-संगत, भारतीयता की तलाश और रंगकर्मियों की नई पौध पर इंडिया टुडे से बातचीत में क्या बताया

मकरंद देशपांडे, अभिनेता व नाटककार
मकरंद देशपांडे, अभिनेता व नाटककार
अपडेटेड 19 अगस्त , 2024

आपका 'सर सर सरला' सिल्वर जुबली वर्ष में पहुंचने को है. कैसे रहे इसके अनुभव?

एक शिक्षक, उसकी छात्रा और दो छात्रों के बीच अव्यक्त प्रेम की यह कहानी हर इलाके के लोगों को पसंद आई. प्रेम की कोई भाषा नहीं होती. हिंदी, मराठी, गुजराती के बाद अब यह बांग्ला में भी होने जा रहा है. (सत्यदेव) दुबे जी कहते थे कि इसके सवाल तीर की तरह चुभते हैं. एक रामकथा के दौरान हमने इसे (मोरारी) बापू के सामने भी खेला. इसके 30-30 शो देख चुके दर्शक भी आपको मिल जाएंगे.

सितारवादक नीलाद्रि कुमार के साथ नाटक पत्नी में आपके प्रयोग की चर्चा हो रही है.

नीलाद्रि ने मेरा नाटक 'करोड़ों में एक' देखने के बाद कहा कि तुम्हारे साथ कुछ करना चाहता हूं. डेढ़ साल बाद मैंने इस मोनोलॉग के बारे में बताया: घर में मृत पत्नी की आत्मा है; न मैं उसे छोड़ रहा हूं न वो मुझे. नीलाद्रि सब्जेक्ट पूछे बिना ही साज लेके आ गया. इसमें प्रॉपर ब्लैकआउट्स के साथ वो उसके इमोशंस बजाता है. फिल्ममेकर इम्तियाज अली, सुधीर मिश्र, विशाल भारद्वाज दर्शकों में थे. प्रयोग शुद्ध भाव का था. कोई गिमिक नहीं. दर्शकों को वह ईमानदारी पसंद आई.

आप अपने ग्रुप के लिए लगातार नाटक लिखते आए पर बतौर नाटककार आपकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई.

मैं किसी मसले के साथ जीता हूं तो वह नाटक बनकर आ जाता है. पिछले नाटक कत्ल में कलाविहीन समाज पर तंज था. मेरे लिखे-निर्देशित किए साठेक मौलिक नाटक हैं. यह बात मैंने कहीं छेड़ी नहीं. अब इन्हें 5-5 के सेट में छपवाने की योजना है. मित्रों का कहना है कि ये लोगों तक पहुंचने चाहिए. नाट्यधर्म कहीं तो लोकधर्म है ही.

अपने लिखे नाटकों में आप भारतीयता के बोध की तलाश करते दिखते हैं.

शेक्सपियर, नीत्शे, सार्त्र, निहिलिज्म, अस्तित्ववाद समझते हैं हम. पर मैं रामायण, महाभारत, उपनिषद्, नानक, रमण वगैरह की बातों को सहज भाव से लाना चाहता हूं. हाल में जयपुर की फ्लाइट के दौरान आध्यात्मिक भावभूमि का मोनोलॉग पियक्कड़ लिख डाला. नवंबर में पृथ्वी फेस्टिवल में शायद करूं.

अभिनेताओं की पूरी फौज गढ़ी है आपने. नए आ रहे रंगकर्मियों के बारे में क्या राय है आपकी?

आज भी कुछ लोग मेरे पास इसलिए आते हैं कि इसके पास रणबीर (सिंह) भी था, अनुराग (कश्यप) भी था, तो कुछ दिन साथ थिएटर करो फिर फिल्म में काम देंगे. देखिए, हर व्यक्ति तैयार होता है ऐक्टिंग के लिए. पर तू एक बार तो कर लेगा, बात दूसरी बार करने की है. समझ आना जरूरी है कि यह बार-बार की रिहर्सल क्यूं! क्या मकसद है!

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