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राष्ट्रवाद की ज्वाला भड़काने वाली छावा ने कैसे गढ़ा बॉलीवुड का नया सांचा

संजय लीला भंसाली की पदमावत के विपरीत छावा ने खलनायक को परदे पर कम वक्त दिखाया और विवाद से ज्यादातर परहेज ही किया

 chhaava: Review
परदे पर शोले चर्चित फिल्म छावा में विक्की कौशल छत्रपति संभाजी महाराज की भूमिका में 
अपडेटेड 24 अप्रैल , 2025

तकरीबन दो घंटे तक छावा आक्रामकता और मर्दानगी से भरे मार्वल और डीसी यूनिवर्स के तमाशों के घालमेल की तरह चलती है. एक के बाद एक लड़ाइयां चलती रहती हैं, जब मराठा सम्राट छत्रपति संभाजी महाराज (इस भूमिका में विक्की कौशल) शेर के साथ लड़ते हैं (ग्लैडिएटर के रसेल क्रो की तरह), हवाई मुकाबलों में अपनी फनकारी दिखाते हैं और मुगल फौज से लोहा लेते हैं, और यह सब अक्सर अकेले करते हैं.

पृष्ठभूमि में ए.आर. रहमान के धमाकेदार संगीत के साथ यह उत्तेजक, असरदार और मनोरंजक ऐतिहासिक फिल्म आखिरी आधे घंटे में खासी रोमांचक और दिलचस्प हो जाती है जब मुक्के मुट्ठियों से नहीं बल्कि लक्रजों से जड़े जाते हैं. दर्शकों को आखिरकार दिलेर नायक और उसका थका-मांदा दुश्मन औरंगजेब (अक्षय खन्ना) एक फ्रेम में तभी देखने को मिलते हैं जब मुख्य पात्र को पकड़कर जंजीरों में जकड़ दिया जाता है.

बर्बरता से क्षतविक्षत छावा के सामने आजादी की आखिरी पेशकश रखते हुए खन्ना की शक्ल में औरंगजेब कहता है, ''मुगलों की तरफ आ जाओ. जिंदगी बदल जाएगी. बस तुम्हें अपना धर्म बदलना होगा.’’ इस सबसे प्रभावित हुए बिना मराठा सम्राट पलटकर जवाब देता है, ''हमसे हाथ मिला लो... जिंदगी बदल जाएगी और धर्म भी बदलना नहीं पड़ेगा.’’

लक्ष्मण उतेकर निर्देशित 2 घंटे 35 मिनट लंबी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी और अब तक 535 करोड़ रुपए बटोर लिए हैं. फिल्म मराठा गौरव और वीरता पर जोर देती है और एक किस्म का प्रदर्शनकारी हर्षोन्माद पैदा करने में भी इसका योगदान है. वीडियो क्लिपों में बच्चों और महिलाओं को आंसू बहाते और ''धर्मरक्षक संभाजी महाराज’’ की तारीफ में नारे लगाते दिखाया गया है.

अक्षय खन्ना मुगल बादशाह औरंगजेब के किरदार में

अगर कौशल ने अपने दक्षतापूर्ण शारीरिक अभिनय से नए मुरीद हासिल किए तो औरंगजेब के किरदार में खन्ना ने भी बैर और बदनीयती जाहिर करने के लिए अपनी ढकी हुई आंखों का इस्तेमाल करके दृश्य चुराए. जोश और जज्बे का आलम यह है कि नई दिल्ली में संसद ने भी 27 मार्च को सांसदों के लिए छावा के विशेष प्रदर्शन का आयोजन किया था लेकिन उसे स्थगित कर दिया गया.

संजय लीला भंसाली की पदमावत के विपरीत छावा ने खलनायक को परदे पर कम वक्त दिखाया और विवाद से ज्यादातर परहेज ही किया, सिवा इसके कि राज ठाकरे और महाराष्ट्र के मंत्री उदय सामंत ने संभाजी को लेजिम नृत्य में हिस्सा लेते दिखाए जाने पर नाराजगी जाहिर की. उतेकर ने वह दृश्य फटाफट हटा दिया. कुछ लोगों ने फिल्म में ली गई सिनेमाई छूट पर सवाल उठाए. संभाजी, द व्हर्लविंड के लेखक विश्वास पाटील ने इंडिया टुडे डॉट इन पर लिखा, ''धर्म संभाजी की मौत का एकमात्र कारण नहीं था. औरंगजेब का जोर धर्मांतरण पर नहीं था. उसकी दिलचस्पी राजनैतिक नियंत्रण हासिल करने में थी.’’

पांच पटकथा लेखकों में से एक कौस्तुभ सावरकर का कहना है कि फिल्म की प्रेरणा शिवाजी सावंत की किताब छावा से ली गई थी और जोर संभाजी के ''योद्धा पहलू’’ को सामने लाने पर था. सावरकर ने छावा की अपील का श्रेय उस ''भावनात्मक जुड़ाव’’ को दिया जो दर्शकों ने स्वराज की खातिर लड़ते ''हिंदू राजा’’ को देखकर महसूस किया.

भंसाली और आशुतोष गोवारिकर ने अपनी ऐतिहासिक फिल्मों को रोमांस पर केंद्रित रखा तो इस हालिया फिल्म ने अच्छी तरह कोरियोग्राफ किए गए ऐक्शन और राष्ट्रवाद को तवज्जो दी, पर नतीजे मिले-जुले ही रहे—कंगना रणौत की मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी कामयाब रही, तो अक्षय कुमार की पृथ्वीराज चौहान सरीखी दूसरी फिल्मों का भट्ठा बैठ गया.

छावा मराठा बहादुरी पर बनी पहली जोशो-खरोश से भरी हिंदी फिल्म नहीं है. 2019 में गोवारिकर की अभागी फिल्म पानीपत के बाद अजय देवगन की मुख्य भूमिका वाली तान्हाजी—द अनसंग वारियर आई. ओम राउत निर्देशित इस फिल्म ने 270 करोड़ रुपए बटोरे. राउत कहते हैं, ''फिल्मकार होने के नाते हमारा काम ऐसे कम जाने-माने लोगों की कहानियां कहना और उनकी शख्सियतों की बारीकियों को समझना है जिनके त्याग और बलिदान के बारे में हम नहीं जानते.’’

छावा की कामयाबी के बाद राउत ने भांप लिया है कि फिल्म जगत में भारतीय इतिहास पर और भी ज्यादा चर्चा होगी. वे कहते हैं, ''आज हम विराट पैमाने पर बनने वाली शानदार फिल्में देखने सिनेमाघरों में जाते हैं. इसीलिए जोर ऐतिहासिक फिल्मों पर है. वे गौरव और राष्ट्रवाद जगाती हैं, आप प्रेरित होते हैं और अतीत की गलतियों को न दोहराते हुए आगे बढ़ना सीखते हैं.’’ 

सावरकर संताजी घोरपड़े, तानाजी जाधव और ताराबाई का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि मराठा इतिहास की दूसरी शख्सियतों की जिंदगियों को विराट पैमाने पर परदे पर पेश करने का वक्त आ गया है. वे कहते हैं, ''अगर कोई ऐसा करना चाहे, तो मेरी इसमें काफी दिलचस्पी है.’’

मराठा गौरव पर छावा के जोर ने सिनेमाघरों में अलग माहौल पैदा कर दिया, जहां नारे, जयकारे और आंसू भी निकल पड़े.

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