ऑस्कर पुरस्कारों के ऐलान के बाद अब हिंदुस्तान में थिएटर के ऑस्कर की बात. दुनिया भर के सिनेमा वालों और ऑडियंस को जिस बेताबी से ऑस्कर का इंतजार रहता है, महिंद्रा एक्सीलेंस इन थिएटर अवार्ड्स (एमईटीए/मेटा) ने पिछले 20 साल में वही जिज्ञासा देश में थिएटर करने और उसे देखने वालों के बीच जगाई है. मेटा का अवार्ड मिलने के बाद नाटकों के लिए चारों ओर शो और ऑडियंस मिलना थोड़ा आसान हो जाता है.
गौरतलब है कि मेटा में शॉर्टलिस्ट किए गए दस नाटकों के दिल्ली में मंचन के बाद एक निर्णायक मंडल 13 श्रेणियों में उनकी बेहतरी का चुनाव करता है. बेस्ट प्रोडक्शन के लिए एक लाख रु. और स्क्रिप्ट, डायरेक्टर, ऐक्टर, ऐक्ट्रेस समेत बाकी श्रेणियों में हरेक के लिए 45,000 रु. मिलते हैं. पर इससे कहीं ज्यादा कुछ अवधारणा के स्तर पर हासिल होता है.
यही वजह है कि मेटा में आने वाली प्रविष्टियों का अनुपात सबसे ज्यादा है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के 2025 के भारंगम में 905 प्रविष्टियों में से 60, विंडरमेयर (बरेली) में 66 में से 7 और मेटा में 367 में से 10 नाटक चुने गए. यानी मेटा में लगभग 37 नाटकों में से एक. बेशक भाषा, भूगोल, शैली और प्रतिभागियों की उम्र की विविधता की जमीन पर देखें तो बड़े फलक पर राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व के लिहाज से भारंगम का मुकाबला नहीं. लेकिन क्वालिटी थिएटर चुनने, उनका मंचन कराने और विजेताओं के सम्मान के लिए शानदार अवसर रचने के जरिए मेटा ने एक बड़ा मापदंड खींच दिया है.
इस बार के 10 नाटकों में तीन हिंदी-हिंदुस्तानी भाषा के हैं: कोलकाता के अनिरुद्ध सरकार का, अलखनंदन लिखित बुंदेली जमीन पर खड़ा चंदा बेड़नी; जबलपुर के अक्षय सिंह ठाकुर का स्वांग जस की तस और बीसेक लेखकों-कलाकारों के कथ्य लेकर रचा गया सपन सरन निर्देशित एलजीबीटीक्यू बिरादरी की पीड़ा को आवाज देता बीलवेड: थिएटर, म्यूजिक, क्वीयरनेस ऐंड इश्क. मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के युवा स्नातक ठाकुर को अपने म्यूजिकल के जरिए पहली बार इस मंच पर मौका मिल रहा है.
दूसरी ओर मलयालम रंगमंच के दिग्गज ओ.टी. शाहजहां लगातार दूसरे साल हाजिर हैं अपने नाटक जीवंते मालखा के साथ, जिसमें वे पिता-पुत्री के रिश्तों की कथा के जरिए सत्ता के अतिचार और अन्याय पर उंगली रखते हैं. पिछले वर्ष उनके भूतंगल ने जगह पाई थी. उनके अलावा मलयालम का दूसरा चयनित नाटक है कण्णन निर्देशित, इमरजेंसी के एक शहीद के लिए एक प्रोफेसर के संघर्ष पर तैयार कंडो निंगल एंटे कुट्टिए कंडो (हैव यू सीन माइ सन).
कन्नड़ नाटक अपने कथ्य, शैली और असर के जरिए पहले भी मेटा में छाप छोड़ते आए हैं लेकिन अबकी बार विरले ढंग से इस भाषा की तीन प्रस्तुतियां हैं: द्रविड़ शैली के पूजा रिचुअल और कुडियाट्टम के मेल से तैयार, महान कन्नड़ लेखक कुवेंपु के क्लासिक श्रीरामायण दर्शनम पर आधारित, मंजू कोडागू निर्देशित दशानन स्वप्नसिद्धि; लक्ष्मण के.पी. निर्देशित और पहचान के संकट से जुड़ा बॉब मार्ले फ्रॉम कोडिहल्ली; सूखे में दो मित्रों के अस्तित्व की लड़ाई बयान करता, अरुण लाल निर्देशित मत्तिया. इसके अलावा कृष्ण कथा से जुड़ा, सुमन साहा निर्देशित निस्संगो ईश्वर बांग्ला और संस्कृत में है.
लेकिन इस बार के फेस्टिवल में एक चौंकाऊ तत्व है: बेंगलूरू के अभि तांबे लिखित-निर्देशित-अभिनीत, मनुष्य बनाम टेक्नोलॉजी की बहस को स्वर देता अंग्रेजी सोलो पोर्टल वेटिंग. ऐसे मंचों पर एकल नाटक बमुश्किल ही जगह पाते हैं लेकिन अभिनय, ध्वनि और संगीत की 74 मिनट की इस खास प्रस्तुति को हर दर्शक हेडफोन लगाकर देखेगा.
कुल मिलाकर देखें तो ये एकल और दो पात्रों से लेकर 25-30 तक की बड़ी कास्ट की प्रस्तुतियां हैं. इन नाटकों को 13-19 मार्च के बीच दिल्ली के कमानी और श्रीराम सेंटर सभागार में देखा जा सकता है.