
अभी बीते साल तक ध्रुव राठी यूट्यूब पर 'एजुकेटर' या समझाने-सिखाने वाला बनकर संतुष्ट थे, अलग-अलग विषयों पर 'प्रेरणा देने वाली व्याख्या' वाले वीडियो शेयर करते थे. फिर एक ऐसा मामला आया जिसे राठी ने देश के सुप्रीम कोर्ट की तरह ही 'लोकतंत्र की हत्या' की तरह देखा.
घटना 30 जनवरी को चंडीगढ़ मेयर चुनाव की है, जिसके वायरल वीडियो क्लिप में रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह आठ मतपत्र खराब करते दिखे थे. इससे भाजपा उम्मीदवार को जीता हुआ ऐलान किया गया और आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार हार गए.
तब से, 29 वर्षीय इंजीनियरिंग पोस्ट ग्रेजुएट राठी की टीम भरोसेमंद डेटा के लिए विभिन्न लेखों और वीडियो को लगातार खंगाल रही है, ताकि राठी लोगों को विस्तार से आगाह करने वाली स्क्रिप्ट तैयार कर सकें. उनकी टीम में 10-15 रिसर्चर और एडिटर शामिल हैं.
लिहाजा, 'डरा हुआ डिक्टेटर' जैसा वीडियो इंटरनेट पर जंगल की आग की तरह फैल गया और 1 अप्रैल को रिलीज होने के बाद से अब तक 3.4 करोड़ बार देखा जा चुका है. दूसरे वीडियो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी भाषणों के फुटेज को चतुराई से जोड़कर उनके बयानों में विरोधाभास दिखाया गया और उन्हें 'झूठा' कहा गया.
राठी के हिंदी वीडियो चैनल के सब्सक्राइबर 2.07 करोड़ हो गए हैं, जिनमें 57 लाख पिछले तीन महीनों में ही बढ़े हैं. इससे राठी मोदी समर्थकों के निशाने पर आ गए. लिहाजा, एक फर्जी मैसेज फॉरवर्ड किया गया कि राठी मुसलमान हैं (असल में वे हरियाणा के जाट हैं जो फिलहाल बर्लिन में रहते हैं).
राठी उन मुद्दों को उठा रहे हैं, जिन्हें उनके मुताबिक, मुख्यधारा का मीडिया अनदेखा कर रहा है. वे भारतीय इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) के समर्थकों के पोस्टर बॉय बनकर उभरे हैं. इंडिया टुडे पत्रिका से बातचीत में राठी ने एजुकेटर से राजनैतिक टिप्पणीकार बनने को अपनी 'राष्ट्र सेवा' कहा और बताया कि उनका मूल विचार देश के लोकतंत्र को बचाना है.
राठी युवा डिजिटल कंटेंट क्रिएटरों की उस बढ़ती जमात में एक हैं, जो सोशल मीडिया के जरिए लोगों की राय को प्रभावित कर रहे हैं, खासकर जेन जेड या जेन जी यानी नई पीढ़ी की. वे 2024 के आम चुनाव को भी प्रभावित कर रहे हैं.
राठी के साथ रणवीर अलाहबादिया उर्फ बीयरबाईसेप्स, अभि और नियु, समदीश उर्फ समदीश भाटिया का अनफिल्टर्ड, द देशभक्त, नितीश राजपूत, सोच बाई मोहक मंगल, गर्वित और अनुज भारद्वाज का एकेटीके (आज की ताजा खबर), ओपन लेटर, राज शमानी, डॉ. मेडुसा, द रैंटिंग गोला भी हैं.
पढ़े-लिखे नौजवानों की यह इन्फ्लूएंसर जमात मौजूदा घटनाओं को ऐसी भाषा और प्रारूप में पेश कर रहे हैं, जिसे युवा आसानी से समझ सकें, और जिन प्लेटफॉर्म का वे अक्सर इस्तेमाल करते हैं, वे हैं यूट्यूब, इंस्टाग्राम और एक्स.
अगर 2014 के लोकसभा चुनाव में फेसबुक सियासी संवाद का माध्यम बना था और 2019 में व्हाट्सऐप और ट्विटर (अब एक्स) चुनावी संदेश के प्रसार का औजार था, तो 2024 यूट्यूब और इंस्टा का चुनाव है जब डिजिटल वीडियो कंटेंट क्रिएटर नए सियासी पंडित बनकर उभरे हैं.
ये पारंपरिक मीडिया की सीमाओं और तटस्थ बने रहने की जरूरतों से मुक्त हैं. खुलकर अपनी राय व्यक्त करने की वजह से ये ताकतवर आवाज बनकर उभरे हैं जो आपकी उलझनों को दूर करके घटनाओं पर स्पष्ट नजरिया बनाने में मदद करते हैं. इस मामले में देश में चुनाव का माहौल सबसे मुफीद है, जिसमें दिल्ली शराब नीति मामले में अरविंद केजरीवाल के दोषी होने या न होने, चुनावी बॉन्ड से किस सियासी दल को सबसे अधिक लाभ हुआ या राहुल गांधी की नेतृत्व-कौशल की जानकारी दी जा सकती है.
उनके तरीके अलग-अलग हैं. कुछ किसान आंदोलन, चुनावी बॉन्ड और शराब नीति जैसे मौजूं मुद्दों पर सीधी, ब्योरेवार बात करने के लिए दो-टूक सीधी शैली अपनाते हैं. दूसरे बेबाक बातचीत की शैली चुनते हैं, जिसमें किसी नेता का हल्का-फुल्का पक्ष दिखाया जाता है या यूट्यूब क्लिप या इंस्टा रील्स के जरिए उनकी बेतुकी बातों को उजागर करने के लिए व्यंग्य-शैली अपनाई जाती है.
केंद्र सरकार को भी उनके बढ़ते असर का एहसास हुआ और चुनाव से ठीक पहले नेशनल क्रिएटर अवार्ड्स की शुरुआत की गई, जिसमें प्रधानमंत्री ने अभि और नियु, बीयरबाइसेप्स, कर्ली टेल्स उर्फ कामिया जानी, टेक्निकल गुरुजी उर्फ गौरव चौधरी जैसे क्रिएटरों को सम्मानित किया.
मार्च में नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "आप पूरी दुनिया में भारत के डिजिटल राजदूत हैं. आप वोकल फॉर लोकल के ब्रान्ड एंबेसडर हैं...इंटरनेट के एमवीपी."
यह इन्फ्लूएंसर के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ है और अमेरिकी सोशल मीडिया एनालिटिक्स वेबसाइट सोशल ब्लेड के अनुमान के मुताबिक, 50 लाख से अधिक सब्सक्राइबर्स वाला कोई भी इन्फ्लूएंसर सालाना 55,000 डॉलर से अधिक कमाई करता है.
स्ट्रीमरों का बोलबाला
देश की 1.4 अरब आबादी में करीब 60 फीसद के पास इंटरनेट की सुविधा है, और स्टैटिस्टा (एक एडवांस्ड एनालिटिक्स सॉफ्टवयर पैकेज) के अनुसार, उनमें से कम से कम 46.2 करोड़ लोग यूट्यूब देखते हैं. इस तरह हम सोशल मीडिया वीडियो प्लेटफॉर्म के सबसे अधिक दर्शकों वाला देश हैं.
रॉयटर्स की 2023 की डिजिटल न्यूज रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग हर 10 में चार भारतीय खबरें पढ़ने के बजाए ऑनलाइन देखना पसंद करते हैं. इसमें यह भी पाया गया कि समाचार के लिए पसंदीदा सोशल मीडिया टूल के रूप में यूट्यूब ने व्हाट्सऐप और फेसबुक को पीछे छोड़ दिया है. सो, आश्चर्य नहीं कि राहुल गांधी (कर्ली टेल्स, समदीश) से लेकर भाजपा नेता अन्नामलै (तमिल यूट्यूबर मदन गौरी) तक, सभी ने अपने सियासी संदेश के लिए पारंपरिक चैनलों के बदले इन्फ्लूएंसर को चुना.
वे अनौपचारिक माहौल में और बहुत रोकटोक के बगैर ऐसा करने में सक्षम हैं, जो उन्हें और भी आकर्षक बना देता है. 'इन्फ्लूएंसर कलैबरेशन ऑन यूट्यूब: चेंजिंग पोलिटिकल आउटरीच इन द 2024 इंडियन इलेक्शंस' नामक पेपर में मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉयजीत पाल और उनके दो स्टुडेंट्स ने लिखा, "इन्फ्लूएंसर नेताओं को बिना किसी औपचारिकता या नीतियों के जंजाल में उलझे अपनी वैकल्पिक छवि पेश करने में मदद करते हैं. अनौपचारिक माहौल में नेताओं के जीवन की एक झलक देकर, इन्फ्लूएंसर नेताओं को आम इंसान जैसा दिखाने में मदद कर सकते हैं, और इस तरह इन्फ्लूएंसर के साथ बातचीत में कोई नेता उन कठिन सवालों की असुविधाजनक स्थिति से बच सकता है जो कोई पेशेवर पत्रकार पूछ सकता है."
इस तरीके ने रणवीर अलाहबादिया उर्फ बीयरबाइसेप्स को बड़ा फायदा पहुंचाया. उन्हें पिछले साल माईगवर्नमेंट ने संपर्क किया था, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक मंच है और मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्रियों की बातचीत के जरिए लोगों को जोड़ता है.
लोकप्रिय पॉडकास्टर जो रोगन से उनकी संस्कृति को प्रभावित करने और लोगों को मौजूदा मामलों के बारे में जानने के तरीके को फिर से बनाने की क्षमता से प्रेरित होकर, अलाहबादिया ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर, पीयूष गोयल, राजीव चंद्रशेखर सरीखे नेताओं से बातचीत की.
वे कहते हैं, "मेरा कंटेंट जेन जी और कॉलेज के छात्रों के लिए है." वे हर हफ्ते चार वीडियो जारी करते हैं और यूट्यूब पर उनके 10 चैनल हैं. वे कहते हैं, "मुझे बहुत सारे सियासी विषयों और जटिल मुद्दों को सरल बनाना पसंद है."
राठी की तरह रणवीर ने भी इंजीनियरिंग की है और उनका तरीका सवाल-जवाब से अधिक बातचीत पर आधारित है. जयशंकर से उन्होंने भू-राजनीति में छठी इंद्री की भूमिका पूछी, जबकि चंद्रशेखर से पब्जी पर प्रतिबंध के बारे में पूछा. रणवीर कहते हैं, "मुझे पता है कि एक सीमा पार नहीं करनी है. मैं डेटा निकालने नहीं जाता. मैं कठिन सवाल पूछता हूं, लेकिन विनम्र तरीके से और ज्यादातर लोग उनका जवाब देने को तैयार रहते हैं."
तीखे सवालों से बचते हुए बातचीत की इस शैली ने पिछले साल अलाहबादिया के वीडियो को खूब लोकप्रियता दिलाई, मगर कुछ हलकों से सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उनकी आलोचना भी हुई. जवाब में इस 30 वर्षीय क्रिएटर ने अर्थशास्त्री रघुराम राजन जैसी विपक्षी आवाजों से भाजपा की नाकामियों पर चर्चा करवा दी.
अलाहबादिया आलोचकों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते, खासकर इसलिए कि यह उनका कारोबार है, जिसमें 70 लोग काम करते हैं और जिसमें एक टैलेंट मैनेजमेंट फर्म भी शामिल है.
नेताओं से बातचीत करते वक्त उन्हें पता होता है कि चाहे आप कितनी भी अच्छी तैयारी क्यों न करें, कोई न कोई निराश होने वाला है...मुझे नहीं पता कि यह बुरा है या नहीं. हमारे कारोबार में, यह सब ध्यान आकर्षित करने के बारे में है. नकारात्मक पब्लिसिटी अच्छी पब्लिसिटी है, जो हम पर भी लागू होती है.
पूछने पर कि क्या वे किसी सियासी लेबल से खुद को जोड़ते हैं, उनका जवाब है, "मैं खुद को मध्यमार्गी के रूप में देखता हूं. दर्शक भी इसे इसी तरह देखते हैं. मैं हर किसी का दोस्त हूं. मैं ध्रुव राठी और अभि और नियु दोनों से मिलता-जुलता हूं."
आखिर किसकी लड़ाई है यह
इससे खैर यह तो नहीं होता कि लोग इन क्रिएटर्स पर लेबल चस्पा करने या उनकी संपादकीय ईमानदारी पर सवाल उठाने से और उन पर पेड पार्टनरशिप या 'कलेब्स' (कलैबरेशन) होने का आरोप लगाने से चूक जाएं, खासकर तब जब उनकी लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जाती है. इस तरह राठी लेफ्ट लिबरलों के सूरमा हैं, तो दक्षिणपंथी अभि ऐंड नियु, एकेटीके और द जयपुर डायलॉग्स सरीखों की हिमायत करते हैं.
टीवी न्यूज चैनलों की बहसों में सरकारी और विपक्षी प्रवक्ताओं के बीच जंग पहले ही शोरगुल भरी और तीखी है, जो अब यूट्यूब वीडियो तक फैल गया है. द जयपुर डायलॉग्स ने पत्रकार पालकी शर्मा की मेजबानी की, जिन्होंने राठी को 'जर्मन कॉकरोच' कहा.
अभि ऐंड नियु में अर्द्धांगिनी नियति कहती हैं, "बहुत सारी सियासी बातचीत कीचड़ उछालने से शुरू होती है और कहीं नहीं थमती. इसका कोई अंत नहीं कि आप कितना नीचे गिर सकते हैं, सो हम इसमें शामिल ही नहीं होते." मगर उन्होंने अपने वीडियो में राठी को 'बुली' कहा और उनके तानाशाही वाले वीडियो पर तंज कसा.
मुंबई में रह रहे इस जोड़े का कहना है कि उनकी दिलचस्पी राजनीति नहीं, नीति में है. वे भाजपा के केवल एक पॉलिटिशियन को अपने चैनल पर लाए, वे थे भारत मंडपम की सैर कराते पीयूष गोयल. और वे कहते हैं कि वह पैसे लेकर किया गया प्रचार नहीं था. यात्रा और ठहरने का खर्च उन्होंने खुद उठाया.
राजनेताओं से जुड़ने के और भी मौके मिले, पर इस दंपती का कहना है कि वे यह सुनिश्चित करते हैं कि उनका कंटेंट पर पूरा नियंत्रण रहे. हम इंटरव्यू से पहले सवाल और एडिट साझा नहीं करते.
अभिराज और नियति का कहना है कि उनकी कोशिश युवाओं को उनके आसपास घट रही घटनाओं के प्रति ज्यादा उत्सुक बनाने और उसके साथ जोड़ने की है. वे कहते हैं, "बहुत सारे वक्त वे शक्तिहीन महसूस करते हैं. उन्हें लगता है कि उनके पास चीजों को बदलने या दुरुस्त करने की क्षमता नहीं है. रवैया यह है कि क्या फर्क पड़ता है?" अभि ऐंड नियु का मकसद समस्या पर फोकस करने के बजाए समाधान देना है.
इन्फ्लूएंसर को लुभाना
इमेज गुरु और राजनैतिक संचार रणनीतिकार दिलीप चेरियन अब तक छह लोकसभा चुनावों में राजनैतिक दलों के साथ काम कर चुके हैं. उन्होंने देखा है कि चुनावी विमर्श को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे किया जाता रहा है.
उनका कहना है कि 2024 के चुनाव अभियान ने कई यूट्यूबरों ने काट-छांटकर सामग्री को इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर अपलोड करने का मौका दिया. वे बहुत छोटे-छोटे क्षेत्रीय व्लॉगरों के बढ़ते असर की तरफ भी इशारा करते हैं.
वे कहते हैं, "काफी ज्यादा तादाद में स्थानीय आवाजों को फॉलो किया और सुना जा रहा है. आंध्र प्रदेश और ओडिशा में यह ज्यादा हो रहा था, जहां साथ ही विधानसभा चुनाव भी थे. उनके इस्तेमाल का एक तरीका यह था कि दर्शकों को आकर्षित करने के लिए उन्हें अपनी तटस्थता की ताकत का प्रयोग एक निश्चित सीमा तक करने दिया जाए."
राजनैतिक पार्टियों को इन्फ्लूएंसरों के साथ मेलजोल में फायदा नजर आता है. मई की शुरुआत में राजधानी में हुए एक आयोजन में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र पर चर्चा करते हुए युवा दर्शकों से जुड़ने के लिए डॉ मेडुसा को आमंत्रित किया. पेशे से भाषाविद्, मेडुसा का कहना है कि यह पहली बार था जब पार्टी ने उनसे संपर्क किया और यह पैसे के बदले किया गया काम नहीं था.
वे कहती हैं, "मूल रूप से मैं सत्ता विरोधी व्यक्ति हूं. जो भी सत्ता में हैं, मैं उन पर सवाल उठाऊंगी." कुछ निश्चित नैरेटिव का समर्थन करने के लिए अन्य पार्टियों ने भी उनसे संपर्क किया, मगर उन्होंने तय कर लिया कि न तो किसी का पक्ष लेंगी और न पैसे लेंगी.
वे कहती हैं, "अगर मैं ऐसा करने लगूं तो कल अगर वे सत्ता में होंगे और अगर मैं उन पर सवाल उठाऊंगी तो परेशानी होगी." उनके मुताबिक, "मेरी विश्वसनीयता ही मेरा सबसे अहम औजार है. कोई वीडियो देखने के बाद मुझमें विश्वास करता है, यही मेरा भुगतान है."
मेडुसा के मुताबिक, उनके सरीखे क्रिएटरों के उभार का सबसे अहम पहलू वह है जिसे वे मीडिया के मौजूदा राजनैतिक विमर्श का खालीपन कहती हैं. वे कहती हैं, "फिलहाल यह एकतरफा है. लोग दूसरे ऐंगल की तलाश करने लगे हैं. मैं उस तंत्र का हिस्सा हूं जो वैकल्पिक नैरेटिव दिखाने की कोशिश कर रहा है."
दल और उनकी मुरादें
कांग्रेस ने सोशल मीडिया के इन्फ्लूएंसरों से संपर्क तब शुरू किया जब उसे लगा कि राष्ट्रीय मीडिया के हिंदी और अंग्रेजी के ठिकानों ने 2022-23 में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. इसकी योजना गांधी की टीम के प्रमुख और पहले एमएनसी में काम कर चुके 41 वर्षीय श्रीवत्स वाइबी ने तैयार की.
पार्टी के सूत्रों को कहना है कि उसने कुछ निश्चित शर्तें तय की, मसलन यह कि अंतिम वीडियो को मंजूरी वह देगी और इन्फ्लूएंसर के जारी करने से एक घंटे पहले उसे अपने सोशल मीडिया हैंडलों पर जारी करेगी.
राहुल के अभियान के दूसरे चरण के भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान पार्टी ने यात्रा की राह वाले इलाकों के क्षेत्रीय इन्फ्लूएंसरों से जुड़ना शुरू किया. मगर इन्फ्लूएंसरों से जुड़ने का अनुभव पार्टी के लिए खट्टा-मीठा रहा.
उसके वॉर-रूम 2024 में चेयरमैन, कम्युनिकेशंस, वैभव वालिया कहते हैं, "जिन इन्फ्लूएंसरों की विचारधारा पार्टी की विचारधारा से नहीं मिलती, उनके कंटेंट में निरंतरता की संभावना नहीं है. दूसरी तरफ से पैसा मिलने पर वे कुछ ऐसा पोस्ट कर सकते हैं जो कांग्रेस पार्टी की मान्यताओं और विश्वासों से बिल्कुल विपरीत हो, या हमें ट्रोल भी कर सकते हैं. कुछ तो पैसा मिलने पर कंटेंट डिलीट भी कर देते हैं."
पार्टी को एक और हिचक का सामना करना पड़ रहा है. जब उसने राजनैतिक रूप से सक्रिय कुछ शीर्ष इन्फ्लूएंसरों से संपर्क की कोशिश की, तो उन्होंने साथ आने से इनकार कर दिया. वालिया कहते हैं, "भाजपा ने जितने धन की पेशकश की, वह हमारी क्षमता से कई गुना ज्यादा था."
इसके बजाए अब पार्टी ने समान विचारधारा रखने वाले और ज्यादातर राजनैतिक कंटेंट पेश करने वाले इन्फ्लूएंसरों से जुड़ने का फैसला किया है. वालिया कहते हैं, "ध्रुव राठी को देखिए. वे राहुल गांधी के ज्यादातर संदेशों पर स्वेच्छा से वीडियो पोस्ट करते रहे हैं. रवीश कुमार (पूर्व टीवी पत्रकार) हमारे मकसद को आगे बढ़ा रहे हैं. ये अपने आप किए जा रहे हैं और किसी व्यावसायिक सौदे का हिस्सा नहीं हैं."
इन्फ्लूएंसरों को सालभर रिझाने के बाद राहुल के करीबी सहयोगियों का अब कहना है कि इन्फ्लूएंसरों से जुड़ने का विचार अब नयापन खो चुका है. कांग्रेस तो यहां तक दावा करती है कि राहुल गांधी को एंफ्लूएंसरों के जरिए प्रचार-प्रसार की ज्यादा जरूरत नहीं है, क्योंकि उनका खुद का सोशल मीडिया परिदृश्य बीते दो-एक साल में कई गुना बढ़ा है.
श्रीवत्स कहते हैं, "राहुल गांधी के यूट्यूब चैनल ने केवल यूट्यूब पर ही बीते एक महीने मे 45.7 करोड़ व्यूज बटोरे. यह प्रधानमंत्री को मिले व्यूज से करीब दोगुने और ध्रुव राठी तथा रवीश कुमार सरीखी शख्सियतों से करीब तिगुने हैं. राहुल का अकाउंट सप्रेस्ड (दबा हुआ) है और उसमें इससे भी ज्यादा संभावनाएं हैं, उन्हें किसी दूसरे स्रोत के मार्फत प्रचार-प्रसार की जरूरत नहीं है."
दूसरी ओर, इस चुनावी मौसम में डिजिटल दृश्य पर हावी होने की भाजपा की कोशिश में कुछ बदलाव दिखे हैं. चुनाव से जुड़े संदेश पहुंचाने के लिए व्हाट्सऐप पार्टी का मुख्य आधार बना हुआ है (पार्टी के पास पचास लाख ग्रुपों का जखीरा बताया जाता है), वहीं पार्टी के अंदरूनी लोगों का कहना है कि 30 से कम उम्र के करीब 21.60 करोड़ लोग, या मतदाताओं के 22.3 फीसद, छोटे परदों पर खबरें और मनोरंजन देखते हैं.
2019 के चुनाव तक फेसबुक (अब मेटा) विज्ञापन के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा ले जाता था. 2024 में चुटीले ढंग से संपादित कंटेंट इंस्टा रील और यूट्यूब शॉर्ट में ज्यादातर धन जा रहा है. इस कामकाज से जुड़े नेताओं का कहना है कि मकसद लोगों से जुड़ना है.
पार्टी ने तिहरी रणनीति अख्तियार की है पहले राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक सब्सक्राइबर आधार वाले इन्फ्लूएंसरों से जुड़ना, फिर राज्य स्तर पर स्थानीय भाषाओं में स्थानीय इन्फ्लूएंसरों से बातचीत, और आखिरकार उम्मीदवार स्तर पर निर्वाचन क्षेत्र दर्शकों के बारीक ब्योरे तैयार करना.
भाजपा के एक शीर्ष नेता कहते हैं, "मतदाता अपने नेताओं के न केवल राजनैतिक नजरिए को बल्कि उनकी शख्सियत को भी समझना चाहते हैं." वैसे, उन्हें यह भी लगता है कि सोशल मीडिया फटाफट लोगों की राय नहीं बदलता, केवल उनके मौजूदा विश्वासों को ही पुख्ता करता है.
आगे राह पथरीली
सियासी और सामाजिक मुद्दों की पड़ताल करने वाला इन्फ्लूएंसर होना आसान नहीं है. खुद अपना मालिक होने की जो खुली छूट उन्हें हासिल है, वह अब खत्म हो सकती है. मौजूदा केबल टेलीविजन नेटवर्क विनियमन अधिनियम 1995 की जगह प्रसारण सेवा विनिमयन विधेयक 2023 लाया जा रहा है, जो ओवर-द-टॉप (ओटीटी) और डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म को भी अपने दायरे में ले आएगा.
डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को पहले ही निशाना बनाया जाने लगा है. बंगाली चैनल 'होथाट जोड़ी उथलो कोथा' (चर्चा के लिए साथ लाना) चलाने वाली पौलमी नाग को सरकारी अस्पतालों में की जा रही बिस्तरों की अनैतिक खरीद-फरोख्त से जुड़े अपने वीडियो को लेकर कलकत्ता हाइकोर्ट से जमानत करवानी पड़ी.
'कॉमेडी के जरिए फासिज्म के जोकरों' का मुकाबला करने की कोशिश करतीं 23 वर्षीया रैंटिंग गोला का इंस्टा अकाउंट बंद कर दिया गया, क्योंकि वे छोटी-छोटी क्लिप में बेबाक टिप्पणियां पेश करती थीं.
इससे बिना डरे वे कहती हैं, "आप मेरा अकाउंट छीन सकते हैं, पर मेरी हिम्मत नहीं!! लोकतंत्र में आपको सवाल पूछने का हक है, उनकी गलतियों पर हंसने का हक है."
राठी भी यही करते हैं; फर्क बस यह है कि वे अपने सब्सक्राइबरों को आगाह करने के लिए पत्रकारों के काम को अपनी दिलचस्प कमेंटरी के साथ पेश करते हैं. भारत में रह रहे उनके परिवार का समर्थन उनके साथ है, पर फिक्र भी है.
फिर भी राठी को यह इसी रूप में अच्छा लगता है. वे कहते हैं, "मैंने एक स्टैंड लिया है और इस चुनाव में मैंने जो किया उस पर मुझे गर्व है, फिर बाद में चाहे जो हो." यह वह विश्वास है जिससे इंटरनेट योद्धाओं की उनकी मंडली सहमत होगी.
धारा के खिलाफ जोखिम भरा साहस

वाम के तर्क की आवाज और दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहने वाले ध्रुव राठी की लोकप्रियता पिछले तीन महीनों में काफी बढ़ गई. दरअसल, इस दौरान राठी ने किसानों के विरोध-प्रदर्शन, लद्दाख में आंदोलन, चुनावी बॉन्ड सरीखे कई मामलों पर टिप्पणी की है और मोदी सरकार की ओर से पेश कथित खतरों पर वीडियो की एक सिरीज बनाई.
नवीकरणीय ऊर्जा में मास्टर डिग्री और राजनीतिशास्त्र और बिजनेस मैनेजमेंट में भी डिग्री रखने वाले राठी खुद पर कोई ठप्पा चस्पा करने से इनकार करते हैं. राठी का कहना है, "तर्कवाद, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, सभी धर्मों के प्रति सम्मान, सहिष्णुता और राष्ट्र की प्रगति ऐसे मूल्य हैं जिन पर मैं विश्वास करता हूं और इसी में मेरी विचारधारा निहित है."
राजनीति में उनकी रुचि की शुरुआत 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुई. यह पूछने पर कि क्या वे राजनीति में करियर बनाने के बारे में सोचते हैं, उनका कहना है कि फिलहाल ऐसी कोई रुचि नहीं. फिर भी उन्होंने कहा, "कौन जानता है कि 30-40 साल बाद चीजें और हालात बदल जाएं."
"अब अगर वे मेरा यूट्यूब चैनल कल ही बंद कर दें तो भी मैं फख्र से कह पाऊंगा कि मैं उनके सामने टूटा-झुका नहीं. देश में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए मैंने आखिरी सांस तक आवाज उठाई."
नेताओं के मानवीय पहलू

दरअसल, यूट्यूब पर सबसे लोकप्रिय और सफल कंटेंट क्रिएटर्स में से एक बीयरबाईसेप्स उर्फ रणवीर अलाहबादिया ने नौ साल पहले स्वास्थ्य और फिटनेस पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया था.
इन दिनों 'द रणवीर शो' के जरिए वे जेन जेड दर्शकों को आकर्षिक करना चाहते हैं जो न तो प्रिंट समाचार पढ़ते हैं और न ही टीवी सामाचार देखते हैं. साथ ही रणवीर राजनेताओं के मानवीय पहलुओं को आपको सबसे ज्यादा गुस्सा किस बात से आता है सरीखे सवालों के साथ सामने लाने की कोशिश करते हैं.
जैसा कि उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से पूछा, "इन [अंतरराष्ट्रीय] बैठकों में किसी बैठक में आपको सबसे अधिक निराशा किस बात पर हुई." वे कहते हैं, "मैं अपना ढिंढोरा पीटने की कोशिश नहीं कर रहा, मगर इंटरव्यू शैली के प्रारूप में किसी की शख्सियत एक बड़ा हिस्सा होती है."
रणवीर के मुताबिक, उनके जैसे इन्फ्लूएंसर्स के उदय का श्रेय टेक्नोलॉजी और सस्ते इंटरनेट तक लोगों की अधिक पहुंच को दिया जा सकता है. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि युवा नजरिए से बातों को बोलने के अलावा हम कुछ खास कर रहे हैं."
वे इन लोगों का वह इंटरव्यू करना चाहते हैं—शशि थरूर, निर्मला सीतारमण, अन्नामलै, अरविंद केजरीवाल, अमित शाह और असदुद्दीन ओवैसी. इंडिया'ज रिलेशंस विद इंटरनेशनल कंट्रीज, विदेश नीति पर डॉ. एस. जयशंकर के साथ उनकी बातचीत, उनका सबसे ज्यादा देखा जाने वाले वीडियो है जिसे तकरीबन 91 लाख व्यूज मिले हैं.
संवाद शुरू करने वाले, खत्म करने वाले नहीं

असल में, पति-पत्नी की इस जोड़ी ने भारतीय और विदेशी जगहों को कवर करने वाले ट्रैवल व्लॉगर्स के रूप में शुरुआत की थी. मगर कोविड-19 महामारी की वजह से उन्हें अपनी कंटेंट रणनीति में बदलाव करने की आवश्यकता आन पड़ी. फिर क्या था, जल्द ही अभिराज और नियति ने अपने यूट्यूब वीडियो के जरिए इतिहास और संस्कृति, भारत की प्रेरक कहानियों को कवर करना तथा विभिन्न मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना शुरू कर दिया.
अभिराज ने फिल्म निर्माण का अध्ययन किया है तो नियति चार्टर्ड अकाउंटेंट से फ्रीलांस लेखिका बनी हैं. कंटेंट में बदलाव के उनके फैसले से उन्हें काफी फायदा हुआ. मार्च में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल क्रिएटर्स अवार्ड में उन्हें न्यू इंडिया चैंपियन पुरस्कार प्रदान किया.
उस आयोजन में अभिराज ने कहा कि उनका मकसद उनके शो हंड्रेड रीजन्स टू लव इंडिया के जरिए सकारात्मक कहानियों को सामने लाकर भारत के बारे में नकारात्मक धारणाओं की बौछार से मुकाबला करना था.
अभिराज और नियति का कहना है, "हम अपने दर्शकों पर अपनी राय थोपना नहीं चाहते, इसलिए जब भी हम चुनाव पर कोई कंटेंट बनाते हैं तो आखिर में हम यह कहते हैं कि यह संवाद शुरू करने वाली होनी चाहिए, न कि खत्म करने वाली."
खरीदा नहीं जा सकता

समदीश भाटिया स्कूपहूप के अनस्क्रिप्टेड के ऐंकर रह चुके हैं और उन्होंने दो साल पहले युवा नेता कन्हैया कुमार के एक इंटरव्यू के साथ अपने यूट्यूब चैनल की शुरुआत की थी. उस पूरे वीडियो इंटरव्यू को 40 लाख से अधिक व्यूज हासिल हुए और समदीश की डिजिटल लोकप्रियता आसमान छू गई. भाटिया का कहना है कि वर्तमान चुनाव के दौरान कई राजनेताओं ने उनसे संपर्क किया और कवरेज के लिए उन्हें लाखों रुपए ऑफर किए.
पिछले महीने बीबीसी के साथ बातचीत में भाटिया ने कहा, "मगर वे चाहते थे कि मैं उन्हें पहले ही सवाल दे दूं कि मैं क्या पूछूंगा या वीडियो पब्लिश करने से पहले उन्हें दिखाकर उसकी मंजूरी लूं."
अपने कंटेंट का संपादकीय नियंत्रण अपने पास बरकरार रखने के लिए भाटिया ने उन ऑफरों को मना कर दिया. इसके बजाए, पिछले महीने में उन्हें उमर अब्दुल्ला, केटी रामा राव, राजीव शुक्ला, सीताराम येचुरी, प्रशांत किशोर, तेज प्रताप यादव और सौरभ भारद्वाज के साथ अनौपचारिक और दिलचस्प तरीके से बातचीत करते देखा गया. उनके कंटेंट में अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र के गंभीर मुद्दों से लेकर उमर अब्दुल्ला की डाइट कोक लत या फिर केटी रामा राव के जूतों के आकार के बारे में हल्की-फुल्की बातचीत शामिल है.
—साथ में कौशिक डेका, अनिलेश एस. महाजन, अर्कमय दत्ता मजूमदार, देबजनी साहा