लोकगीतों के बाद आपने रामचरित मानस से लेकर टाइटैनिक के थीम सांग तक गाकर लॉकडाउन का अच्छा इस्तेमाल किया. कैरिबियन और अरबियन म्युजिक पर भी...
(हंसते हुए) हां हां, करेंगे. कुछ भी छोड़ेंगे नहीं. आज पहली बार कंटेंपररी कोरियन गाना गाया है, अंग्रेजी में मिक्स करके (दो दिन में एक लाख से ज्यादा व्यू/लाइक और 3,000 शेयर). दिन भर अलग-अलग देशों का संगीत सुनती रहती हूं, जो कानों को भा जाता है, उसे गाने बैठ जाती हूं. यह मेरा प्रोफेशन नहीं, आनंद है.
मानस को 54 दिन तक गाना नया प्रयोग है. 50 लाख व्यू. इसमें गाने-सुनने से परे भी आप कुछ देख पा रही थीं?
उसके एक एपिसोड में 6-7 मिनट में 2-3 दोहे गाती हूं कि उसे सुनकर लोगों का दिन अच्छा गुजरे. 50 लाख व्यू यूट्यूब पर थे, उससे बहुत ज्यादा लोग फेसबुक पर देखते-सुनते हैं. लॉकडाउन से पहले फेसबुक पर मेरे 40 लाख फॉलोअर थे जो अब 85 लाख हो गए हैं. अमेरिका और यूके के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं. रोज रात 10.30 बजे फेसबुक लाइव पर जुडऩे वाले दस-बारह हजार लोगों में से इन देशों के लोग भी अच्छी-खासी संख्या में होते हैं.
किसी भाषा की और कोई रचना, जिसे गाने की इच्छा हो?
मैंने अभी शुद्ध संस्कृत में कोई लंबी रचना नहीं गाई है. अब यह मानस खत्म हो जाए तो भगवद्गीता पर काम शुरू करूंगी. किसी भी भाषा में गाने से पहले उसके शब्द अनुशासन और एहसास को समझना जरूरी है. गुरबानी गाने को मैंने पंजाबी/गुरमुखी सीखी.
सोशल मीडिया पर आप नियमित इतना परोस रही हैं, पर यह मोनेटाइज भी हो रहा है या नहीं?
यूट्यूब से तो मिलता है, फेसबुक से अभी इसी महीने शुरू हुआ है. यह मामला थोड़ा पेचीदा है. जैसे भक्ति/पारंपरिक/लोकगीत हैं, उन्हें किसी और आर्टिस्ट ने किसी कंपनी के लिए रिकॉर्ड करवा दिया है तो कॉपीराइट आ जाता है. गाऊंगी मैं, पैसे किसी और को जाएंगे. पर यह सिर्फ मेरे साथ नहीं है. एक बार ट्वीट भी किया था.
मुझे लगता है छोटी उम्र के कारण मेरी बात को कोई सीरियसली ले न ले, तो इस बारे में बाद में बात करूंगी, ठीक से समझ कर. तो अभी मैं सिर्फ सीखने पर ध्यान देती हूं.