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पत्रिका समीक्षाः कुशाग्र संपादक की याद

संस्मरणों में भीष्म साहनी का यह कथन दिल को छू लेने वाला है

लमही पत्रिका
लमही पत्रिका

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के बड़े बेटे श्रीपत राय की जन्मशती के मौके पर आया साहित्यिक पत्रिका लमही का यह विशेषांक उनके विविध पहलुओं को नजदीक से परखता-परोसता है. श्रीपत राय कुशाग्र संपादक, लेखक और चित्रकार थे.

उन्होंने कहानी पत्रिका के जरिए नई कहानी आंदोलन को नई दिशा दी. हिंदी का शायद ही कोई प्रमुख लेखक हो जिसकी कहानी उन्होंने न छापी हो. आलोचक नामवर सिंह इसी पत्रिका में स्तंभकार थे. श्रीपत राय कहानियों के अद्भुत पारखी थे.

उन्होंने अकलंक मेहता के नाम से कुछ कहानियां भी लिखीं, जिनमें से तीन इस अंक में छपी हैं. समीक्षित व्यक्तित्व को यहां याद करने वालों में राय के बेटे-बेटी के अलावा त्रिलोचन शास्त्री, नामवर सिंह, देवेंद्र सत्यार्थी, विष्णु प्रभाकर, नासिरा शर्मा, प्रयाग शुक्ल शामिल हैं. राय के कला संबंधी दो लेख भी हैं.

संस्मरणों में भीष्म साहनी का यह कथन दिल को छू लेने वाला है, जिसमें वे कहते हैं कि "प्रेमचंद का पुत्र हमसे कहानी मांगने आया है.'' हालांकि इनमें से ज्यादातर आलेख कहानी पत्रिका के अक्तूबर, 1994 अंक में श्रीपत राय के निधन के बाद छपे थे.

कोई नया आलेख या संस्मरण नहीं है. हिंदी के एक युग निर्माता व्यक्तित्व के अवदान को सामने लाता एक महत्वपूर्ण अंक, वरना साधन होते हुए भी लोग उन्हीं कृतिकारों को याद करते हैं, जिनसे उनके हित सधें. दिवंगत दूधनाथ सिंह, केदारनाथ सिंह और सुशील सिद्धार्थ को भी इसमें याद किया गया है.

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