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सेक्स संतुष्टि देती है बेफिक्री का जज्बा

साहित्य की दुनिया में अपने खुलेपन और साहसिक लेखन के लिए जाने जाते रहे कथाकार राजेंद्र यादव ने अपनी नई किताब में अपने सेक्स संबंधों की बड़ी ही बेबाकी से चर्चा की है.

अपडेटेड 10 दिसंबर , 2012

पुस्तक अंश
किताबें स्वस्थ व्यक्ति के बीमार विचार
राजेंद्र यादव;
संयोजन: ज्योति कुमारी
किताबघर प्रकाशन, दरियागंज,
नई दिल्ली-2,
कीमत: 290 रु.
kitabghar_prk@yahoo.com
अकसर विचारकों ने मृत्यु और सेक्स को आपस में जोड़कर देखा है. वह बिंदु कौन-सा है जहां दोनों मिलते हैं? संभोग के चरम आनंद की तुलना आचार्य रजनीश ने समाधि से की है. उनकी अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक का नाम ही है संभोग से समाधि की ओर.

क्या मैंने कभी भी स्वयं इस समाधि का अनुभव किया है? जब कभी सेक्स का ध्यान आता है तो रानी सामने आ खड़ी होती है. इस ह्नेत्र में वही मेरी शिक्षिका और सहचरी है. रानी शुरू से इतनी खुली और निद्र्वंद्व थी कि मैं कहीं उसके सामने छोटा महसूस करता था...

शायद पहली बार संपूर्ण संभोग रानीखेत में हुआ था. मैं उपन्यास लिखने के लिए दिल्ली से भागकर रानीखेत पहुंचा और वहां पता लगा कि पास ही सरना एस्टेट नाम की जगह में एक पेंशनयाफ्ता बुजुर्ग के साथ कमरा मिल सकता है. एक-डेढ़ फर्लांग बस स्टैंड से नीचे जाकर मैंने सरस्वती दास पाठक नाम के बुजुर्ग से मुलाकात की. उन्होंने कहा कि ये पूरा गेस्टहाउस मैंने खुद किराए पर ले रखा है और आपको मैं एक कमरा दे दूंगा...वे कभी मुझे एक नाम से नहीं पुकारते थे. कभी राजेंदर कहते तो कभी उपेंदर. उस समय मैं अनदेखे अनजान पुल लिख रहा था और मैंने रानी को वहां बुला लिया था. बुढ़ऊ से कहा कि ये मेरी भाभी हैं और मुझे बहुत प्यार करती हैं.

रानी जब बस स्टैंड पर उतरी तो मैं उल्लसित हो उठा. मगर हम कभी मिलने या बिछुडऩे पर इतने भावाविष्ट नहीं हुए कि एक-दूसरे से लिपट जाएं. मैंने उसके आगमन की पूरी तैयारी कर रखी थी. शाम को बस अड्डे से रम का क्वार्टर भी लेता आया. अब रात का वह क्षण था, जिसकी शायद हम दोनों ही बड़ी उत्कटता से प्रतीक्षा कर रहे थे.

प्रारंभिक दबाने और चूमने के बाद मैंने इस अवसर के लिए लाया गया कंडोम (तब उसे फ्रेंच लेदर कहते थे) पहना और जैसे ही रानी के अंदर प्रवेश करने की कोशिश की, उसने झ्टके से उस कंडोम को निकाल फेंका कि हमारे बीच में किसी और की जरूरत नहीं है. इस तरह हमारा वह पहला संपूर्ण संभोग संपन्न हुआ. हुलसकर सुबह रानी ने खून-रंगी चादर दिखाई और अन्य कपड़ों के साथ उसे धोने नीचे धारे पर चली गई.

उन सात दिनों में शायद हमने दर्जनों बार बिना रात-दिन देखे रति-क्रियाएं कीं. इस बीच एक छोटी-सी घटना और हुई. एक बार परम संतोषजनक रति-क्रिया के बाद उसने मेरी छाती पर मुक्के मारते हुए कहा कि तुमने मुझे पांच-छह सालों तक इस सुख से वंचित क्यों रखा? यह सब कुछ पहले भी तो हो सकता था, तो किया क्यों नहीं? मैंने कहा कि तुम्हीं हाथ रखने नहीं देती थी. तो बोली कि तुम थोड़ी जबरदस्ती नहीं कर सकते थे? मैंने माना कि मेरी गलती थी. लेकिन मैं तो यही सोचकर बैठा रहा कि जब जरूरत बराबर की है तो जबरदस्ती क्यों? उधर से पहल होगी तभी मैं आगे बढ़ूंगा.

यह घटना मुझे आज भी कभी-कभी उद्वेलित कर देती है. बाद में इसी स्थिति पर लक्ष्मण रेखा  कहानी लिखी...इसके बाद रानी का सबसे लंबा साथ रहा कुल्लू-मनाली के बीच रायसिन नाम की जगह में. कलकत्ते की आबोहवा में मुझे सांस की एक बीमारी हो गई...श्यामानंद जालान ने सलाह दी कि आपको पहाड़ की किसी ऐसी ऊंचाई पर कुछ दिन रहना है, जहां मैदान हो और चढ़ाई-उतराई ज्यादा न हो...मैं आगरा से रानी के साथ ही रायसिन पहुंचा. फिर तो वह लगभग महीने भर मेरे साथ रही...रानी खाना बनाती और हम लोग वक्त-बेवक्त घनघोर संभोग में लगे रहते. शाम को निकलकर व्यास नदी घूमने जाते, जो सड़क के उस पार ही थी...खैर, रानी के साथ के ये सारे प्रेम-प्रसंग ऐसी धरोहर हैं कि इन्हें मैं किसी के साथ बांट भी नहीं सकता.

*****

तो क्या मैं नतीजा निकालूं कि जिनकी सेक्स लाइफ संतुष्टि और परितृप्ति से भरी होती है, उन्हें किसी ईश्वर या भगवान की चिंता नहीं होती और उनके लिए मृत्यु किसी ऐसी घटना की तरह भविष्य में छिपी होती है जो जब आएगी, तब आ जाएगी. यह आनंद की अनुभूति की वह दबंगई है, जो हमें संसार की परवाह न करने का जज्बा देती है या अंतत: यह किसी नई रचना की प्रक्रिया है, जहां आप सहगामिनी के माध्यम से अपने ही प्रतिरूप को साकार करते हैं. हम सर्जक हैं. दूसरे किसी सर्जक की परवाह क्यों करें?

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संभोगानंद और मृत्यु के समीकरण पर बात करते हुए कभी मुझे अपने आप को गालियां देने का मन नहीं हुआ. मैं दुनिया के लिए चाहे जितना बदनाम हूं, अपने प्रति मैंने उतना ही ईमानदार और सच्चा होने की कोशिश की है. इस बात से कैसे इनकार करता कि रानी मेरी आंतरिक जरूरत है.

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