यह दास्तान है उस लड़की की, समय ने जिसके हाथ से कलम छुड़ाकर बंदूक पकड़ा दी और चंबल के बीहड़ को आशियाना बना दिया और उसे ऐसी पहचान दे दी, जो खौफ का पर्याय बन गई—दस्यु सुंदरी रेणु यादव (24). अदालत ने उसके अतीत से डाकू होने के दाग को मिटाकर पुलिस की फाइलें बंद कर दीं लेकिन रेनू का खानाबदोश जीवन बदस्तूर अभी भी जारी है.
कानपुर के कल्याणपुर इलाके की एक बस्ती में अपने चाचा शिवसिंह यादव के साथ रहने वाली रेणु किसी एथलीट से कम नहीं दिखती. नीली जींस, सफेद शर्ट और पैरों में स्पोट्ïर्स शूज, कद 5 फुट 8 इंच और माथे पर लाल टीका. उसकी आंखों में आज भी वह मंजर तैर जाता है, जिसने उसकी जिंदगी को सिरे से बदल दिया.
औरेया जिले के गांव जमालीपुर में रहने वाले विद्याराम यादव की पांच संतानों में सबसे बड़ी रेणु पढ़ाई में शुरू से ही मेधावी थी. 29 नवंबर, 2003 को घर से स्कूल जाते वक्त दुर्दांत डाकू चंदन यादव ने उसका अपहरण कर लिया और उसके पिता से 10 लाख रु. की फिरौती मांगी. पर महज 5-6 बीघे जमीन में किसानी करके अपना परिवार चलाने वाले विद्याराम के लिए इतनी बड़ी रकम जुटाना संभव न था. वे पुलिस अधिकारियों के चक्कर लगाते रहे. फिरौती की रकम न मिलने पर चंदन ने रेणु को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.
रेणु बताती है, ''अपहरण के बाद दो हफ्ते तक मेरा हाथ-पैर बांधकर रखा गया. खाना इतना ही दिया कि सांस चलती रहे. कुछ दिन बाद चंदन यादव ने मुझे अपने गैंग की दस्यु सुंदरी घोषित कर दिया. हाथों में बंदूक थमा दी. मेरे पास उसकी बात मानने के सिवा कोई चारा न था. चंदन गैंग की हर वारदात के दौरान मुझे अपना नाम लेकर लोगों को डराना पड़ता था.”
इसके बाद उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के जंगलों में चंदन यादव की हत्या, डकैती, अपहरण, लूट जैसी 17 वारदातों में दस्यु सुंदरी रेणु का नाम भी बतौर मुलजिम शामिल हो गया. सिलसिला 4 जनवरी, 2005 तक चला. खुद को दस्यु सम्राट घोषित कर चुके रामवीर गुर्जर और चंदन के बीच इसी रात गैंगवार हुआ, जिसमें चंदन मारा गया.
रामवीर ने रेणु को बंधक बना लिया. लेकिन बीहड़ में उसका राज भी ज्यादा दिन नहीं चला. 15 जनवरी, 2005 की रात जब गिरोह के दूसरे सदस्य आराम कर रहे थे, रामवीर ने बदनीयती से रेणु पर हमला कर दिया. छीना-झपटी के बीच उसके हाथ एसएलआर लग गई और उसने सारी गोलियां रामवीर के सीने में उतार दीं. घने बीहड़ में सात दिन तक भटकने के बाद वह अपने घर पहुंची.
डाकुओं के चंगुल से छूटी रेणु के साथ पुलिस का रवैया भी कम खौफनाक नहीं था. 14 फरवरी, 2005 को इटावा के तत्कालीन एसएसपी दलजीत चौधरी, कोतवाली प्रभारी के साथ रेणु के घर पहुंचे और सुरक्षा का भरोसा देकर कोतवाली ले आए. वहां पहुंचते ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया और जालौन, इटावा, कानपुर देहात समेत कई जिलों में चंदन यादव पर दर्ज सभी 17 मुकदमे रेणु पर थोप दिए गए. वह अब सलाखों के पीछे थी और उसे कानून की जंग लडऩी थी.
दलजीत चौधरी अब दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं. अपने ऊपर लगाए जा रहे आरोपों पर वे कोई भी टिप्पणी करने से इनकार करते हैं. उधर एयरफोर्स के पूर्व सैनिक और रमाबाई नगर के जिला पंचायत सदस्य रेणु के चाचा शिव सिंह ने कानूनी लड़ाई में अपनी भतीजी का पूरा साथ दिया. अदालत ने सभी 17 मुकदमों से रेणु को बरी कर दिया. अदालत ने इस मामले में पुलिस की कार्रवाई को बेहद गैर जिम्मेदाराना मानते हुए उसे कड़ी फटकार लगाई. सात वर्ष तक चली अदालती लड़ाई जीतने के बाद रेणु इसी साल 29 मई को लखनऊ के नारी बंदी निकेतन से रिहा हुई.
अब वह आजाद है. लेकिन बीहड़ ने उसका पीछा अभी तक नहीं छोड़ा है. रेणु के हाथों बुरी तरह घायल हुए डाकू रामवीर गुर्जर ने शारीरिक तकलीफ बढऩे पर अपने भाई अरविंद गुर्जर के साथ मध्य प्रदेश सरकार के सामने आत्मसमर्पण करने में ही भलाई समझी. मगर बीहड़ में मौजूद उसके गिरोह के सदस्य अब रेणु पर गैंग की कमान संभालने को दबाव डाल रहे हैं और ऐसा न करने पर जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. रेणु ने जनता दर्शन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इसकी लिखित शिकायत की और सुरक्षा की गुहार भी लगाई है.
रेणु की जिंदगी का सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है, लेकिन वह अपनी जंग यहीं खत्म नहीं करना चाहती. उसका सपना अब पीड़ित, सताई हुई महिलाओं के लिए काम करने का है. अगर यह रास्ता उसे राजनीति की ओर ले जाता हो तो वह वहां भी कदम रखने को तैयार है.