
शायद दुनिया भर के देशों के अगुआ इसी उधेड़बुन में सबसे ज्यादा मशगूल हों कि दुनिया की इकलौती महाशक्ति के हथौड़ा-मार राष्ट्रपति की जद में न जाने कब आ जाएं. डोनाल्ड जे. ट्रंप को औपचारिक रूप से कुर्सी संभाले बमुश्किल महीना भर ही हुआ है, लेकिन वे पहले ही बेहद चौंकाऊ और कुछ के लिए तो खतरनाक रफ्तार से वैश्विक तोड़फोड़ की अपनी फितरत पर अमल शुरू कर चुके हैं.
ट्रंप न सिर्फ अपनी संघीय नौकरशाही के बड़े हिस्से और अमेरिका के मूल विचार पर दनादन हथौड़ा चला रहे हैं, बल्कि वे अवैध आप्रवासियों को बाहर निकालने और अमेरिका के साथ व्यापार में दूसरे देशों को टैरिफ काफी घटाने को मजबूर करने के अपने इरादे में फर्राटा दौड़ को भी मात देने लगे हैं.
इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 फरवरी को ओवल ऑफिस में ट्रंप से मुलाकात के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित के. डोभाल के साथ निकले, तो वे किसी भी तरह के झंझट-झमेले में फंसना और शायद मायूस होकर खाली हाथ नहीं लौटना चाहते थे. ट्रंप के दोबारा चुने जाने के फौरन बाद और 20 जनवरी को उनके शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जयशंकर ने अपने अमेरिका दौरे में शिद्दत से यह भांपने की कोशिश की थी कि ट्रंप 2.0 के इरादे और नीयत क्या है.
भारतीय आकलन यह था कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल की बनिस्बत ज्यादा ताकत, भरोसे से लबरेज और वाचाल हैं. कंजर्वेटिव रिपब्लिकन पार्टी उनकी मुट्ठी में आ गई है, या यूं कहिए कि उसे ट्रंप की अपनी जेबी पार्टी में बदल दिया गया है. ट्रंप अपने दोस्तों की टोली, छननी और प्राथमिकताओं के पैमाने से दूसरे देशों के साथ रिश्तों को तौलते हैं और उनके साथ ऐसे पेश आते हैं, जो पारंपरिक तो कतई नहीं. भारतीय प्रतिनिधिमंडल को पता था कि ट्रंप मनमौजी हैं और एक छोर से दूसरे तक पेंडुलम की तरह पींग बढ़ा सकते हैं, इसलिए उन्हें उनके साथ बर्ताव में बेहद सतर्कता और चतुराई से पेश आने पर मजबूर होना पड़ सकता है.
यही रवैया अब हर देश को अपने खुद के लिए शायद अपनाना पड़ेगा, यह ट्रंप के अमेरिका के कुछ सबसे करीबी सहयोगियों के साथ किए गए अपमानजनक बर्ताव से साफ है. उन्होंने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बताकर उसकी तौहीन की. इसी तरह, डेनमार्क से ग्रीनलैंड की मांग कर बैठे. यह दावा कर दिया कि पनामा नहर जल्द ही अमेरिका की हो जाएगी.
यही नहीं, चुनाव प्रचार अभियान के अपने वादे के मुताबिक, पदभार संभालते ही ट्रंप ने इज्राएल और हमास को युद्ध विराम के लिए राजी होने और जबरन शांति की ओर कदम बढ़ाने पर मजबूर कर दिया. यूक्रेन युद्ध के मामले में ट्रंप ने अपने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सहयोगियों को दरकिनार करके जल्दी समाधान के लिए सीधे रूस से बातचीत करके सबको चौंका दिया.
भारत का 'व्यावहारिक रुख'
ट्रंप ने जैसे अमेरिका के करीबी सहयोगियों तक को धकिया दिया, उससे भारतीय वार्ताकारों को इशारा मिल गया कि एकदम ''व्यावहारिक रुख" अपनाने की दरकार है. ट्रंप ने जैसे भारत पर भारी टैरिफ की मार की, उससे मोदी सरकार के पास जवाब में अमेरिकी आयात पर भारी टैरिफ लगाने या विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का दरवाजा खटखटाने का विकल्प था.
या फिर दोनों ही था, जैसा ट्रंप 1.0 के दौरान किया गया था. तब अमेरिका ने स्टील और एल्युमीनियम पर एकतरफा टैरिफ बढ़ाया था और भारत को सामान्य पसंदीदा व्यवस्था (जीएसपी) कार्यक्रम के लाभ से दूर हटा दिया था, जिससे भारत को 6 अरब डॉलर (52,000 करोड़ रुपए) की चपत लगी थी. इससे दोनों देशों के बीच टैरिफ जंग शुरू हो गई थी. लेकिन भारतीय टीम अच्छी तरह वाकिफ थी कि ट्रंप की दुनिया में वाजिब दलील या इंसाफ की कोई जगह नहीं है.
मोदी ने तय किया कि फटाफट करना ही बेहतर होगा और उन्होंने अपनी टीम को ट्रंप के साथ जल्द से जल्द बैठक कराने को कहा. प्रधानमंत्री ने ट्रंप के पहले कार्यकाल में हाथ बढ़ाया था और दोनों के बीच रिश्ता बैठ गया था. ट्रंप ने भारत को ऐसे देश की तरह देखा जो फर्क लाने के लिए तो काफी बड़ा है, लेकिन इतना बड़ा भी नहीं कि समस्याएं पैदा करे. उन्होंने मोदी से जल्दी मुलाकात करने में फायदा देखा, खासकर इसलिए कि वे कोई ऐसा सौदा कर पाएं जिससे भारत के पक्ष में झुका 46 अरब डॉलर (3.98 लाख करोड़ रुपए) का द्विपक्षीय व्यापार घाटा काफी हद तक कम हो जाए.
ट्रंप की दूसरी प्राथमिकता यह थी कि मोदी बिना किसी झंझट-झमेले के अमेरिका में मौजूद भारतीय अवैध आप्रवासियों को वापस ले लें. अनुमान है कि उनकी संक्चया 7,25,000 है, जिनमें 18,000 के पास अब कोई कानूनी विकल्प नहीं बचा है और निर्वासन के लिए तैयार हैं. बदले में, भारत ने अमेरिका को 3,00,000 से अधिक छात्रों के लिए उचित वीजा की सुविधा के खातिर 'सुरक्षित सक्रिय तंत्र' व्यवस्था लागू करने पर राजी कर लिया, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सालाना 8 अरब डॉलर (69,300 करोड़ रुपए) का योगदान करते हैं.
इसके अलावा पांच लाख से अधिक पेशेवर हैं जो अमेरिका के सूचना-प्रौद्योगिकी उद्योग की रीढ़ हैं. भारत ने अमेरिका को अवैध आप्रवास को संभव बनाने वाले सिंडिकेट को मिलजुल कर नेस्तनाबूद करने को भी राजी कर लिया. इसमें ड्रग तस्कर और आतंकवाद समर्थक जुड़े हैं, जिसके दायरे में अमेरिका में सक्रिय खालिस्तानी अलगाववादी संगठन भी आ जाते हैं. यह भारत के लिए साफ-साफ जीत के समान है.
ऊपरी तौर पर मोदी के लिए कुल मिलाकर नजारा अच्छा दिखा. किसी भारतीय प्रधानमंत्री की किसी अमेरिकी राष्ट्रपति से शपथ ग्रहण के फौरन बाद मुलाकात विरली घटना है. मोदी से मिलने से पहले ट्रंप सिर्फ तीन देशों के प्रमुखों से ही मिले—जापान के शिगेरु इशिबा, इज्राएल के बेंजामिन नेतन्याहू और जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय. यह इशारा था कि ट्रंप भारत और मोदी के साथ रिश्ते को अहमियत देते हैं.
फिर भी, ट्रंप की छवि मनमौजी और मुंहफट की है और बेसाख्ता मांग रखने की बात तो अलग ही है. ऐसे में मोदी का यह दांव भारी जोखिम वाला था. लेकिन भारतीय टीम ने अच्छी तैयारी की थी, और उसने बाइडन और ट्रंप प्रशासन के बीच दो महीने के संक्रमण काल का इस्तेमाल सुखद साझेदारी का आधार तैयार करने में किया.
बाइडन प्रशासन ने ट्रंप को कमान सौंपने से हफ्ते भर पहले तीन भारतीय परमाणु प्रतिष्ठानों—भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र और इंडियन रेयर अर्थ्स—पर प्रतिबंध हटा लिए थे, जो 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद लगाए गए थे. प्रतिबंधों को हटाना दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग को फिर से जगाने के लिए महत्वपूर्ण होगा, जो 2008 के भारत-अमेरिका एटमी करार पर हस्ताक्षर करने के बाद से निष्क्रिय है.
बदले में, केंद्रीय बजट में भारत अपने परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति अधिनियम में संशोधन करने के लिए राजी हुआ, ताकि असैन्य परमाणु संयंत्रों के निर्माण और संचालन में अधिक निजी भागीदारी के प्रोत्साहन के लिए दायित्व की कठोर शर्तों को ढीला किया जा सके. यह मोदी-ट्रंप शिखर वार्ता में भारत के अमेरिकी परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के आयात के अलावा महत्वपूर्ण खनिज और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने में सहयोग के लिए सौदे का प्रमुख तत्व बन जाएगा.

उधर, 20 जनवरी को कैपिटल हिल में ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व करने पहुंचे जयशंकर को भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के क्वाड समूह के दो विदेश मंत्रियों के साथ अग्रिम पंक्ति में बैठाए जाने से क्वाड को मजबूत करने के नए प्रशासन के इरादे का संकेत मिला, जिस पर ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान जोर दिया था. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने अपने कार्यकाल के पहले दिन क्वाड बैठक बुलाकर उसे दोहराया. बाद में, मोदी ने कहा कि वे सितंबर 2025 में क्वाड शिखर सम्मेलन के दौरान नई दिल्ली में अमेरिकी राष्ट्रपति की मेजबानी करने के लिए उत्सुक हैं.
भारत के लिए यह भी सकारात्मक रहा कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तानी मूल के व्यवसायी और चिकित्सक तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी, जिसे 26/11 के मुंबई हमलों के लिए 2009 में शिकागो में गिरफ्तार किया गया था. भारत ने उसके प्रत्यर्पण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. ट्रंप ने राणा को जल्द भारत प्रत्यर्पित करने का वादा किया. दोनों नेताओं ने आतंकवाद के वैश्विक संकट को खत्म करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की, तो पाकिस्तान ने दांत पीस लिए, यहां तक कि इस्लामाबाद से आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना बंद करने को कहा. यह भी भारत के लिए एक जीत थी.
शुल्क और नया सौदा
इस बीच व्यापार शुल्कों के प्रति ट्रंप के जुनून को देखते हुए मोदी सरकार ने उनकी कुछ मांगों पर ध्यान देने का फैसला किया. 2025-26 के केंद्रीय बजट में अमेरिकी निर्यातों पर ऐसे कई शुल्क कम कर दिए गए जिन्हें ट्रंप पहले कार्यकाल में कम करवाना चाहते थे. इनमें बॉर्बन व्हिस्की, महंगी मोटरसाइकिलों, चिकित्सा उपकरणों, अल्फाल्फा घास और सूखे मेवे सरीखे कृषि उत्पादों पर शुल्क भी थे.
इरादा ट्रंप को यह संदेश देने का था कि भारत उनकी चिंताओं को लेकर सचेत है और उनके साथ साझेदारी के लिए तैयार है, और जैसा कि एक विशेषज्ञ कहते हैं, यह ''सूखे की स्थिति से निबटने के लिए" भी किया गया. इससे ट्रंप कुछ नरम तो पड़े, लेकिन भारत पर दबाव डालने से डिगे नहीं.
मोदी-ट्रंप शिखर बैठक के चार दिन पहले अमेरिका ने 104 भारतीय अवैध आप्रवासियों को सैन्य विमान से वापस भेज दिया. हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीर बांधे उनकी तस्वीरों से संसद में हंगामा मच गया और सरकार बैकफुट पर आ गई. फिर 13 फरवरी की बैठक से महज एक घंटे पहले ट्रंप ने घोषणा की कि वे अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले तमाम देशों पर रेसिप्रोकल यानी उस देश के शुल्कों के बराबर शुल्क लगा रहे हैं. उन्होंने भारत को सबसे ज्यादा शुल्क लगाने वाले उल्लंघनकर्ताओं की फेहरिस्त में ''बिल्कुल सबसे ऊपर" बताया.
ट्रंप के इस कठोर कदम से डब्ल्यूटीओ को गहरा झटका लगने की संभावना है, जिसने अपने 30 साल के वजूद में निष्पक्ष और नियम-आधारित व्यापार व्यवस्था की दिशा में काम किया और जरूरत पड़ने पर ऊंचे शुल्क बरकरार रखने के लिए विकासशील देशों को विशेष और विभेदक व्यवहार (एसडीटी) तक की छूट दी.
रिसर्च ऐंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के डायरेक्टर जनरल सचिन चतुर्वेदी कहते हैं, "डब्ल्यूटीओ अब लगभग मृतप्राय है और हमें अपनी निर्यात रणनीति पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है." अमेरिकी वार्ताकारों ने इन प्रावधानों को अनुचित बताकर दरकिनार कर दिया और बताया कि 2022 में अमेरिकी आयात पर औसत भारतीय शुल्क 15.30 फीसद थे, जबकि भारतीय आयात पर औसत अमेरिकी शुल्क 3.83 फीसद थे—दोनों के बीच 12 फीसद का फर्क था.
भारतीय टीम के लिए दबाव की ऐसी व्यूहरचनाएं जानी-पहचानी थीं और उन्होंने इन स्थितियों का ख्याल भी रखा था. ट्रंप के साथ इस शिखर बैठक का इस्तेमाल मोदी खालिस व्यापार और शुल्कों पर ध्यान देने के बजाए ऐसे अग्रगामी और साहसी मुद्दों पर विचार के लिए करना चाहते थे जो उनके कार्यकाल के अगले चार साल में रिश्तों का एजेंडा तय करें. इसलिए दोनों नेताओं की मुलाकात से पहले भारतीयों ने ट्रंप की टीम के साथ नए समझौते की बुनियाद के तौर पर चार बड़े स्तंभों पर सहमति बनाने के लिए माथापच्ची की.
ये व्यापार, रक्षा, ऊर्जा और टेक्नोलॉजी में सहयोग बढ़ाने के लिए प्रमुख प्रतिबद्धताएं थीं. इस पहल को आसान नाम दिया गया : 21वीं सदी के लिए अमेरिका-भारत कॉम्पैक्ट. इसमें कॉम्पैक्ट या सीओएमपीएसीटी कैटेलाइजिंग अपॉर्चुनिटीज फॉर मिलिटरी पार्टनरशिप, एक्सेलेरेटेड कॉमर्स ऐंड टेक्नोलॉजी (सैन्य भागीदारी, तेज गति वाणिज्य और टेक्नोलॉजी के अवसर) के पहले अक्षरों से मिलकर बना था. दोनों नेताओं ने जोर देकर कहा कि इसके शुरुआती नतीजे इस साल के अंत तक मिलेंगे और एक दूसरे में भरोसा और परस्पर लाभ प्रदर्शित करेंगे.
व्यापार और शुल्कों के मामले में भारतीय पक्ष चाहता था कि अमेरिकी ही बताएं कि वे कौन-से ढांचे के बारे में सोच रहे हैं. ट्रंप की दिलचस्पी राजस्व ढांचे में है या घाटा कम करने पर जोर देने वाले ढांचे में? उन्होंने बताया कि पारस्परिक या बराबर शुल्कों से जरूरी नहीं कि वह घाटा कम हो ही जाए जिसका फायदा भारत को मिल रहा है, हालांकि ऊंचे शुल्कों से अमेरिकी राजस्व जरूर बढ़ सकता है. भारत कुल व्यापार को बढ़ाते हुए घाटा कम करने पर जोर दे रहा था.
लिहाजा, मोदी और ट्रंप 'मिशन 500' के नाम से एक नया साहसी लक्ष्य तय करने को राजी हो गए, जिसमें दोतरफा व्यापार मौजूदा 194 अरब डॉलर (16.8 लाख करोड़ रुपए) से दोगुने से भी ज्यादा बढ़ाकर 2030 तक 500 अरब डॉलर पर पहुंचाना है. एक अधिकारी कहते हैं, "इससे भारतीय फर्मों के लिए अगले दो-एक साल में 100 अरब डॉलर (8.67 लाख करोड़ रुपए) के कारोबारी अवसर खुलने चाहिए जिनसे अमेरिका की तरफ से संभावित रूप से थोपी जाने वाली किन्हीं भी प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियों की काफी से ज्यादा भरपाई हो जाएगी."
भारत को मोलभाव की ज्यादा गुंजाइश देने के लिए दोनों टीमें 2025 की शरद ऋतु तक बहुक्षेत्रीय दोतरफा व्यापार समझौते के पहले हिस्से की दिशा में काम करने के लिए सहमत हो गईं. भारतीय पक्ष को उम्मीद थी कि समयबद्ध व्यापार समझौते के प्रति प्रतिबद्धता देखकर ट्रंप पारस्परिक शुल्कों के मामले में भारत को छूट देने के लिए तैयार हो जाएंगे. मगर मोदी के साथ मुलाकात के कुछ दिन बाद एक इंटरव्यू में ट्रंप ने साफ कर दिया कि वे ऐसा नहीं करेंगे. नतीजा यह कि भारत के फार्मा और ऑटो उद्योगों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ सकता है.
भारतीय स्टेट बैंक की अनुसंधान इकाई ने आकलन किया कि अगर अमेरिका सीधे 20 फीसद बढ़ाकर शुल्क थोप देता है तो इसका क्या असर पड़ेगा, और वह इस नतीजे पर पहुंची कि भारत को अपने जीडीपी के 50 बीपीएस (आधार अंकों) का नुक्सान होगा. यह 19.4 अरब डॉलर (1.68 लाख करोड़ रुपए) या अमेरिका के साथ भारत के कुल व्यापार के 10 फीसद का सालाना नुक्सान था. वैश्विक निवेश बैंकिंग फर्म गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि ट्रंप के पारस्परिक शुल्क का भारत पर तीन तरह से असर पड़ सकता है:
देश के स्तर पर, उत्पाद के स्तर पर, और गैर-शुल्क अवरोधों (कोटा और लाइसेंस सरीखे व्यापार प्रतिबंधों) के जरिए, जिसके नतीजतन भारत को अपने 38 खरब डॉलर (325 लाख करोड़ रुपए) जीडीपी के 0.1 फीसद से 0.6 फीसद के बीच नुक्सान हो सकता है. भारतीय अधिकारियों का कहना है कि इस असर का अध्ययन अलग-थलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये दूसरे देशों पर भी लागू होंगे और चीन सरीखे कुछ देशों पर तो और भी ज्यादा असर पड़ेगा. इसकी बदौलत भारत दूसरी वस्तुओं और सेवाओं में ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन सकेगा और निर्यात के ज्यादा व्यापक विस्तार को हथियाने की स्थिति में आ सकेगा.
इस बीच प्लान बी के तहत भारत दोतरफा व्यापार समझौते के पहले भाग को तेजी से आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहा है. उसका आत्मविश्वास इस बात से उपजा है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान दोनों देश आरंभिक व्यापार समझौते पर दस्तखत करने के करीब पहुंच गए थे, लेकिन कोविड के प्रकोप ने उस पर विराम लगा दिया.
बाइडन प्रशासन मुक्त व्यापार समझौते के लिए उत्सुक नहीं था, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान दोनों पक्षों ने पहले के शुल्कों को लेकर डब्ल्यूटीओ में चल रही लड़ाई को वापस लेने का फैसला किया. अब जब ट्रंप सत्ता में लौट आए हैं, भारत को उम्मीद है कि पारस्परिक शुल्कों के अमल में आने से पहले आंशिक समझौता कर पाएंगे. मगर यह मुश्किल होने जा रहा है और इससे रिश्तों में गंभीर तनाव पैदा होने की संभावना है.
व्यापार को नया रूप देने का वक्त
मोदी के पास मोलभाव का एक और पत्ता था. ट्रंप चाहते थे कि भारत अमेरिका से कच्चे तेल और तरल प्राकृतिक गैस की खरीद बढ़ाए. वे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए आकर्षक मुहावरे में "ड्रिल, बेबी ड्रिल" नीति का ऐलान कर चुके थे. अमेरिका इस वक्त भारत को कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति करने वाला पांचवा सबसे बड़ा देश है, और 2023 में भारत के सालाना 140 अरब डॉलर (12.13 लाख करोड़ रुपए) के तेल आयात बिल में उसकी हिस्सेदारी करीब 7 अरब डॉलर (60,650 करोड़ रुपए) की थी.

मोदी-ट्रंप शिखर बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में भारत अमेरिका को कच्चे तेल और तरल प्राकृतिक गैस का "अग्रणी आपूर्तिकर्ता" बनाने को राजी हो गया. भारत 2023 में अपने शीर्ष आपूर्तिकर्ता रूस से करीब 45 अरब डॉलर (3.89 लाख करोड़ रुपए) के अलावा सऊदी अरब और इराक में से प्रत्येक से करीब 25 अरब डॉलर (2.17 लाख करोड़ रुपए) की सालाना खरीद की.
अमेरिका को उम्मीद है कि भारत अपनी मौजूदा खरीदारी को करीब तीन गुना कर देगा. मगर भारत की अघोषित शर्त यह है कि इसमें प्रतिस्पर्धी कीमत और ढुलाई का ख्याल रखना पड़ेगा. अहम यह कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का पूर्ण सदस्य बनने के भारत के दावे का समर्थन करेगा, जिससे भारत ऊर्जा उत्पादन और आपूर्ति फैसले के लिए वैश्विक आला देशों की जमात में बैठ सकेगा.
ट्रंप का लेन-देन और अमेरिका के कारोबारी हितों को ऊपर रखने वाले नजरिए के मद्देनजर भारत के पास एक और प्रलोभन था: अमेरिका के अव्वल और बेहतरीन रक्षा उपकरणों की और ज्यादा खरीद. भारत ने 2008 से अमेरिका से तकरीबन 20 अरब डॉलर (1.73 लाख करोड़ रुपए) के सैन्य साजो-सामान खरीदे हैं, जिनमें सी130जे सुपर हरक्यूलिस और सी-17 ग्लोबमास्टर-3 सरीखे भारी वजन उठा सकने वाले सैन्य विमान और समुद्री गश्ती विमान पी-81 पोसिडॉन के अलावा एएच-64ई अपाचे और सीएच-471 चिनूक सरीखे हमलावर हेलिकॉप्टर, जहाज-रोधी मिसाइलें हार्पून, एम777 होवित्जर और बहुत हाल ही में घातक एमक्यू-9बी ड्रोन शामिल हैं.
मोदी के साथ मुलाकात में ट्रंप ने अमेरिका की जैवलिन ऐंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों और स्ट्राइकर लड़ाकू वाहनों के सह-उत्पादन की पेशकश की और भारत के लिए पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान और समुद्रगत प्रणालियां जारी करने की समीक्षा करने को राजी हो गए. प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने घोषणा की कि वे अमेरिका के सबसे अव्वल एफ-35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान बेचने पर विचार करने को तैयार हैं. जहां तक भारत की बात है, एक अधिकारी कहते हैं, "हम चीन के साथ अपनी सैन्य गैरबराबरी को ध्यान में रखते हुए रक्षा के क्षेत्र में अमेरिकी साझेदारी को अपने लिए मूल्यवान मानते हैं."
नई दिल्ली के लिए दूसरी फायदेमंद बात यह थी कि अमेरिका-भारत ट्रस्ट (रणनीतिक प्रौद्योगिकी के जरिए रिश्तों का कायापलट) पहल के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता प्रगाढ़ हुई है. इसका दायरा महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल या आईसीईटी के मुकाबले काफी व्यापक है, जिस पर बाइडन प्रशासन ने मई 2022 में भारत के साथ समझौता किया था.
ट्रस्ट की मुख्य बात अमेरिका और भारतीय निजी उद्योग के साथ उस रोडमैप पर काम करने की प्रतिबद्धता है जिससे साल के अंत तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बुनियादी ढांचे को तेज किया जाएगा, इसके अलावा दोनों देश सेमीकंडक्टर, बेहद अहम खनिजों और उन्नत पदार्थों सहित "भरोसेमंद और लोचदार" आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण को भी राजी हुए—ये सभी बातें चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश में जुटे भारत के कानों को सुकून देने वाली हैं.
कुल मिलाकर, अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण सिंह कहते हैं, "अमेरिका की तरफ से संकेत है कि हमें भारत के साथ काम करके खुशी होगी." दूसरे विशेषज्ञ शुल्कों के मामले में बराबरी लाने के ट्रंप के जुनून को भारत के लिए 1991 जैसा मौका मानते हैं. एक विशेषज्ञ कहते हैं, "यह हमारे लिए अच्छा वेकअप कॉल और अपनी व्यापार नीति को उदार बनाने का शानदार मौका है."
भारत को सभी 11,000 उत्पादों पर अपने शुल्कों का नए सिरे से आकलन करने, और संरक्षणवादी सोच वाले उद्योगों की जगहों को खाली करने की जरूरत है. मोदी ने ट्रंप से कहा, "आपके पास मागा या मेक अमेरिका ग्रेट अगेन है और मेरे पास मेक इंडिया ग्रेट अगेन के लिए विकसित भारत 2047 है. मागा+मिगा बराबर समृद्धि के लिए मेगा साझेदारी." भारत के हित में यही है कि वह इस साहसी नए सौदे को अधिकतम ऊंचाई पर ले जाए और नुक्सान को न्यूनतम स्तर पर लाए.
मोदी-ट्रंप सौदा : नया कॉम्पैक्ट करार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21वीं सदी के लिए यूएस-इंडिया कॉम्पैक्ट (सैन्य साझेदारी, अधिक व्यापार और टेक्नोलॉजी के मौके तेज करना) करार लॉन्च किया. इससे भारत-अमेरिका रिश्तों की मजबूती का पता चलता है. इसमें प्रमुख क्षेत्रों पर अधिक फोकस है और नतीजा देने वाले एजेंडे के प्रति प्रतिबद्धता जताई गई है. उसके मुख्य बिंदु:
1. प्रतिरक्षा

● 21वीं सदी में अमेरिका-भारत प्रमुख रक्षा साझेदारी के लिए नया 10-वर्षीय ढांचा ताकि आपसी लेन-देन को मजबूत करने के लिए बिक्री और सह-उत्पादन का विस्तार किया जा सके
● जैवलिन ऐंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों और स्ट्राइकर लड़ाकू वाहनों के लिए खरीद और सह-उत्पादन
● भारत को एफ-35 स्टेल्थ लड़ाकू जेट खरीदने की पेशकश
● हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उद्योग साझेदारी और उत्पादन को बढ़ाने के लिए स्वायत्त प्रणाली उद्योग गठबंधन (एएसआईए)
● हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी और भारतीय सेनाओं की संभावित विदेशी तैनाती के लिए समर्थन
2. व्यापार और निवेश
● अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों को मजबूत बनाने में निष्पक्षता, राष्ट्रीय सुरक्षा और रोजगार सृजन पर जोर
● 'मिशन 500’ का लक्ष्य: 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार दोगुने से अधिक 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना
● 2025 की शरद ऋतु तक बहुक्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के पहले चरण की योजना. इसके लिए मुख्य है बाजार तक पहुंच, टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना
● भारत में औद्योगिक वस्तुओं के अमेरिकी निर्यात को बढ़ाने का लक्ष्य, अमेरिका में श्रम-सघन उत्पादों के भारतीय निर्यात को बढ़ाना
● अमेरिकी और भारतीय फर्मों की ओर से ग्रीनफील्ड निवेश

3. ऊर्जा
● आर्थिक स्थिरता के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों के महत्व को समझना
● ऊर्जा व्यापार को बढ़ाने और अमेरिका को भारत के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों और तरल प्राकृतिक गैस के अग्रणी आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित करने की प्रतिबद्धता
● अमेरिका-भारत 123 असैन्य एटमी करार को पूरी तरह से साकार करने के लिए संभावित तकनीकी हस्तांतरण के जरिए भारत में अमेरिका के डिजाइन किए परमाणु रिएक्टरों का निर्माण करने की योजना
4. टेक्नोलॉजी
● अमेरिका-भारत ट्रस्ट (रणनीतिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से संबंधों को बदलना) पहल की शुरुआत; महत्वपूर्ण/उभरती हुई तकनीक में सरकार-से-सरकार, शिक्षा और निजी क्षेत्र में सहयोग
● 2025 के अंत तक एआइ इन्फ्रास्ट्रक्चर में तेजी लाने के लिए अमेरिका-भारत रोडमैप
● इंडस-एक्स पर आधारित इंडस इनोवेशन की शुरुआत, अंतरिक्ष, ऊर्जा, अन्य उभरती हुई टेक्नोलॉजी में निवेश आकर्षित करने के लिए उद्योग और शैक्षणिक भागीदारी को आगे बढ़ाना
● नई खनिज सुरक्षा भागीदारी के जरिए सेमीकंडक्टर, महत्वपूर्ण खनिजों, फार्मास्यूटिकल्स के लिए लचीली आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण
● अंतरिक्ष: अंतरिक्ष अन्वेषण, लंबी अवधि के मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन, सुरक्षा में सहयोग

5. बहुपक्षीय सहयोग
● सितंबर में दिल्ली में होने वाले क्वाड लीडर्स समिट के लिए नई पहल
● भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप कॉरिडोर (आइएमईसी) और आइ2यू2 समूह के भागीदार नई पहलों के लिए मिलेंगे
● पांच महाद्वीपों को जोड़ने के लिए मेटा की समुद्र तल केबल परियोजना की शुरुआत—भारत हिंद महासागर में केबलों का रखरखाव, मरक्वमत और वित्तपोषण करेगा
● अरब सागर में समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने के लिए संयुक्त समुद्री बलों की नौसेना टास्क फोर्स में भारत की भावी नेतृत्व भूमिका
● आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख—26/11 के आरोपी तहव्वुर राणा का भारत को प्रत्यर्पण

6. लोगों को बीच संपर्क
● संयुक्त/दोहरी डिग्री, जुड़वां कार्यक्रमों के जरिए दोनों देशों के उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच सहयोग
● 'छात्रों और पेशेवरों के लिए कानूनी प्रक्रिया में तेजी, अल्पकालिक पर्यटक/व्यावसायिक यात्रा को आसान बनाना
● अवैध आव्रजन, मानव तस्करों, अपराध सिंडिकेट के खिलाफ कार्रवाई