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ट्रंप 2.0 : क्या भारतीयों के लिए बंद हो जाएंगे H-1B वीजा के दरवाजे?

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कुर्सी संभालने के बाद अगर आप्रवासियों संबंधी अपनी सख्त नीति पर अमल किया तो वहां भारतीयों का रहना मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए

डोनल्ड ट्रंप, अमेरिका के नवनिर्वाचित 47वें राष्ट्रपति
डोनल्ड ट्रंप, अमेरिका के नवनिर्वाचित 47वें राष्ट्रपति
अपडेटेड 20 जनवरी , 2025

यकीनन 20 जनवरी को ही अमेरिका प्रवास की ख्वाहिश पालने वाले भारत के लोग या छात्र यह बता पाएंगे कि नया साल उनके लिए मुबारक होगा या नहीं. इसी तारीख को डोनल्ड ट्रंप औपचारिक रूप से दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे और अपनी सबसे बदलावकारी अमेरिकी आव्रजन नीति की बारीकियों का खुलासा करेंगे, जो कई भारतीयों के डॉलर कमाकर अमीर बनने के सपने को चकनाचूर कर सकती है.

उसकी जद में एच-1बी या अस्थायी रोजगार वीजा वाले तकरीबन दस लाख भारतीय वैध आप्रवासी और उनके परिवार सीधे तौर पर आ सकते हैं. दूसरे, कथित तौर पर अवैध तरीके से अमेरिका में घुसे करीब 7,25,000 भारतीयों को तो निकाल बाहर किया जा सकता है. ट्रंप ने कसम खाई है कि वे राष्ट्रपति बनने के पहले ही दिन अमेरिका से अवैध आप्रवासियों को बाहर निकालने की अब तक की सबसे बड़ी मुहिम शुरू करेंगे. इसकी जद में भारतीयों के भी आने की अंदेशा है.

इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर 17,940 अवैध भारतीय आप्रवासी हैं, जो सभी कानूनी विकल्प आजमा चुके हैं. उन्हें फौरन निर्वासन झेलना पड़ सकता है, जो नरेंद्र मोदी सरकार के लिए बड़ा सियासी सिरदर्द साबित हो सकता है.

संकेत ये भी हैं कि नई ट्रंप सरकार एच-1बी वीजा के जरिए अमेरिका में प्रवेश को कुछ मुश्किल और महंगा बना सकती है. एच-1बी वीजा कार्यक्रम जॉर्ज बुश सरकार ने 1990 में शुरू किया था. उसके तहत फिलहाल सालाना 65,000 विदेशी पेशेवरों और अमेरिकी संस्थानों से स्नातक करने वाले 20,000 लोगों को प्रवेश की इजाजत है. यह वीजा तीन साल के लिए वैध होता है और उसे अगले तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.

अगर इसके नियमों में कोई सख्ती की जाती है या संख्या पर कोई और सीमा तय की जाती है तो सबसे ज्यादा झटका भारतीय टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों को लगेगा क्योंकि अमेरिका में एच-1बी वीजा धारकों में सबसे ज्यादा संख्या उन्हीं की है. वित्त वर्ष 2023 में (1 अक्तूबर, 2022 से 30 सितंबर, 2023 तक अमेरिका में), जारी किए गए 2,65,777 एच-1बी वीजा में से 2,06,591 या 78 फीसद भारतीयों को मिले. (उनमें नए वीजा, एक्सटेंशन या किसी अन्य श्रेणी से एच-1बी में बदलना शामिल था).

हाल ही अमेरिका में संबद्ध शीर्ष चार भारतीय बड़ी आईटी कंपनियों—इंफोसिस, टीसीएस, एचसीएल और विप्रो—को एच-1बी वीजा पर काम करने के लिए करीब 25,000 कर्मचारियों को इजाजत मिली, जो वित्त वर्ष 24 की दूसरी छमाही में जारी हुए 1,30,000 वीजा का 20 फीसद है. भारत के आईटी क्षेत्र ने वित्त वर्ष 24 में 205 अरब डॉलर की सॉफ्टवेयर सेवाओं का निर्यात किया, जिसमें अमेरिका का हिस्सा 54 फीसद था. इस क्षेत्र को ट्रंप सरकार के एच-1बी वीजा पर शिकंजा कसने से नुक्सान हो सकता है.

बंटी हुई है राय

ट्रंप के कार्यभार संभालने के पहले ही एच-1बी मुद्दे पर 'फिर अमेरिका को महान बनाओ’ (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन या एमएजीए या मागा) मुहिम के समर्थकों के बीच गृह-युद्ध छिड़ गया है. लगता है कि वजह 14 दिसंबर को माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म एक्स पर अरविंद श्रीनिवास की एक पोस्ट थी, जो नए जमाने की स्टार्ट-अप यूनिकॉर्न perplexity.ai के सह-संस्थापक हैं. 31 वर्षीय श्रीनिवास आईआईटी मद्रास और बर्कले के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के पूर्व छात्र और एच-1बी वीजा धारक हैं.

वे चैटजीपीटी बनाने वाले स्टार्ट-अप ओपनएआई में काम कर चुके हैं. उसके बाद उन्होंने अपना खुद का एआई सर्च इंजन परप्लैक्सिटी शुरू किया. उनकी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था, ''मुझे लगता है कि मुझे ग्रीन कार्ड मिल जाना चाहिए. क्यों?’’ अल्पकालिक कार्य वीजा एच-1बी वीजा के उलट ग्रीन कार्ड को आधिकारिक तौर पर स्थायी निवासी कार्ड के रूप में जाना जाता है. जवाब जल्द ही आ गया, वह भी ऐसे शख्स से जो ट्रंप के राज में यकीनन मायने रखता है. टेक अरबपति एलॉन मस्क से बस एक शब्द आया, ''हां.’’

टेस्ला, एक्स और स्पेसएक्स के मालिक के समर्थन पर मागा समर्थक भड़क गए. श्रीनिवास जैसे एच-1बी धारकों का समर्थन करने के लिए उन्हें खूब ट्रोल किया गया. मस्क भी कहां पीछे रहने वाले. उन्होंने तीखा प्रहार किया, ''मैं अमेरिका में इतने सारे महत्वपूर्ण लोगों के साथ हूं जिन्होंने स्पेसएक्स, टेस्ला और अमेरिका को मजबूत बनाने वाली सौ अन्य कंपनियों का निर्माण किया है, जिसका कारण एच1बी है...मैं इस मुद्दे पर ऐसी जंग लड़ूंगा, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

मागा समर्थकों ने इन टिप्पणियों को सख्त आप्रवास नीति को कमजोर करने के रूप में देखा, वह भी ऐसे शख्स से जिसे ट्रंप ने पहले ही नए सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) की अगुआई के लिए नामित किया है. डीओजीई के मस्क के सह-अध्यक्ष और पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार विवेक रामास्वामी ने भी अमेरिकी संस्कृति और शिक्षा के मानकों की आलोचना की. उन्होंने कहा, ''विलक्षण समझ पर औसत बुद्धि का साया काफी लंबा है.’’

इससे मागा समर्थकों में हड़कंप मच गया. ट्रंप के पूर्व सलाहकार और आव्रजन पर कट्टरपंथी स्टीव बैनन ने पलटवार किया, ''एच-1बी वीजा? यह वह नहीं, जो बताया जाता है. यह अमेरिकियों की नौकरी छीनने और शर्तिया ऐसे लोगों को कम वेतन पर लाने के लिए है जो बंधुआ मजदूर बन गए हैं. यह सब सिलिकॉन वैली के मुट्ठी भर एकाधिकारवादियों का घोटाला है.’’

ट्रंप ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पॉलिसी के लिए सलाहकार भारतीय अमेरिकी वेंचर पूंजीपति श्रीराम कृष्णन को नियुक्त किया तो इस बहस में कट्टर दक्षिणपंथी तथा इंटरनेट इन्फ्लुएंसर लॉरा लूनर कूद पड़ीं. मस्क की तरह, कृष्णन भी अमेरिका में हुनरमंद आप्रवासियों को लाने के पक्ष में हैं. लूनर ने कहा, कृष्णन का रुख ''अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी तो नहीं.’’

मागा समर्थकों को अप्रत्याशित क्षेत्रों से समर्थन मिला. धुर वामपंथी, वर्मोंट के डेमोक्रेट सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने मस्क के एच-1बी के रुख पर हमला बोला. उन्होंने एक्स पर लिखा, ''एच-1बी प्रोग्राम का मुख्य मकसद बेहतरीन और प्रतिभाशाली लोगों को नियुक्त करना नहीं है, बल्कि विदेशों से कम वेतन वाले बंधुआ कामगारों को अच्छी तनख्वाह वाले अमेरिकियों की जगह लाना है. जितने सस्ते कामगार भर्ती करेंगे, अरबपति उतने ही ज्यादा पैसे कमाएंगे. एच-1बी प्रोग्राम के व्यापक कॉर्पोरेट दुरुपयोग को समाप्त किया जाना चाहिए.’’

सैंडर्स ने आरोप लगाया कि 2022 और 2023 में ही शीर्ष 30 अमेरिकी कॉर्पोरेट ने 34,000 से अधिक एच-1बी वाले आप्रवासियों को भर्ती करके कम से कम 85,000 अमेरिकी लोगों को नौकरी से निकालने के लिए इस प्रोग्राम का इस्तेमाल किया. यह भी दावा किया कि एच-1बी वालों को सभी नई आईटी नौकरियों में से 33 फीसद मिली हैं.

एच-1बी को लेकर घमासान के बाद मस्क अपने रुख से पीछे हट गए और एक्स पर पोस्ट किया, ''मैं साफ कह चुका हूं कि इस कार्यक्रम में छेद हैं और उसमें बड़े सुधार की जरूरत है.’’ उनका समाधान—''न्यूनतम वेतन में उल्लेखनीय वृद्धि करके और एच-1बी को बनाए रखने के लिए सालाना लागत जोड़कर उसे आसानी से ठीक किया जा सकता है, जिससे देसी लोगों के मुकाबले विदेशों से लोगों को काम पर रखना ज्यादा महंगा हो जाएगा.’’

इस बीच, ट्रंप एच-1बी वीजा मुद्दे पर नरम रुख अपना रहे हैं और इसके बजाय अवैध आप्रवासियों के खिलाफ सख्त रुख अपना रहे हैं. एक अमेरिकी अखबार से बातचीत में उन्होंने कहा, ''मैं हमेशा से वीजा के पक्ष में रहा हूं. इसीलिए ये हमारे यहां हैं.’’

हालांकि, भारतीय विशेषज्ञ ट्रंप के दावों को लेकर सतर्क हैं. उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में एच-1बी वीजा के खिलाफ सख्त रुख अपनाया था और एक समय तो उसे खत्म करने की मुहिम भी चलाई थी. बतौर राष्ट्रपति उन्होंने अर्जियों की सख्त जांच सहित कई महत्वपूर्ण नियम पेश किए. लिहाजा, वीजा अर्जियों को नामंजूर करने की दर अप्रैल 2017 में औसतन 6 फीसद से बढ़कर वित्त वर्ष 2018 में 24 फीसद हो गई.

ट्रंप ने 'अमेरिकी खरीदो और अमेरिकी को काम दो’ का आदेश आगे बढ़ाया और संघीय एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे एच-1बी वीजा सबसे कुशल या उच्चतम वेतन वाले लाभार्थियों को दिए जाने के लिए सुधार सुझाएं. इसमें एच-1बी कामगारों के लिए प्रति वर्ष 60,000 डॉलर के न्यूनतम वेतन को बढ़ाना शामिल था, जिससे वे औसत अमेरिकी वेतन स्तर 1,00,000 डॉलर के करीब आ सकें. 2020 में ट्रंप हार गए, तो बाइडन सरकार ने ट्रंप के लगाए कई प्रतिबंधों को हटा दिया; बाकी को न्यायिक समीक्षा के माध्यम से हटा दिया गया.

खतरा कितना गंभीर है?

तो अपने दूसरे राष्ट्रपति कार्यकाल में ट्रंप एच-1बी वीजा के साथ ठीक-ठीक कितना खिलवाड़ कर सकते हैं? अवैध आप्रवासियों को निकालने के लिए तो वे अपने वादे के मुताबिक पूरा जोर लगाएंगे, लेकिन एच-1बी वीजा कार्यक्रम पर कहीं ज्यादा सतर्कता से आगे बढ़ने की संभावना है. उन्हें अच्छी तरह पता है कि इस मोर्चे पर आमूलचूल बदलाव टेक्नोलॉजी और नवाचार में अपनी बढ़त बनाए रखने की अमेरिका की कोशिशों को गहरा धक्का पहुंचा सकता है, खासकर जब चीन तेजी से उसे पछाड़ने की तरफ बढ़ रहा है.

नए साल की पूर्वसंध्या की पार्टी में उन्होंने रिपोर्टरों से कहा, ''मुझे हमेशा लगता रहा है कि हमें अपने देश में सबसे काबिल लोगों को रखना होगा. हमें बहुत-से लोगों की आमद की जरूरत है. हमारे यहां इतनी नौकरियां होंगी जितनी पहले कभी नहीं रहीं.’’ ट्रंप वह तरीका अपना सकते हैं जिसकी वकालत उनके पूर्व प्रशासन के कई अफसरों का लिखा कंजरवेटिव ब्लूप्रिंट 'प्रोजेक्ट 2025’ करता है—''वीजा धीरे-धीरे और तय चरणबद्ध तरीके से कम करना.’’ यह ''अमेरिकी कामगारों के हित सबसे पहले’’ रखने के मागा आंदोलन की मंशा से भी मेल खाता है.

भारतीयों की चिंता बढ़ाने वाला एक और पहलू यह है कि ट्रंप प्रशासन ग्रीन कार्ड के बकाया मामलों को कैसे निबटाने की पेशकश करता है. यूएस सिटिजनशिप ऐंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआइएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि 10 लाख से ज्यादा भारतीय ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं.

कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) का अनुमान है कि रोजगार-आधारित श्रेणियों में भारतीयों के लिए यह बैकलॉग 2020 में 5,68,414 था, जिसे निबटाने में 195 साल लग सकते हैं और अनुमानित वित्त वर्ष 2030 से कई गुना ज्यादा इंतजार करना पड़ सकता है. इस बैकलॉग की वजह यह है कि जारी किए जाने वाले ग्रीन कार्ड की संख्या पर सालाना अधिकतम सीमा और हर देश की अलग-अलग सीमाएं तय हैं. 

जिन भारतीयों ने अमेरिका की नागरिकता हासिल कर ली है, वे मानते हैं कि ट्रंप एच-1बी वीजा के मामले में ज्यादा सख्ती नहीं बरतेंगे. फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशंस के चेयरमैन और बीते 25 साल से न्यूयॉर्क में रह रहे 46 वर्षीय अंकुर वैद्य कहते हैं, ''अगर वे ऐसा करते भी हैं, तो कानूनी प्रवासन के नए रास्ते खोलेंगे.’’ निर्माण प्रबंधन के पेशेवर और इंजीनियरिंग फर्म में एसोसिएट वैद्य मूलत: वडोदरा के हैं और उन्होंने 9-10 जनवरी को भुवनेश्वर में आयोजित प्रवासी भारतीय दिवस में भाग लेने आए 26 अमेरिकी प्रवासियों के दल की अगुआई की.

वे कहते हैं, ''जिस तरह शिवसेना महाराष्ट्र के हर चुनाव से पहले मराठियों के लिए नौकरियों और पहला हक की मांग करती है, ट्रंप ने भी अमेरिकियों के वोट हासिल करने के लिए वही चाल चली. अमेरिकी कारोबारी जानते हैं कि स्थानीय लोगों से सप्ताह में 40 घंटे काम करने की उम्मीद होती है, वे 30 घंटे भी नहीं करते, जबकि हुनरमंद भारतीय उसी मेहनताने पर 40 घंटे से ज्यादा देंगे.’’

क्या कर रही हैं भारतीय आईटी कंपनियां?

उधर, भारतीय आइटी कंपनियां कोई जोखिम उठाए बिना अपने बचाव की तैयारी कर रही हैं, ताकि एच-1बी वीजा कार्यक्रम जारी रहे. नैसकॉम में ग्लोबल ट्रेड डेवलपमेंट के प्रमुख तथा वीपी शिवेंद्र सिंह का कहना है कि यह धारणा कि एच-1बी वीजा पर आए कर्मचारी स्थानीय नौकरियां छीन लेते हैं या कम तनख्वाह पर काम पर रख लिए जाते हैं जिससे स्थानीय बेरोजगारी पैदा होती है, असल आंकड़ों से मेल नहीं खाती.

वे बताते हैं कि वित्त वर्ष 25 में दिए गए नए 85,000 एच-1बी वीजा में आठ शीर्ष भारतीय आइटी कंपनियों की हिस्सेदारी 7,482 या 8.8 फीसद से भी कम रही. इस तरह अमेरिकी टेक्नोलॉजी फर्मों की हिस्सेदारी कहीं ज्यादा है. सिंह कहते हैं, ''यह मुद्दा वहीं है जहां अमेरिका में दक्ष लोगों की कमी है. एच-1बी वीजा इसी कमी को पाटता है. और भले ही यह संख्या कम हो, फिर भी वे बेहद अहम भूमिका निभाते हैं.’’

आईटी उद्योग के दिग्गज और इंफोसिस के बोर्ड के पूर्व सदस्य टी.वी. मोहनदास पै का कहना है कि दुनिया में अमेरिका के डिजिटल दबदबे की वजह उन्हें ऊंची गुणवत्ता का मानव श्रम, संसाधन और वित्तीय पूंजी उपलब्ध होना है. तमाम बड़े अमेरिकी कॉर्पोरेशन के टेक्नोलॉजी सॉफ्टवेयर का बड़ा हिस्सा भारतीय संभालते हैं. पै कहते हैं, ''अमेरिका सॉफ्टवेयर के पर्याप्त लोग उत्पन्न नहीं कर रहा. भारत अमेरिका की शक्ति कई गुना बढ़ाने वाला रहा है.

आलोचकों का कहना है कि भारतीयों को कम पैसा दे रहे हैं और अमेरिकी नौकरियां छीन रहे हैं. यह बिल्कुल गलत है, क्योंकि आपको हर शहर में अमेरिकी मानदंडों के मुताबिक तुलना योग्य वेतन देना होता है.’’ यूएससीआईएस के मुताबिक आईटी कंपनी में काम कर रहे व्यक्ति का औसत वेतन 1,22,000 डॉलर है. मगर एच-1बी वीजा पर आए कर्मचारी को वेतन के अलावा विभिन्न आवेदन शुल्क और सरकारी फाइलिंग शुल्क के 35,000-50,000 डॉलर और जुड़ जाते हैं. इससे स्थानीय कर्मचारी को रखना सस्ता हो जाता है, बशर्ते कोई मिले तो.

ये कुछ चुनौतियां हैं. एक मुद्दा यह है कि एच-1बी वीजा पर आए कर्मचारी को सामाजिक सुरक्षा योगदान देना होता है, लेकिन वे खुद इसका लाभ नहीं उठा पाते क्योंकि इसका पात्र होने के लिए नियम कम से कम 10 साल रहने की मांग करता है और एच-1बी वीजा कर्मचारी को छह साल से ज्यादा रहने की इजाजत नहीं देता. सिंह का कहना है कि यह मुद्दा लंबे वक्त से अमेरिका-भारत के संयुक्त बयानों में उठता रहा है.

पै कहते हैं, ''अमेरिका एच-1बी का बहुत ज्यादा फायदा उठा रहा है. वे कर चुकाते हैं, वे सामाजिक सुरक्षा का भुगतान करते हैं... और सभी एच-1बी लोगों को सामाजिक सुरक्षा का फायदा नहीं मिलता क्योंकि वे ज्यादा लंबे वक्त नहीं रहते. इसका खर्च उन्हें भेजने वाली कंपनी उठाती है.’’

टेक्नोलॉजी उद्योग के दिग्गजों को लगता है कि भारत का सॉफ्टवेयर सेवा उद्योग इस समय एच-1बी वीजा पर किसी भी हमले का सामना करने की पहले से कहीं बेहतर स्थिति में है. खासकर इस बात को देखते हुए कि दुनिया भर में टेक्नोलॉजी सेक्टर फिलहाल विकास के ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसमें एआई औजारों के साथ डिजिटलीकरण पर ध्यान दिया जा रहा है.

नैस्कॉम के पूर्व वाइस प्रेसीडेंट और अब स्वतंत्र टेक्नोलॉजी कंसल्टेंट के.एस. विश्वनाथन कहते हैं, ''आज हर जगह डिजिटलीकरण की मांग है. कोविड के बाद लोगों को एहसास हुआ कि काम दुनिया के किसी भी हिस्से से किया जा सकता है. दूसरे, केवल फॉर्चून 100 या फॉर्चून 500 कंपनियां ही नहीं... बल्कि लाखों छोटे और मंझोले कारोबार डिजिटाइज करने की तलाश में हैं.’’

वे यह भी कहते हैं कि कोई भी एक देश अकेला इस मांग के अनुरूप इतनी बड़ी तादाद में डिजिटल टेक प्रतिभाओं की आपूर्ति नहीं कर सकता.

भारत दुनिया में प्रतिभाओं के सबसे बड़े जखीरों में से है, जहां 20 लाख से ज्यादा नौजवान हर साल साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स (एसटीईएम या स्टेम) के कोर्स से ग्रेजुएट होकर निकलते हैं. ग्रोथ एडवाइजरी फर्म कैटालिंक्स के पार्टनर और कॉग्निजेंट इंडिया के पूर्व चेयरमैन और एमडी रामकुमार राममूर्ति कहते हैं, ''अमेरिका दशकों से टेक्नोलॉजी से प्रेरित नवाचारों का स्रोत रहा है. जन बदलावों की चर्चा की जा रही है—जैसे न्यूनतम वेतन और सालाना रखरखाव की लागत बढ़ाना—वे मोटे तौर पर कंपनियों को सस्ते श्रमबल की खातिर इस कार्यक्रम का दुरुपयोग करने से हतोत्साहित करने के लिए हैं.’’

ट्रंप के पहले कार्यकाल में एच-1बी वीजा देने से इनकार के मामले तेजी से बढ़े, तो शीर्ष आईटी कंपनियों ने अमेरिका के स्थानीय लोगों की भर्ती बढ़ा दी. टीसीएस ने 2020 से 20,000 से ज्यादा स्थानीय लोगों को लिया, तो इंफोसिस ने भी यही किया. शिवेंद्र सिंह नैसकॉम के 2012-22 के सर्वे का हवाला देकर बताते हैं कि भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियां अमेरिका में करीब 2,25,000 कर्मचारियों के हुनर बढ़ाने पर ही 1.1 अरब डॉलर खर्च करती हैं. वे पूरे अमेरिका के 130 कॉलेज और यूनिवर्सिटी के साथ भी काम करती हैं, जिसका असर 29 लाख छात्रों पर पड़ता है. 

भारतीय आईटी कंपनियों ने कर्मचारियों को ऐसी जगहों पर रखकर जो उन्हीं टाइम जोन में हैं जिसमें उनके प्रमुख बाजार हैं, 'नियर-शोरिंग’ के अवसरों का लाभ उठाया. मसलन अमेरिका के साथ-साथ दक्षिण अमेरिकी देश प्रमुख 'नियर-शोरिंग’ जगह के रूप में उभरे हैं. साथ ही, भारत उन ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) की प्रमुख मंजिल के तौर पर उभरा है जो वैश्विक एमएनसी के हाथों संचालित कैप्टिव इकाइयां हैं.

आपदा में अवसर?

विशेषज्ञों का कहना है कि अब भारतीय आईटी कंपनियों को इस दौर का इस्तेमाल समूची नई संभावना खोलने के लिए भी करना चाहिए. यह एहसास बढ़ रहा है कि जिससे दर्जनों भारतीय आईटी कंपनियों की मुनाफा कमाने की क्षमता में इजाफा हुआ, खासकर सस्ता श्रमबल, वह तेजी से सिकुड़ रहा है.

एक विशेषज्ञ कहते हैं, ''भारतीय मोटे तौर पर रोजगार पाने के लिए बड़े पैमाने पर अमेरिका गए. कुछ शीर्ष कंपनियों के सीईओ बन गए. बहुत कम ने अपने दम पर उस तरह अरबों डॉलर बनाए जैसे, फर्ज कीजिए, मस्क ने बनाए. यह भारतीय कंपनियों के लिए सहायक भूमिका निभाने के बजाय खुद को शक्तिशाली और विशालकाय बनाने की दिशा में निर्णायक मोड़ हो सकता है.’’

फिर भारत की बात करें तो अमेरिका में हरियाली तलाश रहे भारतीयों के इस आसन्न संकट से प्रेरित होकर मोदी सरकार को ऐसी पहल शुरू करनी चाहिए जो मैन्युफैक्चरिंग की और ज्यादा नौकरियों के सृजन के अलावा भारत को नवाचार और टेक्नोलॉजी के केंद्र में बदल दें. बजाय इसके कि भारतीय छात्र डिग्रियों के वास्ते विदेश में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भीड़ लगा दें, उन्हें यहां प्रोत्साहन दिया जा सकता है. जैसे, भारत ने उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन लाभ देकर बहुराष्ट्रीय दिग्गज कंपनी एप्पल को मैन्युफैक्चरिंग इकाई लगाने के लिए लुभाया.

अब जब भारत आधे नए आईफोन बना रहा है, इससे हमें न केवल राजस्व कमाने में मदद मिली बल्कि 1,00,000 से ज्यादा भारतीयों के लिए नौकरियां भी पैदा हुईं. भारत को चीन की वैकल्पिक वैश्विक मूल्य शृंखला बनने की नीतियों पर भी काम करना चाहिए, जिससे भारतीय मैन्युफैक्चरिंग पर अमेरिका की निर्भरता बढ़ेगी. ट्रंप का आना भारत के लिए एक और कोविड सरीखा लम्हा हो सकता है—ऐसा मौका जब वह सुधारों की ऊंची छलांग लगाकर अपने को निर्भरता की बेड़ियों से मुक्त कर सकता है.

—अजय सुकुमारन साथ में अर्कमय दत्ता मजूमदार

अमेरिका में अस्थाई मगर सुरक्षित प्रवेश चाहने वाले अनेक भारतीयों के लिए एच-1बी वीजा लंबे समय से भरोसेमंद रास्ता रहा है. उसकी अहमियत, लाभार्थियों और ट्रंप 1.0 के बाद बने माहौल पर एक नजर

एच-1बी और एच-4 वीजा के आखिर मायने क्या हैं?

एच-1बी वीजा

● टेक्नोलॉजी और मेडिसिन के खास क्षेत्रों में हुनरमंद लोगों के लिए अस्थाई रोजगार वीजा

● आवेदन करने वाले को उसे रोजगार देने वाले की ओर से बुलाया जाना चाहिए

एच-4 वीजा

● एच-1बी वीजा धारकों के परिजनों (पति-पत्नी या बच्चों) के लिए

● प्राथमिक वीजा धारक के रहने तक ही अमेरिका में प्रवेश, अमूमन उसे काम करने का अधिकार नहीं

अमेरिका के लिए नफा-नुक्सान

नफा

● अव्वल दर्जे के हुनरमंद विदेशियों को नौकरी पर रखकर अमेरिकी कंपनियों को खास मकसद पूरा करने में मदद

● आईटी जैसे भारी मांग वाले क्षेत्रों में छोटे कारोबार की मदद में अहम भूमिका

नुक्सान

● कुछ कंपनियां अमेरिकी कामगारों को हटाकर कमतर तनख्वाह पर विदेशियों की भर्ती के खातिर इसका दुरुपयोग करती हैं

● खासकर टेक उद्योग में देसी स्नातकों की छंटनी का बहाना

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