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सुर्खियों के सरताज-2024 : डी गुकेश ने कैसे बनाया भारत को शतरंज का सिरमौर?

गुकेश डोम्माराजू अब सबसे कमसिन शतरंज विश्व चैंपियन हैं, लेकिन वे तो भारत की शतंरज महागाथा के स्वर्णिम ताज के सिरमौर भर हैं, 'सुनहरी पीढ़ी' के लिए 2024 वह साल है, जब उन्होंने साबित कर दिखाया

पैंतालीसवें फिडे चेस ओलंपियाड की विजेता भारत की पुरुष और महिला टीमें बुडापेस्ट में 22 सितंबर को अपने पदकों के साथ
पैंतालीसवें फिडे चेस ओलंपियाड की विजेता भारत की पुरुष और महिला टीमें बुडापेस्ट में 22 सितंबर को अपने पदकों के साथ
अपडेटेड 6 जनवरी , 2025

गुकेश डोम्माराजू के मन में बचपन की बहुत ज्यादा यादें नहीं हैं, पर एक तस्वीर उनके दिलो-दिमाग में साफ उकेरी हुई है. सात साल के गुकेश तब शतरंज के नौसिखुआ खिलाड़ी थे और चेन्नै के हयात रीजेंसी होटल के उस खचाखच भरे कमरे में विश्व चैंपियनशिप के खिताब की खातिर विश्वनाथन आनंद और मैग्नस कार्लसन के बीच दो-दो हाथ होते देखने के लिए बहुत पीछे अपने पिता के साथ खड़े थे.

यह बच्चा तब काले-सफेद चौखाने तो नहीं देख सका, लेकिन दो महान खिलाड़ियों को देखना भर इतना ''प्रेरणादायक था'' कि गुकेश ने उसी पल एक सपना देख लिया. वे कहते हैं, ''मैंने सोचा कि एक दिन उस ग्लास बॉक्स के भीतर होना मजेदार होगा.'' अब वायरल हुई एक क्लिप में चार साल बाद उन्होंने अपनी इच्छा को बेहतर ढंग से बयान किया: ''मैं सबसे कम उम्र का विश्व शतरंज चैंपियन बनना चाहता हूं.''

दिसंबर 2024 की 12 तारीख को कुल जमा 18 वर्ष की उम्र में गुकेश ने 14 दिनों के दौरान 56 घंटे चले मुकाबले में डिंग लिरेन के खिलाफ रोमांचक मुकाबला जीतकर अपनी वह इच्छा पूरी कर ली. ऐसा करते हुए इस किशोर ने न केवल गैरी कास्परोव का शतरंज का सबसे युवा विश्व चैंपियन होने का रिकॉर्ड तोड़ दिया, बल्कि यह खिताब जीतने वाले मात्र दूसरे भारतीय (नब्बे के दशक में आनंद के इसी पराक्रम के बाद) भी बन गए.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत आज शतरंज का सच्चा शक्तिकेंद्र है. यह जेन ज़ी यानी 1990 और 2000 के दशक में जन्मी पीढ़ी के उन ग्रैंडमास्टरों (जीएम) के लिए उपजाऊ जमीन है जो चौसठ खानों के खेल में अपनी चालों से दुनिया को मंत्रमुग्ध कर रहे हैं.

2024 में गुकेश के शानदार प्रदर्शन—जिसमें कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के मुकाबले और चेस ओलंपियाड में टीम तथा व्यक्तिगत स्वर्ण पदक भी शामिल है—के अलावा, 21 वर्षीय अर्जुन एरिगैसी भी थे, जिन्होंने इसी महीने कुलीन 2800 एलो क्लब में जगह बनाई और ऐसा करने वाले इतिहास में महज 16वें खिलाड़ी बने.

एरिगैसी, गुकेश, 19 वर्षीय आर. प्रज्ञानंद और 30 वर्षीय विदित गुजराती ओलंपियाड 2024 की स्वर्ण पदक विजेता टीम का हिस्सा थे, और एफआईडीई या फिडे (इंटरनेशनल चेस फेडरेशन) की शीर्ष 20 रैंकिंग में जगह बनाने वाले पांच भारतीयों में शामिल हैं. उधर अक्तूबर में हुई ग्लोबल चेस लीग में 20 वर्षीय निहाल सरीन को अपनी टीम पीबीजी अलास्कन नाइट्स को फाइनल में ले जाने के लिए सीजन का सबसे मूल्यवान खिलाड़ी आंका गया. 

बच्चे हैं तो क्या हुआ

12 दिसंबर को 14वें और आखिरी मैच में गुकेश चीन के डिंग लिरेन को मात देने के समय

शतरंज में भारत का बेजोड़ साल अभी खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि एरिगैसी, प्रज्ञानंद, 19 वर्षीय रौनक साधवानी, 25 वर्षीय अरविंद चिदंबरम और 18 वर्षीय प्रणव वी. उन 10 भारतीयों में हैं, जो न्यूयॉर्क में विश्व रैपिड और ब्लिट्ज चैंपियनशिप (26-30 दिसंबर) के मुकाबलों में हिस्सा ले रहे हैं. शतरंज की बिसात की रानियां भी न्यूयॉर्क में हैं: कैंडिडेट्स में संयुक्त दूसरे स्थान पर रहीं 23 वर्षीया आर. वैशाली, मौजूदा जूनियर गर्ल्स चैंपियन 19 वर्षीया दिव्या देशमुख, और महिला ग्रैंडमास्टर 22 वर्षीया वंतिका अग्रवाल. यह तिकड़ी उस महिला टीम का हिस्सा भी थी जिसने बुडापेस्ट में हुए चेस ओलंपियाड में सोना जीता.

कास्पारोव ने इसे 'शतरंज में भारतीय जलजला' करार दिया, क्योंकि भारत के 85 ग्रैंडमास्टरों में से आधे से ज्यादा आनंद की विश्व चैंपियनशिप की फतह के बाद आए. इस वक्त करीब 200 भारतीय शतरंज के पेशेवर खिलाड़ी हैं. जेनरेशन नेक्स्ट को शतरंज के बारे में बात करते सुनें तो आपको समझ आएगा कि मामला कामयाबी और भारी धन का कम और खेल के प्रति प्यार और सम्मान का ज्यादा है.

प्रज्ञा कहते हैं, ''एक चाल पूरी जमावट और नतीजा बदल देती है. यही चीज मुझे खेल के बारे में सोचने और नई चीजें सीखने के लिए उत्साहित रखती है.'' विश्व कप 2023 के फाइनल में पहुंचने वाला यह खिलाड़ी भाग्यशाली है कि बड़ी बहन वैशाली के रूप में उसके घर में कोई है जिसके साथ वह शतरंज की तमाम चीजों के बारे में बात कर सकता है. यह दुनिया में भाई-बहन की पहली ग्रैंडमास्टर जोड़ी है.

वे कहते हैं, ''आपके पास ओपनिंग आइडिया होते हैं जिन्हें आप दिखाना चाहते हैं लेकिन दूसरों से इसकी चर्चा नहीं कर सकते. अगर मुझे किसी जमावट के बारे में कुछ दिलचस्प लगता है या नहीं लगता है, तो हम चर्चा करते हैं. हम एक दूसरे से सीखते हैं.''

इस पीढ़ी के खिलाड़ियों की शख्सीयतें और खेल की शैलियां भी अलग-अलग और खास हैं. गुकेश और प्रज्ञा माथे पर विभूति लगाए मैदान में उतरते हैं, तो दिव्या का खेल का अंदाज खुले बाल और होठों पर लिपिस्टिक है. गुकेश पोकर के खिलाड़ी की तरह भावहीन दिखते हैं, तो विदित गुजराती बिसात पर पूरी तरह भावविभोर होते हैं. इंटरनेशनल मास्टर (आईएम) सागर शाह, जो लोकप्रिय कंटेंट प्लेटफॉर्म चेसबेस इंडिया के संस्थापक और सीईओ भी हैं, उनके अलग-अलग फर्क बताते हैं.

शाह कहते हैं, ''गुकेश में बिसात पर रचनात्मक खेल की जबरदस्त क्षमता है, प्रज्ञान के पास के आखिरी चरण की अद्भुत तकनीक है, अर्जुन में ऐसी पेचीदगियां पैदा करने की क्षमता है जिनसे बहुत कम ही बाहर निकल पाते हैं.'' उनके दमदार प्रदर्शन की बदौलत भारत इस खेल की सबसे लोकप्रिय वेबसाइट चेस डॉट कॉम पर अमेरिका के बाद दूसरे सबसे बड़े बाजार की तौर पर उभरा. यहां 1.85 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर हैं और 80 लाख का मासिक सक्रिय यूजर बेस है. भारत के लिए चेस डॉट कॉम के कंट्री डायरेक्टर अवध शाह कहते हैं, ''दर्शक के लिहाज से हम सबसे तेजी से बढ़ता बाजार हैं.''

प्रज्ञा और वैशाली की मां नागलक्ष्मी टूर्नामेंट में उनके साथ जाती हैं, तो गुकेश अपने पिता और ईएनटी विशेषज्ञ रजनीकांत के सहारे हैं, जिन्होंने यात्राओं में अपने बेटे के साथ जाने के लिए अपनी प्रैक्टिस मुल्तवी कर दी. आम धारणा के विपरीत शतरंज महंगा खेल है, ट्रेनिंग की फीस ही मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से आने वाले परिवारों के लिए बहुत भारी पड़ती है.

गुकेश की मां पद्माकुमारी, जो मद्रास मेडिकल कॉलेज (एमएमसी) में पढ़ाती हैं, 2018-19 का ही जिक्र करती हैं जब दंपती के पास बेटे के सबसे कम उम्र का ग्रैंडमास्टर बनने के सपने में लगाने के लिए ''पैसा नहीं था'', जिसके लिए विदेश में होने वाले टूर्नामेंटों में भाग लेना जरूरी था. एमएमसी में डोम्माराजू दंपती के बैच के साथियों ने मदद के लिए धन जुटाया. पद्माकुमारी कहती हैं, ''वे हमारे पहले प्रायोजक थे. हम हमेशा आभारी रहेंगे.''

राजा की चाल

शतरंज में भारत के धमाके की कहानी कोविड महामारी से शुरू होती है जब सारी दुनिया घरों तक सिमटकर रह गई थी. नेटफ्लिक्स पर 2020 की सीरीज 'द क्वीनंस गैम्बिट' ने दुनिया भर में शतरंज के प्रति दिलचस्पी की ऐसी लहर पैदा की कि कई लोग ऑनलाइन शतरंज खेलने लगे. मगर अपने यहां भारत में एक राजा था, और उतने राजसी ठाठबाट से लैस भी नहीं था, जो अपनी तरफ से पूरा जोर लगा रहा था. उसका नाम? विश्वनाथन आनंद.

अभी-अभी 50 वर्ष के होने पर पांच बार के विश्व चैंपियन का अपने खेल के करियर से कुछ पीछे हटकर खेल को लौटाने का फैसला भारतीय शतरंज के लिए खेल को बदल देने वाली चाल बन गया.

आनंद ने दिसंबर 2020 में वेस्टब्रिज कैपिटल के साथ साझेदारी में वेस्टब्रिज आनंद चेस एकेडमी (डब्ल्यूएसीए) शुरू की और अपनी देख-रेख में लेने के लिए कुछेक संभावनाशील ग्रैंडमास्टरों की पहचान की. आनंद ने इंडिया टुडे से कहा, ''भारत पिछले दो-एक दशकों से यूथ चैंपियनशिप में सबसे दमदार देशों में से एक रहा है. हमने अपने लिए जो लक्ष्य तय किया, वह यह था कि अपने सबसे प्रतिभावान खिलाड़ियों की शीर्ष में आने में मदद करें.''

विश्वनाथन आनंद

आनंद की देखरेख और मार्गदर्शन और ग्रेजगोरज गजेवस्की, अर्तुर युसुपोव तथा बोरिस गेलफैंड सरीखे शीर्ष ग्रैंडमास्टरों के साथ ऑनलाइन प्रशिक्षण के सबसे पहले लाभार्थियों में गुकेश, प्रज्ञान, सरीन और रौनक साधवानी थे. गुकेश कहते हैं, ''विशी सर का योगदान सबसे बड़ा है. उन्होंने और वेस्टब्रिज ने प्रतिभाएं खोजने और उन्हें गजब का सहारा देने का बड़ा काम किया. हम बहुत कड़ी मेहनत कर रहे थे, और हमारे पास बेहतरीन टेक्नोलॉजी भी थी.''

प्रज्ञा इतना और जोड़ते हैं, ''2020 में हमारे पास टूर्नामेंट नहीं थे, इसलिए कक्षाएं सही वक्त पर आईं और हम सब सत्र में हिस्सा लेने के लिए उत्साहित थे. आप विशी सर से किसी भी विषय पर चर्चा कर सकते हैं, किस पर ध्यान दें, खेल में क्या कमी है...''

कास्परोव के लोकप्रिय कथन को थोड़ा बदलकर कहें तो विशी की संततियों ने हंगामा बरपाने में ज्यादा वक्त नहीं लिया. चेन्नै में हुए 2022 के चेस ओलंपियाड में पुरुष और महिला दोनों टीमों ने कांस्य पदक जीते, तो गुकेश और निहाल ने व्यक्तिगत स्वर्ण पदक भी जीते. पुरुष और महिला टीमों ने हांग्जो में हुए 2022 के एशियाई खेलों में रजत पदक भी जीते.

आनंद कहते हैं, ''मैंने देखा कि गुकेश बहुत प्रतिभावान था. गुकेश और प्रज्ञा, उनके वर्क एथिक चरम और अप्रत्याशित स्तर पर थे. निहाल थोड़ा ज्यादा रहस्यमयी था. वे सब बहुत महत्वाकांक्षी थे. मैंने इस पैटर्न पर भी गौर किया कि वे सब एक दूसरे को प्रेरित करते थे. ज्यों ही एक के हाथ कुछ लगा, दूसरे भी उत्साह और प्रेरणा से भर जाते.''

आनंद तो मास्टरमाइंड थे ही, कई दूसरे कारकों ने भी युवा होनहारों के उभार को प्रोत्साहित किया. आईएम (इंटरनेशनल मास्टर) और जीएम की पहली पीढ़ी ने कोचिंग एकेडमियां शुरू कीं, जिन्होंने विष्णु प्रसन्ना (गुकेश के लंबे वक्त के कोच में से एक), आर.बी. रमेश (प्रज्ञा और वैशाली के कोच), श्रीनाथ नारायणन (अर्जुन, निहाल और दिव्या) और अभिजीत कुंटे सरीखे खिलाड़ी दिए. आनंद कहना पसंद करते हैं कि उन्होंने शतरंज की 'स्वर्णिम पीढ़ी' को कोचिंग दी.

घरों में शतरंज की स्ट्रीमिंग

भारत में शतरंज के बढ़ते आकर्षण का श्रेय उन्हें भी जाता है जिन पर किसी को जरा शक नहीं हो सकता—स्टैंड-अप कॉमेडियन. लोकप्रिय कॉमेडियन और खुद शतरंज के शौकीन समय रैना ने 2022 में अपने यूट्यूब चैनल 'कॉमेडियन ओवर द बोर्ड' पर तन्मय भट्ट, बिस्व कल्याण रथ, अनिर्बान दासगुप्ता और ऐसे ही दूसरे साथीजनों के साथ गेम स्ट्रीम करना शुरू किया.

मार्च 2023 में रैना ने गुकेश के साथ गेम खेला और जीत की स्थिति में होने के बाद भी हार गए. चेसबेस इंडिया के यूट्यूब चैनल पर स्ट्रीम किया गया सात मिनट का यह वीडियो अब तक 73 लाख व्यूज बटोर चुका है. समय की बातूनी और हंसोड़ कमेंटरी ने शतरंज के घुग्घू और खूसटों का खेल होने की धारणा को बदलने में अहम भूमिका निभाई. या जैसा कि अपना मजाकिया पहलू दिखाते हुए आनंद ने समय से कहा: ''तुमने शतरंज को मजाक में बदल दिया है.''

शतरंज की बिरादरी समय और बिस्व कल्याण सरीखे ऑनलाइन रचयिताओं के असर को स्वीकार करती है. बिस्व ने तो भारत में शतरंज की विलक्षण प्रतिभाओं पर डॉक्यूमेंटरी कैंडिडेट्स का सह-निर्देशन भी किया है, जो 2025 में रिलीज होगी.

शतरंज की जानी-मानी कमेंटेटर और आईएम तानिया सचदेव, जो ओलंपियाड में स्वर्ण पदक विजेता टीम का हिस्सा भी थीं, कहती हैं, ''शतरंज के बारे में मुश्किल हिस्सा यह था कि उसे कठिन और डराने वाला खेल समझा जाता था. हमें कांच की वह दीवार तोड़नी पड़ी. समय के जैसी गैर-पेशेवर शतरंज खिलाड़ी की आवाज से खेल वाकई कई गुना बढ़ा.''

सचदेव और आनंद दोनों ने सागर शाह और चेसबेस इंडिया की कोशिशों की भी तारीफ की, जिसने इस ''खेल को दर्शकों के लिए खोल दिया.'' सागर ने 2015 में भारत में शतरंज के परिदृश्य को कवर करना शुरू किया, सबसे युवा और होनहार खिलाड़ियों के इंटरव्यू किए, और साथ ही शतरंज के शौकीनों को तकनीकी सामग्री मुहैया की ताकि वे अपना हुनर निखार सकें.

हाल ही में समय और सागर मुंबई के द हैबिटैट में आयोजित विश्व शतरंज चैंपियनशिप के 14 गेमों की बिल्कुल पहले-पहल स्क्रीनिंग-सह-लाइवस्ट्रीमिंग के केंद्र में थे. चेस डॉट कॉम के साथ भागीदारी में, आनंद के अलावा समय और भट्ट सरीखे कॉमेडियन और दूसरों ने सागर और तानिया सचदेव के साथ जुड़कर लंबे-लंबे गेमों में कमेंटरी की. सचदेव, जिन्हें रेड बुल का सहारा हासिल है, कहती हैं, ''शतरंज में विजुअल नहीं बोलते. आपको शतरंज के प्रति सच्चा रहते हुए उसे सुलभ और मनोरंजक बनाना होता है. आप दर्शकों को यह महसूस करता नहीं छोड़ सकते कि ये हो क्या रहा है.''

दर्शकों ने गतिरोध तोड़ने वाली चालों पर खुशी जाहिर की, गुकेश का गुणगान किया और उन्हें समर्पित एक गाना 'गो, गो, गुकी गो' लाइव गाया. ऑनलाइन दर्शक संख्या भी अच्छी-खासी थी. हरेक गेम औसतन 15 लाख दर्शकों तक पहुंचा, जिसमें सबसे ज्यादा 39 लाख व्यूज फाइनल गेम में आए. एक और आशाजनक आंकड़ा—70 फीसद ऑनलाइन दर्शक 19-34 वर्ष आयु वर्ग के थे. तमिलनाडु तो भारत में शतरंज का गढ़ है, लाइवस्ट्रीम के ज्यादा व्यूज महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक से आए.

अगर पिछले दो साल के प्रदर्शन की मानें तो भारत के शतरंज का भविष्य बहुत ही संभावनाओं से भरा जान पड़ता है. पेशेवर खिलाड़ियों के लिए यह महंगा खेल है, जिसमें प्रशिक्षण के अलावा टूर्नामेंटों में हिस्सा लेने की खातिर विदेश जाने के लिए धन जुटाना पड़ता है. खुशकिस्मती से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के अलावा और ज्यादा निजी कंपनियां भी भारत के चमकते सितारों को सहारा देने के लिए बड़ा धन दांव पर लगा रही हैं.

गुकेश और वैशाली के पास वेस्टब्रिज है, तो अर्जुन और प्रज्ञा की पीठ पर क्रमश: क्वांटबॉक्स और अदाणी का हाथ है, और निहाल सरीन को अक्षयकल्प मिल गया है. अखिल भारतीय शतरंज महासंघ भी है. उसके 65 करोड़ रु. के सालाना बजट का एक हिस्सा सात अलग-अलग आयु श्रेणियों (19 वर्ष तक) के 42 शीर्ष खिलाड़ियों के अनुबंधों और 320 अन्य चुनिंदा खिलाड़ियों की मुफ्त कोचिंग में खर्च होता है. महासंघ के प्रेसिडेंट नितिन नारंग कहते हैं, ''खिलाड़ी अक्सर वित्तीय परेशानियों से अपना जुनून गंवा बैठते हैं, लेकिन वित्तीय सहारे और दूसरी सुविधाओं के बल पर वे उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की बेहतर स्थिति में होंगे.''

अब सवाल यह है कि क्या वे शोर-शराबे से बचकर खेल पर ध्यान दे सकते हैं, तब तो और भी जब सोशल मीडिया के इस जमाने में महीन जांच-पड़ताल लगातार चलती रहती है. आनंद कहते हैं, ''मैंने उन्हें बताया है कि मैं कैसे करता हूं और मैंने कैसे किया. कइयों ने मुझे इस बात से प्रभावित किया कि कितनी तेजी से वे अपने दम पर अपनी अनूठी शख्सीयत और काबिलियत का विकास करते हुए आत्मविश्वास के साथ परिपक्व हो गए.''

अच्छी बात यह है कि शतरंज के ग्रैंडमास्टरों की जेन ज़ी पीढ़ी प्रतिबद्ध है और खेल के राजदूतों के रूप में अपनी भूमिका को अहमियत देती है. 2016 से ही गुकेश के विकास पर नजर रख रहे सागर शाह कहते हैं, ''गुकेश भारत का अगला विराट कोहली होगा. जब वह कहता है कि 'मैं जिंदगी में किसी भी मामले में छल करना नहीं चाहता', तो यही उसका व्यक्तित्व है. वे सब परिश्रमी, ईमानदार और नतीजे से ज्यादा प्रक्रियाओं को तवज्जो देने वाले हैं. नौजवानों के लिए बेहतरीन रोल मॉडल हैं.''

गंभीर माने जाने वाले खेल में गुकेश रजनी-सरीखा स्वैगर लेकर आए हैं, शतरंज की बिसात पर वे लंबे-लंबे डग भरते हैं या गेम के दौरान अपनी शर्ट का कॉलर ठीक करते हैं. महान खिलाड़ियों की जीवनियों के मुरीद गुकेश स्वस्थ दिमाग की अहमियत समझते हैं और यही वजह है कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के साथ काम करके मशहूर हुए मेंटल कंडिशनिंग कोच पैडी अप्टन को अपनी टीम में लिया.

उनमें एक आत्मसजगता भी है, जिसकी वजह से विश्व चैंपियन बनने के बाद भी उन्होंने घोषणा की कि वे सर्वश्रेष्ठ नहीं हैं और वजनदार मैग्नस कार्लसन के बराबर पहुंचने के लिए उन्हें अभी बहुत कुछ करना है. अगर विश्व चैंपियनशिप के गेमों की मानें तो गुकेश साहसी और निर्भीक चैलेंजर हैं जो हार मानने से इनकार करते हैं. वे दृढ़निश्चय के साथ आंखें बंद करके बैठे रहते हैं और उन चालों का अनुमान लगाते रहते हैं जिनसे विरोधी चकमा खा जाएं. लिरेन तो निश्चय ही थके और क्लांत दिखाई दे रहे थे. गेमों में से एक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में गुकेश ने कहा, ''मुझे बस शतरंज खेलना अच्छा लगता है.''

गुकेश और उनकी पीढ़ी के दूसरे खिलाड़ियों की उपलब्धियों के सच्चे प्रतिफल शायद आने वाले दशकों में दिखेंगे. फिलहाल, उथल-पुथल भरे साल के अंत में, भारत के युवा ग्रैंडमास्टरों ने इतना काफी तो कर ही दिया है कि हमारा सामूहिक गौरव परवान चढ़ सके और इस बात का औचित्य सिद्ध किया जा सके कि इंडिया टुडे के संपादकों ने उन्हें 2024 का सुर्खियों का सरताज क्यों घोषित किया है. उम्मीद है कि भारत की शतरंज प्रजाति आने वाले कई और साल चौसठ चौखानों पर राज करेगी.

सुनहरी पीढ़ी ने गाड़े झंडे

› अप्रैल 2024: 17 साल के गुकेश डी. ने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीता, विश्व चैंपियनशिप में सबसे कम उम्र के चुनौती देने वाले खिलाड़ी बने. 

› जून: 18 साल की दिव्या देशमुख ने विश्व जूनियर महिला खिताब जीता, महिला रैंकिंग में टॉप 20 में पहुंचीं.

› सितंबर: शतरंज ओलंपियाड में दोहरा स्वर्ण पदक, महिला और पुरुष टीम ने जीता. गुकेश, अर्जुन एरिगैसी, वंतिका अग्रवाल और देशमुख ने व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता.

›नवंबर: बस तीन साल के दौरान, अनीश सरकार दुनिया के सबसे कम उम्र के रेटिंग वाले खिलाड़ी बने: एलो* रेटिंग : 1555

›दिसंबर: अर्जुन एरिगैसी एलो रेटिंग 2800 को पार करने वाले विश्वनाथन आनंद के बाद दूसरे खिलाड़ी बने 

›18 साल की उम्र में गुकेश चीन के डिंग लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बने

›85 ग्रैंडमास्टर भारत के हैं, इससे अधिक सिर्फ रूस, अमेरिका, जर्मनी और यूक्रेन के हैं

›3 महिला ग्रैंडमास्टर हैं: कोनेरु हंपी, हरिका द्रोणावल्ली और आर. वैशाली सक्रिय खिलाड़ी हैं

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दिव्या देशमुख, आईएम, वर्ल्ड जूनियर गर्ल्स चैंपियन

दिव्या देशमुख, आईएम, वर्ल्ड जूनियर गर्ल्स चैंपियन

उबाऊ. शतरंज के बारे में पांच वर्षीया दिव्या देशमुख की पहली प्रतिक्रिया यही थी. फिर प्रतिस्पर्धा की लहर ने जकड़ लिया. नागपुर की तीसरी ग्रैंडमास्टर और यह गौरव हासिल करने वाली मात्र चौथी महिला बनने के लिए प्राणपण से जुटी देशमुख कहती हैं, ''टूर्नामेंट खेलना शुरू करने के बाद मैं तालिका में शीर्ष पर रहना और खेल में सर्वश्रेष्ठ होना चाहती थी.''

2024 नई कामयाबियां लेकर आया, जिसमें दिव्या ने बुडापेस्ट में हुए 45वें चेस ओलंपियाड में टीम का स्वर्ण और व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता, लड़कियों की विश्व जूनियर चैंपियन बनीं, और 2500 एलो रेटिंग पार की. अब 2025 के लिए उनके लक्ष्य सीधे-सरल हैं— ''मानसिक और शारीरिक सेहत पर ध्यान दूं, स्वस्थ और खुश रहूं.''

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अर्जुन एरिगैसी, 21 वर्ष, ग्रैंडमास्टर

अर्जुन एरिगैसी, ग्रैंडमास्टर

गुकेश से ऊंची नंबर 4 की रैंक और बेहतर एलो रेटिंग के साथ तेलंगाना में हनमकोंडा के इस लड़के को सिंहासन के लिए चैंपियन को चुनौती देने वाले सबसे संभावित खिलाड़ी के तौर पर देखा जा रहा था. 

वेस्टब्रिज एकेडमी के तत्कालीन शिष्य का लक्ष्य कैंडिडेट्स टूर्नामेंट 2026 के लिए क्वालिफाई करना होगा. शतरंज के रैपिड और ब्लिट्ज फॉर्मेट में निपुण अर्जुन अपनी स्थिति को लेकर स्पष्ट होने और जटिल चालों से अपने विरोधियों को हक्का-बक्का कर देने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं.

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आर. प्रज्ञानंद, 19 वर्ष, वैशाली रमेशबाबू, 23 वर्ष, ग्रैंडमास्टर 

वे सोचती हैं कि वह 'अस्त-व्यस्त' है; वे सोचते हैं कि वह 'चीजें मुकम्मल ढंग से' करती हैं, जो कई बार 'खिजाऊ' हो सकता है. दरअसल उन्हें बांधने वाली चीज है शतरंज के प्रति उनकी बेलगाम मोहब्बत. वैशाली से चार साल जूनियर प्रज्ञानंद ने अपनी बड़ी बहन को खेलते देखने के बाद इस खेल को अपनाया. वे ग्रैंडमास्टर का तमगा हासिल करने वाली भाई-बहन की पहली जोड़ी बने और प्रतिष्ठित कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई किया.

पिता रमेशबाबू उनके मीडिया मैनेजमेंट और खेल कैलेंडर का काम संभालते हैं, तो मां नागलक्ष्मी प्रमुख टूर्नामेंटों में लगातार उनके साथ मौजूद रहती हैं. प्रज्ञानंद कहते हैं, ''रुपए-पैसे को लेकर कई मुश्किल घड़ियां होती थीं लेकिन हमें कभी तकलीफ महसूस नहीं हुई क्योंकि उन्होंने कभी हमें इस बारे में बताया ही नहीं. मुश्किल मुकाबलों के दौरान उन्होंने हमारा मनोबल बढ़ाया और आगे बढ़ते रहने में मदद की. हमारे सफर में वे बेहद अहम रहे हैं.''

कैसे बनते हैं ग्रैंडमास्टर 

›गणना और सूझ-बूझ: खेल की गहरी समझ और प्रतिद्वंद्वी की चाल को भांपने की क्षमता.

›एकाग्रता: आखिर तक घंटों एकदम फोकस बनाए रखना क्योंकि हर चाल पर दबाव बढ़ता जाता है.

›दिमागी धैर्य: लगातार उच्च स्तर पर खेलने के लिए पूरी दिमागी ऊर्जा बोर्ड पर लगाए रखने की जरूरत.

›आत्मविश्वास: जीतने की अदम्य इच्छा.

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