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इंडिया टुडे विशेषांक : वे 50 निर्णायक पल, जिन्होंने देश पर सबसे ज्यादा असर डाला

इंडिया टुडे के इस विशेषांक में उन सभी बड़ी घटनाओं को शामिल किया गया है जिन्होंने गहराई से देश को गढ़ा और उनका असर अनगिनत तरीकों से अब भी महसूस होता रहता है

कवर फोटो : निर्णायक पल
कवर फोटो : निर्णायक पल
अपडेटेड 13 जनवरी , 2025

वर्ष 1975 में अपनी स्थापना के बाद से इंडिया टुडे (अंग्रेजी) लगातार देशवासियों की कई पीढ़ियों के साथ कदमताल करती रही है, और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हमारे देश की उथल-पुथल भरी और रोमांचक यात्रा के ज्यादातर हिस्से में उनके साथ-साथ चली है. अब प्रिंट में अपने 50वें वर्ष की कगार पर किस्म-किस्म की भावनाओं के साथ पीछे मुड़कर देखने की हमारी सहज इच्छा को आप जरूर समझेंगे.

नॉस्टेल्जिया या अतीत की ललक तो खैर है ही, लेकिन देश और इंडिया टुडे के पिछले पन्नों के इन 50 निर्णायक पलों के इस विशेष चयन को संकलित करते हुए हमने उन घटनाओं और प्रसंगों पर ध्यान केंद्रित किया, जिन्होंने हमारी सामूहिक कल्पना और राष्ट्रीय भावना को पकड़ा. उनमें कई मील के पत्थर हैं.

2005 के सूचना के अधिकार अधिनियम से लेकर 1994 की सौंदर्य प्रतियोगिताओं में आलंकारिक जीत तक. 1999 में करगिल की मुश्किल फतह से 1983 में क्रिकेट विश्व कप की चकराने वाली जीत तक.

उनमें हरेक घटना ने गहराई से देश को गढ़ा और उनका असर अनगिनत तरीकों से अब भी महसूस होता रहता है. बेशक, इन पिछले दशकों की हरेक बड़ी घटना के अच्छे नतीजे नहीं निकले और न ही हर घटना के सबक सीखे गए. हम आखिरकार लगातार प्रयासरत हैं, खासकर जब हमारे इतिहास का कोई फुकुयामा के कहे जैसा अंत होता नहीं दिखता—न ही हम ऐसी संभावना के इच्छुक हैं!

ऐसे अंधेरे अध्यायों को हमने इंडिया टुडे के विशेषांक में शामिल नहीं किया है, पर यह उन अच्छे और हितकर मील के पत्थरों पर जरूर गौर करता है जिनमें त्रासदियों या यहां तक कि भीषण अपराधों ने देशवासियों को बेहतर करने—या कम से कम कोशिश करने की ऊर्जा से भर दिया.

इन पन्नों को आईने की तरह लीजिए—हां, चमकदार पन्नों का आईना, लेकिन फिर भी प्रेरणादायक.

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एसएलवी-3: अंतरिक्ष में भारत का दखल​​​​​​​

आपरेशन मेघदूत की कहानी, जब जीता भारत दुनिया का सबसे ऊंचा जंग का मैदान​​​​​​​

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पंचायती राज : राजीव गांधी का वह काम जिसे पी.वी. नरसिंह राव ने पूरा किया​​​​​​​

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