अभी एक साल पहले की ही बात है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की लहर पर सवार होकर भगवंत मान ने सत्ता की कमान संभाली थी, जब मतदाताओं ने राज्य की दो सबसे शक्तिशाली पार्टियों कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) को बुरी तरह नकार दिया था. 1966 में इस सीमावर्ती राज्य के वजूद में आने के बाद से ये दोनों दल ही बारी-बारी यहां शासन करते रहे हैं.
49 साल के मान भी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की तरह राजनीति में आने से पहले लोकप्रिय कॉमेडियन थे. राजनीति में आप की नई बयार के साथ बदलाव के उनके वादे ने मतदाताओं को खूब लुभाया, जिनका कथित राजनैतिक चालबाजियों के कारण राज्य के पुराने दलों से मोहभंग हो चुका था.
अब, यही मान 16 मार्च को जब पंजाब में पहली आप सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में एक साल पूरा करने वाले हैं तो मतदाताओं के बीच उत्साह काफूर हो चुका है. मान को विरासत में ऐसा बीमार राज्य मिला, जो दो दशक तक सिख उग्रवाद झेलने के बाद कर्ज के बोझ से दबा था, प्राकृतिक संसाधनों के अति-दोहन के कारण किसानों और बेरोजगार युवाओं के आक्रोश का सामना कर रहा था, और नशे में उड़ते पंजाब की कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में तो किसी से कुछ छिपा नहीं है.
जाहिर है, किसी भी सियासी दल के नेता के लिए इस तरह के अस्थिर राज्य का प्रशासन संभालना और स्थितियां बदलना कोई आसान काम नहीं होने वाला था. और फिर, मान तो सियासत में नौसिखिया ही थे. इन समस्याओं का कोई त्वरित समाधान मुमकिन भी नहीं था.
इसलिए एक साल बाद मान के लिए यह साबित करना बाकी है कि वे वाकई इस दायित्व के काबिल हैं. धार्मिक कट्टरपंथियों के उत्पात, कानून-व्यवस्था में गंभीर खामियां दिखने, राजस्व में बड़ी गिरावट से राज्य की वित्तीय सेहत और बिगड़ने और सरकारी अधिकारियों को समय पर वेतन देने के लिए पर्याप्त पैसा तक न होने जैसे कारणों से पंजाब एक बार फिर उबल रहा है.
विकास संबंधी मामलों के जाने-माने विशेषज्ञ और राजनैतिक टिप्पणीकार डॉ. प्रमोद कुमार कहते हैं, ''दुर्भाग्य से, अब तक ऐसा कुछ नजर नहीं आया है कि भगवंत मान या उनकी पार्टी को राज्य के इतिहास की कोई समझ है, और राज्य की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने का उनका कोई स्पष्ट दृष्टिकोण है. वे पंजाब के इतिहास और वास्तविक सामाजिक स्थितियों से कटे हुए दिखते हैं और अपने ही अंदाज में काम कर रहे हैं. इसीलिए राज्य बदहाली का शिकार बना हुआ है.’’
सिर उठा रहा सिख कट्टरपंथ
अशांत राज्य में सिख कट्टरपंथी तत्व और भावनाएं चिंताजनक ढंग से बढ़ती दिख रही हैं, जिसने कानून-व्यवस्था की स्थिति और बदतर होती जा रही है. वैसे तो यह समस्या उसी समय शुरू हो गई थी जब मान ने पारी संभाली थी. पिछले साल जून में, खालिस्तान समर्थक सिमरनजीत मान ने संगरूर संसदीय सीट पर उपचुनाव में आप उम्मीदवार गुरमेल सिंह को हराकर भगवंत मान को चौंका दिया था, जो मुख्यमंत्री के इस्तीफा देने के कारण खाली हुई थी.
उसी महीने, एक अन्य खालिस्तान समर्थक समूह ने विवादास्पद ऑपरेशन ब्लू स्टार की 38वीं बरसी मनाने के लिए अमृतसर में 'आजादी मार्च’ निकाला. यह मार्च पुलिस सुरक्षा के बीच निकाला गया. फिर, जुलाई मध्य में सरकारी स्वामित्व वाले पीआरटीसी को अपनी कुछ बसों में लगाई गईं आतंकवादियों जरनैल सिंह भिंडरावाले और जगतार सिंह हवारा की तस्वीरों को हटाने संबंधी आदेश वापस लेने को मजबूर होना पड़ा. स्थिति यह है कि उनकी तस्वीरें अब पूरे राज्य में कई जगह सरकारी भवनों और पार्कों की दीवारों पर बनी ग्रेफिटी पर भी नजर आ जाती हैं.
मान ने स्थिति कैसे संभाली? उन्होंने तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) वी.के. भावरा को छुट्टी पर भेज दिया और एक अन्य 1992 बैच के अधिकारी गौरव यादव को कार्यवाहक डीजीपी बनाया. कहा जाता है कि मान ने यादव को यह अहम पद सौंपने के लिए नियम-कायदों को भी दरकिनार कर दिया. एक नियमित डीजीपी की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव सूची में तत्कालीन तीन शीर्ष अधिकारियों के नाम होने चाहिए. चयन यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) के साथ परामर्श से किया जाना चाहिए.
यादव तो 1988 बैच के आइपीएस अधिकारी प्रबोध कुमार, संजीव कालरा (1989 बैच) और खुद अपने बैचमेट रहे शरद सत्य चौहान और हरप्रीत सिंह सिद्धू से जूनियर हैं. यही नहीं, नियम यह भी है कि किसी भी राज्य में अधिकतम छह महीने के लिए ही कोई अधिकारी एक गैर-नियमित डीजीपी बना रह सकता है. हालांकि, यह समय-सीमा 4 जनवरी को बीत चुकी है.
लेकिन अब तक न तो केंद्र की तरफ से इस पर कोई आपत्ति जताई गई है और न ही राज्य ने यथास्थिति बदलने का कोई प्रयास किया है. इसलिए, फिलहाल पंजाब में किसी पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति नहीं हो पाई है और यादव ही कार्यवाहक प्रमुख के तौर पर काम कर रहे हैं.
इस बीच, राज्य में 23 फरवरी को भड़की हिंसा ने खतरे की घंटी बजा दी है, जिसकी गूंज दिल्ली तक सुनी गई. यह हिंसा उस समय भड़की जब खालिस्तान समर्थक और 'वारिस पंजाब दे’ नामक गुट के प्रमुख अमृतपाल सिंह संधू और उसके समर्थकों ने पाकिस्तान सीमा से सटे अजनाला कस्बे में एक पुलिस थाने का घेराव किया.
यहां तक कि उन्होंने पुलिस को अपने एक सहयोगी लवप्रीत सिंह 'तूफान’ की स्थानीय अदालत से रिहाई के लिए बाध्य भी कर दिया, जिसे पिछले हफ्ते एक व्यक्ति के अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. प्रदर्शनकारी तलवारें और लाठियां लहराते रहे और अपने सिर पर गुरु ग्रंथ साहिब रखकर थाने पहुंचे अमृतपाल ने भी पुलिस बलों को चुनौती दे डाली.
उसके समर्थकों ने पुलिस पर हमला बोला, जिसमें छह पुलिसवाले घायल हुए. लेकिन हिंसा भड़कने की आशंका से वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने जवाब में फायरिंग का आदेश देने से इनकार कर दिया. इससे यही तस्वीर उभरी कि पुलिस ने समर्पण कर दिया और राज्य में कट्टरपंथी संगठनों को बढ़ावा दिया जा रहा है.
आप के एक सूत्र ने इन आरोपों का खंडन किया, ''बतौर पार्टी हम सच्चे राष्ट्रवादी हैं और भूलकर भी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे राष्ट्रीय हित को जरा भर नुक्सान हो. पंजाब पुलिस देश में सबसे बहादुर है और उसने अकेले दम पर राज्य से आतंकवाद को मिटाया. पुलिस के हाथ बंधे थे क्योंकि गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल की तरह इस्तेमाल करने की कायराना हरकत की गई.’’
इस घटना से तत्काल हरकत में आए अकाल तख्त (सिख धर्म की सबसे बड़ी पीठ) के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने पवित्र धर्म ग्रंथ को प्रदर्शन स्थलों पर ले जाने के मामले की समीक्षा के लिए 15 सिख बुद्धिजीवियों की उपसमिति गठित कर दी. मान ने पंजाबी में ट्वीट किया, ''जो गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल बनाकर थानों में जाते हैं, उन्हें पंजाब और पंजाबियत का 'वारिस’ नहीं कह सकते.’’ अजनाला की घटना के समय मान गुजरात और महाराष्ट्र के दौरे पर थे, उन्होंने इसे इतना ज्यादा गंभीर नहीं माना कि अपनी यात्रा रद्द करके लौट आएं. इसके बजाए, मुंबई में उन्होंने कहा कि ''पंजाब में कानून-व्यवस्था नियंत्रण में है. हम एक शांतिपूर्ण राज्य हैं.’’
कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति
हालांकि, जमीनी हकीकत उनके ऐसे किसी भी दावे से एकदम उलट है. गुरचरण सिंह हवारा (पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या में दोषी ठहराए गए बब्बर खालसा इंटरनेशनल प्रमुख जगतार सिंह हवारा का पालन-पोषण करने वाले पिता) के नेतृत्व वाला कट्टरपंथी समूह कौमी इंसाफ मोर्चा जनवरी की शुरुआत से ही उनके बेटे समेत आठ दोषियों की रिहाई की मांग कर रहा है, जिन्हें 'बंदी सिंह’ कहा जा रहा है.
प्रदर्शनकारियों ने जनवरी के पहले हफ्ते से ही राजधानी चंडीगढ़ को मोहाली से जोड़ने वाले राजमार्ग को अवरुद्ध कर रखा है. फरवरी की शुरुआत में, जब इन प्रदर्शनकारियों ने मान के चंडीगढ़ स्थित आवास पर धावा बोलने की कोशिश की, तो झड़प में 30 पुलिसवाले घायल हो गए. लेकिन पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने और अपराधियों के खिलाफ आरोप-पत्र तैयार करने में थोड़ा समय लगाया.
मान सरकार बरगाड़ी इंसाफ मोर्चा को न्याय दिलाने के वादे के साथ सत्ता में आई थी जो 2015 में बरगाड़ी में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर विरोध जताने के दौरान पुलिस फायरिंग में मारे गए दो प्रदर्शनकारियों के परिवार के साथ 16 दिसंबर, 2021 से बहबल कलां नामक स्थान पर अनिश्चितकालीन धरना दे रहा है.
पिछले महीने, आप विधायक और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक कुंवर विजय प्रताप सिंह ने बेअदबी के मामलों की जांच कर रही विधानसभा की सरकारी आश्वासन कमेटी के अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा दे दिया, क्योंकि गृह सचिव ने ऐसे मामलों में विशेष जांच दल (एसआइटी) की अंतिम रिपोर्ट साझा करने से इनकार कर दिया था. अभी हाल में मोर्चा कार्यकर्ताओं ने बठिंडा-अमृतसर राजमार्ग अनिश्चितकाल के लिए अवरुद्ध कर दिया था.
अजनाला थाने की घटना के तुरंत बाद संयोग से आप सरकार ने घोषणा की कि 2015 की बहबल कलां और कोटकपुरा पुलिस गोलीबारी की घटनाओं और उससे पहले हुई बेअदबी की घटनाओं के सिलसिले में एसआइटी ने आधा दर्जन वरिष्ठ पुलिसवालों के अलावा शिरोमणि अकाली दल नेता तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल को आरोपित किया है.
मान ने कहा, ''हम न्याय दिलाने के वादे पर अडिग हैं. चाहे कोई मंत्री हो या उनका कोई सहयोगी, कानून सबके लिए बराबर है. सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता.’’ एक तरफ जहां मोर्चा इस पर आभार जताने के लिए 5 मार्च को रैली निकालने की योजना बना रहा है, वहीं शिरोमणि अकाली दल के महासचिव परमबंस सिंह रोमाना ने कहा, ''मुख्यमंत्री भगवंत मान को अपनी ऊर्जा राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने में लगानी चाहिए.
हमने देखा कि कैसे अजनाला में पुलिस थाने पर हमला बोला गया, गैंगस्टर जेलों से क्राइम सिंडिकेट चला रहे हैं और बाहर के गैंगस्टर जेलों में अपने दुश्मनों को मरवा रहे हैं. पूरा राज्य एक गंभीर संकट से गुजर रहा है. और ऐसे ज्वलंत मुद्दों से निबटने के बजाए आप सरकार बेअदबी के मुद्दे पर राजनीति करने में जुटी है.’’
असली समस्या यह है कि पंजाब में उदार या नरमपंथी राजनीति की जगह सिकुड़ती गई है, खासकर जबसे आकाली दल और कांग्रेस से पिछले पांच साल में सिखों के युवा आकांक्षी तबके का रोजगार के अवरसरों के अभाव और भारी भ्रष्टाचार की वजह से मोहभंग हुआ है और वे आसानी से उपलब्ध नशीले पदार्थों के जाल में फंस गए.
बादल परिवार की कमजोरी और अकाली दल में टूट की वजह से उसका पंथिक जनाधार तथा सिख धार्मिक मामलात, खासकर ताकतवर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) पर उसकी पकड़ ढीली पड़ी, जो पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है. 2022 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल की वोट हिस्सेदारी 2017 के 28 फीसद से घटकर 18 फीसद पर आ गई और कुल 117 सीटों में बस 15 सीटें ही उसे मिल पाईं.
कांग्रेस भी, चुनाव से पहले दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कई अन्य विधायकों के पार्टी छोड़ जाने से अपनी वोट हिस्सेदारी में 38 फीसद से घटकर 23 फीसद पर आ गई और उसकी सीटें 77 से घटकर महज 18 रह गईं. उनके दायरे के वोट आप की ओर गए, जिसकी वोट हिस्सेदारी 23 फीसद से बढ़कर 42 फीसद हो गई और सीटें 20 से बढ़कर ऐतिहासिक रूप से 92 हो गईं. फिर भी, पंथिक मामलों में आप का आसर सीमित ही रहा.
इससे पैदा हुआ शून्य अमरिंदर पाल और दूसरे नए-नवेले के लिए दोहन का कारण बना. अजनाला घटना से साफ है कि सत्तारूढ़ पार्टी उनसे मुकाबले के बदले उनकी खुशामद में लगी है इसलिए आलोचकों के मुताबिक उनकी लोकप्रियता में इजाफे की यह भी एक वजह है. हालांकि आप के सूत्र इस आरोप से इनकार करते हैं. वे पूछते हैं, ''किसने कोटकपुरा-बहबल कलां के दोषियों पर इतने वर्षों बाद पकड़ा? अगर कोई सरकार पुराने मामलों को हल करने और इंसाफ के प्रति गंभीर है तो वह आप की सरकार है.’’
पंजाब के गैंग
सिख कट्टरपंथियों के अलावा कई गैंगस्टर हैं, जिनके तार पाकिस्तान से नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी के लिए और निशानेवार हत्याओं के लिए पाकिस्तान यूरोप और उत्तरी अमेरिका में छिपे आतंकवादियों के साथ जुड़ रहे हैं. नवंबर के मध्य में सिरसा के रहने वाले डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी प्रदीप सिंह की कोटकपुरा में हत्या को अंजाम देने का शक कनाडा में रह रहे गैंगस्टर सतविंदरजीत सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ के गुर्गे पर है.
यह वही गैंगस्टर है जिसने पिछली मई में गायक से नेता बने सिद्धू मूसेवाला की हत्या का तानाबाना बुनने की जिम्मेदारी ली थी. दिसंबर में मान ने दावा किया कि बराड़ को अमेरिका में गिरफ्तार कर लिया गया है और जल्द प्रत्यर्पण करवाकर भारत लाया जाएगा. मगर तब वे शर्मसार हो गए जब इस गैंगस्टर ने खुद न्यूज चैनलों पर आकर उनके दावे की हवा निकाल दी.
इन गिरोहों से निपटने के लिए मान ने पांच गैंगस्टर को खत्म और 564 को गिरफ्तार करने वाले तेजतर्रार खुफिया अफसर प्रमोद बान के मातहत ऐंटी-गैंगस्टर टास्क फोर्स बनाया. 26 फरवरी को गोइंदवाल जेल में बंद दो गैंगस्टर—मनदीप तूफान और मोहन सिंह—प्रतिद्वंद्वी गैंग के हमले में मारे गए और तीसरा केशव गंभीर रूप से घायल हुआ.
ये दोनों मूसेवाला की हत्या के आरोप में जेल में थे. मगर ज्यादातर नामी-गिरामी मामले केंद्रीय एजेंसियां या दिल्ली पुलिस संभाल रही हैं, चाहे वह मूसेवाला की हत्या हो, प्रदीप सिंह के शूटरों की धरपकड़ या गैंगस्टरों पर कड़ी कार्रवाई. पंजाब में सक्रिय गिरोहों की उग्रवादियों के साथ साठगांठ की जांच पिछले साल सितंबर से ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने अपने हाथों में ले ली.
पंजाब के एक शीर्ष पुलिस अफसर का कहना है कि गिरफ्तारी से इन गिरोहों का दबदबा कम हो जाता है, पर नए गिरोह आते जा रहे हैं. वे मानते हैं कि उनका पक्ष हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है क्योंकि इन गिरोहों के पूरे नेटवर्क को खत्म करना मुश्किल लगता है, खासकर जब प्रमुख कड़ियां विदेशों से जुड़ी हैं और उनके सरगना अमेरिका, कनाडा, थाईलैंड, मलेशिया, हांगकांग और ऑस्ट्रेलिया सरीखे देशों में छुपे हैं और कई गैंगस्टरों का जेल से काम करना जारी है.
पुलिस के मुताबिक, पंजाब में कम से कम 73 गैंग सक्रिय हैं. कार्यवाहक डीजीपी यादव का मानना है कि कई गैंगस्टरों का अब भी तत्कालीन उग्रवादियों से निर्देश लेना जारी है. एनआइए के डोसियर में कई गैंगस्टरों के सीमा पार पाकिस्तान में रह रहे लखबीर सिंह रोडे, परमजीत पंजवार, हरविंदर सिंह रिंदा जैसे दुर्दांत उग्रवादियों के साथ रिश्तों का जिक्र है. इसकी वजह से पंजाब की कमान किसी मजबूत शासक के हाथ में होना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है.
अपने मालिक की आवाज?
जानकार का कहना है कि असल चिंता यह है कि अपने पूर्ववर्तियों बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के विपरीत मान का पंथिक राजनीति में गहरी पैठ का कोई इतिहास नहीं है. वे कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि से आए हैं और नेताओं, अफसरशाही, पुलिस और राज्य की चुनौतियों के बारे में अपने व्यंग्यबाणों से चर्चा में आए.
मगर अब वे खुद हंसी का पात्र बन गए हैं. पिछले सितंबर में मान की जर्मनी यात्रा कूटनीतिक दु:स्वप्न बन गई, जब आलीशान कार बनाने वाली कंपनी बीएमडब्ल्यू के कारखाने का दौरा करने के बाद उन्होंने दावा किया कि जर्मन मोटर कंपनी ने पंजाब में इकाई स्थापित करने का फैसला किया है. बीएमडब्ल्यू ने उसी शाम इसका खंडन कर दिया. इस तरह की गफलतें उनकी नातजुर्बेकारी को ही आगे लाती हैं.
मान की हरकतें ऐसी छाप छोड़ती हैं कि वे आप के दिल्ली स्थित आला नेताओं के हाथ की कठपुतली हैं. यह आप के ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह राज्य को चलाने के आरोप को भी न्यौता देता है, खासकर जब मान सरकार ने राज्य के धन और संसाधनों का इस्तेमाल कथित तौर पर पिछले साल गुजरात, गोवा और हिमाचल प्रदेश में पार्टी की चुनावी जरूरतों की सहायता के लिए कीं. मसलन, फरवरी में उन्होंने गुजरात के किसानों से प्याज खरीदने की पेशकश की. इससे पंजाब के किसान नाराज हो गए. उन्होंने शिकायत की कि मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद सरकार ने उनके उगाए दलहन तो अभी तक खरीदे नहीं हैं.
पिछले साल मान ने राष्ट्रीय राजधानी में केजरीवाल की अगुआई वाली दिल्ली सरकार के साथ ज्ञान की साझेदारी के एक समझौते पर दस्तखत किए. उसके बाद जुलाई में आप के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा को सलाहकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. आरोप यह है कि राजकाज के ज्यादातर फैसले चड्ढा ही लेते हैं.
हालांकि वे ऐसी किसी चीज से इनकार करते हैं और इसे सरकार को बदनाम करने का अभियान कहकर खारिज कर देते हैं और अपने साथियों से कहते हैं, ''मैं भगवंत मान जैसे सुपर-डुपर सीएम का छोटा भाई हूं और उनके काबिल निर्देश तथा नेतृत्व में काम करता हूं.’’
रिमोट के जरिए केजरीवाल के सरकार चलाने के आरोप पर आप के सूत्र कहते हैं, ''हमने चुनाव केजरीवाल की गारंटी पर लड़ा और लोगों ने हमें वोट दिया, क्योंकि उन्होंने दिल्ली में हमारा राजकाज देखा और लाभान्वित हुए. वे उसे पंजाब में देखना चाहते हैं.’’ मान ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आप के मूल नारे पर अमल के लिए कदम उठाए, हालांकि दिल्ली में उसके उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने और हाल में इस्तीफा देने से उसकी राष्ट्रीय साख को धक्का लगा है.
हालांकि कुछ भ्रष्ट नेताओं और अफसरशाहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए मान की पीठ भी थपथपाई गई. मसलन, अपने स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला को भ्रष्टाचार के आरोपों में नाटकीय ढंग से बर्खास्त करते वे सुर्खियों में आ गए थे. उन्होंने अपने बागबानी मंत्री फौजा सिंह सरारी का भी इस्तीफा लिया.
इस बीच उन्होंने संधू सिंह धरमसोत और भारत भूषण आशु सहित दर्जन भर तत्कालीन कांग्रेस नेताओं के खिलाफ भी कार्रवाई की और उन्हें गिरफ्तार करवाया. आप के अंदरूनी जानकारों का कहना है कि खुद अपने मंत्रियों के खिलाफ मान की कार्रवाई आप की राजनैतिक रणनीति का हिस्सा भी हो सकती है, ताकि विपक्ष के आरोपों का असरदार मुकाबला किया जा सके.
जहां तक दिल्ली मॉडल को जमीन पर उतारने की बात है, मान राज्य में स्कूलों के बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाने और मोहल्ला क्लिनिक स्थापित करने पर जोर दे रहे हैं—इन दोनों ही कार्यक्रमों के लिए राजधानी में आप ने वाहवाही हासिल की है. जनवरी के आखिरी हफ्ते में उन्होंने 117 स्कूलों को ''उत्कृष्ट स्कूलों’’ के रूप में उन्नत बनाने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की. यहां चुनौती शिक्षकों की उपलब्धता की है, जो दिल्ली में नहीं थी.
राज्य के 20,000 सरकारी स्कूलों में से 400 में एक भी शिक्षक नहीं है और 1,600 स्कूलों में महज एक शिक्षक है. दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक की तर्ज पर तेजी से 500 'आम आदमी क्लिनिक’ खोलने की उनकी कोशिश के मामले में भी यही स्थिति है. इन मोहल्ला क्लिनिकों की पूर्ति के लिए पंजाब का स्वास्थ्य महकमा पर्याप्त मेडिकल स्टाफ नहीं खोज पा रहा है. आप के सूत्र इन बातों को खारिज करते हैं और कहते हैं, ''पिछले एक साल में जैसा राजकाज या कल्याणकारी कार्यक्रम चले, वैसा अकाली और कांग्रेस के कई दशकों के राज में नहीं हुआ. स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तथा मुक्रत बिजली के अलावा कृषि क्षेत्र में फसलों के विविधीकरण पर काफी कुछ हुआ है.’’
धन की किल्लत
विधानसभा चुनाव में मान को बड़ी जीत मुफ्त सेवाएं देने के वादे के बूते हासिल हुई थी, जिसमें कुछ लागू कर दी गई हैं (देखें आप का रिपोर्ट कार्ड). हर घर को हर माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली का वादा 1 जुलाई से लागू कर दिया गया, इसके लिए सरकार को साल में 1,800 करोड़ रुपए का बोझ उठाना होगा. बिजीली सब्सिडी ही वित्त वर्ष में 20,000 करोड़ रुपए के पार चली जाएगी. पिछले साल के बकाया 7,117 करोड़ रुपए अलग हैं.
पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लागू करने की राज्य की योजना एक और बोझ लेकर आ सकती है. इसके लिए पंजाब को 18,000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी, जिसके लिए वह केंद्र सरकार के पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) से रिफंड मिलने पर भरोसा करके चल रही है, लेकिन यह पाना मुश्किल होगा.
सरकार को अपनी तरफ से लागू मुफ्त कृषि बिजली पर 6,947 करोड़ रुपए और उद्योगों को सब्सिडी पर 2,503 करोड़ रुपए भी खर्च करने होंगे. 18 साल से ऊपर की महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह देने का वादा अभी पूरा करना है. इस पर राज्य के खजाने से हर साल 12,000 करोड़ रुपए का खर्च और जोड़ लीजिए.
यह तब है जब खजाना खाली है. मान को विरासत में ऐसी सरकार मिली जिसकी बैलेंस शीट चौतरफा घिरी है और जीडीपी के साथ कर्ज का अनुपात 48.84 फीसद है, जो देश में सबसे बदतर है. वित्त आयोग ने करीब 20 फीसद की सीमा की सिफारिश की है. पिछले साल राज्य के खाते में 2.83 लाख करोड़ रुपए का समेकित कर्ज था, जिसके 3.03 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच जाने की उम्मीद है.
यह भी तब होगा जब सरकार के खर्चे और ज्यादा बढ़ें नहीं और वह 95,378 करोड़ रुपए के राजस्व का लक्ष्य हासिल कर पाती है, जिसकी संभावना नजर नहीं आती. बीते कई साल से सरकार हर साल उम्मीद से करीब 14 फीसद तक कम राजस्व जुटा पाई है. जनवरी में राज्य बिजली निकाय ने स्टाफ की तनख्वाह और दूसरी देनदारियां चुकाने के लिए 500 करोड़ रुपए का कर्ज लिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी पहली बैठक में मान ने राज्य की आर्थिक परेशानी से उबारने के लिए वित्तीय पैकेज की मांग की, पर केंद्र ने अब तक इनकार ही किया है. अगर उसका राजस्व नहीं बढ़ता, तो पंजाब की वित्तीय हालत बहुत खराब हो जाएगी.
हालांकि आप का कहना है कि राज्य की वित्तीय हालत पूर्ववर्ती सरकारों से विरासत में मिली है, जिन्होंने खजाने को बेहिसाब लूटा है. आप के सूत्र कहते हैं, ''हम राज्य की वित्तीय हालत से वाकिफ हैं और ऐसी योजना पर काम कर रहे हैं, ताकि कर्ज का पुनर्संयोजन किया जा सके, राजस्व के अतिरिक्त स्रोत की पहचान किया जा सके और मौजूदा स्रोतों से टेक्नोलॉजी की मदद से राजस्व ज्यादा उगाही पर ध्यान दिया सके.’’
मान बदहाली को कैसे ठीक करें
प्रधान न्यायाधीश डी.वाइ. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिंह ने 28 फरवरी को मान और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर जारी टकराव के मामले में लीक से हटकर सुनवाई की (देखें मुख्यमंत्री बनाम राज्यपाल). सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों ने दोनों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, ''लोकतांत्रिक राजनीति में राजनैतिक मतभेद स्वीकार्य हैं और उसे गर्त में ले जाने की दौड़ में फंसे बगैर संयम और परिपक्वता से सुलझाना होगा. इन सिद्धातों को ध्यान में न रखा जाए, तो संवैधानिक मूल्यों का प्रभावी अमल खतरे में पड़ सकता है.’’
सुप्रीम कोर्ट की इस ठोस सलाह को राज्य की आप सरकार और भाजपा-शासित केंद्र को सुननी चाहिए, ताकि पंजाब ’80 के दशक अंधेरे की ओर जाने से रोका जा सके. थोड़ी उम्मीद की बात है कि 3 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से राज्य में कट्टरता में इजाफे पर विचार करने के लिए मिले. इस वक्त सिख कट्टरतावाद को खाद-पानी देने वाली कई लालसाएं फिर हरकत में दिखाई देती हैं.
जैसा कि प्रमोद कुमार बताते हैं, राजनौतिक और आर्थिक वर्चस्व दोनों के लिहाज से पंजाब में सिखों का दबदबा घट रहा है. मोटे तौर पर ऐसा इसलिए है क्योंकि कृषि में पंजाब विक्रेता के बजाए खरीदार बन गया है, जिसमें केंद्र सरकार का पव्वा चलता है. दूसरे राज्यों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा को देखते हुए राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि उतार पर है, और उद्योग भी बढ़ नहीं रहे हैं, जिससे कभी खुशहाल रहे राज्य में खुली बेरोजगारी और छिपी बेरोजगारी दोनों बहुत ज्यादा हैं.
यही वजह है कि पंजाब के किसानों ने 2020 में मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध किया और वापस लेने को मजबूर कर दिया था. इसलिए राज्य को कगार पर धकेलने के बजाए मान और मोदी दोनों को ऐसी आर्थिक बहाली योजना लेकर आनी चाहिए जो पंजाब की तेज आर्थिक वृद्धि तय कर सके, फिर भले ही इसके लिए केंद्र को दबाव कम करने के लिए राज्य के कुछ कर्ज माफ करने पड़ें. मान को भी यह पक्का करना चाहिए कि वे अपनी पार्टी के चुनावी वादे पूरे करते हुए फिजूलखर्ची न करें.
स्थिर राजनैतिक वातावरण मान और उनकी सरकार के लिए दूसरी अहम जरूरत है. अमृतपाल सरीखे कट्टरपंथियों की तरफ झुकाव इसीलिए बढ़ रहा है क्योंकि मुख्यधारा की पार्टियों ने जगह खाली करके शून्य पैदा कर दिया है. राज्य के कुल आर्थिक पतन से पैदा बेरोजगारी और नशे की लत की परेशानियां कट्टरपंथियों को और भी उपजाऊ जमीन मुहैया करती हैं जिसमें वे अशांति के बीज बो सकते हैं.
लिहाजा, अमृतपाल सरीखे लोग सरकार के नाकारापन और भ्रष्टाचार को पंजाब की परेशानियों और इसलिए सिखों के पतन का मूल कारण बताते हुए अपने समर्थक हासिल करते हैं. इसके विपरीत उसके आदर्श जरनैल सिंह भिंडरांवाले का ध्यान सामाजिक सुधारों और युवकों को कट्टर बनाने पर था. जाने-माने सुरक्षा विशेषज्ञ अजय साहनी द ट्रिब्यून में एक लेख में लिखते हैं कि धारणा यह है कि भाजपा शासित केंद्र पंजाब की अनुभवहीन आप सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है.
वे मानते हैं कि केंद्र का यह तर्क 'मानने लायक’ नहीं है कि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है इसलिए अमृतपाल के उग्र कट्टरतावाद से निबटने का काम मान सरकार पर छोड़ देना चाहिए. उनकी दलील यह भी है कि ''भाजपा का व्यापक हिंदुत्व प्रोजेक्ट खालिस्तानी अलगाववाद के पक्ष में प्रतिक्रिया पैदा करता है. अगर हिंदू भारत की मांग जायज है, तो सिखों के खालिस्तान की मांग भी जायज होनी चाहिए.’’
इस बीच अपने मुख्यमंत्री काल के दूसरे साल में दाखिल होते हुए खुद मान को प्रशासन पर सख्त पकड़ हासिल करनी है. बताया जाता है कि उन्होंने अफसरशाही और पुलिस के कुछ हिस्सों को उनके खिलाफ कथित मनमानी कार्रवाइयों से अलग-थलग कर लिया है.
अजनाला की घटना ने दिखा दिया कि कानून-व्यवस्था के इस मुद्दे से निबटने में मान सरकार ने दृढ़ता का परिचय नहीं दिया. पहले राज्य सरकार को परदे के पीछे बातचीत करनी चाहिए थी कि ऐसी विस्फोटक घटनाओं को रोका जाए और जब ऐसी घटना हो तो सख्ती से निबटा जाए और कानून का घोर उल्लंघन करने वालों पर मुकदमा चलाया जाए.
आप सरकार और अन्य उदारवादी पार्टियों को चाहिए कि वे ऐसा नैरेटिव लेकर आएं जो कट्टरपंथी सिख धड़ों की तरफ से फैलाए जा रहे जहर का मुकाबला करे और लोगों को इस दैत्य को खाद-पानी देने के उन खौफनाक नतीजों की याद दिलाए जो राज्य ने 1980 के दशक में देखे और भोगे थे. प्रमोद कुमार कहते हैं, ''केंद्र और राज्य हिंसा में लिप्त होने और बंदूकें रखने को अवैध घोषित करे.’’
पार्टी के एक सूत्र का कहना है कि ''अगर कोई एक सरकार सारे लंबित मसलों का हल निकालने के लिए कमर कसे हुए है तो वह है केवल आम आदमी पार्टी की सरकार’’
प्रधानमंत्री मोदी और मान दोनों को यह समझने की जरूरत है कि पंजाब को एक बार फिर से अराजकता की गर्त में जाने से रोकने की खातिर तुरंत उसके लिए आर्थिक पुनरुद्धार की एक योजना बनानी होगी
चिंताजनक हालात
भारी बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार आने पर 49 वर्षीय भगवंत मान को कई संकटों से जूझता राज्य विरासत में मिला था. जल्द ही कई अलग-अलग मोर्चों पर नई दुश्वारियां खड़ी होने लगीं: गैंगवार, धार्मिक कट्टरता और आर्थिक संकट. साल भर बाद हालात सुधरने की बजाए और भी बिगड़ते ही जा रहे
कत्ल-दर-कत्ल
गैंगस्टर, उनके शिकार और खालिस्तानी हाथ
9 मई, 2022: पंजाब पुलिस के खुफिया मुख्यालय पर रॉकेटों से हमला
29 मई: मानसा में सिंगर-रैपर सिद्धू मूसेवाला का कत्ल; छह शूटरों की पहचान
5 जुलाई: कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर आलोचनाओं का सामना कर रही आप सरकार ने डीजीपी वी.के. भावरा का पत्ता काटा और उनकी जगह आइपीएस अफसर गौरव यादव को जिम्मा सौंपा
5 नवंबर: शिवसेना (टकसाली) नेता सुधीर सिंह सूरी की अमृतसर में हत्या
10 नवंबर: डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी प्रदीप सिंह की गोली मारकर हत्या; कनाडा में बैठे गैंगस्टर गोल्डी बराड़ ने इसकी जिम्मेदारी ली
11 नवंबर: मूसेवाला के छह में से चार हत्यारे गिरफ्तार. दिल्ली पुलिस ने डेरा अनुयायी प्रदीप सिंह के संदिग्ध हत्यारों को गिरफ्तार किया
9 दिसंबर: तरन तारन में पुलिस स्टेशन पर रॉकेट हमला
25 जनवरी, 2023: मई में रॉकेट हमले का मुख्य आरोपी दीपक रंगा गिरफ्तार. वह कनाडा में बैठे गैंगस्टर-टेररिस्ट लखबीर सिंह संधू उर्फ लंडा का करीबी है
23 फरवरी: वारिस पंजाब दे के मुखिया और कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह संधू ने अपने एक साथी को छुड़ाने के लिए अजनाला पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया. हमले जारी रहे और उसके साथी को अगले दिन रिहा कर दिया गया
26 फरवरी: मूसेवाला की हत्या में आरोपित जग्गू भगवानपुरिया गैंग के दो गुर्गों की तरन तारन जेल में कुछ कैदियों ने हत्या कर दी. ये कैदी लॉरेंस बिश्नोई गैंग के थे
पंथिक के पेच
खालिस्तान समर्थक शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के नेता सिमरनजीत मान ने जून 2022 में संगरूर से लोकसभा का उपचुनाव जीता. उन्होंने आप के उम्मीदवार को हराया
उसी महीने ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर
1984 के शहीदों को याद करने के लिए अमृतसर में पुलिस की देखरेख में यात्राएं निकाली गई
दोषी साबित हो चुके 22 सिख उग्रवादियों को छुड़ाने के लिए विरोध प्रदर्शन जारी. फरवरी 2023 के शुरू में असलहों-हथियारों से लैस सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के साथ झड़प में 30 पुलिस वाले घायल हो गए. प्रदर्शनकारी मान के आवास में घुसने की कोशिश कर रहे थे. उनकी मांग थी कि पूरे देश की जेलों में कैद सिख 'बंदियों’ को रिहा किया जाए
अकाल तख्त से उत्तेजक भाषण. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी असल में खोई धार्मिक और सियासी जमीन फिर से हासिल करने की कोशिश कर रहा
गुरु ग्रंथ साहब की कथित बेअदबी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान 2015 में बहबल कलां में पुलिस फायरिंग में दो लोगों की मौत के विरोध में प्रदर्शन जारी
कहा क्या किया क्या
पिछले साल अप्रैल में राज्य से बाहर के नेताओं और कारोबारियों को यहां से राज्यसभा के लिए मनोनीत करने पर सरकार की खासी आलोचना हुई
सितंबर में जर्मनी के दौरे के बाद मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वहां की मोटर कंपनी बीएमडब्लू राज्य में एक प्लांट लगाने जा रही है. लेकिन कंपनी ने बाद में इसका खंडन किया
दिसंबर के मध्य में दावा किया कि गैंगस्टर गोल्डी बराड़ को अमेरिका में गिरफ्तार कर लिया गया है और उसे जल्दी ही भारत लाया जाएगा; पर बराड़ ने खुद न्यूज चैनलों पर आकर इसका खंडन कर दिया
फरवरी 2023 में गुजरात के परेशानहाल किसानों से प्याज खरीदने की. पंजाब के किसान संगठनों ने इस पहल की आलोचना की
इस तरह के आरोप सामने आए कि आम आदमी पार्टी पंजाब के संसाधनों का इस्तेमाल गुजरात, हिमाचल, तेलंगाना और दिल्ली में चुनाव प्रचार के लिए कर रही है.
रिजर्व में चलती गाड़ी
47.6 फीसद
है पंजाब का 2022-23 का जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुमानित अनुपात. देश में सबसे बदतर में शुमार. वित्त आयोग इसे 20 फीसदी के आसपास होने की सिफारिश करता है.
2.83 रु. लाख करोड़
का कुल कर्ज था पंजाब के मत्थे, वित्त वर्ष 22 में आप के सरकार में आने से पहले. इस साल (वित्त वर्ष 23) में इसके बढ़कर 3.03 लाख करोड़ रु. हो जाने का अनुमान है.
500 करोड़ रु.
का कर्ज लिया है राज्य बिजली निगम पीएसपीसीएल ने जनवरी तक की तनख्वाह और बाकी खर्चे चुकाने को; इसकी रोज की सब्सिडी 54 करोड़ रु. बैठती है.
95,378 करोड़ रु.
का राजस्व हासिल होने का अनुमान है 2022-23 में. पिछले कई सालों में पंजाब हर साल अमूमन 14 फीसदी कम राजस्व हासिल कर पा रहा है
36,068 करोड़ रु.
के फंड की दरकार है, अनुमानित तौर पर,
2022-23 के कर्ज की भरपाई के लिए.