अमिताभ बच्चन@80
1950-60 का दशक
इलाहाबाद में स्कूल की शुरुआती पढ़ाई के बाद नैनीताल के बोर्डिंग स्कूल शेरवुड कॉलेज में उनका नाटक का हुनर परवान चढ़ा जहां उन्होंने गोगोल के नाटक द गवर्नमेंट इंस्पेक्टर में मेयर की भूमिका अदा की और 1957 में 15 साल की उम्र में श्रेष्ठ अभिनेता का केंडल कप जीता. नई दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई के दौरान भी अभिनय का कीड़ा उन्हें लगा रहा. वे उसकी थिएटर सोसाइटी द प्लेयर्स से जुड़े.
1968-69
कलकत्ता में दो-एक डेस्क जॉब करते हुए छह साल बिताने के बाद सिनेमा में मन का काम खोजने की कोशिश शुरू की. भाई अजिताभ ने नई प्रतिभा की खोज के विज्ञापन का जवाब देते हुए विक्टोरिया मेमोरियल के बाहर बॉक्स कैमरे से भाई की तस्वीर खींची और फिल्मफेयर माधुरी टैलेंट कॉन्टेस्ट के लिए भेज दी. अमिताभ को बुलावा नहीं आया.
अजिताभ के दोस्त ने बताया कि निर्देशक के.ए. अब्बास एक नए चेहरे की तलाश में हैं. तब 27 बरस के अमिताभ ने अब्बास की सात हिंदुस्तानी से रुपहले परदे की दुनिया में कदम रखा, जिसमें मुस्लिम शायर की भूमिका अदा की जो पुर्तगाली हुकूमत से गोवा को मुक्त करवाने के लिए राष्ट्रवादियों से जुड़ जाता है. बेस्ट न्यूकमर के तौर पर उन्हें अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
1971-72
आनंद में सारा ध्यान उस वक्त के सुपरस्टार राजेश खन्ना पर होने के बावजूद अमिताभ ने उदास-परेशान डॉक्टर-दोस्त के किरदार में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई. उनकी प्रतिभा से वाकिफ निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने गुड्डी में उनकी भूमिका में काट-छांट कर दी क्योंकि वे उन्हें छोटी-मोटी भूमिका में जाया नहीं होने देना चाहते थे.
1972 में उन्हें बॉम्बे टु गोवा (1972) में पहली उल्लेखनीय नायक की भूमिका मिली. उसी साल बाद में एक नजर में जया भादुड़ी के साथ आए जो उन दोनों की साथ-साथ की जाने वाली पहली फीचर फिल्म थी. दोनों में प्यार का फूल खिला. और सिनेमा में एक समृद्ध भागीदारी की शुरुआत हुई.