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आवरण कथाः एक थी माया

मेले के रास्ते में आधी दूर पहुंचने पर अनीता ने अचानक कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है, लेकिन उसने माया को वहां जाने के लिए मना लिया. इसके बाद जब उसकी आंख खुली तो उसने खुद को एक अनजाने कमरे में पाया.

माया
माया
अपडेटेड 7 नवंबर , 2017

लंबे समय तक यौन उत्पीडऩ की शिकार अनेक पीड़ितों की तरह 15 वर्ष की माया (नाम बदला हुआ) अक्सर अपनी हालत के लिए खुद को दोषी ठहराती है. वह कहती है, ''कहीं न कहीं मेरी भी गलती है, मैं उस पर विश्वास नहीं करती तो आज मैं ऐसी नहीं होती." वह बार-बार कहती है कि उसे अपनी पुरानी दोस्त पर भरोसा नहीं करना चाहिए था.

वह अनीता (बदला हुआ नाम) को तबसे जानती है, जब दोनों की उम्र सात वर्ष थी. अनीता ने जब उससे स्कूल से बंक मारकर उसके भाइयों के साथ नजदीक हो रहे एक मेले में जाने के लिए कहा, तो उसे इसमें कुछ गलत नहीं लगा और वह चल दी.

मेले के रास्ते में आधी दूर पहुंचने पर अनीता ने अचानक कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है, लेकिन उसने माया को वहां जाने के लिए मना लिया. इसके बाद जब उसकी आंख खुली तो उसने खुद को एक अनजाने कमरे में पाया. उसने कहा, ''मैं बस खिड़की से बाहर की एक चाय की दुकान भर देख सकती थी, जिसके होर्डिंग में रायपुर लिखा हुआ था." माया कहती है कि उसने अनीता के भाइयों से उसे छोड़ देने के लिए काफी मिन्नतें की, लेकिन उन लोगों ने चाकू की नोक पर उसके साथ कई दिनों तक बलात्कार किया.

वह याद करती है कि एक देर रात वह एक बस में थी और नशीली दवा के असर में कुछ उनींदी अवस्था में उसने देखा कि अनीता के भाई किसी नाश्ते के स्टॉल में हैं. इसे उसने भागने के मौके की तरह देखा और उसके बाद वह बस से उतर गई और फिर अंधेरे में जितनी तेजी से संभव था, भागने लगी. उसे जैसे ही एक बस मिली वह उसमें बैठ गई.

बस का ड्राइवर अच्छा आदमी निकला. माया ने कहा, ''हमने कहा अंकल हम बनारस में रहते हैं." और फिर बस वाले ने उसे शहर के छावनी इलाके में छोड़ दिया. माया को पता नहीं है कि वह कहां थी, लेकिन छत्तीसगढ़ के रायपुर से वाराणासी 17 से 20 घंटे की दूरी पर है. उसे बीस दिन तक बंधक बनाकर एकदम अंधेरे में रखा गया था.

माया के भागने के बाद पुलिस ने एक हफ्ते के भीतर भाइयों को गिरफ्तार कर लिया, पर वे जमानत पर बाहर आ गए. माया अपनी दादी के साथ रहती है. गांव में उसका जीना मुश्किल है, जहां उसके अपहरणकर्ता भी रह रहे हैं और हर किसी को उसकी कहानी पता है. माया की पीड़ा को शायद की कोई दूसरा समझ सके.

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