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कौन हैं रामलला की प्रतिमा गढ़ने वाले योगीराज अरुण?

गर्भगृह में विराजमान होने वाले रामलला की मूर्ति गढ़ने वाले योगीराज अरुण कर्नाटक के मैसूर में रहने वाले मूर्तिकारों के परिवार से हैं, जो पांच पीढ़ियों से इस पेशे से जुड़े हुए हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति देते अरुण योगीराज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति देते अरुण योगीराज
अपडेटेड 18 जनवरी , 2024

सूर्य के उत्तरायण होने के साथ 15 जनवरी को अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठ‍ित होने वाली भगवान राम की मूर्ति से भी पर्दा हट गया. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई भगवान राम के बाल्यरूप की प्रतिमा का आधिकारिक रूप से चयन किया.

मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने पुष्टि की है कि रामलला की मूर्ति, जिसका वजन 150 किलोग्राम से 200 किलोग्राम के बीच है, को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा. योगीराज की पांच वर्षीय बाल स्वरूप भगवान राम की मूर्ति उन तीन मूर्तियों में से एक थी, जिन्हें स्थापित करने के लिए मंदिर ट्रस्ट के सदस्यों ने मतदान के जरिए अपना चुनाव किया था.

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला की तीन अलग-अलग मूर्तियां बनाने के लिए तीन मूर्तिकारों को काम सौंपा था. रामसेवक पुरम् में भारी सुरक्षा के बीच टिनशेड के भीतर मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय ने संगमरमर की शिला पर विग्रह तैयार किया.

कर्नाटक की श्याम रंग की एक शिला पर मूर्तिकार गणेश भट्ट और दूसरी शिला पर अरुण योगीराज ने रामलला की अद्भुत छवि उकेरी है. अरुण ने रामलला की श्याम मूर्ति बनाई है. यह मूर्ति पांच साल के बाल्यरूप की है. मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच है. इस मूर्ति के हाथ में धनुष और तीर बनाया गया है. 22 जनवरी को अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में इसी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी.

गर्भगृह में विराजमान होने वाले रामलला को गढ़ने वाले योगीराज अरुण (40 वर्ष) मूर्तिकारों के परिवार से हैं, जो पांच पीढ़ियों से इस पेशे से जुड़े हुए हैं. इनका जन्म 1983 में कर्नाटक के मैसूर जिले के अग्रहार में हुआ था. इनके पिता योगीराज एक कुशल मूर्तिकार थे, और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी भी प्रसिद्ध मूर्तिकार थे, जिन्हें योगीराज की वेबसाइट के अनुसार मैसूर के राजा का संरक्षण प्राप्त था. योगीराज अरुण की माता का नाम सरस्वतीम्मा और पत्नी का नाम विजेता है. उनके भाई सूर्यप्रकाश भी मूर्तिकार हैं और उनके साथ मिलकर ही काम करते हैं.

पैतृक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए योगीराज अरुण ने देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध मूर्तिकारों में अपनी पहचान बनाई है. शिल्पकला को विरासत में पाने वाले योगीराज अरुण ने 11 वर्ष की आयु में एक प्रतिमा गढ़कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था. अरुण ने एमबीए करने के बाद कुछ समय के लिए एक निजी कंपनी में काम किया, लेकिन वर्ष 2008 में उन्होंने पूर्णकालिक रूप से मूर्तिकला का काम शुरू कर दिया. मां सरस्वतीम्मा के मुताबिक पिता ने अरुण को नक्काशी की मूल बातें तब सिखाईं जब वह छोटा था, जो उसके कॉलेज के दिनों में भी जारी रहा. वह अपने पिता के साथ घंटों बैठता था और कला सीखता था.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा थी कि स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का सम्मान करने के लिए इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक प्रतिमा स्थापित की जाए. यह जिम्मा योगीराज अरुण ने संभाला. अप्रैल, 2022 में, योगीराज ने सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी दो फीट ऊंची प्रतिमा भेंट की थी. उन्होंने बोस की 30 फुट की प्रतिमा भी बनाई, जिसे नई दिल्ली में इंडिया गेट के पीछे अमर जवान ज्योति पर स्थापित किया गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रैल 2022 में फेसबुक पर कहा, "आज अरुण योगीराज से मिलकर खुशी हुई. नेताजी बोस की इस असाधारण मूर्ति को साझा करने के लिए उनका आभारी हूं."

इससे पहले अरुण योगीराज ने केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की 12 फीट ऊंची प्रतिमा भी बनाई थी. मैसूर जिले के चुंचनकट्टे में 21 फीट ऊंची हनुमान प्रतिमा, संविधान निर्माता डॉ. बीआर आंबेडकर की 15 फीट ऊंची मूर्ति, मैसूर में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की सफेद अमृतशिला प्रतिमा, नंदी की छह फीट ऊंची अखंड मूर्ति, बनशंकरी देवी की छह फीट ऊंची मूर्ति, मैसूर के राजा जयचामाराजेंद्र वोडेयार की 14.5 फीट ऊंची सफेद अमृतशिला प्रतिमा और कई अन्य प्रतिमाएं अरुण योगीराज के हाथों पुष्पित हुई हैं.

अरुण इस वक्त देश के विभिन्न राज्यों में सबसे ज्यादा तलाशे जाने वाले मूर्तिकार हैं. अरुण की तलाश इस मांग के चलते की जा रही है कि उनके हुनर से उपलब्धि हासिल करने वालों की प्रतिमाएं लगाई जाएं. योगीराज अरुण को मिले पुरस्कार और सम्मान की लंबी श्रंखला है. संयुक्त राष्ट्र संगठन के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान द्वारा उनकी कार्यशाला का दौरा कर व्यक्तिगत सराहना की गई थी. योगीराज कर्नाटक सरकार से कई बार सम्मान प्राप्त कर चुके हैं. इन्हें वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा साउथ जोन यंग टैलेंटेड आर्टिस्ट अवॉर्ड, मैसूर जिला प्रशासन द्वारा नलवाड़ी पुरस्कार-2020, वर्ष 2021 में कर्नाटक शिल्प परिषद द्वारा मानद सदस्यता के साथ कई सारे पुरस्कार मिले हैं.

मंदिर ट्रस्ट द्वारा न्योता मिलने के बाद योगीराज अरुण पिछले वर्ष अप्रैल से रामलला की मूति बनाने के मिशन में जुटे. मैसूर से आकर अयोध्या में डेरा डाल दिया. रामलला के विग्रह के लिए श्याम शिला तराशते समय उसका एक नुकीला टुकड़ा उनकी आंख में धंस गया और उसे ऑपरेशन करके निकाला गया. दर्द के दौरान भी उन्होंने काम नहीं रोका और पूरे समर्पण भाव और भक्ति से पांच साल के राम लला के दिव्यरूप को मूर्तरूप दिया. काम में तल्लीन योगीराज अरुण कई-कई दिनों तक परिवार से बात नहीं करते थे. पर अब जब योगीराज ने इतिहास रच दिया है तो उनका परिवार गर्व से फूले नहीं समा रहा है.

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