
आठ साल पहले ‘तुम्बाड’ बनाकर सोहम शाह ‘टॉक ऑफ द टाउन’ बन गए थे. सिनेमाघरों में तो फिल्म काम भर नहीं चली लेकिन जिसने भी देखी उसने क्राफ्ट, कहानी, सिनेमेटग्राफी और एक्टिंग की ख़ूब तारीफ की. उसके बाद आया ओटीटी का दौर. ओटीटी से मिला बज़ फिल्म को सिनेमाघरों में वापिस री-रिलीज के कगार तक खींच ले गया. जिसमें तुम्बाड और सोहम शाह, दोनों की नाव पार लगी और दोनों कायदे से हिट माने गए. तुम्बाड के बाद से ही जनता में चर्चा था कि सोहम शाह तुम्बाड 2 कब ला रहे हैं. लेकिन सोहम ले आए फिल्म ‘क्रेज़ी’. फिल्म अमेज़न प्राइम पर आ चुकी है.
क्या है कहानी का प्लाट?
बहुत साधारण और सपाट. शहर के एक मशहूर सर्जन डॉक्टर अभिमन्यू सूद की बेटी किडनैप हो जाती है और अभिमन्यू अपनी बेटी को बचाने की कोशिश में है. बेटी, जिसे डाउन सिंड्रोम है और जिसकी देखभाल उसकी मां करती है. अभिमन्यू अपनी दूसरी पत्नी के साथ अलग रहता है.
एकबारगी कहानी की ये झलक देखकर लगता है कि इस प्रिमाइस पर तुम्बाड का मेकर क्या ही उसी टक्कर की फिल्म बना सकेगा. लेकिन किसी नतीजे पर पहुंचने में जल्दबाज़ी ठीक नहीं.
क्या है अलग?
विशाल भारद्वाज से लेकर अनुराग कश्यप सरीखे फिल्म मेकर ये मानते हैं कि ‘एक रात की कहानी कहना बहुत मुश्किल काम है...’ मतलब कि कहानी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की तरह कई पीढ़ियों तक ना फैली हो, बल्कि सिर्फ कुछ घंटों में खत्म हो जाती हो. जैसे ‘एक रुका हुआ फैसला’ (1986), ‘कौन’ (1999), ‘NH 10’ (2015), ‘ट्रैप्ड’ (2016)...
इन सारी फिल्मों में जो एक बात कॉमन है वो है बेहद टाइट टाइमफ्रेम. जिससे टेंशन बिल्ड होती है. और एक फिक्शनल स्टोरी के साथ रियल लाइफ़ थ्रिल लाना मुश्किल होता है. ‘क्रेजी’ इस मामले में यह थ्रिल स्क्रीन तक लाने में बहुत हद तक कामयाब हुई है. जबकि फिल्म की कहानी के पास शाम पांच बजे से लेकर सूरज डूबने तक महज घंटे डेढ़ घंटे का समय होता है. ऊपर जिन फिल्मों के नाम आपने पढ़े उनमें से ‘ट्रैप्ड’ को अगर छोड़ दें तो बाकी फ़िल्में कई किरदारों के कंधे का सहारा लिए हुए हैं.
हालिया उदाहरण से समझने की कोशिश करें तो आसमान भारद्वाज की 2023 में आई फिल्म ‘कुत्ते’ भी एक रात की ही कहानी थी लेकिन इसमें नसीरुद्दीन शाह, कुमुद मिश्रा, आशीष विद्यार्थी, तबु, अर्जुन कपूर और अनुराग कश्यप जैसे कई चेहरे थे जो थ्रिल की गेंद को एक-दूसरे के पाले में डालते रहते हैं. लेकिन ‘क्रेज़ी’ में ये सारी कहानी सिर्फ और सिर्फ एक किरदार के भरोसे खड़ी है. अभिमन्यू सूद, शहर का जाना माना सर्जन. जैसे सरकार बनाते हुए कोई पार्टी बाहर से समर्थन देती है, ठीक वैसे ही अभिमन्यू सूद के सपोर्ट को एक्टर हैं तो सही, लेकिन स्क्रीन पर दिखाई नहीं देते.

यहीं से बात आती है ‘बात’ की, मतलब ‘Voice Acting’
इसी तरह के प्रयोग इस फिल्म को ‘क्रेज़ी’ बनाते हैं. फिल्म के लीड कैरेक्टर्स में पहला तो है डॉक्टर अभिमन्यू सूद, दूसरी है उसकी रेंज रोवर गाड़ी और तीसरा क्रूशियल किरदार निभाया है अभिमन्यू के मोबाइल फोन ने. ये तीनों पहले फ़्रेम से साथ आते हैं और कमोबेश अंतिम फ्रेम तक साथ रहते हैं. फिल्म में पीयूष मिश्रा भी हैं, लेकिन सिर्फ़ फोन के दूसरी तरफ़ से आने वाली आवाज़ के तौर पर. इसी तरह एक दौर में अपनी हाड़ कंपाऊ आवाज़ के लिए मशहूर टीनू आनंद भी बतौर आवाज़ ही फिल्म में मौजूद हैं. साउथ की मशहूर अभिनेत्री निमिषा सजायन और ‘चक दे इंडिया’ फेम शिल्पा शुक्ला भी बतौर Voice आर्टिस्ट ही इस फिल्म में मज़बूती से मौजूद हैं.
अब बात संगीत की
विशाल भारद्वाज, गुलज़ार और सुखविंदर सिंह की तिकड़ी एक बार फिर साथ आई है और नतीजतन एक बहुत शानदार गीत सुनने वालों के हिस्से आया है ‘डूबे मेरा मन वे...’ ‘क्रेज़ी’ की म्यूजिक सेटिंग ज़्यादातर विशाल भारद्वाज के हाथों में रही है, और यही वजह है कि विशाल इस सिंगल स्ट्रेच थ्रिलर में गाने लिखने के लिए गुलज़ार को ले आए हैं. संगीत के मामले में रीमिक्स पर भी बेहतरीन काम किया गया है. सत्या (1998) के ‘गोली मार भेजे में...’ और इंकलाब (1984) के ‘अभिमन्यू फंस गया है चक्रव्यूह में...’ को रीमिक्स किया गया है, और वो भी बिना ज्यादा तीन पांच किए. इन गानों की ओरिजिनैलिटी को बरकरार रखते हुए.

अतरंगी घटनाएं जो शूटिंग के दौरान घटीं
हालांकि फिल्म की लोकेशन कहानी के माध्यम से क्लेम नहीं की गई है कि ये घटना किस शहर की है, लेकिन फिल्म के मुख्य किरदारों में से एक रेंज रोवर गाड़ी पर दिल्ली की नंबर प्लेट कहानी के दिल्ली में होने का भ्रम पैदा करती है. जबकि फिल्म ज्यादातर दो जगहों पर शूट हुई है, एक तो महाराष्ट्र में और दूसरी लोकेशन है राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तीनों के बॉर्डर से लगा हुआ चम्बल का बीहड़. वही चम्बल जहां डेढ़ दशक पहले तक अनगिनत डकैत सरकार की नाक में दम भरते थे. सुनसान बीहड़ और कटाव से बने अजीब से कच्चे रास्ते स्क्रीन पर असर लाते हैं. लेकिन डायरेक्टर गिरीश कोहली के लिए चम्बल में शूट करना आसान नहीं रहा.
बकौल कोहली “चम्बल में शूट करना सबसे मुश्किल शेड्यूल साबित हुआ, क्योंकि शूट के दौरान भारी बारिश हुई थी और जिन कच्चे रास्तों पर ज़्यादातर चेज़ सीक्वेंस शूट होने थे वो घुटनों तक कीचड़ से अटे पड़े थे. ऐसे में एक दिन ये भी हुआ कि सोहम शाह और उनकी गाड़ी एक जगह कीचड़ में फंसी तो निकलने का नाम ही ना ले. गांव के लोगों ने ट्रैक्टर और पैदल कीचड़ में से गाड़ी निकाली और सारे फिल्म क्रू को भी कीचड़ में ही चलना पड़ा.
इसी तरह महाराष्ट्र में एक अजीब वाकया फिल्म क्रू के सामने पेश आया. पूरी फिल्म में अभिमन्यू सूद का किरदार किडनैपर को देने के लिए पांच करोड़ कैश एक बैग में साथ रखता है. महाराष्ट्र में कई शूटिंग के दौरान गांव वालों को ये ख़बर मिल गई कि बैग में करोड़ों रुपए भरे हुए हैं. बस फिर क्या था गांव के कुछ लोगों ने प्लान बनाया और गाड़ी से नोटों वाला वो बैग पार कर दिया. जब डायरेक्टर ने गांव में मुनादी पिटवाई कि बैग में जो पैसे हैं वो शूटिंग के लिए लाए गए नकली नोट हैं, तब कहीं जाकर नोटों से भरा वो बैग वापिस आया. वो भी चुपचाप रखकर कोई चला गया.
एक बात और
भारत समेत दुनिया भर में डाउन सिंड्रोम पर बहुत फ़िल्में नहीं हैं. अगर हैं भी तो इस नज़रिए से कि ‘इन्हें भी जीने का हक़ है’. लेकिन ये बहुत कम हुआ है कि डाउन सिंड्रोम, जिसमें किसी बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास आम बच्चों की तुलना में धीरे होता है, पर दोतरफ़ा बात की गई हो. इस फ़िल्म के ज़रिए डायरेक्टर गिरीश कोहली और सोहम शाह ने यही करने की कोशिश की है, और इस कोशिश में बहुत हद तक कामयाब दिखाई दे रहे हैं.