
1970 में आई फिल्म पूरब और पश्चिम का एक दृश्य - लंदन के किसी रिवॉल्विंग हॉल में बैठे मदन पुरी और मनोज कुमार (फिल्म में नाम- भारत कुमार) के दरम्यान बातचीत चल रही है. इसी बीच अभिनेता प्राण का 'देशी मुरगी विलायती बोल' वाला किरदार हरनाम भारत और भारत की सभ्यता को धिक्कारते हुए कुछ अनाप-शनाप बोलने लगता है. हरनाम ललकारते हुए पूछता है, "है कोई ऐसी बात तुम्हारे देश की जिसपर सर ऊंचा कर सको?...इंडियाज कंट्रीब्यूशन इज जीरो, जीरो एंड जीरो."
कैमरा पैन करते हुए मनोज कुमार, मदन पुरी पर बारी-बारी से घूमता है. करीब पांच सेकंड की खामोशी के बाद जब महेंद्र कपूर की आवाज में भारत कुमार वो अमर गीत गाता है कि 'है प्रीत जहां की रीत सदा...' तो ऐसा लगता है कि हरनाम जैसे लोगों को हर भारतीयों का वो करारा जवाब है. इस तरह मनोज बिना किसी खास कोशिश के हिंदुस्तानियों के दिल में वो देशप्रेम पैदा करते हैं जो सहज रूप में आता है. हालांकि अपनी कई फिल्मों में देशप्रेम का जबरदस्त जादू बिखेरने वाला जादूगर अब इस दुनिया से जा चुका है.

अभिनेता मनोज कुमार ने 4 अप्रैल यानी शुक्रवार सुबह मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में आखिरी सांस ली. वे 87 साल के थे. वे काफी समय से लिवर सिरोसिस बीमारी से जूझ रहे थे. उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें बीते 21 फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
एएनआई से बातचीत में मनोज के बेटे कुणाल गोस्वामी ने बताया, "उन्हें लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां थीं. यह भगवान की कृपा है कि उन्हें आखिरी समय में ज्यादा परेशानी नहीं हुई, शांतिपूर्वक उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनका अंतिम संस्कार कल सुबह 11 बजे मुंबई के पवनहंस श्मशान घाट पर होगा."
मनोज कुमार के निधन पर अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी कई हस्तियों ने श्रद्धांजलि दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा है, "महान अभिनेता और फिल्म निर्माता श्री मनोज कुमार जी के निधन से बहुत दुख हुआ. वह भारतीय सिनेमा के प्रतीक थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी देशभक्ति के उत्साह के लिए याद किया जाता था, जो उनकी फिल्मों में भी झलकता था. मनोज जी के कार्यों ने राष्ट्रीय गौरव की भावना को प्रज्ज्वलित किया और यह पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा. दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति."
Deeply saddened by the passing of legendary actor and filmmaker Shri Manoj Kumar Ji. He was an icon of Indian cinema, who was particularly remembered for his patriotic zeal, which was also reflected in his films. Manoj Ji's works ignited a spirit of national pride and will… pic.twitter.com/f8pYqOxol3
— Narendra Modi (@narendramodi) April 4, 2025
मनोज की कई फिल्मों में उनके जबरदस्त देशभक्त किरदारों का नाम भारत कुमार होता था. यही वजह है कि मीडिया ने उनका नाम ही भारत कुमार रख दिया था. लेकिन मनोज फिल्मों में कैसे आए और कैसे उनका नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी से मनोज कुमार हो गया?
पाकिस्तान से भारत आए, रिफ्यूजी कैंप में रहे
मनोज का जन्म 24 जुलाई 1937 को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के एबटाबाद (अब पाकिस्तान) में हुआ था. मनोज 10 साल के थे जब देश आजाद हुआ और विभाजन की लपटें आसमान छू रही थीं. भारत के लोग पाकिस्तान जा रहे थे और वहां के लोग इंडिया आ रहे थे.
मनोज का परिवार भी एबटाबाद के जंडियाला शेर खान से पलायन कर दिल्ली पहुंचा. यहां उन्होंने दो महीने रिफ्यूजी कैंप में बिताए. धीरे-धीरे जब देश और राजधानी दिल्ली में शांति की आमद होने लगी, तो मनोज का पूरा परिवार भी दिल्ली में जैसे-तैसे बस गया. उनकी स्कूली पढ़ाई दिल्ली से ही हुई और बाद में उन्होंने हिंदू कॉलेज से स्नातक किया.
ग्रेजुएशन के बाद मनोज नौकरी की तलाश में थे. एक दिन मनोज काम की तलाश में फिल्म स्टूडियो में टहल रहे थे कि उन्हें एक व्यक्ति दिखा. मनोज ने उससे अपनी चिंता बताई तो वो आदमी उन्हें साथ ले गया. उन्हें लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले दूसरे सामानों को ढोने का काम मिला. धीरे-धीरे मनोज के काम से खुश होकर उन्हें फिल्मों में सहायक के रूप में काम दिया जाने लगा.
एक दिन की बात है जब हीरो पर पड़ने वाली लाइट को चेक करने के लिए मनोज को हीरो की जगह खड़ा किया गया था. अमूमन ऐसा होता था क्योंकि उस समय बड़े कलाकार शॉट शुरू होने से कुछ ही मिनट पहले सेट पर पहुंचते थे. और लाइटिंग वगैरह ठीक हो, यह जांचने के लिए डायरेक्टर किसी को भी उसके सामने खड़ा कर देते थे.
लेकिन उस दिन मनोज की किस्मत कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी. हीरो की जगह खड़े मनोज पर लाइट पड़ने से उनका चेहरा कैमरे में इतना आकर्षक लग रहा था कि एक डायरेक्टर ने उन्हें 1957 में आई फिल्म फैशन में एक छोटा सा रोल दे दिया. हालांकि रोल छोटा था, लेकिन मनोज ने इन चंद मिनटों की एक्टिंग में अपनी छाप छोड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.
फैशन से जय हिंद तक का सफर
फैशन में अपने छोटे से रोल में छाप छोड़ने के बाद मनोज को फिल्म कांच की गुड़िया (1960) में लीड रोल मिला. इस फिल्म से उन्हें और पहचान मिली. इसके बाद मनोज ने रेशमी रूमाल, चांद, बनारसी ठग, गृहस्थी, अपने हुए पराए, वो कौन थी जैसी कई फिल्मों में काम किया.
मनोज ने शहीद, गुमनाम, दो बदन, उपकार, पत्थर के सनम, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान, संन्यासी और क्रांति जैसी कई हिट फिल्में भी दीं. शहीद से मनोज को एक नई पहचान मिली, और इसी फिल्म के बाद उनका विशुद्ध देशभक्ति फिल्मों की ओर ज्यादा झुकाव हुआ.
क्रांति के बाद मनोज ने कलयुग और रामायण (1987), क्लर्क (1989) और मैदान-ए-जंग (1995) जैसी फिल्मों में अभिनय किया. इसके बाद उन्होंने एक्टिंग से दूरी बना ली. हालांकि बतौर निर्देशक उनकी आखिरी फिल्म जय हिंद (1999) रही, जिसमें उन्होंने अपने बेटे कुणाल गोस्वामी को डायरेक्ट किया.
दिलीप कुमार की वजह से हरिकृष्ण गोस्वामी बने मनोज कुमार
मनोज का असली नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी था. वे दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार के बहुत बड़े प्रशंसक थे. जब मनोज 12 साल के थे तब दिलीप कुमार की एक फिल्म आई- शबनम (1949). यह फिल्म हरिकृष्ण गोस्वामी को इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे कई बार देखा.
संयोग से उस फिल्म में दिलीप के किरदार का नाम मनोज था. बाद में जब मनोज कुमार का फिल्मों में आना हुआ तो उन्होंने हरिकृष्ण गोस्वामी के बजाय शबनम के उस किरदार का नाम ही अपने साथ जोड़ लिया. और इस तरह हरिकृष्ण मनोज कुमार के नाम से जाने गए.
संयोग की ही बात है कि दिलीप कुमार ने भी फिल्मों में आने के बाद अपना असल नाम बदल लिया था और वे मोहम्मद यूसुफ खान के बजाय दिलीप कुमार के नाम से मशहूर हुए. दिलीप कुमार को नाम बदलने की सलाह देविका रानी से मिली थी, जो उस समय फिल्म इंडस्ट्री में काफी बड़ा नाम थीं.
लेकिन एक और लुभावना संयोग ये है कि जिस दिलीप कुमार की फिल्में देखकर किशोर-वय मनोज सपनों की दुनिया में तैरने लगते थे, उन्हीं दिलीप कुमार को बाद में उन्होंने अपनी फिल्म में डायरेक्ट भी किया. 1981 में आई यह फिल्म क्रांति थी, जिसमें दिलीप कुमार ने काम किया था. इस फिल्म के डायरेक्टर मनोज कुमार ही थे.
फिल्म उपकार के बनने की कहानी
साल 1965 में आई फिल्म शहीद तब देश भर में काफी चर्चित हुई. मनोज कुमार ने इसमें अमर शहीद भगत सिंह का किरदार निभाया था. फिल्म काफी हिट रही और इसके गाने ऐ वतन, ऐ वतन हमको तेरी कसम, सरफरोशी की तमन्ना और मेरा रंग दे बसंती चोला भी काफी लोकप्रिय हुए.

इस फिल्म को तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी देखा. उन्हें भी यह फिल्म काफी पसंद आई. जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री ने मनोज को बुलाया और इसी नारे की थीम पर एक फिल्म बनाने की सलाह दी. हालांकि मनोज तब तक फिल्मों में सिर्फ एक्टिंग ही कर रहे थे, उन्हें फिल्म बनाने या डायरेक्शन का कोई अनुभव नहीं था.
फिर भी मनोज ने इसे चुनौती की तरह लिया और 'उपकार' (1967) की पटकथा पर काम करना शुरू कर दिया. उपकार की कहानी मनोज ने ट्रेन में बैठे-बैठे लिख डाली थी. दरअसल, एक दिन मनोज ने मुंबई से दिल्ली जाने के लिए राजधानी ट्रेन की टिकट खरीदी और ट्रेन में चढ़ गए. उसी ट्रेन में बैठे-बैठे ही उन्होंने आधी फिल्म लिखी और लौटते हुए आधी.
फिल्म बनकर तैयार हुई, और यह 1967 की सबसे बड़ी फिल्म बनकर उभरी. फिल्म का गाना मेरे देश की धरती सोना उगले...आज भी लोगों के जेहन में देशभक्ति का खुमार पैदा कर देता है. इस फिल्म में मनोज कुमार का नाम भारत था. फिल्म और इसके गाने की लोकप्रियता को देखते हुए मीडिया ने मनोज को भारत कहना शुरू कर दिया और फिर उन्हें भारत कुमार ही कहा जाने लगा.
बहरहाल, मनोज जब यह फिल्म बना रहे थे तब एक और दिग्गज अभिनेता और निर्देशक राज कपूर के कानों में यह बात पहुंची. राज कपूर ने उन्हें तीखे शब्दों में सलाह दी, या तो एक्टिंग कर लो या डायरेक्शन, क्योंकि हर कोई राज कपूर नहीं है, जो हर काम एक साथ कर ले.
लेकिन जब उपकार जबरदस्त हिट साबित हुई तो राज कपूर भी नतमस्तक हुए. तब राज ने अपनी बात पर पछतावा करते हुए मनोज कुमार से कहा, "मुझे लगता था कि मेरा सिर्फ खुद से कॉम्पिटीशन है, लेकिन अब मुझसे मुकाबला करने के लिए तुम आ गए हो."
उपकार ने बदल दी प्राण किशन सिकंद की इमेज
1950,'60 और '70 के दशक में अभिनेता प्राण की छवि फिल्मों में एक ऐसे विलेन के रूप में थी जिसे देखकर आम लोग भयभीत हो जाते थे. महिलाएं उनका सामना नहीं करना चाहती थीं. फिल्म निर्माता भी प्राण का लगातार इसी तरह के रोल में इस्तेमाल करना चाहते थे.
लेकिन मनोज ने अपने दोस्त प्राण की इस इमेज को बदलने की कोशिश की और वे इसमें कामयाब भी रहे. दोनों ने पहली बार दो बदन (1966) में साथ काम किया था. इसके बाद एक फिल्म में मनोज ने प्राण को पॉजिटिव रोल दिया, हालांकि वो फिल्म फ्लॉप हो गई और लोगों ने प्राण के उस किरदार को नापसंद किया.
बावजूद इसके, मनोज कुमार ने हार नहीं मानी. मनोज उस समय 'उपकार' पर काम कर रहे थे, उन्होंने इसमें प्राण को मलंग बाबा का रोल देने का फैसला किया. इस सिलसिले में दोनों की मुलाकात हुई. मनोज कुमार ने प्राण से पूछा, "क्या आप मेरी फिल्म में मलंग बाबा का रोल करेंगे?"
प्राण ने कहा, "पंडित जी, लाइए स्क्रिप्ट पढ़ लूं." प्राण, मनोज को पंडितजी कहा करते थे. स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद प्राण ने कहा, "पंडित, फिल्म की स्क्रिप्ट और मलंग का किरदार दोनों बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन एक बार सोच लो, क्योंकि मेरी छवि खूंखार, शराबी, जुआरी और बलात्कारी की है. क्या दर्शक मुझे किसी साधु के रोल में अपना सकेंगे."
इरादों के पक्के मनोज कुमार ने उन्हें वो रोल दिया और शूटिंग शुरू कर दी. इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास है. मलंग बाबा के किरदार में प्राण यादगार साबित हुए, तो भारत कुमार के किरदार में मनोज कुमार. यह कहना ज्यादती न होगी कि जब भी देशभक्ति फिल्मों की बात की जाएगी, निश्चित ही मनोज कुमार उर्फ भारत कुमार का नाम सबसे ऊपर लिया जाएगा.