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थिएटरों में वापस लौटीं ‘वीर ज़ारा’ और ‘तुम्बाड’! फिल्मों की री-रिलीज का ट्रेंड क्यों है उफान पर?

‘वीर ज़ारा’ और ‘तुम्बाड’ से पहले 'लैला-मजनूं' भी री-रिलीज हो चुकी है और 2024 में दिसंबर तक कई पुरानी फिल्में सिनेमा थियेटरों में फिर आने वाली हैं

वीर-जारा और तुम्बाड समेत कई बॉलीवुड फ़िल्में फिर से रिलीज़ की गई हैं
वीर-जारा और तुम्बाड समेत कई बॉलीवुड फ़िल्में फिर से रिलीज़ की गई हैं
अपडेटेड 16 सितंबर , 2024

सितंबर की 13 तारीख और शुक्रवार का दिन सिनेमा प्रेमियों के लिए यादगार बन गया है. 20 साल पहले 2004 में आई फिल्म ‘वीर ज़ारा’ और 2018 की फिल्म ‘तुम्बाड’ सिनेमा थिएटर्स में दोबारा रिलीज हुई हैं. यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी शाहरुख खान, प्रीति जिंटा और रानी मुखर्जी स्टारर फिल्म ‘वीर जारा’ ने तो 20 साल पहले भी कमाई के रिकॉर्ड बनाए थे हालांकि राही अनिल बर्वे के डायरेक्शन में बनी और सोहम शाह स्टारर ‘तुम्बाड’ छह साल पहले अपनी फ्रेश रिलीज में दर्शकों का इंतेज़ार ही करती रह गई थी.

अच्छी बात अब ये हुई कि ओटीटी से कल्ट फिल्म कैटेगरी में गिनी जाने लगी ‘तुम्बाड’ ने इस बार टिकट घर में दमदार ताल ठोकी है. ‘तुम्बाड’ की एडवांस बुकिंग में ही हजारों टिकट ख़रीदकर दर्शकों ने फिल्म के मेकर्स को भरोसा दिला दिया था कि दर्शकों के यहां देर है अंधेर नहीं. कई बरसों में बनकर तैयार हुई कल्ट क्लासिक फिल्म ‘तुम्बाड’ के प्रोड्यूसर भी रहे सोहम शाह ने री-रिलीज के पहले कहा था कि 2018 में फिल्म के साथ इंसाफ नहीं हुआ था इसलिए वे दर्शकों के बीच दोबारा आ रहे हैं.

उम्मीद के मुताबिक़ दर्शकों ने री-रिलीज के पहले ही दिन तुम्बाड के साथ ‘लगभग’ इंसाफ तो किया है. उधर 20 साल पहले ‘सौ करोड़’ क्लब की शुरुआत करने वाली और साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म ‘वीर ज़ारा’ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन भी ठीक रहा है.

दो बिल्कुल अलहदा दर्शक वर्गों में दबदबा रखने वाली इन दोनों फिल्मों ने एक बार फिर ये साबित किया कि भारतीय दर्शक गए कुछ बरसों में कंटेंट की समझ के स्तर पर काफी समझदार तो हुआ ही है लेकिन उनका नॉस्टेल्जिया अब भी खेल बदलने की कूवत रखता है.

क्या है ये री-रिलीज का मामला?

साल 2023 से अब तक दर्जन भर हिंदी फिल्मों को थिएटर में दोबारा रिलीज करके फिल्म इंडस्ट्री ने करीब-करीब एक पैटर्न सेट कर लिया है. इसमें मेकर्स और व्यूअर्स की दोतरफ़ा ज़रूरतें तो हैं ही, लगातार मजबूत होता हुआ प्रयोग भी है. गए दो बरसों में ‘रहना है तेरे दिल में’, ‘लैला मजनूं’, ‘हम आपके हैं कौन’, ‘राजा बाबू’, ‘दंगल’, ‘मैंने प्यार किया’, ‘लव आजकल’ समेत कई फ़िल्में दोबारा थिएटर्स में वापस लौटीं. इसी साल दिसंबर तक ‘परदेस’ और ‘ताल’ जैसी फिल्मों को री-रिलीज करने का प्लान मेकर्स बना चुके हैं. अभी इस लिस्ट में और कई नाम जुड़ने बाकी हैं. लेकिन थिएटर में वापसी करती इन फिल्मों का असल गणित है क्या?

एक बड़ी वजह है म्यूजिक – साल 2023 से अब तक दोबारा रिलीज हुई फिल्मों में एक कॉमन फैक्टर है इनका गीत-संगीत. फिल्म ट्रेड एक्सपर्ट सुधांशु रंजन इस ओर ध्यान दिलाते हुए कहते हैं, "जितनी भी फ़िल्में पिछले साल 2023 में रिलीज हुईं और अब जो सितंबर में और उसके बाद के महीनों में रिलीज होनी हैं उनमें एक खास बात है उनका म्यूजिक. बड़े पर्दे पर देखने के यादगार एक्सपीरिएंस को कैश करवाने में म्यूजिक का बहुत बड़ा और एक तरह से कह लीजिए कि मेन रोल है."

‘रहना है तेरे दिल में’ ‘रॉकस्टार’ ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ ‘हम आपके हैं कौन’ ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’...ये सारी वो फ़िल्में हैं जिनका म्यूजिक तब भी खूब चला था जब ये पहली बार रिलीज हुई थीं. फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर जानते हैं कि इन फिल्मों के लिए थिएटर में दर्शक इसलिए भी वापस आएंगे क्योंकि उन्हें इन फिल्मों से म्यूजिक कनेक्ट करता है. रिलीज के पीछे की रणनीति समझने में भुवना फिल्म्स के सीईओ भुवन रस्तोगी इस फैक्टर को और विस्तार देते हुए बताते हैं, "आज की तारीख में अगर कोई इंडीपेंडेंट मेकर फिल्म बनाना चाहता है तो उसे चाहिए एक इन्वेस्टर. अब इन्वेस्टर को पैसा लगाने से पहले जानना होता है उसका रिकवरी प्लान. तो मेकर को फिल्म के आर्ट से ज्यादा कमर्शियल वैल्यू पर बहुत फोकस करना पड़ता है."

मान लीजिए कोई फिल्म मेकर अगर किसी इन्वेस्टर के पास चार से पांच करोड़ रुपए की एक इंडी फिल्म का प्रपोजल लेकर जाता है तो उसकी कामयाबी इस बात पर निर्भर करती है कि इन्वेस्टर को इस प्रोजेक्ट में नुकसान का जोखिम कम से कम दिखाई दे. ये कैसे होगा? इसमें मेकर्स की मदद म्यूजिक ने हमेशा की है. भुवन कहते हैं, "अगर इन्वेस्टर को ये भरोसा हो जाए कि फिल्म का म्यूजिक हिट हो सकता है तो बात बन जाएगी. जो फ़िल्में री-रिलीज हो रही हैं उन्होंने अपने वक्त में भी म्यूजिक से अच्छा बिजनेस कर लिया था."

ये पूछने पर कि क्या इन फिल्मों के दोबारा रिलीज होने के पीछे कमर्शियली इनके म्यूजिक की बड़ी भूमिका है? भुवन कहते हैं, "बिल्कुल है. आप सोचो कि इस महीने वीर-ज़ारा रिलीज हो रही है. इसका म्यूजिक ही अपने टाइम पर कितना सुपरहिट हुआ था. अब जब ये फिल्म दोबारा रिलीज हो रही है तो डिस्ट्रीब्यूटर या थिएटर वाले तो इसके म्यूजिक के भरोसे ही होंगे. और ये फॉर्मूला काम करता है ये हम पिछले साल डेढ़ साल से देख ही रहे हैं."

बाजार हमारी स्मृति समझता है

‘हम आपके हैं कौन’ और ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ सरीखी फिल्मों के री-रिलीज होने का एक बड़ा पहलू इनका दर्शक वर्ग भी है. अब जब करीबन हर तरह के कंटेंट को यूथ ड्रिवेन बनाने पर जोर है तब इन फिल्मों के साथ मामला दूसरा समझ आता है. दिल्ली यूनिवर्सिटी से फिल्म स्टडीज़ में रिसर्च कर रहीं चारू बंसल कहती हैं, "जो फ़िल्में री-रिलीज हो रही हैं, उनमें गिनती की ही वो फिल्म होंगी जो फ्रेश रिलीज में हिट ना हुई हों. ‘लैला मजनूं’ और ‘तुम्बाड’ को अपने समय में कमर्शियल सक्सेस नहीं मिली थी, लेकिन बाद में इन फिल्मों को छोटी स्क्रीन्स पर ख़ूब देखा सराहा गया. बाजार अपने ग्राहकों का मनोविज्ञान अच्छी तरह समझता है इसीलिए नए कंटेंट की भरमार में उन दर्शकों के मनोरंजन की व्यवस्था की जा रही है जो इधर के सिनेमा से थोड़ी शिकायत रखते हैं. जो फ़िल्में री-रिलीज हुई हैं या हो रही हैं उनका अपना दर्शक वर्ग बना हुआ है. इसीलिए बहुत सोच समझ कर वही फ़िल्में लाई जा रही हैं जिनकी अपनी फैन फॉलोइंग है और जिनका दर्शक एक पीढ़ी पहले का है."

चारू बाजार के जिस नजरिए को समझा रही हैं वो ज़रूरी तौर पर फिल्म के व्यावसायिक पहलू को समझने में काम आता है. फिल्म इंडस्ट्री की ये ‘सेफ़ प्ले स्ट्रेटेजी’ भी समझ आती है कि क्यों उन्हीं फिल्मों को री-रिलीज के लिए पिटारे से निकाला गया जिनका अपना अलग फैन बेस है. लेकिन क्या इस ट्रेंड के पीछे सिर्फ यही वजह है? क्या टाइम लाइन का कोई सवाल नहीं है? क्योंकि फिल्मों के रिलीज होने के पीछे एक बड़ी रणनीति तारीखों का चुनाव भी होती है.

इस पर ट्रेड एक्सपर्ट कोमल नाहटा कहते हैं, "सितंबर से लेकर दिसंबर तक के चार महीने भारत में फिल्म रिलीज के लिए तुलनात्मक रूप से ज्यादा महत्त्व के होते हैं. इस टाइम पीरियड को फेस्टिव सीज़न कहा जाता है. छुट्टी, मौसम और फेस्टिव मूड... हर लिहाज से ये महीने फिल्मों की रिलीज के लिए परफेक्ट साबित होते हैं. जिस तरह से इन चार महीनों का हर वीकेंड कैलेंडर फ्रेश रिलीज से फुल रहना चाहिए था वैसा दिखाई नहीं दे रहा. इसलिए थिएटर की ख़ाली डेट्स को भुनाने में पुरानी फ़िल्में काम आ रही हैं. और ये ट्रेंड नया नहीं है, हॉलीवुड की फ़िल्में भी री-रिलीज होती रही हैं."

सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं है इस खेल में

एकबारगी लगता है कि बॉलीवुड ने बहुत समझबूझ से ख़ाली तारीखों पर दर्शकों को थिएटर तक लाने का नया ट्रेंड बनाया है, लेकिन ऐसा नहीं है. इसी साल सितंबर में ‘हैरी पॉटर’, ‘मैट्रिक्स’ और ‘व्हिप्लैश’ जैसी पुरानी हॉलीवुड फ़िल्में दुनिया भर के थिएटर्स में रिलीज हुई हैं और होने वाली हैं. दिसंबर तक ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ और ‘इंटरस्टेलर’ रिलीज होने वाली हैं. अभी दुनिया भर के थिएटर्स में दर्जनों फ़िल्में री-रिलीज के लिए कतार में हैं.

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