
हाल ही में रिलीज हुई निर्देशक पुलकित सिंह की फिल्म 'भक्षक' इन दिनों काफी चर्चा में है. शाहरुख खान की कंपनी रेड चिलीज एंटरटेनमेंट लिमिटेड की प्रोडक्शन वाली इस फिल्म में अभिनेत्री भूमि पेडणेकर ने एक पत्रकार का किरदार निभाया है. यह पत्रकार एक शेल्टर होम में आश्रय लेने वाली लड़कियों के साथ हो रही यौन हिंसा का पर्दाफाश करती हैं और उन्हें न्याय दिलाती हैं.
कहा जा रहा है कि यह फिल्म बिहार में 2018 के चर्चित मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड से प्रेरित है. इस आश्रय गृह में आसरा लेने वाली बालिकाओं पर दबाव बनाकर उन्हें राजनेताओं, अधिकारी और दूसरे लोगों के साथ यौन संबंध बनाने के लिए विवश किया जाता था. इस कांड के सनसनीखेज खुलासे में बिहार के एक पत्रकार की बड़ी भूमिका थी. इस पत्रकार का किरदार भूमि पेडणेकर निभा रही हैं. हालांकि फिल्म में यह साफ नहीं है कि बिहार के किस पत्रकार पर यह फिल्म बनी है. दिलचस्प बात है कि फिल्म के रिलीज होने के बाद कई पत्रकार यह दावा कर रहे हैं कि यह कहानी उनकी ही है. यह फिल्म किस पत्रकार के ऊपर बेस्ड है, यह जानने से पहले आइए यह जानते हैं कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड है क्या और इसका खुलासा कैसे हुआ.
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड
बिहार के मुजफ्फरपुर शहर में सेवा संकल्प एवं विकास समिति नाम की एक संस्था सरकारी सहायता से एक बालिका गृह का संचालन करती थी. बिहार सरकार ने जब राज्य के सभी 110 आश्रय गृहों का सोशल ऑडिट कराया तो इस बालिका गृह में सबसे अधिक शिकायतें पाई गईं. जब इस बालिका गृह में रहने वाली सात से 17 साल के बीच की 44 बच्चियों की मेडिकल जांच कराई गई तो उनमें 34 बच्चियां यौन हिंसा का शिकार पाई गईं. इसके बाद इस बालिका गृह के संचालक बृजेश ठाकुर पर एफआईआर कर उन्हें गिरफ्तार किया गया और खुलासों का सिलसिला चल निकला.
इस कांड में राज्य के कई राजनेताओं और अधिकारियों के नामों की चर्चा होने लगी. बिहार की तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम भी इस कांड में सामने आया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. साल 2018 में यह कांड काफी चर्चित रहा. जनवरी, 2020 में इस मामले में बृजेश ठाकुर समेत 19 लोगों को सजा सुनाई. ब्रजेश ठाकुर को उम्रकैद की सजा सुनाई गयी.
इस मामले का खुलासा कैसे हुआ
दरअसल मुजफ्फरपुर बालिका गृह में बालिकाओं के साथ यौन शोषण हो रहा है, इस बात का खुलासा सबसे पहले एक सोशल ऑडिट में हुआ था. यह सोशल ऑडिट टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई की एक टीम ने किया था. बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग के निर्देश पर कराए गए इस सोशल ऑडिट की शुरुआत 2017 में हुई और छह माह तक ऑडिट करने के बाद इस टीम ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. सरकार ने तत्काल इस रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया, मगर इस रिपोर्ट की विस्फोटक सूचनाएं रिस-रिस कर मीडिया में आने लगीं.

पत्रकार संतोष कुमार सिंह की भूमिका
वैसे तो बिहार के कई पत्रकार यह दावा करते हैं कि उन्होंने ही मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड का खुलासा किया था, मगर फिल्म में किसी पत्रकार को इसका क्रेडिट नहीं दिया गया है. हालांकि फिल्म में कशिश न्यूज के उस वक्त संपादक रहे संतोष कुमार सिंह का आभार व्यक्त किया गया है और फिल्म में जो पत्रकार इस कांड को जनता के सामने लाता है, उसके चैनल का नाम कोशिश न्यूज है, जो कशिश से मिलता-जुलता नाम है. फिल्म के निर्देशक पुलकित भी यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने इस फिल्म के लिए संतोष कुमार सिंह से मदद ली है, खास तौर पर यह समझने के लिए कि पत्रकारिता की दुनिया कैसी होती है.
इस मामले के बारे में जानकारी देते हुए संतोष कुमार सिंह कहते हैं, "बिहार में शेल्टर होम की सोशल ऑडिट करने वाली टीम के एक सदस्य ने उन्हें बताया था कि यहां कई तरह की दिक्कतें हैं." उसी वक्त से वे इस बारे में तफ्तीश करने लगे थे. हालांकि सोशल ऑडिट की रिपोर्ट सरकार के पास जमा थी, मगर सरकार न तो उसे सार्वजनिक कर रही थी, न उस पर कार्रवाई कर रही थी. इसी बीच सीतामढ़ी जिले के जिला समाज कल्याण अधिकारी की हत्या हो गई. संतोष बताते हैं, "इसकी रिपोर्ट लिखते वक्त मैंने सवाल उठाया था कि कहीं इनकी हत्या सोशल ऑडिट रिपोर्ट की वजह से तो नहीं हुई. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होते ही राज्य सरकार ने मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के संचालक बृजेश ठाकुर पर मुकदमा कर दिया. उसके बाद तो मामला आगे बढ़ता ही चला गया."
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि एक तरफ इस कांड के खुलासे में एक पत्रकार की भूमिका बताई जाती है, वहीं दूसरी तरफ इस कांड का मुख्य आरोपी बृजेश ठाकुर खुद एक अखबार 'प्रातः कमल' का मालिक था. यह मुजफ्फरपुर का एक पुराना और चर्चित अखबार रहा है.
आरटीआई एक्टिविस्ट संतोष की भूमिका
इस कांड के खुलासे में एक आरटीआई एक्टिविस्ट संतोष कुमार की भी भूमिका बताई जाती है. सामाजिक क्षेत्र से जुड़े संतोष कुमार पेशे से वकील हैं. वे बताते हैं, “जब इन संस्थाओं का सोशल ऑडिट हो रहा था तो मुझे इसकी जानकारी मिल गई थी. यह भी समझ आ रहा था कि वहां गड़बड़ियां हैं. रिपोर्ट जमा होने पर जब इसे जारी नहीं किया गया और इसको लेकर कार्रवाई नहीं हुई तो मैंने पहले आरटीआई दाखिल की और फिर अदालत में पीआईएल किया कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए. मुझे अनधिकृत रूप से इस रिपोर्ट के बारे में बहुत कुछ पता चल गया था, ऐसे में मैं पत्रकारों से मिलकर उन्हें बताता भी था कि वे इस मामले को रिपोर्ट करें. हालांकि शुरुआत में बड़े मीडिया हाउस इस खबर को चलाना नहीं चाहते थे. जब खुलासा हुआ तो इस मामले में मैं भी अदालत में एक पक्ष बना और आज भी मुकदमा लड़ रहा हूं.”
पत्रकारों को अदालत की शरण लेनी पड़ी
इस मामले की कवरेज के लिए भी पत्रकारों की अदालती लड़ाई लड़नी पड़ी. दरअसल जब इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई तो इस एजेंसी ने अदालत से कहा कि जांच के दौरान पत्रकार अपनी मर्जी से रिपोर्ट नहीं कर सकते, वे सीबीआई की ब्रीफिंग पर ही रिपोर्ट कर सकते हैं. इस अपील को पटना हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और इस मामले की मीडिया कवरेज पर बैन लगा दिया.
इसके बाद पटना के पत्रकारों ने इस मामले की अपील पटना हाई कोर्ट में की, वहां जब उनकी अपील नहीं सुनी गई तो वे सुप्रीम कोर्ट गए. इस मामले में पत्रकारों की तरफ से याचिकाकर्ता निवेदिता झा थीं. वे बताती हैं, “यह बैन मुझे अभिव्यक्ति पर हमला लगता था इसलिए मैं अपनी वकील फौजिया शकील की मदद से सुप्रीम कोर्ट गई. अच्छा ये रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और हमें रिपोर्टिंग का अधिकार दे दिया गया. इसके बाद मैंने तीन और पिटीशन दायर किए. पहला इस जांच में उन 17 शेल्टर होम को शामिल करने का था, जिनके खिलाफ TISS की टीम ने नकारात्मक रिपोर्ट दी थी. दूसरा बच्चियों को इस मामले में गवाह बनाने का था, जो यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थीं. और तीसरा तीन महीने के अंदर फैसला सुनाने का था. तीन मामले में फैसला हमारे पक्ष में आया.” इस फिल्म में वकील फौजिया शकील का भी आभार व्यक्ति किया गया है.

"नियमित होनी चाहिए सोशल ऑडिट"
TISS की जिस टीम नेे बिहार के 110 आश्रय गृहों की ऑडिट की, उसके प्रमुख तारिक कहते हैं, "हमने अप्रैल, 2018 में अपनी रिपोर्ट जमा कर दी थी. यह कहना ठीक नहीं है कि सरकार ने इसे सार्वजनिक करने में लेट लतीफी की. जहां तक मेरी सूचना है, सरकार पहले इन बालिका गृहों की बच्चियों को सुरक्षित करना चाहती थी, फिर कोई कार्रवाई करना चाहती थी, इसलिए थोड़ा वक्त लग गया. आने वाले दिनों में हमने देखा कि बिहार की पुलिस ने आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की और बिहार सरकार ने भी इन आश्रय गृहों की व्यवस्था मेंं जरूरी बदलाव किए. लेकिन एक बात का अफसोस हमें जरूर है कि जिस सोशल ऑडिट की वजह से इस तरह की गड़बड़ियां सामने आईं, उसे नियमित तौर पर नहीं किया जा रहा. हमारा मानना था कि सिर्फ बिहार ही नहीं पूरे देश में हर आश्रय गृह में नियमित तौर पर सोशल ऑडिट हों ताकि भविष्य में ऐसी गड़बड़ी दुबारा न हो. यह मसला सिर्फ बिहार का नहीं, पूरे देश के आश्रय गृहों का अमूमन ऐसा ही हाल है."
क्या कहते हैं निर्देशक
हालांकि फिल्म के निर्देशक पुलकित इस बात से इनकार करते हैं कि उनकी फिल्म मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर आधारित है. न ही वे यह मानते हैं कि फिल्म में जो पत्रकार है, उसका किरदार किसी बिहारी पत्रकार पर आधारित है. वे कहते हैं, “यह फिल्म न मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर आधारित है, न इसमें जो किरदार पत्रकार हैं वह किसी पत्रकार के जीवन पर आधारित है. यह फिल्म देश और दुनिया के अलग-अलग बालिका गृह में शोषण का शिकार हो रही बालिकाओं के बारे में है. ऐसी घटनाएं सिर्फ मुजफ्फरपुर में ही नहीं देश के अलग-अलग इलाकों में हुई है, यूपी के देवरिया में हुई, महाराष्ट्र में हुई, कई दूसरेे राज्यों में हुई. मैं उन सबकी बात करने की कोशिश कर रहा हूं. फिल्म का किरदार एक पत्रकार है, इसलिए मैंने बिहार के कशिश न्यूज के पत्रकार से पत्रकारिता को समझने के लिए बातें की हैं, इसलिए फिल्म में उनका आभार जताया है.
पुलकित आगे यह भी कहता हैं, "अगर बिहार के हर पत्रकार को लग रहा है कि यह उनकी कहानी है तो यह इस फिल्म के लिए अच्छी बात है. इस फिल्म में मैंने पत्रकारिता की ताकत को सामने लाने की कोशिश की है. यह फिल्म महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और शोषण के खिलाफ उनकी लड़ाई के बारे में है.”
हालांकि फिल्म में पत्रकार के चैनल का नाम कोशिश न्यूज होना, जो कशिश न्यूज से मिलता जुलता है और घटना स्थल का नाम मुनव्वरपुर होना, जो मुजफ्फरपुर के जैसा है, जिससे कम से कम यह तो पता ही चलता है कि फिल्म बनाते समय निर्देशक के मन में मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड और कशिश न्यूज मुख्य रूप से रहा होगा. दिलचस्प है कि इन शेल्टर होम की जांच करने वाली की टीम का नाम भी कोशिश फील्ड एक्शन प्रोजेक्ट है.