
दिसंबर की 31 तारीख को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने देश के पहले समुद्री ग्लास ब्रिज का अनावरण किया. इसे कन्याकुमारी के तट पर बनाया गया है. उद्घाटन के दौरान सीएम स्टालिन, उप मुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन, राज्य के मंत्रियों और सांसद कनिमोझी पुल पर पैदल चले. इसके बाद तिरुवल्लुवर की प्रतिमा पर लेजर लाइट शो का भी आयोजन किया गया.
इस ब्रिज की लंबाई 77 मीटर, जबकि चौड़ाई 10 मीटर है. इसके बनने से पर्यटक कन्याकुमारी के तट पर विवेकानंद रॉक मेमोरियल से सीधे 133 फीट ऊंची तिरुवल्लुवर प्रतिमा तक पहुंच सकते हैं. राज्य सरकार ने इस परियोजना के लिए 37 करोड़ रुपए खर्च किए. यह ग्लास ब्रिज समुद्र के ऊपर बना है, इस पर चलने से लोगों को ऐसा महसूस होगा मानो वे समुद्र पर ही चल रहे हों.

इस ग्लास ब्रिज का मॉडल धनुष के आकार का है, इसे ऐसा तट पर चलने वाली तेज हवा को झेलने के हिसाब से डिजाइन किया है. इसका निर्माण कन्याकुमारी को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से किया गया था. इसके उद्घाटन का मौका पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि द्वारा तिरुवल्लुवर प्रतिमा के अनावरण की रजत जयंती के अवसर पर पड़ा.
कन्याकुमारी तट के पास समुद्र में एक रॉक पर बनी 133 फीट ऊंची तिरुवल्लुवर प्रतिमा का अनावरण 1 जनवरी, 2000 को किया गया था. इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने किया था. इसके 25 साल पूरे होने पर एम.के. स्टालिन सरकार ने ग्लास ब्रिज प्रोजेक्ट का उद्घाटन के लिए यह दिन चुना.

ग्लास ब्रिज की कुछ अनोखी खासियत
आकार और डिजाइन: 77 मीटर लंबाई और 10 मीटर चौड़ाई में फैला, धनुषाकार-आर्क डिजाइन आकर्षक होने के साथ-साथ काफी मजबूत भी है. इसके पारदर्शी कांच की सतह समुद्र के लुभावने दृश्य का दीदार कराती है, जिससे पर्यटकों को समुद्र के ऊपर चलने का एहसास होता है.

बेहतर पहुंच: पहले पर्यटकों को विवेकानंद स्मारक और तिरुवल्लुवर प्रतिमा के बीच यात्रा करने के लिए नौका सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन पुल के बनने से अब वे कम समय में और सुविधाजनक तरीके से वहां पहुंच सकते हैं. इस ब्रिज के दूसरी ओर विवेकानंद स्मारक बना हुआ है. यह 1970 में बना था. ऐसा माना जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने इसी रॉक पर तीन दिनों तक ध्यान करने के बाद ज्ञान प्राप्त किया था.
समुद्री-ग्रेड स्थायित्व: इस पुल का निर्माण उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करके हुआ है, जो पुल को उच्च आर्द्रता, समुद्री हवा और कटाव सहित कठोर तटीय परिस्थितियों को सहने में सक्षम है. इसके अलावा यह पुल की दीर्घकालिक संरचनात्मक मजबूती को भी सुनिश्चित करता है.
सांस्कृतिक और सौंदर्यात्मक आकर्षण: दो ऐतिहासिक स्मारकों को जोड़कर यह पुल तमिलनाडु की समृद्ध विरासत का जश्न तो मनाता ही है, साथ ही आधुनिक इंजीनियरिंग कौशल का प्रदर्शन भी करता है.

आर्थिक और विकासात्मक लाभ: सीएम स्टालिन ने पुल को एक दूरदर्शी परियोजना बताया जिसका उद्देश्य कन्याकुमारी को वैश्विक पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा देना है. लोक निर्माण और राजमार्ग मंत्री ईवी वेलु ने क्षेत्र के अशांत समुद्र और पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण निर्माण के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में बताया.
इन कठिनाइयों के बावजूद परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया गया, जो इसमें शामिल टीमों की विशेषज्ञता और समर्पण को रेखांकित करता है.