समय के साथ चीजें कैसे बदलती जाती हैं, इसे 'क्विक कॉमर्स' मार्केट के उभार के साथ समझा जा सकता है. क्विक कॉमर्स मार्केट दरअसल, ई-कॉमर्स का ही एक हिस्सा है जो ग्राहकों को तेज डिलेवरी की सुविधा देता है. पहले छोटी-मोटी खुदरा चीजों की खरीदारी के लिए किराना स्टोर्स प्रमुख सेंटर हुआ करते थे और बहुत हद तक अब भी हैं, लेकिन शायद भविष्य में इनकी अहमियत तेजी से घट जाए. हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जो पारंपरिक किराना दुकानदारों के लिए चिंता पैदा कर सकती है.
देश का ग्रोसरी मार्केट अभी कुल 48.1 लाख करोड़ रुपये के आसपास है, जिसमें क्विक कॉमर्स का हिस्सा महज एक फीसद ही है जबकि किराना दुकानों का 90 फीसद बाजार हिस्सेदारी पर कब्जा है. लेकिन रिटेल कंसल्टेंसी डेटम इंटेलिजेंस की रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ क्विक कॉमर्स मार्केट, 2024 : इम्पैक्ट ऑन किराना स्टोर्स' में बताया गया है कि साल 2024 में करीब 10,820 करोड़ रुपए की किराना बिक्री क्विक कॉमर्स में शिफ्ट (स्थानांतरित) होने की उम्मीद है, जो इस बाजार का करीब 21 फीसद हिस्सा होगा.
ब्लिंकिट, जेप्टो और स्विगी इंस्टामार्ट ये कुछ शीर्ष क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म हैं जो ग्राहकों तक महज 10-20 मिनट के भीतर सामान डिलेवरी की वजह से पारंपरिक किराना रिटेल के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं.
डेटम इंटेलिजेंस ने भारत के शीर्ष 10 महानगरों में 3,032 ऑनलाइन खरीदारों के बीच यह सर्वे किया. इसमें पाया गया कि करीब आधे (46 फीसद) क्विक-कॉमर्स यूजर्स ने तत्काल डिलेवरी की सुविधा के कारण किराना रिटेल से खरीदारी कम कर दी है. इसके अलावा, 82 फीसद से अधिक खरीदारों ने किराना खरीदारी का एक चौथाई हिस्सा क्विक कॉमर्स में शिफ्ट कर दिया है और पांच फीसद यूजर्स ने तो किराना दुकानों से खरीदारी पूरी तरह से बंद कर दी है.
इस बढ़े हुए आकर्षण से क्विक कॉमर्स के बाजार में और तेजी आने की उम्मीद है. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2020 से बाजार का आकार 61 गुना से अधिक बढ़ गया है और 2030 तक यह 3.38 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा. अभी 2024 में यह आंकड़ा करीब 51,560 करोड़ रुपये के आसपास है.
डेटम इंटेलिजेंस के सलाहकार सतीश मीना कहते हैं, "क्विक कॉमर्स की सफलता का एक मुख्य कारण यह है कि इन प्लेटफॉर्म पर उपभोक्ता का खरीदारी व्यवहार (बाइंग बिहेवियर) किराना स्टोर पर ऑफलाइन खरीदारी पैटर्न की नकल करता है." वे बताते हैं कि भारतीय उपभोक्ता आमतौर पर छोटी मात्रा में, और हफ्ते में कई बार ऑर्डर करते हैं जो क्विक कॉमर्स के इसी नजरिए से जुड़ा हुआ है, और जिसके कारण इसे तेजी से अपनाया जा रहा है.
क्विक कॉमर्स की शुरुआत उपभोक्ताओं की आखिरी मिनट और इंपल्सिव खरीदारी को पूरा करने के आधार पर हुई थी. लेकिन जैसे-जैसे उपभोक्ता 10-15 मिनट के भीतर सब कुछ हासिल करने की सुविधा और आराम के आदी हो गए, उन्होंने अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इस पर भरोसा करना शुरू कर दिया.
दरअसल, सर्वे में शामिल 58 फीसद ग्राहकों ने कहा कि वे अपने पूरे महीने की किराने की जरूरतों के लिए क्विक कॉमर्स का इस्तेमाल करते हैं. इसके बाद 52 फीसद उत्तरदाताओं ने टॉप-अप खरीदारी के लिए और 43 फीसद ने अनियोजित खरीदारी के लिए इसका इस्तेमाल किया.
उपभोक्ताओं की जबरदस्त रुचि को देखते हुए ये प्लेटफॉर्म अन्य श्रेणियों में भी विस्तार कर रहे हैं, और बेसिक कपड़े, जूते, इलेक्ट्रॉनिक्स, छोटे रसोई उपकरण, स्टेशनरी, खिलौने और कंप्यूटर सहायक उपकरण जैसी वस्तुएं बिक्री के लिए पेश कर रहे हैं.
FMCG (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियां भी क्विक कॉमर्स को एक अहम ग्रोथ चैनल के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं. उदाहरण के लिए, FMCG की दिग्गज कंपनी ITC ने क्विक कॉमर्स अकाउंट सहित ई-कॉमर्स के लिए सप्लाई चेन (आपूर्ति शृंखला) का प्रबंधन करने के लिए एक समर्पित टीम बनाई है. पिछले 2-3 सालों में इसकी ई-कॉमर्स बिक्री का 45 फीसद क्विक कॉमर्स से ही आया है.
आईटीसी के प्रवक्ता ने बताया, "हमने क्विक कॉमर्स के लिए कुछ प्रोडक्ट भी तैयार किए हैं, जिनमें फियामा, एंगेज और मंगलदीप जैसे हमारे ब्रांडों के गिफ्ट बॉक्स, साथ ही हमारे राइट शिफ्ट ब्रांड के तहत कोरियाई नूडल्स, ओट्स और बाजरा आधारित खाद्य पदार्थ और आशीर्वाद रेडी-टू-कुक चपाती जैसी वस्तुएं शामिल हैं."
अखिल भारतीय व्यापारी संघ (सीएआईटी) ने भी एक श्वेत पत्र जारी किया है, जिसमें व्यापार निकाय ने इस बात को उजागर किया है कि क्विक कॉमर्स ने पारंपरिक रूप से किराना दुकानों के प्रभुत्व वाले बाजार के 25-30 फीसद हिस्से पर कब्जा कर लिया है, जिससे इनमें से कई छोटे खुदरा विक्रेता बंद होने के कगार पर पहुंच गए हैं.