देश दुनिया के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में आख़िरी सांस ली. आज देश भर में रतन टाटा के देहांत पर शोक का माहौल है. कारोबारी होने के बावजूद जिस तरह की प्रतिष्ठा हर आयु वर्ग के बीच रतन टाटा ने कमाई ऐसा विरले ही होता है. जीवन भर रतन टाटा ने लीक से हटकर प्रयोग करने और रिस्क लेने में कहीं कोई कोताही नहीं बरती. उनका ये जुनूनी तरीका भी एक बड़ी वजह है कि दुनिया भर में उन्हें उनके कारोबार से इतर भी इज़्ज़त से देखा जाता था.
कारोबार का कोई भी क्षेत्र हो, उसमें रतन टाटा ने भरपूर कोशिश की. ऑटोमोबाइल का मामला हो तो नैनो से लेकर जेगुआर तक और फ़ूड सेक्टर की बात हो तो नमक से लेकर चायपत्ती तक, ऐसा लगता था जैसे भीतर ही भीतर रतन टाटा ने सफलता का कोई गणित साध लिया हो. अपनी सफलताओं पर वे कम ही बोलते सुने गए, लेकिन अपनी असफलताओं पर तो उन्होंने ख़ूब बात की.
शायद इस वजह से कि नौजवान पीढ़ी उनकी कहानियों से सीखते हुए कभी रिस्क लेने में पीछे ना हटे. लेकिन एक ऐसा भी क्षेत्र है जहां रतन टाटा को जबरदस्त असफ़लता हाथ लगी और हैरानी की बात ये है कि हर बार की तरह गलतियों से सीख कर कामयाब होने की जगह उन्होंने उस क्षेत्र से तौबा ही कर डाली.
हम बात कर रहे हैं फिल्म सेक्टर की. बॉलीवुड ही एक ऐसा मैदान रहा जहां रतन टाटा ने सिर्फ एक बार हाथ आज़माया, मात खाई और फिर कभी वापस नहीं आए. रतन टाटा और उनका फिल्मी कनेक्शन कम ही लोगों को मालूम है.
क्या है ये फ़िल्मी कनेक्शन?
साल 2004 में एक फिल्म आई थी ‘ऐतबार’. विक्रम भट्ट के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म आज से 20 साल पहले एक ऐसे विषय पर बनी थी जिसकी कहानी उस दौर की आम कहानियों से अलग थी. ‘साइकोलॉजिकल थ्रिलर’ विक्रम भट्ट बनाना तो चाहते थे लेकिन सब्जेक्ट लीक से हटकर था. ऐसे में इस फिल्म को साथ मिला लीक से हटकर काम करने के लिए मशहूर रतन टाटा का. इस फिल्म को रतन टाटा ने को-प्रोड्यूस किया था. उनके साथ इस फिल्म को को-प्रोड्यूस किया था जतिन कुमार ने.
अपनी पहली फिल्म होने की वजह से रतन टाटा को फिल्म की कामयाबी के लिए आश्वस्त करना मुश्किल काम था. लेकिन विक्रम भट्ट ने हर वो गणित लगाईं जिससे नुक्सान के आसार कम से कम होते गए. अमिताभ बच्चन समेत जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु को इस फिल्म में कास्ट किया गया था. उस दौर में जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु की जोड़ी ख़ासी हिट मानी जाती थी. रही सही कसर अमिताभ के होने से पूरी होती दिखी. नाकामयाबी का कोई चांस था ही नहीं.
लेकिन नतीजा क्या निकला?
फिल्म बिजनेस की यही तो खूबी है. यहां उम्मीदें बिना किसी वजह से टूट सकती हैं और पूरी भी हो सकती हैं. सबको यही लगा था कि फिल्म हिट होगी. लेकिन बॉक्स ऑफिस पर जो नतीजे आए उसने इसी पहली फिल्म को रतन टाटा की आख़िरी फिल्म बना दिया.
आज से बीस साल पहले ‘ऐतबार’ को बनाने में लगभग दस करोड़ रुपए की लागत आई थी.
लेकिन देश और दुनिया भर की कमाई मिलाकर भी ये फिल्म अपनी लागत तक नहीं निकाल पाई. इस फिल्म से रतन टाटा को करीब चार करोड़ का नुक्सान हुआ. और इस नुक्सान के बाद रतन टाटा ने ऐसे फिल्मी नुक्सान की कभी कोई नौबत आने ही नहीं दी. क्योंकि इस फिल्म के बाद उनका मन फिल्मी कारोबार से उचाट हो गया.
लोग रतन टाटा को उनकी सफलताओं के लिए जानते हैं, बार-बार की गई कोशिशों और मुश्किलों के सामने टिके रहने के लिए याद कर रहे हैं, लेकिन ऐसे में उस मोर्चे की जानकारी भी होनी ज़रूरी है जिस पर मिली हार के बाद रतन टाटा ने कभी उधर का रुख ही नहीं किया.