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महाकुंभ-2025 : आदि शंकराचार्य ने शुरुआत की, अब कैसी है अखाड़ों की दुनिया?

8वीं सदी के संत और दार्शनिक आदि शंकराचार्य, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने तब सनातन परंपराओं को मजबूत किया, जब वो विभिन्न युद्धरत संप्रदायों में बंटा हुआ था. उन्हें ही कुंभ अनुष्ठानों के मौजूदा स्वरूप का जनक बताया जाता है

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 22 जनवरी , 2025

संस्कृत में 'अखाड़ा' का मतलब कुश्ती का अखाड़ा होता है, यानी वह स्थान जहां पहलवान कुश्ती करते हैं. लेकिन इन्हें थोड़ा और करीब से देखें तो ये मठों की संरक्षित दीवारों के अंदर मौजूद, अपने आप में संपूर्ण एक सूक्ष्म जगत हैं जो महाकुंभ के दौरान मुख्य आकर्षण होते हैं. 

अयोध्या के वैदिक विद्वान और लेखक महंत मिथलेश नंदिनी शरण बताते हैं, "अखाड़ों की परंपरा धर्म जितनी ही पुरानी है. जब संतों ने मठों की स्थापना की, तो उन्हें अक्सर राक्षसों से चुनौतियों का सामना करना पड़ता था. इससे अक्सर उनकी धार्मिक प्रथाएं और अनुष्ठान बाधित होते थे."

महंत मिथलेश आगे बताते हैं, "इसलिए, कई संतों ने 'सनातन धर्म' की रक्षा के लिए एक "मार्शल विंग" बनाया. स्वाभाविक रूप से, संतों की रक्षा करने वालों को शारीरिक रूप से स्वस्थ होना पड़ता था, और जिन स्थानों पर वे अपने कौशल का अभ्यास करते थे, उन्हें अखाड़ा कहा जाता था. अखाड़ों के बिना तो कुंभ केवल एक धार्मिक मेला ही होगा."

आदि शंकराचार्य, जो 8वीं सदी के संत और दार्शनिक थे उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने उस समय सनातन परंपराओं को तब मजबूत किया, जब वो विभिन्न युद्धरत संप्रदायों में बंटा हुआ था. आदि शंकराचार्य को ही कुंभ अनुष्ठानों के मौजूदा स्वरूप का जनक बताया जाता है. उन्होंने समाज को तब एकजुट करने का प्रयास किया था और इसमें सफल भी रहे थे. 

इसके अलावा आदि शंकराचार्य को अखाड़ों की स्थापना का भी श्रेय दिया जाता है, जो मठवासी आदेश हैं और कुंभ मेले में अहम भूमिका निभाते हैं. अखाड़ों की स्थापना 'सनातन' धर्म की रक्षा और दार्शनिक चर्चा को बढ़ावा देने के लिए की गई थी.

'दशनामी नागा संन्यासी का इतिहास' में लेखक जदुनाथ सरकार ने 8वीं सदी में मौजूद साधुओं के दस समूहों का जिक्र किया है. इनके नाम हैं - गिरि, पुरी, भारती, बान, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती. इन समूहों को आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार 'मठों' से जोड़ा गया था.

श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा
श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा

'पुरी', 'भारती' और 'सरस्वती' शाखाएं शृंगेरी मठ (दक्षिण) से जुड़ी थीं, जबकि 'बान' और 'अरण्य' जगन्नाथ पुरी (पूर्व) में गोवर्धन मठ के साथ जुड़े थे. 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' को जोशी मठ (उत्तर) में भेजा गया, जबकि 'तीर्थ' और 'आश्रम' शाखाओं को द्वारका (पश्चिम) में शारदा मठ को सौंपा गया. सरकार ने प्रत्येक 'मठ' के अधिकार क्षेत्र और चरित्र को भी चिह्नित किया है. वर्तमान समय में सात शैव अखाड़े महानिर्वाण, अटल, निरंजनी, आनंद, जूना, आह्वान और अग्नि दसनामी संप्रदाय के हैं.

वैष्णव अखाड़े का जन्म

14वीं शताब्दी में रामानंदाचार्य का जन्म और उत्थान हुआ. वाराणसी के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में जन्मे रामानंद वैष्णव मार्ग पर चले. भक्ति आंदोलन के शुरुआती और प्रमुख प्रस्तावक के रूप में उन्हें एक समाज सुधारक के रूप में भी देखा जाता है जिन्होंने लिंग, वर्ग या जाति के आधार पर भेदभाव किए बिना शिष्यों को स्वीकार किया. कबीर, रविदास, भगत पीपा जैसे भक्तों को उनके शिष्यों के रूप में जाना जाता है, जिन्हें रामानंदी संप्रदाय से संबंधित माना जाता है.

कुंभ के तीन मुख्य अखाड़े खुद को रामानंदाचार्य से जोड़ते हैं. वैष्णव संप्रदाय को दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी में बांटा गया है. इन अखाड़ों की अनूठी पहचान उनके झंडों, रीति-रिवाजों और पहनावे के तरीके में दिखाई देती है. इनके नागा संन्यासी सफेद वस्त्र पहनते हैं.

क्या है उदासीन अखाड़ा

शेष तीन अखाड़े, जिन्हें उदासीन के रूप में वर्गीकृत किया गया है वे सभी सिख धर्म से जुड़े हैं. उदासीन शब्द का अर्थ है तटस्थ या पक्षपात रहित. विद्वानों ने जिक्र किया है कि उदासीन संप्रदाय के अनुयायी गुरु या शिक्षक को सर्वोच्च मानते हैं और उनका मानना है कि गुरु के मार्गदर्शन के बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं की जा सकती. उन्होंने जटिल अनुष्ठानों को त्यागते हुए मोक्ष के साधन के रूप में सेवा को भी चुना. ये अखाड़े 18वीं सदी में अस्तित्व में आए और उनसे जुड़े सदस्य सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं.

श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा
श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा

अखाड़ा परिषद का गठन
 
वर्ष 1954 में आयोजित स्वतंत्र भारत के पहले कुंभ के मौनी अमावस्या स्नान पर तीर्थयात्रियों की अभूतपूर्व भीड़ संगम पर पहुंची थी. धार्मिक उत्साह ने अपनी सीमा खो दी, भीड़ नियंत्रण के उपाय विफल हो गए और भगदड़ मच गई जिसमें लगभग 800 लोगों की जान चली गई और 2,000 से अधिक लोग घायल हो गए. घटना की आधिकारिक जांच के बाद अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन हुआ.

तब से, यह कुंभ मेले के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. वर्तमान में अखाड़ा परिषद में सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल हैं और ये मठवासी आदेशों की शीर्ष संस्था के रूप में काम करता है. यह कुंभ मेले पर महत्वपूर्ण निर्णय लेता है और मठवासी आदेशों से संबंधित मामलों को संबोधित करता है. यह उनके बीच विवादों (अगर कोई हो) को भी सुलझाता है.

संन्यासिन और किन्नर अखाड़ा

जूना अखाड़े के भीतर एक माई बाड़ा बनाया गया था. 2013 के कुंभ में 12 साल की तपस्या पूरी करने वाली कई महिला तपस्वियों को दीक्षा दी गई थी. उस समय महिला संन्यासियों के अनुरोध पर "बाड़ा" शब्द की जगह "अखाड़ा" के प्रयोग पर सहमति बनी. इस प्रकार महिलाओं का संन्यासिन अखाड़ा अस्तित्व में आया. किन्नर अखाड़ा 2016 के उज्जैन कुंभ में सामने आया था. 2019 के कुंभ मेले में किन्नर अखाड़े के बैनर तले लगभग 2,000 संन्यासी और साधुओं ने भाग लिया.

आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण ने ट्रांसजेंडरों को एकजुट करने, उनके मुद्दों को सुलझाने, गलतफहमियों को दूर करने और लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बताने के अलावा 'सनातन' धर्म में ट्रांसजेंडरों की स्थिति के बारे में लोगों के बीच संदेश फैलाने के लिए 'अखाड़े' की स्थापना की थी. 2019 में उन्हें जूना अखाड़े का हिस्सा बना दिया गया.

महामंडलेश्वर और अखाड़ों का प्रबंधन
 
अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों के मुताबिक अखाड़े सीधे संन्यासी नहीं लेते हैं. उन्हें एक 'मढ़ी' (दीक्षा केंद्र) में नामांकित होना चाहिए. ये मढ़ी ही मिलकर एक अखाड़ा बनाते हैं. भिक्षुओं को उनकी आध्यात्मिक प्रगति के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, जैसे - कुटीचक, बहुदक, हंस और परमहंस. 

एक कुटीचक तपस्वी जंगल में रहने के लिए दुनिया को त्याग देता है. वह यात्रा नहीं कर सकता या भीख नहीं मांग सकता. बहुदक भटकने वाला भिक्षु है जो तीन दिनों से अधिक एक स्थान पर नहीं रह सकता. वह वस्तुओं के रूप में भिक्षा एकत्र करता है और नकद स्वीकार नहीं कर सकता. संन्यासी बनने के लिए कोई न्यूनतम आयु नहीं है. वाणी, विचार और कर्म पर नियंत्रण से संबंधित तपस्या के साथ संन्यासी हंस और परमहंस जैसी उपाधियां और दंड (भगवान के अवतार के रूप में देखा जाता है) धारण करने का अधिकार प्राप्त करते हैं जिनके नियम और कानून भी होते हैं.

श्री पंचदशनाम जुना अखाड़ा
श्री पंचदशनाम जुना अखाड़ा

सभी अखाड़ों के अपने नागा साधु और हठ योगी भी होते हैं. अखाड़ों के प्रबंधन संन्यास उपनिषद के संस्करणों का उपयोग आध्यात्मिक नेताओं और एक प्रशासनिक इकाई के माध्यम से अखाड़ों के प्रबंधन के लिए किया जाता है. आध्यात्मिक प्रमुख को 'महामंडलेश्वर' कहा जाता है, जिनके पास 'मंडलेश्वर' और 'महंत' की परिषद हो सकती है.

जब अखाड़ों की ताकत बढ़ी, तो महामंडलेश्वरों की जरूरत महसूस हुई. इसने आचार्य महामंडलेश्वर के लिए मार्ग प्रशस्त किया. 'अखाड़े' का प्रबंधन करने वाली प्रशासनिक संस्था को 'पंच' कहा जाता है, इसमें पांच व्यक्ति शामिल होते हैं जो सभापति होते हैं और महंत सदस्य होते हैं. 'महंत' से नीचे के रैंक में 'कारबारी', 'थानापति', 'सचवी', 'पुजारी', 'कोतवाल' और 'कोठारी' शामिल हैं जो कुंभ मेले में चुने जाते हैं. महाकुम्भ के विभिन्न अखाड़ों में पदाधिकारी चुनने की प्रक्रिया चल रही है.
 
कैसे होता है चुनाव?

प्रत्येक अखाड़ा अपने दो-दो सदस्यों को अखाड़ा परिषद के सदस्य के रूप में मनोनीत करता है. इस प्रकार सभी 13 अखाड़े के कुल 26 सदस्य अपने बीच से अध्यक्ष, महामंत्री, कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री और प्रवक्ता का चुनाव करते हैं. परिषद का चुनाव हर पांच वर्ष पर होता है.
 
हिंदू धर्म में अखाड़े

(कुल संख्या 13, जोकि तीन मतों - शैव संन्यासी, वैरागी और उदासीन में बंटे हुए हैं.)
                   
शैव संन्यासी संप्रदाय

(इसके तहत कुल सात अखाड़े हैं. शिव और उनके अवतारों को मानते हैं.)

1 - श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, कनखल, हरिद्वार
2 - श्री पंच अटल अखाड़ा, वाराणसी
3 - श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, दारागंज, प्रयागराज
4 - श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती, त्रयंबकेश्वर, नासिक
5 - श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, बाबा हनुमान घाट, वाराणसी
6 - श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, दशाश्वमेध घाट, वाराणसी
7 - श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा, गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़, गुजरात
                         
वैरागी संप्रदाय

(इसमें कुल तीन अखाड़े हैं. यह विष्णु के उपासक हैं.)

1 - श्री दिगंबर अनी अखाड़ा, शामलाजी खाक चौक मंदिर, सांभर कांथा, गुजरात
2 - श्री निर्वानी अखाड़ा, हनुमान गढ़ी, अयोध्या
3 - श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा, धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन (यह दो गुटों में बंट गया है.)
                      
उदासीन संप्रदाय

(इसमें कुल तीन अखाड़े हैं. मुख्यत: सिख-साधुओं से जुड़ा अखाड़ा. सनातन धर्म को मानने वाले)
 
1 - श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, कृष्णनगर, कीडगंज, प्रयागराज 
2 - श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, कनखल, हरिद्वार
3 - श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड (यह दो गुटों में बंट गया है.) 

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