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काला पानी : उजली कहानी और पानी सरीखे तरल अभिनय से बना शानदार सिनेमा

बिना किसी गुंजाइश के कहा जा सकता है कि 'काला पानी' बिस्वपति सरकार का अब तक का सबसे मज़बूत और गढ़ा हुआ काम है

नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है 'काला पानी'
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है 'काला पानी'
अपडेटेड 27 अक्टूबर , 2023

एक स्कूल टीचर ब्लैकबोर्ड पर भारत का नक्शा बनाता है. स्क्रीन के भीतर बच्चों को और स्क्रीन के बाहर दर्शक को लगता है कि नक्शा पूरा है. अधूरा होने की कोई ख़ास वजह नहीं दिखती. फिर भी टीचर के जोर देकर पूछने पर कि नक़्शे में क्या कमी है एक बच्चा हाथ उठाता है. आप सोचते हैं बच्चा ब्लैकबोर्ड पर और क्या जोड़ेगा.

बच्चे को नक़्शे में वो कमी नज़र आती है जिसे आमतौर पर हम आप नज़रंदाज़ कर देते हैं भारत का नक्शा देखते हुए. बहुत बारीकी से देखने वाले कश्मीर और पीओके देखते हैं, उससे भी बारीकी से देखने वाले नॉर्थ ईस्ट मापते हैं. लेकिन नक़्शे के बाहर बाईं और दाईं तरफ़ फैले अरब महासागर और बंगाल की खाड़ी में कुछ बिंदु और भी हैं.

बच्चा नक्शा पूरा करता है. नक़्शे में अब लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीप समूह भी दिखाई देते हैं. नेटफ्लिक्स पर हालिया रिलीज हुई वेब सीरीज 'काला पानी' भारत के इसी गुमनाम द्वीप की कहानी है. जिसे बनाया है टीवीएफ की अपने समय की एक बेहद कामयाब तिकड़ी समीर सक्सेना, अमित गोलानी और बिस्वपति सरकार ने. इस तिकड़ी के बनाए शो और सीरीज तब वायरल हुआ करती थीं जब भारत में क़ायदे से इंटरनेट भी नहीं हुआ करता था. कुछ नया करने की इनकी ललक ही है जो हमेशा पर्दे के बाहर रहकर 'लगान' और 'स्वदेस' जैसी कहानी कहने वाले आशुतोष गोवारिकर को भी पर्दे के भीतर खींच लाई.

दूरदर्शन के ज़माने में शाहरुख खान जब टीवी के धारावाहिकों में एक्टिंग किया करते थे तब 'सर्कस' सीरियल में शाहरुख के साथ आशुतोष गोवारिकर ने विकी का किरदार निभाया था. इसके बाद आशुतोष ने एक्टिंग की नहीं. लेकिन सुदूर अंडमान की ये कहानी सुनकर आशुतोष ने फिर से एक्टिंग का फैसला लिया, और क्या पानी की तरह सहज एक्टिंग की है. बहरहाल ये देखते हैं कि 'काला पानी' दर्शकों की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है. 

कहानी

बिस्वपति सरकार और राहुल सक्सेना कंटेंट क्रिएटर्स के उस मयार से आते हैं जहां कहा जाता है कि 'स्टोरी इज़ दी किंग', कहानी ही सब कुछ है. कहानी नहीं तो कुछ नहीं. चाहे जितने बड़े फैन बेस वाले कलाकार ले आइए लेकिन उनका दर्जा कहानी से ऊपर नहीं हो सकता. कहानी की शुरुआत होती है साल 2027 के अंडमान से, जहां एक अजीब सी बीमारी फैलने की शुरुआत होती है. एक मल्टी-नेशनल कंपनी एटम अंडमान में किसी बड़े प्रोजेक्ट में जुटी हुई है. कंपनी का भरोसा है कि पैसे के दम पर कहीं भी कोई भी काम करवाया जा सकता है.

लेफ्टिनेंट गवर्नर एडमिरल ज़िब्रान क़ादरी के किरदार में आशुतोष गोवारिकर
लेफ्टिनेंट गवर्नर एडमिरल ज़िब्रान क़ादरी के किरदार में आशुतोष गोवारिकर

सरकारी डॉक्टर सौदामिनी सिंह (मोना सिंह) से एटम के अधिकारियों को किसी काग़ज़ पर दस्तख़त चाहिए होते हैं. इसमें काम आता है अंडमान में हालिया तैनात हुआ एक आईपीएस अधिकारी एसीपी केतन (आमेय वाघ). अचानक फ़ैल रही बीमारी और मरते हुए लोगों से इतर केतन को बस फ़िक्र है 'काला पानी' से आज़ाद होकर वापिस दिल्ली जाने की. अंडमान के लेफ्टिनेंट गवर्नर एडमिरल ज़िब्रान क़ादरी (आशुतोष गोवारिकर) इस बीमारी को महामारी मानने को तैयार हैं लेकिन उसके लिए डॉक्टर सौदामिनी को ज़रूरी सुबूत लाने होंगे.

दूसरी तरफ अंडमान की एक जनजाति है ओराका, जिस पर इस बीमारी का कोई असर नहीं होता. पोर्ट ब्लेयर का एक लोकल गाइड चीरू (सुकांत गोयल) एक परिवार को अंडमान दिखाने निकला है. संतोष (विकास कुमार) और गार्गी (सारिका सिंह) अपने बच्चों के साथ अंडमान घूमने आए हैं. अब एलजी और डॉक्टरों को इस महामारी का इलाज खोजना है. ओराका जनजाति से इस महामारी का इलाज जुड़ा हुआ है क्योंकि उन्होंने बहुत पहले ही इस महामारी (जिसे ओरका पूर्वजों का शाप कहते थे) का इलाज खोज चुके थे. मेनलैंड से किसी भी तरह की मदद की उम्मीद नहीं रहती. अब अंडमान के एलजी और डॉक्टरों को इस महामारी का इलाज मिलकर खोजना है. इस महामारी के इलाज में सारे किरदारों की क्या और कैसी भूमिका रहती है यही 'काला पानी' की कहानी है. 

लिखाई 

बिना किसी गुंजाइश के कहा जा सकता है कि ये सीरीज बिस्वपति सरकार का अब तक का सबसे मज़बूत और गढ़ा हुआ काम है. इस कहानी को अंडमान में घटता दिखाकर ही बिस्वा ने करीब आधी लड़ाई जीत ली है. इंसान के मचलते लालच, छलकती धोखेबाजी और ज़रुरत से ज्यादा समेटने की उद्दाम इच्छा को बिस्वा ने बेहद करीने और बेनक़ाब तरीके से दिखाने की अपनी कोशिशों में कहीं कमी नहीं रख छोड़ी है.

कुछ ही साल पहले कोविड महामारी से गुजरे दर्शकों को ना तो अंडमान की ये महामारी LHF-27 काल्पनिक लगती है और ना ही उससे निपटते लोगों की कोशिश. कोविड महामारी के ट्रेसेज बिस्वपति एंड टीम ने इतनी बारीकी से इस्तेमाल किए हैं कि उनका असर जाता नहीं. कर्फ्यू में पानी के टैंकर के साथ चलता हथियारबंद पुलिसवाला, पीने के पानी के लिए चलती गोलियां, अचानक लॉकडाउन में अलग-अलग रह गए परिवार, ऑक्सीजन मास्क लगाए सड़क पर बैठा बीमार शख्स और एकसाथ जलती कई चिताएं. ऐसा कुछ भी नहीं जिस पर कोविड से पहले किसी को यकीन हो पाता और जिस पर अब किसी को ज़रा सा भी शक होता हो.

चीरू के किरदार में सुकांत गोयल
चीरू के किरदार में सुकांत गोयल

क्रिमेशन सेंटर में अस्थि कलश खत्म हो जाने की वजह से शीशे के जार में मां की राख लेकर लौटता परिवार और 'सिस्टम' की लीपापोती, इनकी याद अभी शायद ही किसी के ज़ेहन में धुंधली हुई होगी. इन एनकडॉट्स को इस्तेमाल करके इंसानी भूलों पर एक स्वस्थ विमर्श खड़ा करना और उसकी जड़ में कुदरत को रखना, आसान नहीं रहा होगा. 'काला पानी' स्क्रीन पर इसलिए इतनी सच्चाई से घट पाई क्योंकि बिस्वा एंड टीम ने कई बेचैन रातें ईमानदारी से काग़ज़ पर उतारी होंगी. 'ज़िम्मेदारी क़ाबिलियत देखकर नहीं दी जाती, बल्कि ज़िम्मेदारी क़ाबिल बनाती है' सरीखे कसे हुए और असरदार डायलॉग्स 'काला पानी' को उस मुक़ाम पर खड़ा करते हैं जहां आप सीरीज ख़त्म होने के बाद एक अच्छी किताब की तरह अंडरलाइन की हुई बातें ना भूलने की कोशिश करते हैं.

अदाकारी  

क्योंकि बिस्वा एंड टीम ने 'काला पानी' इतनी बारीक़ी और ईमानदारी से लिखी थी कि आशुतोष गोवारिकर जैसे पारखी को फिर से पर्दे पर आने का फ़ैसला करने में बहुत सोचना नहीं पड़ा होगा. आशुतोष ने बरसों बाद स्क्रीन पर वापसी करके ठीक फैसला किया ये आपको सीरीज देखते हुए लगने लगता है. मोना सिंह को जितनी स्क्रीन मिली उतने में उन्होंने अपना काम कर दिया है. लेकिन दो एक्टर्स इस सीरीज में ऐसे हैं जिनका काम देखकर आप दंग रह जाएंगे. वाक़ई!

पहले हैं चीरू के किरदार में सुकांत गोयल. अद्भुत काम है सुकांत का. अंडमान के लोकल टैक्सी ड्राइवर और गाइड चीरू के कैरेक्टर को आप शायद ही कभी भूल पाएं. कसावट के साथ लिखी हुई इस सीरीज में सुकांत ने अपने किरदार को ना सिर्फ 'लॉस्ट इन ट्रांसलेशन' से बचा लिया है बल्कि उसे अपनी कलाकारी से नए मायने ही दे दिए हैं. सुकांत के काम से पहले से भी परिचित जो दर्शक होंगे वो सुकांत और चीरू को एक समय के बाद अलग देख समझ पाने में खुद को नाकाम पाएंगे. यही सुकांत की कामयाबी है.

संतोष के किरदार में विकास कुमार
संतोष के किरदार में विकास कुमार

दूसरा ना भूला जा सकने वाला काम है संतोष के किरदार में विकास कुमार का. एक पिता के किरदार में विकास स्क्रीन पर अपनी एक्टिंग से जो जादू उपजाते हैं, वो एक पति के किरदार में तब कई गुना और अद्भुत हो जाता है जब संतोष अपनी मरती हुई पत्नी से अंतिम विदा लेता है. बिना लाउड हुए विकास ने जिस तरह से इस पूरी सीरीज में असहाय से दिखते पिता और पति को जिंदा कर दिया है वो आपके दिमाग़ में काफी दिनों तक ताज़ा रहेगा. आमेय वाघ ने एसीपी केतन का किरदार आदतन अच्छा किया है. उनके कैरेक्टर का ट्रांसफ़ॉर्मेशन स्क्रीन पर महसूस होता है. राधिका मेहरोत्रा अपने काम से चौंकाती हैं.

कुल मिलाकर

एक बेहतरीन कहानी, कसी हुई लिखावट, अच्छी सिनेमेटोग्राफ़ी और हर कैरेक्टर की तरफ से सधी हुई अदाकारी इस सीरीज से चूकने की कोई वजह आपके हाथ आने नहीं देती. विजुअल ट्रीट के साथ जब पकी हुई कहानी और अदाकारी का छौंक मिल जाता है तो इसे देखने में हुई कई घंटों की थकान, जाते हुए आपको निराश नहीं छोड़ जाती.

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