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हिम्मत शाह : अधूरा छूट गया जीवन का सपना

दो मार्च को मशहूर कलाकार हिम्मत शाह का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया. राजेन्द्र शर्मा यहां उनकी स्मृतियों को साझा कर रहे हैं

मशहूर मूर्तिकार हिम्मत शाह/फाइल फोटो
मशहूर मूर्तिकार हिम्मत शाह/फाइल फोटो
अपडेटेड 7 मार्च , 2025

"अभी बहुत काम करना है मुझे, एक सौ बीस साल तक जीऊंगा मैं", अदम्य जिजीविषा से भरे भारतीय समकालीन मूर्तिकला के शीर्षस्थ कलाकार हिम्मत शाह 92 साल की उम्र में जब अपने मिलने वालों के बीच यह जुमला उछाल कर ठहाका लगाते तो वातावरण भी ठहाकों से गुलजार हो उठता. उनकी इस जिंदादिली को देख कर हर कोई मान लेता कि एक सौ बीस न सही, सौ का आंकड़ा तो हिम्मत शाह जरूर पार कर लेंगे.

करीब सप्ताह भर पहले की ही बात है, हिम्मत जयपुर के कला समीक्षक राजेश व्यास को फोन पर अपनी ढेर सारी योजनाओं के बारे में बताते हुए कह रहे थे 'आई एम स्टील यंग!' लेकिन ऐसा जिंदादिल इंसान दो मार्च 2025 की सुबह दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा, शायद यह बात किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा.

हिम्मत का जन्म 22 जुलाई 1933 को गुजरात के लोथल में एक जैन परिवार में हुआ था. लेकिन एक व्यवसायी परिवार में पैदा होने के बावजूद उन्होंने दस साल की उम्र में घर छोड़ कर कला को अपनाया. सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई से स्नातक की उपाधि हासिल कर हिम्मत ने एमएस यूनिवर्सिटी बड़ौदा में अपने गुरु और प्रख्यात कलाकार एन एस बेंद्रे से कला की बारीकियां सीखी.

हिम्मत शाह की एक कृति
हिम्मत शाह की एक कृति

वर्ष 1967 में फ्रांसीसी सरकार की छात्रवृत्ति पर वे दो साल के लिए पेरिस गये. वहां एटलियर 17 में प्रिंटमेकर एसडब्ल्यू हेटर और कृष्णा रेहडी के अधीन अध्ययन किया. देश में इंस्ट्रॉलेशन (आधुनिक कला का एक रूप) का दौर बहुत बाद में आया पर हिम्मत शाह ने पचास के दशक में ही 'बर्न पेपर कोलाज' जैसा इंस्ट्रॉलेशन रच दिया था, जिसे देखकर उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि, "भाई, मैं तो अनाड़ी हूं, इसके बारे में थोड़ा विस्तार से बताओ मुझे."

हिम्मत शाह बताते थे कि उनके गुरु बेंद्रे साहब ने एक बार कहा था,"मैं तुम्हें आर्ट नहीं सिखा सकता...आर्ट तुम्हें खुद ही ढूंढ़ना पड़ेगा...यदि तुम्हें आर्ट समझ में आ गई, तो आ गई, नहीं तो सात जन्मों तक भी समझ नहीं आएगी."

अपने गुरु एन एस बेंद्रे का यह गुरुमंत्र हिम्मत को इस कदर समझ आया कि वे जीवन भर किसी एक माध्यम के मोहताज नही रहे. तैलरंग, जलरंगी चित्र, रेखांकन, कोलाज, जले हुए कागज से तैयार किये गये म्यूरल, सिरेमिक, मूर्तिशिल्पी, सीमेंट, क्रंकीट, जाली, लोहे के सरियों, हीरे आदि किसी भी माध्यम और मटेरियल से वे कलाकृतियों को सिरज देते.

हिम्मत शाह की एक और कृति का नमूना
हिम्मत शाह की एक और कृति का नमूना

उन्होंने वास्तु शिल्प, भित्ति चित्र, टेराकोटा और कांस्य में अमूर्तन का इतिहास रचा. अपने सृजन की प्रक्रिया में काम आने वाले, मूर्ति तराशने, आकार देने और ढालने के लिए कई तरह के हाथ के औजारों, ब्रश और उपकरणों को उन्होंने खुद भी ईजाद किया. सीमेंट और क्रंकीट में भित्ति चित्र भी उन्होंने सिरजे. जयपुर में अपने लगभग पच्चीस बरस के प्रवास में उन्होंने मूर्तिकला में एक अनूठी शैली विकसित की और उनकी कलाकृतियां दुनिया भर में मशहूर हुईं. शाह की कृतियों में कांस्य और टेराकोटा माध्यम का अद्भुत प्रयोग देखने को मिलता है.

अनेक माध्यमों में अपनी कलाकृतियों को सिरजने की अद्भुत जिजीविषा से भरे हिम्मत शाह ने एक बार कला समीक्षक विनोद भारद्वाज से कहा कि हो सकता है कि कल मैं नृत्य करने लगूं. कला समीक्षक राजेश व्यास बताते हैं कि हिम्मत शाह का सबसे प्रबल पक्ष उनका जड़ता से परे होना था. उनकी कलाकृतियों में कहीं कोई एकरसता नहीं थी. मूर्तिशिल्प, रेखांकन रचते हुए वे खुद को भी भूल जाते थे और अगर कुछ सृजित हो जाता तो इतना उत्‍साहित हो उठते थे कि बच्चों की तरह उछल कूद करने लगते. एक दफा हिम्मत शाह कुमार गंधर्व की एक सीडी लेकर घर आ गये. सुनते सुनते अचानक वे नृत्य‍ करने लगे. वे ऐसे ही थे, मन से निर्मल और निश्छल. 

हिम्मत शाह कला के कई रूपों में माहिर थे
हिम्मत शाह कला के कई रूपों में माहिर थे

अपनी ही चुनी हुई दुनिया में, अपने एकांत में मस्त रहने वाले हिम्मत शाह सम्मान और पुरस्कारों से परे रहने वाले कला साधक थे. साल 1956 और 1962 में ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार, साल 1988 में साहित्य कला परिषद् पुरस्कार और 2003 में मध्य प्रदेश सरकार के कालिदास सम्मान से उन्हें नवाजा गया. कालिदास सम्मान के बारे में राजेश व्यास बताते हैं कि उस साल की जूरी के वह सदस्य थे और हिम्मत शाह का नाम प्रस्तावित करना चाहते थे परन्तु उनका नाम प्रस्तावित करने से पहले तीन दिन तक उनके घर जाकर समझाने और सहमति मिलने पर ही उनका नाम प्रस्तावित कर सका.

पूरा जीवन कला की दुनिया में सक्रिय रहने के बावजूद उन्हें पद्मश्री क्यों नहीं मिल सका? यह पूछे जाने पर कोई गिला शिकवा किये बिना हिम्मत कहते थे कि मैं अपना जीवन अपने मन का जी पाया, यह क्या कम बड़ी बात है.

हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि और पत्रकार रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, श्रीकांत वर्मा, श्रीराम वर्मा, रमेश चन्द्र शाह, कमलेश, अशोक वाजपेयी, विनोद भारद्वाज, प्रयाग शुक्ल ये सभी हिम्मत शाह की कला में जड़ता न होने के प्रशंसक रहे और दिल्ली में गढ़ी में स्थित उनके स्टूडियो में मिलने जाया करते थे. हिम्मत शाह की कलाकृतियों पर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, श्रीकांत वर्मा, प्रयाग शुक्ल और गिरधर राठी ने कविताएं भी लिखीं.

हिम्मत शाह द्वारा बनाई गई एक कलाकृति
हिम्मत शाह द्वारा बनाई गई एक कलाकृति

लगभग पच्चीस साल पहले जयपुर में बसने से पहले हिम्मत शाह का ठिकाना दिल्ली रही थी. लेकिन वह दौर उनके लिए आर्थिक रूप से खासा कष्टदायक था, बावजूद इसके खिलदंड़ हिम्मत उन तंगी के दिनों में भी आनंद में रहते. इन पंक्तियों के लेखक को एक इंटरव्यू में हिम्मत शाह ने बताया था कि मैंने जीवन के तीस से ज्यादा बरस केवल खिचड़ी खाकर गुजारे हैं. 

'क्यों?', इस सवाल पर उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि एक तो खिचड़ी के अलावा मुझे कुछ बनाना आता नहीं है, दूसरे फकीरी का सबसे अच्छा दोस्त खिचड़ी ही है. फकीरी पर बात आई तो यह बताने में कोई संकोच नहीं किया कि पैसे की किल्लत में मैंने जुआ भी खूब खेला.

पिछली सदी के सातवें दशक की अपनी स्मृतियों को खंगालते हुए कवि और कला समीक्षक विनोद भारद्वाज बताते हैं कि 1974 में जब मैं टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के प्रकाशनों में शामिल होने के लिए दिल्ली आया था, और जब मैं ग्रेटर कैलाश में रहता था तो वहां से हिम्मत भाई का स्टूडियो बहुत करीब था. लगभग हर रविवार की दोपहर मैं उनके साथ ही बिताता, उनकी खुशनुमा बातों का आनंद लेता और उनकी बनाई हुई स्वादिष्ट खिचड़ी खाता था. वे बहुत ही सरल, ईमानदार और संघर्षशील कलाकार थे.

अपने संघर्ष के दिनों में हिम्मत शाह स्वामीनाथन के गढ़ी स्टूडियो, रघु राय के निवास या कवि कमलेश के निवास पर रहे. भारतीय कला बाजार के महान विस्फोट के बाद उन्हें पैसे मिले, जयपुर में एक घर मिला और उनकी कलाकृतियां लाखों और करोड़ों में बिकने लगी.

जीवन भर सरल और एक बच्चे जैसी मासूमियत रखने वाले हिम्मत शाह जीवन के अन्तिम दिनों में हर किसी को सन्देह की दृष्टि से देखने की एक अजीब मनोवृत्ति से ग्रस्त हो गये थे, जिसका कारण इन पंक्तियों के लेखक को उन्होंने खुद बताया था कि जो भी मेरे करीब आये, उनमें से ज्यादातर ने मुझे ठगा ही. उनका जब 90वां जन्मदिन बीकानेर हाउस दिल्ली में मनाया गया, तब उनके सबसे करीबी दोस्त फोटोग्राफर रघु राय के चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन भी इस अवसर पर किया गया.

हिम्मत शाह अक्सर कहा करते थे - 'आई एम स्टील यंग'
हिम्मत शाह अक्सर कहा करते थे - 'आई एम स्टील यंग'

दिल्ली‍ के कला जगत के तमाम चिर-परिचित चेहरे इस आयोजन में शरीक हुए. बहुत चर्चा में रहे इस आयोजन की समाप्ति पर इन पंक्तियों के लेखक से हिम्मत शाह ने कहा कि, देखो यहां ज्यादातर मुफ्त की शराब पीने आये थे, मेरा जन्मदिन मनाने नहीं. मेरा जन्मदिन मनाने आये होते तो मेरे आने की प्रतीक्षा करते, मेरे आने से पहले ही ज्यादातर अपनी जरूरत के हिसाब से पी चुके थे.

ऊर्जा से लबरेज रहने वाले हिम्मत शाह ने अपने 90वें जन्मदिन पर जयपुर के विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र में चार मंजिले विशाल स्टूडियो का निर्माण कराया. इस स्टूडियो में पेंटिंग, मूर्तिकला, प्रिंटमेकिंग, सिरेमिक के लिए अलग-अलग जगहें हैं. सोलर सिस्टम, लिफट, एयर कंडीशनर और अन्य गैजेट्स से सुसज्जित इस स्टूडियो की कांच की दीवारें मनमोहक दृश्य पेश करती हैं. दरअसल हिम्मत शाह इस स्टूडियो को एक कला संस्थान के रूप में स्थापित करना चाहते थे. यह उनके जीवन का सपना था, जिसे साकार करने की गरज से ही वह ताउम्र अविवाहित रहे. 

इन पंक्तियों के लेखक को विवाह न करने के बारे में उन्होंने बताया था कि पांचवें दशक से कला संस्थान का सपना देखने, संजोने और उसे साकार करने की जद्दोजहद में विवाह के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला.

हिम्मत शाह के जाने के बाद उनका कला संस्थान को स्थापित करने का सपना अधूरा छूट गया है. पें‍टर सुप्रिया अंबर का मत है कि हिम्मत शाह का स्टूडियो एक महान कलाकार की बौद्धिक संपत्ति है. अंबर मानती हैं कि ये संभावनाएं काफी क्षीण हैं कि हिम्मत शाह के कतिपय रिश्तेदार, जिनसे जीवन भर उनका कोई नाता नहीं रहा है, लोभ से मुक्त होकर राष्ट्रीय धरोहर की भावना का सम्मान बरकरार रख सकेंगे. लेकिन राजस्थान सरकार को इस बारे में पहल करते हुए उनके स्टूडियो को हिम्‍मत शाह संग्रहालय के रूप में संरक्षित करना चाहिए.

- राजेन्द्र शर्मा 

(लेखक राजेन्द्र  शर्मा उत्तर प्रदेश राज्य कर विभाग में राज्य कर अधिकारी के पद पर मुजफ्फरनगर में कार्यरत हैं. सरकारी नौकरी में आने से पहले पत्रकारिता कर चुके शर्मा की शास्त्रीय संगीत में विशेष रुचि है.)

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