आज की जीवनशैली में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो रात में नींद पूरी करने के लिए नींद की गोलियां लेते हैं. दूसरी तरफ, ऐसे भी लोग हैं जो नींद को पूरी तरह भगाने के लिए दवाइयां लेते हैं, तमाम नुस्खे अपनाते हैं. हालांकि बिना डॉक्टरों की सलाह के ये दोनों ही स्थितियां काफी घातक साबित हो सकती हैं.
बीते दिनों लखनऊ में एक ऐसा ही मामला सामने आया जहां बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रही एक लड़की रातभर जागकर पढ़ने के लिए 'नींद रोधी' दवाएं ले रही थी. साथ ही, वह खुद को सक्रिय रखने के लिए लगातार कॉफी भी पी रही थी. कुछ दिनों तक लगातार यह सिलसिला चलने के बाद एक शाम वह अचानक गिर कर बेहोश हो गई. आनन-फानन में परिवार वाले उसे अस्पताल ले गए.
इस बीच उन्हें लड़की के कमरे से दवाईयों से भरी एक शीशी मिली. अस्पताल में उन्होंने इसे डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि ये नींद रोधी गोलियां हैं. और बिना सलाह ली गई इन दवाओं के ओवरडोज की वजह से उसके दिमाग में रक्त के थक्के (ब्लड क्लॉट) बन चुके हैं और नसों में सूजन आ गई है. ये सुनकर परिवार वाले सकते में आ गए. फिर क्या, क्लॉट हटाने के लिए लड़की के ब्रेन की सर्जरी करनी पड़ी.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आजकल बड़ी संख्या में छात्र देर रात तक जाग कर पढ़ने के लिए नींद रोधी दवाईओं का सहारा ले रहे हैं. यही नहीं, लगातार कॉफी और चाय पीने से उनके शरीर में कैफीन की मात्रा में इजाफा हो रहा है. इससे नुकसान यह है कि उनके स्लीप साइकल पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. मीडिया से बातचीत में जाने-माने न्यूरोसर्जन डॉ. शरद श्रीवास्तव कहते हैं, "वैसे सुनने पर यह चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन आज बड़ी संख्या में छात्र नींद रोधी गोलियां ले रहे हैं जो उन्हें परीक्षाओं के दौरान जागते रहने में मदद करती हैं. यह एक बेहद खतरनाक चलन है. इन दवाओं के खतरनाक दुष्प्रभाव हो सकते हैं, खासकर जब इन्हें कैफीन की अधिक मात्रा (बहुत अधिक कॉफी) के साथ लिया जाए.''
जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. आर के सक्सेना हालांकि इसे दूसरी तरह से देखते हैं. उनके मुताबिक, "छात्रों द्वारा इन दवाईयों के सेवन का बढ़ता चलन दरअसल बढ़ते तनाव और साथियों के दबाव का नतीजा है. छात्रों पर ज्यादा अंक लाने का दबाव होता है ताकि उन्हें अच्छे कॉलेजों में प्रवेश मिल सके. अगर उन्हें अपने दोस्तों से आधा प्रतिशत भी कम अंक मिलता है तो वे निराश हो जाते हैं. बोर्ड परीक्षाओं में 98 और 99 फीसदी अंक लाने का दबाव धीरे-धीरे उन्हें खत्म कर रहा है."
बहरहाल, स्लीप साइकल में हो रहा यह बदलाव छात्रों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है. नींद का जो स्वाभाविक चक्र है उसमें लोग दिन भर जागते, काम करते हैं जबकि रात को सोते हैं या आराम करते हैं. आधुनिक जीवनशैली में ये जरूर है कि कुछ लोगों को आजीविका के लिए नाइट शिफ्ट में भी काम करना पड़ता है. लेकिन उसका नकारात्मक असर तो पड़ता ही है.
इस गैर-सेहतमंद जीवनशैली के कारण लोगों को नार्कोलेप्सी, शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर (एसडब्ल्यूएसडी), इडियोपैथिक हायपरसोम्निया (आईएच) जैसी बीमारियों से दो-चार होना पड़ता है. नार्कोलेप्सी से पीड़ित लोगों को जहां दिन में तीव्र, अनियंत्रित नींद आती है, वे किसी भी प्रकार की गतिविधि के दौरान किसी भी समय अचानक सो सकते हैं. वहीं, एसडब्ल्यूएसडी उन लोगों को प्रभावित करता है जिनके काम के घंटे सामान्य नींद की अवधि के साथ ओवरलैप होते हैं. जबकि आईएच से पीड़ित लोगों को पूरी रात आराम करने के बाद भी हर समय नींद महसूस होती है.
अब यहां सवाल पैदा हो रहे हैं कि जब ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी DGCI ऐसी किसी भी नींद रोधी दवाई को वैधता प्रदान नहीं करता तो ऐसी दवाएं बाजार में पहुंच कैसे रही हैं. इनका आयात कहां से और कैसे हो रहा है?
डॉक्टरों के मुताबिक, काउंटरों पर ये दवाएं 'चुनिया' और 'मीठी' जैसे नामों से बेची जा रही हैं और अवैध तौर पर इनका आयात थाईलैंड जैसे देशों से हो रहा है. बिना डॉक्टरी परामर्श के इन दवाओं का उपयोग करना प्रतिबंधित है, लेकिन ये दवाएं आसानी से काउंटरों पर मिल जा रही हैं.
यशोदा हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. दिलीप गुडे कहते हैं, "परीक्षा से पहले छात्रों द्वारा नींद से लड़ने के लिए दवाओं का उपयोग एक गंभीर मुद्दा है जो समाज और सरकार दोनों के लिए चिंता की बात है. DGCI ऐसी किसी भी दवा का अनुमोदन (अप्रूवल) नहीं करता है. लेकिन बहुत सी ऐसी दवाएं जैसे मोडाफिनिल, ओरेक्सिन रिसेप्टर एंटागोनिस्ट्स का इस्तेमाल नींद को रोकने के लिए किया जा रहा है. इसके गंभीर साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं.
मोडाफिनिल की बात करें तो इसकी बिक्री प्रोविजिल नामक ब्रांड के तहत होती है. इसका उपयोग मुख्य रूप से नींद के विकारों के उपचार में किया जाता है. चुनिया और मीठी इसके ही अलग-अलग प्रकार हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ये दवा इस्तेमालकर्ता को लगातार 40 घंटे या उससे ज्यादा समय तक जगाए रखने में सक्षम है. हालांकि एक बार जब दवा का असर खत्म हो जाए, तो इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए इस्तेमालकर्ता को अनिवार्य रूप से कुछ देर की नींद लेनी होती है.
इन नींद रोधी दवाईयों के बारे में एक चौंकाने वाली बात यह कही जा रही है कि इनका उपयोग आतंकवादी लड़ाई के दौरान खुद को सक्रिय बनाए रखने के लिए करते हैं. 26/11 के मुंबई हमले के दौरान भी आतंकियों के सामान से कथित तौर पर इन दवाईयों की बरामदगी हुई थी.